कविता के बहाने, बात सीधी थी पर कविता की व्याख्या, प्रश्न उत्तर आरोह भाग दो
कविता के बहाने कविता की व्याख्या
कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर उस घर
कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिड़िया क्या जाने?
कविता के बहाने प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित हिन्दी कविता के सशक्त हस्ताक्षर श्री कुँवर नारायण द्वारा रचित ‘कविता के बहाने’ शीर्षक से लिया गया है। कवि का मानना है कि आज के आधुनिक युग में कविता का कोई वजूद नहीं है क्योंकि आज का युग यंत्रों का युग है। ऐसे में यह कविता- कविता की अपार संभावनाओं को टटोलने का अवसर देती है।
कविता के बहाने व्याख्या – कवि इन पंक्तियों में कहता है कि कविता एक स्वच्छंद उड़ान है। कविता की इस उड़ान को चिड़िया क्या जाने अर्थात् चिड़िया के उड़नेकी एक सीमा होती है लेकिन कविता की कोई सीमा नहीं होती। यह प्रत्येक जगह पर आजादी से विचरण कर सकती है। कविता के पंख लगाकर उड़ने के बारे में चिड़िया भी कुछ नहीं जानती है अर्थात् जहाँ पर चिड़िया भी एक सीमा तक उड़ान भरती है, लेकिन कविता एक मन में उत्पन्न होने वाले भाव हैं जिनकी कोई सीमा नहीं होती ।
कविता के बहाने काव्य सौन्दर्य
कवि आधुनिक समय को देखकर कविता के वजूद को लेकर आशंकित हैं उसे शक है कि कही यांत्रिकता के दबाव में कविता का अस्तित्व समाप्तन हो जाये। लेकिन कवि ने कविता को पूर्ण बताया है। कविता की उड़ान को चिड़िया भी नहीं जानती है कि वह कहाँ तक जा सकती है।
(ख) कला पक्ष –
1- कवि ने कविता के वजूद को आशंका से परे बताया है। उसने इसके लिए चिड़िया से तुलना करके इसके समाधान हेतु दर्शाया है जिससे कविता में सौंदर्य उत्पन्न हुआ है।
2- संपूर्ण पद में चिड़िया शब्द पर जोर देकर पद को भावपूर्ण बना दिया है।
3- संपूर्ण पद में यर्थाथता का गुण विद्यमान है।
4- भाषा सरल, सहज एवं भावपूर्ण है।
5- संपूर्ण पद में प्रश्नालंकार का प्रयोग किया है। तुकबंदी के कारण गेयता का गुण पैदा हो गया है।
कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए, महकने के माने
फूल क्या जाने?
कविता एक खेल है, बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने
कविता के बहाने प्रसंग – पूर्ववत् । प्रस्तुत पद में कवि ने फूल और बच्चे के माध्यम से एक यात्रा की है। एक ओर प्रकृति है दूसरी ओर भविष्य की ओर कदम बढ़ाता हुआ बच्चा है।
कविता के बहाने व्याख्या – कवि कहता है कि कविता एक फूल के समान है। लेकिन कविता के खिलने के बारे में भला फूल क्या जानता है। फूल के खिलने की भी एक परिणति निश्चित होती है। जब फूल मुरझा जाता है तो उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है । परंतु कविता में हमेशा वैसी ही महक बनी रहती है ।
कवि कविता को एक खेल के समान बताता है जिसे केवल शब्दों के माध्यम से खेला जा सकता है। जिस प्रकार बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा नहीं होती, उनके सपने असीम होते हैं उसी प्रकार कविता भी एक शब्दों का खेल है जिनके खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य इसके उपकरण मात्र हैं। बच्चे किसी घर की सीमा के बंधन में नहीं बांधते हैं। उनके लिए सारी पृथ्वी एक घर के समान है।
कविता के बहाने काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष –
प्रस्तुत पद में कवि कुँवर नारायण ने फूल और बच्चे के माध्यम से कविता के महत्त्व को दर्शाने का प्रयास किया है।
(ख) कला पक्ष
1- भाषा के सरल, सरस एवं प्रवाहमयी रूप का सुंदर प्रयोग किया गया है।
2- अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
3- संपूर्ण पद में लय विद्यमान है।
4- कविता के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है।
5- तुकबंदी के कारण गेयता काव्य में विद्यमान हो गया है।
बात सीधी थी पर कविता की व्याख्या
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए –
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
बात सीधी थी पर का प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित ‘बात सीधी थी पर’ शीर्षक कविता से ली गई है जोकि कुँवर नारायण जी के काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ से उदधृत है। इसमें कवि ने कविता में कथ्य और माध्यम के द्वद्व को उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात कीहै।
बात सीधी थी पर की व्याख्या – कुँवर नारायण जी अपनी आधुनिक कविता के माध्यम से बताना चाहते है कि कई बार हम अपनी बात को किसी कविता के माध्यम सेया फिर मौखिक रूप से कहना चाहते हैं लेकिन भाषा के चक्कर में पड़ जाते हैं और वही बात बहुत पेचीदा हो जाती है। फिर प्रयत्न करते हैं किकिसी तरह इधर-उधर, घुमा-फिरा कर बात बन जाये। लेकिन इससे बात और कविता में क्लिष्टता आ जाती है और जो बात एकदम सरल तरीकेसे कहने की थी, वह और भी बिगड़ कर भयानक रूप धारण कर लेती है।
बात सीधी थी पर काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
कविता या बात में हमेशा सहज भाषा का प्रयोग करना चाहिए, व भाषा की क्लिष्टता की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए ।
(ख) कला पक्ष –
1- भाषा के सरल, सरस एवं प्रवाहमयी रूप का सुंदर प्रयोग किया गया है। उर्दू शब्दावली का प्रयोग प्रचूर मात्रा में किया गया है।
2- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
3- साथ-साथ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
4- गंभीर विचार को सरलता से कहने की कवि में कला विद्यमान है। ‘बात बन जाना’ मुहावरे का प्रयोग किया गया है।
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्योंकि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह ।
आखिकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
बात सीधी थी पर प्रसंग – पूर्ववत्। इस पद में कवि बताता है कि किसी बात के बिगड़ने पर हम उसे समझे बिना उसे और भी बिगाड़ते चले जाते हैं।
बात सीधी थी पर व्याख्या – कवि बात के बिगड़ने पर उसे धैर्य से समझने की अपेक्षा उसे हताशा से और भी बिगाड़ता चला जाता है। जब कोई इस तरह हमारे कामया बात को बिगड़ते देखते हैं, तो वे इसका भरपूर आनन्द लेते हैं जिससे हमें लज्जित और शर्मिन्दा होना पड़ता है। अंत में जिस बात को लेकरकवि चिंतित था वही हुई। बात को अच्छी बनाने के चक्कर में वह प्रभावहीन हो गई और भाषा की कलिष्टता में बेकार होकर रह गई जिससे उसके अर्थ में सार्थकता नहीं रही।
बात सीधी थी पर काव्य सौन्दर्य
अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना अतिरिक्त मेहनत की आवश्यकता नहीं होती, वह सरलता से हो जातीहै।
(ख) कला पक्ष
2- जोर जबरदस्ती और साफ़ सुनाई में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
3- वाह-वाह में पुनरुक्ति प्रकाश अंलकार का प्रयोग हुआ है।
4- ‘बात की चूड़ी मरना’ मुहावरे का प्रयोग किया गया है।
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत !
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा
क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सिखा
बात सीधी थी पर प्रसंग – पूर्ववत्, प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बताता है कि कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य नही बनने से वह बात को वहीं पर छोड़ देता है ।
बात सीधी थी पर व्याख्या – सभी प्रयत्नों के बाद भी कथ्य और भाषा में सांमजस्य न होने के कारण कवि को वह बात कील की तरह उसी जगह पर ठोकनी पड़ती है।परिणामस्वरूप वह ऊपर से तो ठीक-ठाक दिखाई देती है लेकिन अंदर से उसमें कोई दम और मजबूती नहीं थी अर्थात् उसमें भावों की अभिव्यक्तिका अभाव था। कवि कहता है जिस प्रकार एक शरारती बच्चा हमसे शरारत करके चिढ़ाता रहता है। उसी प्रकार कविता में या बात में कथ्य औरभाषा का सांमजस्य न होने पर भाषा मुझसे पूछती है कि तुमने कभी भाषा को सही तरीके से प्रयोग करना नहीं सीखा। अगर ऐसा करना आ जाताहै तो किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत करने की आवश्यकता हमें नहीं होती वह अपने आप सहूलियत के साथ हो जाती है।
बात सीधी थी पर काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
कथ्य और भाषा में सांमजस्य होने पर कविता या बात पूर्ण हो जाती है उसके बाद किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत की जरुरत नहीं पड़ती।इसलिए हमें कथ्य और भाषा के सांमजस्य पर जोर देना चाहिए न कि भाषा की क्लिष्टता पर
(ख) कला पक्ष
1- सहज, सरल, सरस भाषा की प्रवाहमयता का अनूठा प्रयोग है।
2- उर्दू शब्दावली का प्रयोग किया गया है जैसे शरारती, बरतना, सहूलियत आदि।
3- ठीक ठाक, पसीना पोंछते, सहूलियत से में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है|
कविता के बहाने, बात सीधी थी पर कविता का प्रश्न उत्तर
1. इस कविता के बहाने बताएँ कि ‘सब घर एक कर देने के माने’ क्या है?
उत्तर– ‘सब घर एक कर देने के माने’ से तात्पर्य यह है कि बच्चे किसी भेदभाव को नहीं जानते हैं। उनके लिए सब कुछ समान है। उनके लिए न ही भाषा की सीमा होती है और न ही घर की सीमा ।
2. ‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध बनता है?
उत्तर– कवि के अनुसार कविता पंख लगाकर कहीं भी उड़ सकती है इसकी कोई सीमा नहीं है, लेकिन चिड़िया के उड़ने की एक सीमा होती है। इसी प्रकार फूल के खिलने की परिणति होती है लेकिन कविता फूल की तरह खिलकर सभी को मंत्रमुग्ध कर देती है।
3. कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर– कविता और बच्चे को समानांतर रखने का कारण यह है कि कविता की कोई सीमा नहीं होती क्योंकि कविता भी शब्दों का खेल है। इसी प्रकार बच्चों के खेल में भी किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता।
4. कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं?
उत्तर– कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ यह है कि फूल के खिलने की और महक प्रदान करने की एक परिणति निश्चित होती है लेकिन कविता हमें हमेशा महक और ताजगी प्रदान करती रहती है।
5. ‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर– ‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने से अभिप्राय यह है कि अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता हैऔर जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या मेहनत की नहीं रहती वह सहूलियत के साथ आवश्यकता नह हो जाता है और बात पूर्ण रूप से समझ मेंआ जाती है।
6. बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है’ कैसे?
उत्तर– कवि कहता है कि बात और भाषा आपस में जुड़े हुए हैं लेकिन कई बार व्यक्ति अपनी बात या कविता को कहने में अतिरिक्त शब्दों काप्रयोग करता है जिससे छोटी-सी बात विचित्र बन जाती है। लेकिन प्रत्येक शब्द का अपना एक विशेष अर्थ होता है, ठीक वैसे ही जैसे हर पेंच केलिए एक निश्चित खाँचा होता है। भाषा के चक्कर में पड़कर हम सरल सी बात को भाषा की कलिष्टता में डूबो देते हैं, जो कतई उचित नहीं है।
7. बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिंबो/मुहावरों से मिलान करें।
कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बनना
बात का पकड़ में न आना
(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना-
बात का प्रभावहीन हो जाना
(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना-
बात में कसावट का न होना
(ङ) बात का बन जाना-
बात को सहज और स्पष्ट करना
उत्तर
(क) बात की चूड़ी मर जाना- बात का प्रभावहीन हो जाना
(ख) बात की पेंच खोलना- बात में कसावट का न होना
(ग) बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना- बात का पकड़ में आना
(घ) पेंच को कील की तरह ठोंक देना- बात को सहज और स्पष्ट करना
(ङ) बात का बन जाना – कथ्य और भाषा का सहा सही सांमजस्य बनना
कविता के बहाने, बात सीधी थी पर कविता के आसपास
बात से जुड़े कई मुहावरे प्रचलित हैं। कुछ मुहावरों का प्रयोग करते हुए लिखें।
उत्तर
(क) बात बनना – काम तो मुश्किल था परन्तु जैसे-तैसे बात बन गई।
(ख) बात बिगड़ना – जिसकी बात बिगड़ जाए उसका कोई साथ नहीं देता ।
(ग) लातों के भूत बातों से नहीं मानते – उसे समझाने से लाभ नहीं वह लातों का भूत है बातों से नहीं मानेगा।
(घ) बातें बनाना – बैठे-बैठे बातें बनाना आसान है कुछ करके दिखाओ।
व्याख्या करें
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी
उत्तर– भाषा को प्रभावी बनाने के लिए ज़बरदस्ती शब्दों को ठूसने से बात की सहजता समाप्त हो जाती है और जहाँ सहजता समाप्त हुई वहाँ भाषाऔर बात का महत्त्व ही खत्म हो जाता है।
चर्चा कीजिए
1. आधुनिक युग में कविता की संभावनाओं पर चर्चा कीजिए ?
2. चूड़ी, कील, पेंच आदि मूर्त्त उपमानों के माध्यम से कवि ने कथ्य की अमूर्त्तता को साकार दिया है। भाषा को समृद्ध एवं संप्रेषणीय बनाने में, बिबों और उपमानों के महत्त्व पर परिसंवाद आयोजित करें।
आपसदारी
1. सुंदर है सुमन, विहग सुंदर मानव तुम सबसे सुंदरतम ।
(क) कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
(ख) कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
2- प्रतापनारायण मिश्र का निबंध ‘बात’ और नागार्जुन की कविता ‘बातें’ ढूँढ़ कर पढ़ें।
उत्तर- विद्यार्थी पुस्तकालय से प्रतापनारायण मिश्र का निबन्ध ‘बात’ तथा नागार्जुन की कविता ‘बातें’ ढूँढ कर पढ़ें।