आत्मत्राण कविता का भावार्थ, बहुविकल्पीय प्रश्न क्लास 10 स्पर्श

आत्मत्राण कविता का भावार्थ क्लास 10 स्पर्श 

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।

आत्मत्राण कविता भावार्थ व व्याख्या– कवि प्रभु से कहता है कि हे प्रभु! मैं आपसे यह प्रार्थना नहीं करता कि आप मुझे संकटों से बचाओ। मैं केवल इतनी प्रार्थना करता हूँ कि आप करुणावान हैं। अतः आपकी करुणा पाकर मैं किसी भी संकट में भयभीत न होऊँ। सब संकटों को सहर्ष झेल जाऊँ।

आत्मत्राण कविता के बहुविकल्पी प्रश्न

1- यहाँ ‘मुझे’ किसके लिए आया है?
(क) पापी के लिए
(ख) विपदाग्रस्त के लिए
(ग) भयभीत के लिए
(घ) कवि के लिए।

2. कवि किससे प्रार्थना कर रहा है?
(क) ईश्वर से
(ख) अपने स्वामी से
(ग) पिता से
(घ) नायक से।

3. कवि विपदा से बचाने की प्रार्थना क्यों नहीं करता?
(क) विपदाएँ आना स्वाभाविक है।
(ख) विपदाएँ प्रभु की देन हैं।
(ग) स्वाभिमान के कारण।
(घ) विनम्रता के कारण।

4. ‘करुणामय’ किसे कहा गया है?
(क) परमात्मा को
(ख) पिता को
(ग) मनुष्य को
(घ) स्वामी को

5. कवि विपदा में क्या नहीं चाहता?
(क) विनय
(ख) गिड़गिड़ाहट
(ग) भय
(घ) संघर्ष।

उत्तर- 1. (घ) 2. (क) 3. (क) 4. (क) 5. (ग)

दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।

आत्मत्राण कविता का भावार्थ व व्याख्या- कवि प्रभु से निवेदन करता है-हे प्रभु! यदि मेरा हृदय दुख और कष्ट से पीड़ित हो, तो चाहे आप मुझे सांत्वना के शब्द मत कहनामैं अपने दुखों को स्वयं सहन कर लूँगा। परंतु हे करुणामय प्रभु! इतनी कृपा करना। मुझे उन दुखों को सहन करने की शक्ति अवश्य देना। उन पर नियंत्रण करने की ताकत ज़रूर देना ।

आत्मत्राण कविता का बहुविकल्पी प्रश्न-

1. ‘ताप’ का क्या आशय है-
(क) पाप
(ख) पीड़ा
(ग) गर्मी
(घ) संकट

2- व्यथित चित्त’ का अर्थ है-
(क) दुःखी मन
(ख) आनंदित मन
(ग) वैरागी मन
(घ) स्थिर मन

3- ‘सांत्वना’ का अर्थ है-
(क) दुख दूर करना
(ख) दुख हरना
(ग) तसल्ली देना
(घ) सुख देना

4- कवि ‘सांत्वना’ के बारे में क्या कहता है-
(क) मुझे इसकी जरूरत नहीं।
(ख) यह मिले तो अच्छा है।
(ग) सांत्वना न मिले तो भी परवाह नहीं।
(घ) सांत्वना सभी को मिलनी चाहिए।

5- कवि प्रभु से कौन-सी शक्ति चाहता है ?
(क) दुख को जीतने की
(ख) स्वयं को सांत्वना देने की
(ग) दुख नकारने की
(घ) डटकर खड़े होने की।

उत्तर- 1. (ख) 2. (क) 3. (ग) 4. (ग) 5. (क)

कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय ।।

आत्मत्राण कविता का भावार्थ व व्याख्या– कवि प्रभु से निवेदन करता है कि हे प्रभु! यदि विपत्ति में मुझे कोई सहायता करने वाला न मिले तो कोई बात नहीं। मेरी प्रार्थना है कि मेरा अपना बल और पराक्रम डाँवाडोल न हो। मैं विपत्ति में घबरा न जाऊँ । मेरा अपना बल ही मेरे काम आ जाए यदि लाभ मुझे हर बार धोखा देता रहे और मुझे हानि-ही-हानि उठानी पड़े, तो भी मैं मन में अपना सर्वनाश न मान बैठूं, मैं निराशा से न भर जाऊँ।

आत्मत्राण कविता बहुविकल्पीय प्रश्न

1- कोई सहायक न मिलने पर कवि क्या चाहता है?
(क) प्रभु सहायता करें।
(ख) प्रभु शक्ति दें।
(ग) कवि दुख से न रोए ।
(घ) कवि का आत्मबल कम न हो।

2- संसार में हानि उठाने का क्या आशय है?
(क) धन की हानि
(ख) मान की हानि
(ग) ज्ञान की हानि
(घ) तीनों।

3- ‘लाभ अगर वंचना रही’ का आशय क्या है?
(क) अगर लाभ मिला।
(ख) अगर धोखा ही धोखा मिला।
(ग) अगर लाभ में कमी रही।
(घ) अगर लाभ मुझे धोखा देता रहे।

4- ‘क्षय’ का अर्थ है-
(क) नाश
(ख) कमी
(ग) समाप्ति
(घ) अल्प।

5. कवि दुख और हानि में प्रभु से क्या चाहता है?
(क) बल
(ख) पौरुष
(ग) क्षय से बचाव
(घ) पतन।

उत्तर- 1. (घ) 2. (घ) 3. (घ) 4. (ख) 5. (ग)

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणायम)
तरने की हो शक्ति अनामय।

आत्मत्राण कविता का भावार्थ व व्याख्या– कवि प्रभु से निवेदन करता है – हे प्रभु! मैं नहीं चाहता कि तुम प्रतिदिन हर संकट में मेरी रक्षा करो। मेरा यह निवेदन नहीं है। बस मेरा निवेदन यह है कि तुम मुझे हर संकट से उबरने की अविकल शक्ति दो। मैं स्वस्थ मन से संकट से पार उतर सकूँ।

आत्मत्राण कविता के बहुविकल्पीय प्रश्न

1. त्राण करने का आशय है-
(क) भयभीत करना
(ख) सुरक्षा देना
(ग) संकट लाना
(घ) प्रसन्न करना।

2. अनुदिन का अर्थ है-
(क) संकट के क्षण
(ख) हमेशा
(ग) विनय
(घ) हर दिन।

3. कवि प्रभु से प्रतिदिन सुरक्षा क्यों नहीं चाहता?
(क) वह संकट सहना चाहता है
(ख) वह संकट से जूझना चाहता है
(ग) वह संकट से तरना चाहता है।
(घ) वह संकट का अनुभव करना चाहता है

4. ‘अनामय’ का अर्थ है-
(क) निरंतर
(ख) स्वस्थ
(ग) अनाम होकर
(घ) बिना कामना के

5. कवि प्रभु से कौन-सी शक्ति चाहता है ?
(क) करुणा की
(ख) प्रार्थना की
(ग) सहनशीलता की
(घ) संकट से तरने की।

उत्तर- 1(ख) 2. (घ) 3. (ग) 4. (ख) 5. (घ)

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही ।
केवल इतना रखना अनुनय-
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।

आत्मत्राण कविता के भावार्थ व व्याख्या– कवि कहता है कि हे मेरे प्रभु! यदि मेरे दुख में आप मुझे तसल्ली नहीं देते, तो न दें। मैं मानता हूँ कि इससे मेरे जीवन का दुख-भार कम नहीं होगा। मैं उस दुख-भार को सहन कर लूँगा। परंतु आपसे विनयपूर्ण प्रार्थना यह है कि आप मुझे इस दुख को सहन करने की शक्ति दें। कहीं मैं दुख की इस घड़ी में भयभीत न हो जाऊँ। इतनी शक्ति अवश्य दें।

आत्मत्राण कविता के बहुविकल्पीय प्रश्न

1- ‘मेरा’ से क्या आशय है-
(क) कवि का
(ख) कवयित्री का
(ग) भक्त का
(घ) पापी का।

2- भार लघु करने का आशय स्पष्ट कीजिए।
(क) दुख कम करना
(ख) वज़न कम करना
(ग) मोटापा कम करना
(घ) शरीर स्वस्थ रखना।

3- ‘सांत्वना’ का अर्थ है-
(क) बल
(ख) दया
(ग) तसल्ली
(घ) करुणा

4. ‘अनुनय’ का आशय है
(क) ध्यान
(ख) न्याय
(ग) विनय
(घ) आदेश

5- कवि संकट में क्या कामना करता है?
(क) दुख सहने की शक्ति
(ख) जूझने की शक्ति
(ग) सुरक्षा
(घ) भक्ति ।

उत्तर- 1. (क) 2. (क) 3. (ग) 4. (ग) 5. (क)

नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन छिन में।
दुःख – रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय ।।

आत्मत्राण कविता के भावार्थ व व्याख्या- कवि करुणामय प्रभु से निवेदन करता है – हे प्रभु! मेरी कामना है कि जब मैं सुख में होऊँ तो भी सिर झुकाकर हर क्षण आपकी छवि देखूँ। हर सुख को आपकी कृपा मानूँ। जब मैं दुख की रात से घिर जाऊँ। सारे संसार के लोग उस दुख में मुझे और भी पीड़ा पहुँचाएँ, धोखा दें, तब भी हे करुणामय ईश्वर! मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं आप पर किसी प्रकार का संदेह न करूँ। मेरे मन में आपके प्रति भक्ति-भाव बना रहे।

आत्मत्राण कविता के बहुविकल्पीय प्रश्न 

1. नत शिर होने का क्या आशय है-
(क) परास्त होकर
(ख) उदास होकर
(ग) दुखी होकर
(घ) भक्तिपूर्वक ।

2. तव मुख पहचानने का आशय है-
(क) प्रभु के दर्शन करना
(ख) ईश्वर को पुकारना
(ग) नाम स्मरण करना
(घ) भक्ति करना

3. ‘दुख – रात्रि’ का क्या आशय है?
(क) दुख के दिन
(ख) रात के दुख
(ग) पाप
(घ) अंधकार

4. ‘निखिल मही’ से क्या आशय है-
(क) संपूर्ण धरती
(ख) संसार के सारे लोग
(ग) खिली हुई धरती
(घ) उदास धरती ।

5. कवि दुख के दिनों में भी प्रभु से क्या चाहता है-
(क) प्रभु पर संशय करना
(ख) प्रभु को इनकार करना
(ग) प्रभु में अखंड विश्वास रखना
(घ) प्रभु पर अविश्वास करना ।

उत्तर- 1. (घ) 2. (क) 3. (क) 4. (ख) 5. (ग)

Related Posts

error: Content is protected !!