हिंदी अपठित गद्यांश mcq

hindi unseen passage with mcq

अपठित गद्यांश भाग -1 
“साहित्य का आधार जीवन है। इसी आधार पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटारियां, मीनार और गुंबद बनते हैं। लेकिन बुनियाद मिट्टी के नीचे दवी पड़़ी है। जीवन परमात्मा की सृष्टि है, इसलिए सुबोध है, सुगम है और मर्यादाओं से परिमित है । जीवन परमात्मा को अपने कामों का जवाबदेह है या नहीं हमें मालूम नहीं, लेकिन साहित्य मनुष्य के सामने जवाबदेह है। इसके लिए कानून है जिनसे वह इधर-उधर नहीं जा सकता। मनुष्य जीवनपर्यंत आनंद की खोज में लगा रहता है। किसी को यह रत्न, द्रव्य में मिलता है, किसी को भरे-पूरे परिवार में, किसी को लंबे-चीड़े भवन में, किसी को ऐश्वर्य में । लेकिन साहित्य का आनंद इस आनंद से ऊँचा है। उसका आधार सुंदर और सत्य हे। वास्तव में सच्चा आनंद सुंदर और सत्य से मिलता है, उसी आनंद को दर्शाना वही आनंद उत्पन्न करना साहित्य का उद्देश्य है।”
 

1- साहित्य और जीवन में गहरा संबंध है क्योंकि
(क) जीवन का मुख्य आधार साहित्य है
(ख) साहित्य जीवन की मजबूत दीवार है
(ग) साहित्य का आधार जीवन है
(घ) साहित्य का आनंद जीवन से ऊंचा है

2- मनुष्य किसकी खोज में जीवन भर लगा रहता है
(क) परमात्मा की
(ख) आनंद की
(ग) साहित्य की
(घ) रत्न द्रव्य भरे पूरे परिवार लंबे चौड़े भवन एवं ऐश्वर्य को पाने की

3- साहित्य के आनंद का आधार है
(क) सुंदर और सत्य को पाना
(ख) जीवन
(ग) रत्न और ऐश्वर्य पाना
(घ) परमात्मा

4- परिमिति का अर्थ है
(क) सीमित
(ख) दबा हुआ
(ग) विस्तृत
(घ) फंसा हुआ

5- ‘लंबे चौड़े भवन में’ वाक्य में लंबे चौड़े व्याकरण की दृष्टि से क्या है
(क) क्रियाविशेषण है
(ख) संज्ञा है
(ग) क्रिया है
(घ) विशेषण है

अपठित गद्यांश भाग-2 mcq 

निदा की ऐसी ही महिमा है। दो-चार निंदको को एक जगह बैठकर निंदा में निमग्न देखिए और तुलना कीजिए,
दो चार ईश्वर भक्तों से जो रामधुन गा रहे हैं। निंदको की-सी एकाग्रता, परस्पर आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुरलभ है। इसलिए संतों ने निंदको को आंगन कुटी छवाय पास रखने की सलाह दी है कुछ ‘मिशनरी’ निंदक मैने देखे हैं। उनका किसी से बैर नहीं, धूप नहीं। वे किसी का बुरा नहीं सोचते पर चीबीस पंटे वे निंदा-कर्म में वात पवित्र भाव से लगे रहते हैं कि ये प्रसंग आने पर अपने बाप की पगड़ी भी उसी आनंद से उछालते हैं, जिस आनंद से अन्य लोग दुश्मन की। निंदा इनके लिए टॉनिक होती है। इयां-ट्वेष से प्रेरित निंदा भी होती है। वह ईया-वेष से चौबीसों घंटे जलता है और निदा का जल छिड़ककर कुछ शांति अनुभव करता है। ऐसा निदक बड़ा दयनीय होता है। अपनी अक्षमता से पीड़ित वह बेचारा दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौकता है। ईष्य्या-दूवेष से प्रेरित निंदा करने वाले को कोई दंड देने की जरूरत नहीं है। वह निंदक बेचारा स्वयं दंडित होता है। जाप चैन से सोझा और वह जलन के कारण सो नहीं पाता । उसे और क्या दंड चाहिए निरंतर अच्छे काम करते जाने से उसका दंड भी सख्त होता जाता है; जैसे-एक कवि ने एक अच्छी कविता लिखी, ईष्यंग्रस्त निदक की कष्ट होगा अब अगर एक और अच्छी कविता लिख दी, तो उसका कष्ट दुगुना हो जाएगा।

1- निंदको की सी एकाग्रता, आत्मीयता व निमग्नता किसमें दुर्लभ है?
(क) साधारण लोगों में
(ख) ईश्वर भक्तों में
(ग) शिक्षितों में
(घ) नास्तिकों में

2- निंदको को पास रखने की सलाह किसने दी है
(क) संतो ने
(ख) साथियों ने
(ग) भाग्यवान ने
(घ) पड़ोसियों ने

3- निंदा-कर्म से पवित्र भाव से कौन लगा रहता है
(क) निंदक
(ख) पड़ोसी
(ग) अपने रिश्तेदार
(घ) मिशनरी निंदक

4- ईर्ष्या, द्वेष, की आग में जलने वाला शांति का अनुभव कैसे करता है
(क) कार्बन डाइऑक्साइड से
(ख) मिट्टी डालकर
(ग) निंदा का जल छिड़ककर
(घ) भगवत भजन करके

5- कवि की अच्छी कविता पर ईर्ष्याग्रस्त निंदक कैसा अनुभव करता है
(क) कष्ट का
(ख) सुख का
(ग) खुशी का
(घ) प्रसन्नता का

अपठित गद्यांश भाग-3 mcq  

“सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है, तब जिस सुख को वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देनेवाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुःख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है उदाहरण के लिए दान देनेवाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है धन-त्याग का साहस । यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा उत्साह आनंद और साहस का मिला-जुला रूप है। उत्साह में किसी-न-किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म पर, चाहे कर्म के फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो। इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता है। कर्म-भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है। सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर जिस आनंद का अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है। आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढनिश्चयी होता है।”

1- उत्साह का प्रमुख लक्षण है
(क) जोश
(ख) साहस
(ग) आनंद
(घ) आनंद और जोश

2- सच्चे वीर वे होते हैं
(क) जो फल पाने के लिए उत्साह दिखाते हैं
(ख) जो कर्म भाव से उत्साह दिखाते हैं
(ग) जो निष्काम भाव से उत्साह दिखाते हैं
(घ) जो आनंद विनोद के लिए उत्साह दिखाते हैं

3- उत्साह के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट है
(क) दुख
(ख) निराशा
(ग) वैराग्य
(घ) आलस्य

4- ‘सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है।’ उपवाक्य का प्रकार है
(क) प्रधान उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रिया विशेषण उपवाक्य
(घ) संज्ञा उपवाक्य

5- केंद्रित और अधिकता में क्रमशः प्रत्यय इस प्रकार है
(क) द्रित, ता
(ख) ईत, आ
(ग) इत, ता
(घ) ईत, ता

अपठित गद्यांश भाग-4 mcq  

विद्यार्थी जीवन ही वह समय है जिसमें बच्चों के चरित्र, व्यवहार, आचरण को जैसा चाहे, वैसा रूप दिया जा सकता है। यह अवस्था भावी वृक्ष की उस कोमल शाखा की भाँति है, जिसे जिधर चाहो मोड़ा जा सकता है। पूर्णतः विकसित वृक्ष की शाखाओं को मोड़ना संभव नहीं। उन्हें मोड़ने का प्रयास करने पर वे टूट तो सकती हैं पर मुड़ नहीं सकतीं। छात्रावस्था उस श्वेत चादर की तरह होती है, जिसमें जैसा प्रभाव डालना हो, डाला जा सकता है। सफेद चादर पर एक रंग जो चढ़ गया, सो चढ़ गया, फिर से वह पूर्वावस्था को प्राप्त नहीं हो सकती। इसीलिए प्राचीन काल से ही विद्यार्थी जीवन के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। इसी अवस्था से सुसंस्कार और सद्वृतियाँ पोषित की जा सकती हैं। इसीलिए प्राचीन समय में बालक को घर से दूर गुरुकुल में रहकर कठोर अनुशासन का पालन करना होता था।

1- व्यवहार को सुधारने का सर्वोत्तम समय होता है
(क) प्रौढ़ावस्था
(ख) युवावस्था
(ग) वृद्धावस्था
(घ) छात्रावस्था

2- छात्रों को गुरुकुल में छोड़ा जाता था
(क) कठोर अनुशासन के लिए
(ख) घर से दूर रखने के लिए
(ग) अच्छे संस्कार विकसित करने के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं

3- छात्रावस्था कि उपयुक्त तुलना की गई है
(क) विकसित वृक्ष से
(ख) सफेद चादर से
(ग) अविकसित वृक्ष से
(घ) वृक्ष की विकसित शाखा से

4- इनमें से किस शब्द में उपसर्ग का प्रयोग नहीं किया गया है
(क) महत्त्व
(ख) सुसंस्कार
(ग) अनुशासन
(घ) अविकसित

5- प्रस्तुत गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक है
(क) चरित्र और व्यवहार
(ख) कठोर अनुशासन
(ग) विद्यार्थी जीवन
(घ) छात्र एक वृक्ष

अपठित गद्यांश भाग-5  mcq 

भारतीय मनीषी हमेशा ही इच्छा और अनिच्छा के बारे में सोचता रहा है। आज जो कुछ हम हैं उसे एक लालसा में सिमटाया जा सकता है। यानी जो कुछ भी हम है वह सब अपनी इच्छा के कारण से हैं। यदि हम दुखी हैं, यदि हम दास्ता में हैं, यदि हम अज्ञानी हैं, यदि हम अंधकार में डूबे हैं, यदि जीवन एक लंबी मृत्यु है तो केवल इच्छा के कारण से ही है।

क्यों है यह दुख? क्योंकि हमारी इच्छा पूरी नहीं हुई। इसलिए यदि आपको कोई इच्छा नहीं है तो आप निराश कैसे होंगे? यदि कहीं आप निराश होना चाहते हैं तो और अधिक इच्छा करें, यदि आप और दुखी होना चाहते हैं तो अधिक अपेक्षा करें, अधिक लालसा करें और अधिक आकांक्षा करें, इससे आप और अधिक दुखी हो ही जाएंगे। यदि आप सुखी होना चाहते हैं तो कोई इच्छा न करें। यही आंतरिक जगत में काम करने का गणित है। इच्छा ही दुख को उत्पन्न करती है।

1‐ भारतीय मनीषी के चिंतन का विषय क्या है
(क) जीवन मृत्यु
(ख) जीवन आत्मा
(ग) इच्छा अनिच्छा
(घ) प्रकृति पुरुष

2- इच्छा का जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है
(क) आनंद देती है
(ख) सुख देती है
(ग) लालसा बढ़ाती है
(घ) कार्य क्षमता बढ़ाती है

3- मानव के लिए जीवन एक लंबी मृत्यु कब बन जाता है
(क) बीमारी में
(ख) सुख में
(ग) हर्ष में
(घ) इच्छाओं के बढ़ने से

4- लेखक ने आंतरिक जगत में काम करने का गणित किसे कहा है
(क) भक्ति करने को
(ख) इच्छा न करने को
(ग) विनम्र रहने को
(घ) कष्ट भोगने को

5- लालसा शब्द के दो पर्यायवाची हैं
(क) इच्छा, आकांक्षा
(ख) इच्छा, बल
(ग) बल, आकांक्षा
(घ) आकांक्षा, निराशा

अपठित गद्यांश भाग-6  mcq 

जिस विद्यार्थी ने समय की कीमत जान ली वह सफलता को अवश्य प्राप्त करता है। प्रत्येक विद्यार्थी को अपनी दिनचर्या की समय-सारणी अथवा तालिका बनाकर उसका पूरी दृढ़ता से पालन करना चाहिए। जिस विद्यार्थी ने समय का सही उपयोग करना सीख लिया उसके लिए कोई भी काम करना असंभव नहीं है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कोई काम पूरा न होने पर समय की दुहाई देते हैं। वास्तव में सच्चाई इसके विपरीत होती है। अपनी अकर्मण्यता और आलस को वे समय की कमी के बहाने छिपाते हैं। कुछ लोगों को अकर्मण्य रह कर निठल्ले समय बिताना अच्छा लगता है। ऐसे लोग केवल बातूनी होते हैं। दुनिया के सफलतम व्यक्तियों ने सदैव कार्यव्यस्तता में जीवन बिताया है। उनकी सफलता का रहस्य समय का सदुपयोग रहा है। दुनिया में अथवा प्रकृति में हर वस्तु का समय निश्चित है । समय बीत जाने के बाद कार्य फलप्रद नहीं होता।

1- विद्यार्थी को सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है
(क) समय की दुहाई देना
(ख) समय की कीमत समझना
(ग) समय पर काम करना
(घ) दृढ़ विश्वास बनाए रखना

2- कुछ लोग समय की कमी के बहाने क्या छुपाते हैं
(क) अपनी अकर्मण्यता और आलस्य
(ख) अपना निठल्लापन
(ग) अपनी विभिन्न कमियां
(घ) अपना बातूनीपन

3- दुनिया के सफलतम व्यक्तियों की सफलता का रहस्य क्या है
(क) समय का पालन
(ख) समय का प्रयोग
(ग) समय की कीमत
(घ) समय का सदुपयोग

4- कार्य किस स्थिति में फलप्रद नहीं होता
(क) समय न आने पर
(ख) समय कम होने पर
(ग) समय बीत जाने पर
(घ) समय अधिक होने पर

5- अकर्मण्यता शब्द में मूल शब्द एवं उपसर्ग अलग करके लिखिए
(क) अकर्मण्य+ता
(ख) अ+कर्मण्यता
(ग) अक+र्मण्यता
(घ) अकर्म+णूयता

अपठित गद्यांश भाग-7  mcq 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में उसके मित्र भी होते हैं, शत्रु भी, परिचित भी, अपरिचित भी। जहाँ तक शत्रुओं, परिचितों और अपरिचितों का प्रश्न है, उन्हें पहचानना बहुत कठिन नहीं होता, किंतु मित्रों को पहचानना कठिन होता है। मुख्यतः सच्चे मित्रों को पहचानना बहुत कठिन होता है । यह प्रायः देखा गया है कि एक और तो बहुत से लोग अपने-अपने स्वार्थवश सम्पन्न, सुखी और बड़े आदमियों के मित्र बन जाते हैं या ज्यादा सही यह होगा कि यह दिखाना चाहते हैं कि वे मित्र हैं। इसके विपरीत जहाँ तक गरीब, निर्धन और दुःखी लोगों का प्रश्न है मित्र बनाना तो दूर रहा, लोग उनकी छाया से भी दूर भागते हैं। इसीलिए कोई व्यक्ति हमारा वास्तविक मित्र है या नहीं, इस बात का पता हमें तब तक नहीं लग सकता जब तक हम कोई विपत्ति में न हों। विपत्ति में नकली मित्र तो साथ छोड़ देते हैं और जो
मित्र साथ नहीं छोड़ते, वास्तविक मित्र वे ही होते हैं। इसीलिए यह ठीक ही कहा जाता है कि विपत्ति मित्रों की कसौटी है।

1- समाज में किसको पहचानना कठिन है
(क) सच्चे मित्र को
(ख) शत्रु को
(ग) सदाशय व्यक्ति को
(घ) चालाक व्यक्ति को

2- संपन्न लोगों से लोग कैसा व्यवहार करते हैं
(क) उनसे लोग ईर्ष्या करते हैं
(ख) लोग उनके मित्र बन जाते हैं
(ग) लोग उनसे उदासीन रहते हैं
(घ) उनकी छाया भी नहीं छूते

3- सच्चे मित्र की पहचान कब होती है?
(क) विपत्ति की घड़ी में
(ख) सुख की घड़ी में
(ग) मिलने जुलने पर
(घ) मेलो उत्सव में

4- वास्तविक शब्द में मूल शब्द और प्रत्यय है
(क) वास्तव+ईक
(ख) वास्तव+इक
(ग) वास्तव+विक
(घ) वास्त+विक

5- इस गद्यांश का उचित शीर्षक चुनिए
(क) मनुष्य
(ख) समाज
(ग) सच्चा मित्र
(घ) मित्रता

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