कैमरे में बंद अपाहिज कविता की व्याख्या और प्रश्न उत्तर आरोह भाग दो
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
कैमरे में बंद अपाहिज प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इस कविता के कविश्री ‘रघुबीर-सहाय’ जी है। इन पंक्तियों में ‘सहाय’ जी ने दूरदर्शन पर सामाजिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले उन लोगों के प्रति व्यंग्य किया है जो किसी शारीरिक पीड़ा से ग्रस्त व्यक्ति की पीड़ा व संवेदना को न समझ उसका कारोबार करते हैं।
कैमरे में बंद अपाहिज व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने दूरदर्शन में प्रस्तुत होने वाले एक संवेदनशील सामाजिक कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता कहते हैं कि हम दूरदर्शन परयह बात कहेंगे कि हम सर्वशक्तिवान और हर कार्य को कुशलता से कर सकने की योग्यता रखने वाले हैं। परन्तु वास्तव में इनके मन संकुचित है जो किसी पीड़ा को बेच कर अपने कारोबार में वृद्धि करना चाहते हैं। ये कहते हैं कि ये किसी कमज़ोर एवं अयोग्य व्यक्ति को अपने दूरदर्शन कार्यक्रम कक्ष में लाकर उस पर एक कार्यक्रम बनाएंगे। अर्थात् किसी कमज़ोर व्यक्ति की पीड़ा, दर्द को बेचकर लाभ के उद्देश्य से कार्यक्रम बनाया जाएगा और तब भी ये अपने आप को शक्तिवान समझते हैं जो गरीबों का, कमज़ोरों का खून चूस कर शक्तिवान बने हैं।
कैमरे में बंद अपाहिज काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष –
1- कमजोर व्यक्ति की पीड़ा व दुख को न समझ उनकी संवेदनाओं से खेलने वालों के रूप में ‘दूरदर्शन कार्यकर्ताओं’ पर व्यंग्य है।
2- कवि एक सामाजिक उद्देश्य प्रस्तुत करना चाहता है।
(ख) कला पक्ष
1- सामान्य आम-बोल चाल की भाषा है।
2- साधारण शब्दों को नवीन अर्थवत्ता प्रदान की गई है।
3- अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
4- कवि गम्भीर विचार को सरल, स्पष्ट कला में प्रस्तुत करने में समर्थ
5- तुकबंदी के कारण काव्य में गेयता का गुण विद्यमान है। व्यंग्यात्मक शैली का सुन्दर ढ़ंग से प्रयोग हुआ है।
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है?
( कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा )
हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है
जल्दी बताइए वह दुख बताइए
बता नहीं पाएगा
कैमरे में बंद अपाहिज प्रसंग – पूर्ववत्। प्रस्तुत पंक्तियों में दूरदर्शन कार्यक्रम में एक अपाहिज व्यक्ति को लाकर उससे विभिन्न कटु प्रश्न पूछने तथा उसे असमर्थ व अयोग्य साबित कर देने की योजना पर कवि ने व्यंग्य किया है। इस सारे साक्षत्कार का वर्णन इस प्रकार है
कैमरे में बंद अपाहिज व्याख्या – कवि इन पंक्तियों में बताना चाहता है कि दूरदर्शन के संयोजक शारीरिक चुनौती को झेलते व्यक्ति से टेलीविजन कैमरे के सामने किस तरह के सवाल पूछते हैं तथा इस कार्यक्रम के संयोजक उस अपाहिज व्यक्ति की पीड़ा व दुख को कुरेदते हुए उससे अटपटे प्रश्नों को पूछते हैं।वह जानबूझ कर उससे पूछते हैं कि क्या आप अपाहिज हैं? यदि हाँ तो आप अपाहिज क्यों है? आप किस प्रकार अपाहिज हुए? आपको अपना अपाहिजपन दुख देता है, तो किस प्रकार का दुख देता है? इस प्रकार के विभिन्न प्रश्नों की बौछार बिना उसका उत्तर जाने की जाती रहेंगी। उस कमजोर व्यक्ति से इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाएंगे, और उसे बोलने का मौका दिए बिना उससे बार-बार उसके दुःखों के के बारे में पूछा जाएगा और जल्द से जल्द उनके उत्तर मांगें जाएंगे। वह अपाहिज व्यक्ति कुछ बता नहीं सकेगा। ये सब गतिविधियाँ टेलीविजन के कैमरे के सामने चलेंगी, उस कमजोर की पीड़ा, दुख-दर्द को पर्दे पर उभारने का कारोबार करते हुए उनके प्रति संयोजकों का रवैया संवेदनशील न होकर संवेदनहीन होता चला जाता है। वे अपने स्वार्थ के लिए उनकी संवेदनाओं को भूल जाते हैं।
कैमरे में बंद अपाहिज काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
कवि ने असहाय व्यक्ति की पीड़ा के साथ दृश्य-संचार माध्यम के संबंध को रेखांकित करते हुए संवेदनहीन संयोजकों पर व्यंग्य किया है।
(ख) कला पक्ष
1- सरल, स्पष्ट भाषा की प्रवाहमयता काव्य सौन्दर्य में वृद्धि करती है। व्यंग्यात्मकता का सुन्दर व स्पष्ट प्रयोग हुआ है।
2- विचारों में गंभीर भाव का उद्घाटन हुआ है। अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
3- प्रश्नोत्तर शैली के साथ-साथ नाटकीय शैली द्वारा काव्य में रोचकता उत्पन्न हुई है।
4- चित्रात्मक शैली का प्रयोग कोष्ठकों द्वारा प्रकट हुआ है।
सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
( हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा? )
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए ( यह अवसर खो देंगे? )
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं?
कैमरे में बंद अपाहिज प्रसंग – पूर्ववत् । इन पंक्तियों में उस असहाय अपाहिज को प्रश्नों के उत्तर न दें सकने पर सोचने व कुछ ओर अन्य प्रश्नों के उत्तर बतानें के लिए विवश किया जाएगा और उसकी पीड़ा से आनन्द उठाकर उसे और कष्ट दिया जाएगा।
कैमरे में बंद अपाहिज व्याख्या – दूरदर्शन पर कार्यक्रम संयोजकों द्वारा अपाहिज, असहाय व्यक्ति के साथ साक्षात्तकार में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर न मिलने पर वह उससे और प्रश्न पूछते हैं और उस अपाहिज व्यक्ति को सोचकर उन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए कहते हैं। उस अपाहिज के संवेदनशील भावों को चोट पहुँचाते हुए उससे प्रश्न पूछा जाता है कि उसे अपाहिज का जीवन व्यतीत करते हुए कैसा महसूस होता है? वह अपने इस जीवन के बारे में कैसा विचार रखता है? अर्थात उसे अपने जीवन के दुःखों का सामना करना संघर्षमयी, साहसपूर्ण लगता या कष्टकारी, लज्जापूर्ण लगता है इनमें सेकैसा लगता है? कार्यक्रम के प्रस्तुत करने वाले कुछ पीड़ा जनक या संघर्षमयी इशारों द्वारा उनको कुछ उत्तर स्पष्ट करने के लिए कहेंगे। उन्हें बार-बार सोचकर उनके दुःखों के बारे में बताने के लिए कहेंगे । उनको, उनके दुख, पीड़ा वाले जख्मों को याद करवाएंगे तथा उनको बताने का काम करेंगे। कवि कहता है कि ये संयोजक उनको ये प्रश्न जो उनकी भावनाओं को चोट पहुँचाते हैं बार-बार पूछ कर उनको रोने पर मजबूर कर देंगे। कार्यक्रम प्रस्तुत करने वालों का मुख्य उद्देश्य अपने स्वार्थ को सिद्ध करना है। वह चाहते हैं कि उनके कार्यक्रम को ज्यादा से ज्यादा जगह देखा जाए, कार्यक्रम में रोचकता बन सके चाहे इसके लिए उन्हें किसी कमजोर की भावनाओं से खेलना क्यों न पड़े, चाहे किसी को कितना दुःख, पीड़ा हो, उन पर उसका कोई फ़र्क नहीं पड़ता और वे जानते हैं कि उनके दर्शक भी इस बात का इन्तजार करते हैं कि वो भी किसी की पीड़ा व दुःख-दर्द का आनन्द उठा सकें।
कैमरे में बंद अपाहिज काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष –
कवि उन सभी व्यक्तियों पर व्यंग्य करता है जो किसी असहाय की पीड़ा को दिखाकर या पीड़ा को देखकर आनन्द उठाते हैं। यह उससे अपने स्वार्थ की पूर्ति करना चाहते हैं।
(ख) कला पक्ष
1- सरल, सरस, सहज भाषा द्वारा काव्य में प्रभावपूर्ण छाप बनी है।
2- साधारण शब्दों में विचार की गहनता का सुन्दर दृश्य कवि ने प्रकट किया है।
3- प्रश्नोत्तर शैली द्वारा नाटकीयता आई है।
4- अनुप्रास अलंकार व पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का सुन्दर प्रयोग हुआ है। चित्रात्मक शैली का प्रयोग सुन्दर प्रकार से हुआ है।
फिर हम परदे पर दिखलाएँगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)
कैमरे में बंद अपाहिज प्रसंग – पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि ने उस असहाय अपाहिज की कटूत्तर प्रश्नों को सहन न कर पाने के कारण रो देने के बाद की स्थिति का वर्णन किया है। जो कि उसकी पीड़ा को व्यक्त करती है।
कैमरे में बंद अपाहिज व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में काव्य के उस दृश्य का वर्णन है जिसके उद्देश्य से यह टी०वी० कार्यक्रम बनाया गया है। किसी अयोग्य व असहाय व्यक्ति को अपने जीवन में जिन कष्टों को झेलना पड़ता है उस दृश्य को कवि ने प्रस्तुत किया है। कार्यक्रम के (संयोजकों) प्रस्तुत करने वालों के प्रश्नों व कमजोर, बेबस व्यक्ति के रोने के बाद उस असहाय व्यक्ति की पीड़ा को संयोजकों द्वारा परदे पर लाने का तथा करुणामयी स्थिति का दृश्य दिखाया जाएगा। इस पीड़ाजनक दृश्य में उस अपाहिज, कमजोर व्यक्ति की रोने के कारण फूली हुई (सोजशन आई हुई) आँख का दुःखमयी बड़ा-सा चित्र पर्दे पर बहुत विस्तृत रूप में दिखाया जाएगा और इसी दृश्य के साथ-साथ उसके होठों द्वारा उसके हिचकाते हुए उस घबराहट का दृश्य भी प्रस्तुत किया जाएगा जो कि उसके दुःख, पीड़ा, दर्द, यातना, वेदना को प्रकट करेगा। कार्यक्रम के संयोजक चाहते हैं कि इस दृश्यों द्वारा एक अपाहिज की पीड़ा को दर्शक वर्ग समझ सके।
इस प्रकार इन पंक्तियों द्वारा दर्शक के हृदय में करूणा जागृत करने का उद्देश्य स्पष्ट होता है।
कैमरे में बंद अपाहिज काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
कवि द्वारा शारीरिक चुनौती झेलते लोगों के प्रति संवेदनशील नजरिया अपनाने के लिए उनके करुण व पीड़ाजनक दृश्य को दिखाया गया है।
(ख) कला पक्ष
1- भाषा की सरसता, व स्पष्टता भावों की प्रवाहमयता में सहायक है।
2- प्रयोग हुआ अनुप्रास अलंकार का सुन्दर है। शब्दों की नवीनता व उर्दू शब्दावली का प्रचुर प्रयोग हुआ है।
3- शब्दों का विशेषणों द्वारा अधिक प्रभाव पूर्ण प्रयोग काव्य सौन्दर्य में वृद्धि करता है। व्याख्यान शैली द्वारा करूण इस को प्रकट किया गया है।
4- साधारण शब्दों के प्रयोग में भी गंभीर विचार को प्रकट करने की क्षमता है।
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
( कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है )
अब मुस्कुराएँगे हम
उनकी कविताओं जीवन से जुड़ी सजा के
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम
(बस थोड़ी ही कसर रह गई )
धन्यवाद।
कैमरे में बंद अपाहिज प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘कैमरे में बन्द अपाहिज’ शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता ‘रघुवीर सहाय’ जी है। इस कविता को कमजोर असहाय अपाहिजों के प्रति करुणा व संवेदनात्मक दृष्टि कोण अपनाने के लिए प्रस्तुत किया गया था, परन्तु कवि दिखाता है कि किस प्रकार वह यह करूणा जगाने के मकसद से शुरू कार्यक्रम क्रूर बन जाता है।
कैमरे में बंद अपाहिज व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में समाज के प्रति संवेदनशील कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले संयोजक किसी कमजोर अपाहिज के ऊपर टी०वी० कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शक के हृदय में करूणा व पीड़ा का संचार करना चाहता है। परन्तु दर्शक जब उसके विचारानुसार इसकी पीड़ा में करूणा को नहीं पाता तो यह दर्शकों को एक बार फिर से इसी प्रकार के कार्यक्रम को देखने के लिए आग्रह करना चाहता है । परन्तु किसी भी कार्यक्रम द्वारा किसी की पीड़ा को बहुत बड़े दर्शक वर्ग तक पहुँचाने के लिए स्वयं उस व्यक्ति का संवेदनशील होना तथा दूसरों को संवेदनशील बनाने का दावेदार होना आवश्यक है परन्तु यदि उस व्यक्ति का रवैया स्वयं संवेदनहीन है तो वह दूसरों को करूणा का अहसास नहीं करवा सकता। इसलिए यह कार्यक्रम इतना सफल नहीं हो सकेगा। ऐसा न होने पर वह कार्यक्रम का समापन करना चाहता है । क्योंकि उसमें दूसरों के प्रति संवेदनशीलता न होकर केवल स्वार्थ भावना है।
इस प्रकार कार्यक्रम समापन पर संयोजक मुस्काराते हुए कहता है कि आप सभी दर्शक समाज के एक असहाय वर्ग के प्रतिनिधि द्वारा करूणामय उद्देश्य से पूर्ण कार्यक्रम देख रहे थे और धन्यवाद सहित कार्यक्रम का समापन करना हैं।
कैमरे में बंद अपाहिज काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष –
यहाँ कवि उन सभी स्वार्थी लोगों की तरफ इशारा करना चाहता है जो किसी की पीड़ा, दुख, दर्द, यातना वेदना को बेचना चाहते हैं। ये लोग ऐसे जरूरत मंद लोगों की मदद न कर इनसे लाभ कमाना चाहते हैं।
(ख) कला पक्ष
1- सरल, सहज, सरस भाषा का सुन्दर ढंग से प्रयोग हुआ अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग किया गया है। है।
2- नवीन शब्दावली की सौन्दर्यात्मक प्रस्तुती है। करुण रस द्वारा भावात्मक सौन्दर्य में वृद्धि हुई है।
3- समापन शैली का प्रयोग नाटकीयता को प्रधानता प्रदान की गई है।
4- साधारण शब्दों के बीच सामाजिक उद्देश्य को स्पष्ट रूप से प्रकट करने की कौशलता कवि ने दर्शाई है।
1- कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं- आपकी समझ से इसका क्या औचित्य है ?
उत्तर– कवि द्वारा प्रस्तुत ‘कैमरे में बन्द अपाहिज’ एक दूरदर्शन कार्यक्रम पर आधारित कविता है। जिसमें एक अपाहिज से कैमरे के सामने साक्षात्कार किया गया है। कार्यक्रम का संयोजक उस अपाहिज से वार्ता करता है परन्तु बीच-बीच में कैमरा मैन से व दर्शक के प्रति अपने भावों को भी प्रकट किया है जो कि कोष्ठक में प्रस्तुत किए है। इस प्रकार संयोजक (रिपोर्ट) की व्यक्तिगत गतिविधियों को कोष्ठकों में रखना – – पूर्णरूप से उचित सिद्ध होता है।
2- कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है- विचार कीजिए।
उत्तर “कैमरे में बन्द अपाहिज ” कविता में एक असहाय अपाहिज से साक्षात्कार किया गया है और उसके प्रति संवेदनशीलता, करूणा को प्रस्तुत करना इस कविता का मुख्य उद्देश्य रहा है। परन्तु दूरदर्शन कार्यक्रम द्वारा इसके प्रति संवेदनहीनता का चित्र प्रस्तुत हुआ, अपने स्वार्थ व कारोबार की वृद्धि के लिए कमजोर अपाहिज की भावनाओं से खिलवाड़ कर उसकी वेदना, पीड़ा, दु:ख-दर्द को बेचना मात्र इसका लक्ष्य बन कर रह गयाहै। इस प्रकार यह कविता करूणा व संवेदनशीलता के मुखौटे में छिपी क्रूरता व स्वार्थ को प्रकट करती है।
3- हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएंगे पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर– कवि इन पंक्तियों में उन सभी लोगों पर व्यंग्य करते है जो किसी असहाय, दुर्बल, अपाहिज व्यक्ति की पीड़ा, वेदना, दुख-दर्द, यातना आदिको बेचना चाहते हैं और इनकी मजबूरी का लाभ उठाकर धनवान व शक्तिवान बनना चाहते हैं। कवि इन ऊपरी दिखावट करने वाले व्यक्तियों के अन्दर छिपे क्रूर चेहरे को स्पष्ट करना चाहते हैं।
4- यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक, दोनों एक साथ रोने लगेंगे, तो उससे प्रश्नकर्ता का कौन-सा उद्देश्य पूराहोगा ?
उत्तर– यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहें व्यक्ति और दर्शक, दोनों एक साथ रोने लगेंगे तो उससे प्रश्नकर्ता का उन्हें भावात्मक ब्लैकमेल करने का उद्देश्य पूर्ण हो सकेगा और उसके चैनल को प्रसिद्धि प्राप्त होगी। जिससे वह अपने धन-वैभव व स्वार्थ की पूर्ति कर सकेगा।
5- परदे पर वक्त की कीमत है कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया किस रूप में रखा है?
उत्तर– इस पंक्ति में कवि ने अपने व्यवसायिक स्वार्थ के भाव को स्पष्ट किया है कि परदे या टी०वी० पर समय गुजारने के लिए काफी धन कीआवश्यकता होती है तथा धन के लिए ही दूरदर्शन पर कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। यदि इस कार्यक्रम में रोचकता न बने तो वह उनके लिए बेकार है। इसलिए कवि ने परदे पर वक्त की कीमत के बारे में बात की है।