इस पोस्ट में हमलोग मनुष्यता कविता के भावार्थ व व्याख्या को पढ़ेंगे। मनुष्यता पाठ के बहुविकल्पीय प्रश्न, मनुष्यता कविता के mcq, मनुष्यता पद्यांश mcq, मनुष्यता काव्यांश mcq का अध्ययन करेंगे। यह पाठ क्लास 10 हिंदी के स्पर्श भाग 2 के चैप्टर 4 से लिया गया है।
मनुष्यता कविता का भावार्थ व व्याख्या क्लास 10 स्पर्श
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी ।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।
मनुष्यता की व्याख्या व भावार्थ- कवि कहता है कि हे पाठको तुम यह याद रखो कि तुम मरणशील हो। मन में समझ लो कि तुम्हें एक न एक दिन अवश्य मरना है। इसलिए मौत से डरा मत करो। तुम ऐसी मौत मरो कि जिसे सब लोग याद करें। कोई ऐसा महान और गौरवशाली काम करते-करते मरो कि तुम्हारी मौत सुमृत्यु कहलाए। ऐसी मौत के बिना यों ही मरना व्यर्थ है। बिना कोई विशेष कार्य किए जीना भी व्यर्थ जीना है। जो मनुष्य स्वयं अपने लिए ही नहीं जीता, बल्कि समाज के लिए जीता है, वह कभी नहीं मरा करता । ऐसा मनुष्य अमर हो जाता है। स्वयं अपने लिए खाना- कमाना और जीना तो पशु का स्वभाव है सच्चा मनुष्य वह है जो संपूर्ण मनुष्यता के लिए जीता और मरता है।
मनुष्यता पद्यांश के mcq या बहुविकल्पीय
1- मर्त्य का क्या तात्पर्य है?
(क) मिट्टी का बना हुआ
(ख) नश्वर
(ग) अमर
(घ) यशस्वी
2- ‘याद जो करें सभी ‘- किसलिए सभी याद करें?
(क) कुकर्म के लिए
(ख) सत्कर्म के लिए
(ग) दान-दक्षिणा के लिए
(घ) देश-हित बलिदान के लिए
3- कौन अमर रहता है-
(क) जो अपने लिए जीता है।
(ख) जो स्वार्थ तज देता है।
(ग) जो मनुष्य का कल्याण करता है।
(घ) जो दूसरों के लिए नहीं जीता
4- पशु-प्रवृत्ति क्या है-
(क) प्रेम से रहना
(ख) चौबीस घंटे खाते रहना
(ग) दूसरों से छीनकर खाना
(घ) स्वयं अपने भोजन में लगे रहना
5- कवि क्या प्रेरणा देना चाहता है-
(क) पशु मत बनो
(ख) अपने काम से मतलब रखो
(ग) अपना काम अच्छी तरह करो
(घ) मनुष्यता के लिए जियो।
उत्तर- 1. (ख) 2. (ख) 3. (ख) 4. (घ) 5. (घ)
उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती;
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।
भावार्थ व व्याख्या- मैथिलीशरण गुप्त कहते हैं कि सरस्वती उसी उदार मनुष्य का गुणगान करती है जो इस अनंत संसार के साथ अखंड आत्मीयता रखता है। यह धरती भी उसी उदार मनुष्य को जानकर स्वयं को धन्य मानती है जो सारे संसार में अपनत्व का प्रसार करता है। उसी उदार मनुष्य का सुयश सदा-सदा के लिए गूँजता रहता है और उसी उदार मनुष्य को सारी धरती के लोग पूजते हैं, जो सारी सृष्टि के साथ अपनत्व अनुभव करता है। सच्चा मनुष्य वही कहलाता है, जो सब मनुष्यों के लिए जीता-मरता है।
मनुष्यता काव्यांश के mcq या बहुविकल्पीय प्रश्न
1- सरस्वती कौन है?
(क) सरोवर में रहने वाली
(ख) रस की भंडार
(ग) वाणी की देवी
(घ) धन की देवी।
2- ‘धरा कृतार्थ भाव मानती है’- आशय स्पष्ट कीजिए।
(क) धरा धन्य होती है।
(ख) धरती धन्य कर देती है।
(ग) धरती के लोग धन्य अनुभव करते हैं।
(घ) लोग धरती का धन्यवाद देते हैं।
3- सारी सृष्टि किसे पूजती है?
(क) सरस्वती को
(ख) लक्ष्मी को
(ग) उदार लोगों को
(घ) यशस्वी लोगों को।
4- असीम विश्व में अखंड भाव भरने का आशय है-
(क) सारे संसार के टुकड़े-टुकड़े करना
(ख) विश्व को असीम करना
(ग) संसार में एकता का भाव फैलाना
(घ) सारे संसार को खंड-खंड करना
5- इस पद्यांश में किस भाव की प्रेरणा दी गई है-
(क) सृष्टि का सम्मान प्राप्त करो
(ख) धरती को धन्य करो
(ग) मनुष्यता की चिंता न करो
(घ) उदार बनो
उत्तर- 1. (ग) 2. (ग) 3. (ग) 4. (ग) 5. (घ)
क्षुधार्त रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी ।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर – चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे ?
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।
मनुष्यता के भावार्थ व व्याख्या- कवि कहता है-राजा रंतिदेव ने भूख से व्याकुल होते हुए भी अपना भोजन का थाल घर पर आए भिक्षु को सौंप दिया। दधीचि ऋषि ने जन-कल्याण हेतु अपनी हड्डियाँ दान में दे दीं। उशीनर – राजा शिवि ने कबूतर की प्राण-रक्षा के लिए अपने शरीर का मांस दे दिया। वीर कर्ण ने किसी ब्राह्मण के माँगने पर अपने शरीर का कवच तक उतार कर दे दिया। भला इस नश्वर शरीर के लिए यह अमर जीव क्यों डरे? अर्थात् जब आत्मा अमर है तो फिर इस नश्वर शरीर के नष्ट होने से क्या भय? सच्चा मनुष्य तो वही है जो संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए जीता और मरता है।
मनुष्यता के बहुविकल्पीय प्रश्न
1- अपने शरीर का मांस किसने दान दे दिया था?
(क) कर्ण ने
(ख) उशीनर ने
(ग) रंतिदेव ने
(घ) दधीचि ने
2- ‘दधीचि’ ने कौन सा महान कार्य किया था?
(क) उसने अपनी अस्थियों का दान किया था।
(ख) अपने शरीर को होम किया था।
(ग) अपनी संपत्ति दान कर दी थी
(घ) अपना परिवार बलिदान कर दिया था।
3- देह को अनित्य क्यों कहा गया है?
(क) लोग इसे रोज नहीं धोते
(ख) लोग रोज नहीं मरते
(ग) लोग रोज खाते-पीते हैं
(घ) यह सदा जीवित नहीं रहती।
4- ‘ अनादि जीव’ से क्या आशय है-
(क) जीव सदा अन्न का आदी है।
(ख) जीव अन्न का आदि नहीं है।
(ग) जीव नश्वर है।
(घ) जीव अमर है।
5- परार्थ’ का आशय है-
(क) परंतु
(ख) दूसरों के लिए
(ग) उन्नति के लिए
(घ) परियों के लिए।
उत्तर- 1. (ख) 2. (क) 3. (घ) 4. (घ) 5. (ख)
सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही ।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया- प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।
मनुष्यता के भावार्थ व व्याख्या- कवि कहता है कि मनुष्य के मन में सहानुभूति की भावना होनी चाहिए। दूसरों के दुख को देखकर मन में करुणा जागनी चाहिए। यह सहानुभूति मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी है। इस गुण के कारण सारी धरती मनुष्य के वश में हो जाती रही है। बुद्ध ने अपने कार्य से दया का जो प्रवाह बहाया, उसके कारण उनका सारा विरोध समाप्त हो गया हालाँकि उन्होंने अपने समय की सारी परंपराओं का जबरदस्त विरोध किया था, किंतु उनकी करुणा को देखते हुए समाज के सभी वर्गों के लोग उनके सामने झुक गए, विनीत बन गए। सच यही है कि जो मनुष्य दूसरों का भला करता है, वही सच्चा उदार मनुष्य हैसच्चा मनुष्य वही है जो मनुष्यता के काम आता है। सबके लिए मरता-जीता है।
मनुष्यता पाठ के mcq
1- महाविभूति किसे कहा गया है?
(क) ऐश्वर्यशाली लोगों को
(ख) संपन्न लोगों को
(ग) सहानुभूति को
(घ) मन की उच्चता को ।
2- विरुद्धवाद से क्या आशय है?
(क) विरोध की आवाज़ें
(ख) विरोधी लोग
(ग) क्रांति
(घ) संकट।
3- बुद्ध का विरोध किस प्रकार समाप्त हुआ?
(क) प्रेम पाकर
(ख) दया पाकर
(ग) संघर्ष द्वारा
(घ) युद्ध द्वारा।
4- बुद्ध की करुणा पाकर लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
(क) वे उनके रक्षक बन गए
(ख) वे उनके सिपाही बन गए
(ग) वे उनके अनुयायी बन गए
(घ) वे उनके चरणों में झुक गए।
5- उदार मनुष्य किसके लिए जीता है?
(क) शुभ कर्म के लिए
(ख) अपनी उन्नति के लिए
(ग) परोपकार के लिए
(घ) देश-स्वार्थ के लिए।
उत्तर- 1. (ग) 2. (क) 3. (ख) 4. (घ) 5. (ग)
रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।
अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।
मनुष्यता के भावार्थ व व्याख्या- कवि कहता है कि हे पाठकवृंद ! धन की प्राप्ति कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है। यह तुच्छ उपलब्धि है। इस पर कभी भूलकर भी घमंड मत करना। धन के बल पर या सांसारिक दृष्टि से स्वयं को सुरक्षित अनुभव करके अपने मन में अभिमान न करना। यह न सोचना कि तुम तो सनाथ हो। धन या परिवार-जन तुम्हारे नाथ हैं, जो तुम्हारी रक्षा कर लेंगेसोच कर देखो, इस संसार में कोई अनाथ नहीं हैसबके ही सिर पर भगवान त्रिलोकीनाथ का साया है। वह ईश्वर दीनों का, गरीबों का सहारा है, दयालु है। उसकी शक्ति बहुत अधिक है। वह सबको सुरक्षा और सहारा देता हैअतः जो भी मनुष्य अपने मन में अधीरता रखता है, वह बहुत अभागा हैसच्चा मनुष्य तो वही है जो दूसरे मनुष्यों के काम आता है। उनके लिए जीता और मरता है।
मनुष्यता पाठ के बहुविकल्पीय प्रश्न
1- लोग कैसे मदांध हो जाते हैं?
(क) परोपकार करके
(ख) धन कमाकर
(ग) भक्ति द्वारा
(घ) यश पाकर ।
2- ‘सनाथ होने’ का क्या आशय है-
(क) ईश्वर की कृपा पाकर
(ख) संसार का साथ पाकर
(ग) घरवालों का बल पाकर
(घ) भक्ति पाकर।
3- ‘अनाथ कौन है यहाँ ?’ का क्या आशय है-
(क) सभी अनाथ हैं
(ख) कोई सनाथ नहीं
(ग) सभी सनाथ हैं
(घ) कोई अनाथ नहीं ।
4- विशाल हाथ होने का क्या आशय है-
(क) बड़े-बड़े हाथ
(ख) धन-साधन अधिक हैं
(ग) शक्ति बहुत अधिक है
(घ) पूज्य होना।
5- भाग्यहीन कौन है?
(क) जो अधीर है
(ख) जो गरीब है
(ग) जो नश्वर है
(घ) जो भक्त नहीं।
उत्तर- 1. (ख) 2. (ग) 3. (घ) 4. (ख) 5. (क)
अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े ।
परस्परावलंब से उठो तथा बढ़ो सभी,
अभी अमर्त्य-अंक में अपंक हो चढ़ो सभी ।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
मनुष्यता की व्याख्या व भावार्थ – कवि कहता है-ऊपर अनंत आकाश की तरफ देखो। वहाँ कितने ही देवता खड़े हैं। वे तुम्हारे सामने अपने विशाल बाहु उठाकर तुम्हारा स्वागत कर रहे हैं। वे तुम्हें स्वर्ग में बुला रहे हैं। अत: तुम सभी एक-दूसरे को सहारा-सहयोग देकर ऊपर उठो और आकाश की ओर बढ़ो। तुम इस तरह निर्मल जीवन जियो कि तुम्हें देव-लोक में स्थान मिले। तुम इस तरह मत जियो कि एक-दूसरे के किसी काम न आ सको। तुम्हारे होने से किसी का कोई काम न बने सच्चा मनुष्य वही है कि जो अन्य मनुष्यों के काम आए।
मनुष्यता पद्यांश के mcq या बहुविकल्पीय प्रश्न
1- ‘अनंत अंतरिक्ष’ यहाँ किसका प्रतीक है?
(क) विस्तृत संसार
(ख) नीला आकाश
(ग) पूरा ब्रह्मांड
(घ) वायु।
2- ‘अनंत देव ‘ कौन है?
(क) देवी-देवता
(ख) महान लोग
(ग) भगवान विष्णु
(घ) ब्रह्मा।
3- ‘परस्परावलंब से उठो’ का आशय है-
(क) अपने सहारे उठो
(ख) दूसरों के सहारे उठो
(ग) अपने आप उठो
(घ) एक-दूसरे के सहारे उठो ।
4- अपंक होने का आशय है-
(क) अपंग होना
(ख) भ्रष्ट होना
(ग) बेदाग होना
(घ) सम्मानित होना ।
5- कवि मनुष्य को कैसा नहीं देखना चाहता ?
(क) स्वार्थी
(ख) परमार्थी
(ग) भक्त
(घ) उदार
उत्तर- 1. (ग) 2. (ख) 3. (घ) 4. (ग) 5. (क)
मनुष्य मात्र बंधु है’ यही बड़ा विवेक है,
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद हैं,
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
पुराणपुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
अनर्थ है कि बंधु ही न बंधु की व्यथा हरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे
मनुष्यता के भावार्थ व व्याख्या- मनुष्य के लिए सबसे बड़ा विवेक यही है कि वह संसार के सभी मनुष्यों को अपना बंधु समझे। कारण यह है कि सभी मनुष्य सचमुच आपस में बंधु हैं। पुराणों के अनुसार, सभी मनुष्यों का एक ही पिता है। वह स्वयंभू है। वही एकमात्र पुरुष है, जिससे अनेक मानवों का जन्म हुआ। यह ठीक है कि विविध कर्मों के फलानुसार सब आपस में भिन्न हैं। अर्थात जिसने जैसे कर्म किए, उसे वैसा ही जन्म मिला। परंतु आंतरिक दृष्टि से सभी एक हैं, समान हैं। स्वयं वेद इस आंतरिक एकता के साक्षी हैं। अतः संसार में यह सबसे बड़ा पाप है कि कोई व्यक्ति अपने बंधु का कष्ट न हरे। सच्चा मनुष्य वही है कि जो अन्य मनुष्यों के लिए जिए-मरे ।
मनुष्यता पद्यांश के mcq या बहुविकल्पीय प्रश्न
1- ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ का आशय है-
(क) केवल मनुष्य ही तुम्हारा बंधु है
(ख) मनुष्य केवल संबंधों को ही महत्त्व देता है।
(ग) सभी मनुष्य तुम्हारे बंधु हैं।
(घ) केवल मनुष्यों में ही आपसी संबंध हैं
2- विवेक किसे कहा गया है?
(क) अपने बंधुओं के संग रहने को
(ख) सभी मानवों की संगति को
(ग) सभी मानवों को बंधु मानने को
(घ) अपना काम स्वयं करने को ।
3- ‘स्वयंभू’ का क्या अर्थ है-
(क) स्वयं पैदा हुआ
(ख) स्वयं पर नियंत्रण रखना
(ग) स्वयं पिता होना
(घ) भूमि पर स्वयं नियंत्रण रखना ।
4- ‘अंतरैक्य’ का आशय है-
(क) एक-सा अंतर होना
(ख) अंदर से अंतर होना
(ग) एकता का अंत होना
(घ) अंदर से एकता होना ।
5- ‘अनर्थ’ क्या है?
(क) दूसरों को कष्ट देना
(ख) दूसरों से संबंध न रखना
(ग) दूसरों के कष्ट न हरना
(घ) अपनों के कष्ट न हरना।
उत्तर- 1. (ग) 2. (ग) 3. (क) 4. (घ) 5. (घ)
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी ।
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।।
मनुष्यता के भावार्थ व व्याख्या- कवि कहता है कि हे पाठको तुम जीवन में जिस भी मार्ग पर चलना चाहते हो, हँसी-खुशी से चलते चलो। रास्ते में जो भी संकट आएँ, बाधाएँ आएँ, उन्हें ढकेलते हुए आगे बढ़ते जाओ। परंतु यह ध्यान रखो कि तुम्हारा आपसी मेलजोल न घटे, मित्रता और एकता का भाव कम न हो। आपस की भिन्नता में वृद्धि न हो। मनुष्य – मनुष्य में वर्ग, जाति, रंग, रूप, प्रांत, देश आदि के अंतर न बढ़ें। सभी मत-पंथ और संप्रदाय सतर्क होकर उस तर्कातीत एकता को बढ़ाने में सहयोग दें। मनुष्य के लिए सबसे बड़ी सामर्थ्य यही है कि वह औरों का भी उद्धार करे तथा स्वयं भी तरे। वह जन-कल्याण करते-करते तरे। सच्चा मनुष्य वही है जो औरों के लिए काम आए।
मनुष्यता पद्यांश के mcq या बहुविकल्पीय प्रश्न
1- अभीष्ट मार्ग’ का आशय है-
(क) इच्छित मार्ग
(ख) सत्य मार्ग
(ग) लक्ष्य
(घ) कठिन मार्ग ।
2- ‘घटे न हेलमेल’ में किससे हेलमेल घटने पर चिंता प्रकट की गई है?
(क) मित्रों से
(ख) शत्रुओं से
(ग) मनुष्यों से
(घ) स्त्रियों से
3- ‘अतर्क एक पंथ’ का आशय है-
(क) एक रास्ता अतार्किक है।
(ख) तर्क न करना भी एक रास्ता है।
(ग) एकता का मार्ग निर्विवाद है।
(घ) एकता का कोई तर्क नहीं होता ।
4- मनुष्य के सामर्थ्य की पहचान क्या है?
(क) वह स्वयं को तारे
(ख) वह दूसरों को तारने में स्वयं बलिदान हो जाए
(ग) वह दूसरों को तारे
(घ) वह स्वयं भी तरे और दूसरों को भी तारे ।
5- इस कविता का मूल संदेश है-
(क) परस्पर एक रहो
(ख) मनुष्यों में हेलमेल बढ़ाओ
(ग) विघ्नों को ढकेलो
(घ) आपस में न लड़ो।
उत्तर- 1. (क) 2. (ग) 3. (ग) 4. (घ) 5. (ख)