बाजार दर्शन पाठ के प्रश्न उत्तर आरोह भाग दो क्लास 12

बाजार दर्शन पाठ के प्रश्न उत्तर आरोह भाग दो क्लास 12 


1. बाज़ार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?

उत्तर– बाजार का जादू चढ़ने पर मनुष्य अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह करने लगता है। इन अधिकाधिक वस्तुओं के संग्रह से मनुष्य समाज में अकेला पड़ने लगता है। इससे झूठ, कपट, धोखा बढ़ता है। व्यक्ति जादू के इस सम्मोहन में अपनी विवेक शक्ति खो देता है। लेकिन जब यह जादू उतरता है, तो व्यक्ति संयमशील हो जाता है। वह केवल अपनी जरुरत का सामान खरीदने बाजार में जाता है और शैतान के जाल में अपने आपको फंसने से बचाता है। चाह और तृष्णा समाप्त हो जाती है। व्यक्ति शांति से अपना जीवन व्यतीत कर लेता है।
👉बाजार दर्शन पाठ का सारांश

👉 बाजार दर्शन पाठ के बहुविकल्पीय प्रश्न (mcq)

2. बाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्त्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नजर में उनका आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है?

उत्तर– भगत जी केवल अपनी जरूरत के अनुसार कमाते हैं तथा उसे खर्च करते हैं। उनमें संचय की प्रवृत्ति नहीं है, उनका अपने मन पर नियन्त्रण है। भगत जी का यह आचरण हमारे समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है। 

दिखावे की प्रवृत्ति समाज में अंसतोष, कपट, शोषण को बढ़ाती है। पैसे की ‘पावर’ बाजार में व्यंग्य शक्ति का पोषण करती है। व्यक्ति जब जरूरत से ज्यादा अनावश्यक वस्तुएँ अपने आस-पास इक्ट्ठी कर लेता है, तो उसका समाज से लगाव हट जाता है। व्यक्ति असंयमी हो जाता है। इन सभी परिस्थितियों में भगत जी का व्यक्तित्व समाज के लिए अनुकरणीय है और शांति स्थापना में सहायक सिद्ध होगा।

3- ‘बाजारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें है?

उत्तर– बाजारूपन का तात्पर्य है- दिखावा, बनावटीपन। बाजार का नियम है- ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना, अधिक सामान बेचना। यह सब उसकी चमक-दमक पर निर्भर करता है। ग्राहक को अपने सम्मोहन के जादू में बांधकर उसकी जेब खाली करना ही बाजार का कायदा है। इसी का दूसरा नाम है बाजारूपन।

जो व्यक्ति बाजार रूपी शैतान के जाल में नहीं फसते वे भगत जी की तरह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार खरीददारी करते हैं। जो व्यक्ति ‘पैसे की पावर’ से अप्रभावित रहते हैं, वे ही व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान कर सकते हैं। बाजार व्यक्तियों के लाभ के लिए होता है, उनकी आवश्यकताओं के आदान-प्रदान का माध्यम होता है। जहाँ छल कपट, दिखावा और शोषण न हो। बाजार व्यक्ति के लिए हो; व्यक्ति बाजार के लिए न हो। व्यक्ति बाजार में अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए जाए न कि अपनी जेब खाली करके अनावयश्क और दिखावटी वस्तुएँ घर पर इक्टठी कर ले। तभी बाजार और व्यक्ति दोनों सार्थक और एक दूसरे के सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

4- बाज़ार किसी का लिंग, जाति-धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ उस की क्रय शक्ति को । इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। क्या आप इससे सहमत हैं?

उत्तर– बाजार किसी व्यक्ति का लिंग, जाति-धर्म या क्षेत्र को नहीं देखकर केवल उसकी क्रयशक्ति को देखता है। बाजार की इस भावना के कारण हमारे समाज में धनी वर्ग का उदय हुआ है। एक ऐसा वर्ग जिसके पास पैसा ही पैसा है। ऐसे वर्ग के लिए मानवीय मूल्यों का कोई मूल्य नहीं, उनके लिए केवल पैसा ही सब कुछ है। सहनशीलता और संयम के स्थान पर इस वर्ग में धन का नशा है, दिखावे और बनावटीपन की होड़ है। ऐसी स्थिति में इस वर्ग से सामाजिकता समता आशा करना बेमानी है। यहाँ केवल धोखा है, शोषण है, छल कपट है, अपने ही बराबरी के लोगों कोनीचा दिखाने की चेष्टा हर समय की लगी रहती है। इस वर्ग के लिए व्यक्ति और सामाजिक मूल्यों की बात करना बेकार है। इनके जीवन की सार्थकता तो केवल पैसे और उसकी पावर में निहित है। हम इस बात से सहमत नहीं है कि बाजार एक जैसी क्रय शक्ति वाले लोगों में सामाजिक समता की रचना कर रहा है।

5- आप अपने तथा समाज से किन्हीं दो ऐसे प्रसंगों का उल्लेख करें

(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।
(ख) पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

उत्तर

() व्यक्ति जब कोई भी नई और ऐशो आराम की वस्तु खरीदता है, तो समाज उस व्यक्ति के पैसे को उसकी पावर मानता है। व्यक्ति जितनी मंहगी और बड़ी वस्तु खरीदता है समाज में उसका कद उतना ही बढ़ा हुआ माना जाता है। पैसा शक्ति का परिचायक बन जाता है।

() पैसे से आप इस संसार की कोई भी वस्तु खरीद सकते हैं, लेकिन जब बात किसी का विश्वास और प्रेम प्राप्त करने की आती है या किसी व्यक्ति के ईमान और सिद्धांत खरीदने की आती है तो उस समय अधिकतर पैसे की शक्ति काम नहीं आती है। क्योंकि प्यार को प्यार तथा विश्वास को विश्वास से ही प्राप्त किया जा सकता है, पैसे से नहीं


बाजार दर्शन पाठ के आसपास 


1- बाज़ार दर्शन पाठ में बाज़ार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का ज़िक्र आया है आप इन से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।

() मन खाली हो
() मन खाली न हो
() मन बंद हो
() मन में नकार हो

(क) मन खाली हो – जब मनुष्य का मन खाली हो अर्थात् मन में बाज़ार के किसी सामान को खरीदने की इच्छा न हो तो मनुष्य बाज़ार में घूमकर बिना कुछ खरीदे ही वापिस आ जाता है।

(ख) मन खाली न हो – जब मन खाली न हो अर्थात् मन में बाज़ार से खरीददारी की इच्छा हो तब व्यक्ति पैसे न होने पर भी उधार लेकर भी बाज़ार से सामान खरीद कर लाता है। मन खाली न होने पर बाज़ार की सभी वस्तुएँ मनुष्य को लुभाती हैं।

(ग) मन बंद हो – मन बाज़ार से कुछ खरीदने की इच्छा ही न रखता हो तो व्यक्ति आवश्यकता होने पर भी कुछ नहीं खरीद सकता।

(घ) मन में नकार हो – अगर मन नकार दे तो चाहे कोई चीज़ कितनी भी उपयोगी एवम् कम पैसों की हो लेकिन व्यक्ति उसे नहीं खरीदेगा।

2- बाज़ार दर्शन पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते /मानती हैं?

उत्तर – बाज़ार दर्शन पाठ में एक ग्राहक बाज़ार से आवश्यकता से अधिक सामान खरीद कर लाता है और दूसरा बाज़ार जाकर भी बाज़ार देखने के बाद बिना कुछ खरीदे ही वापिस आ जाता है। हम स्वयं को इन दोनों में किसी भी श्रेणी का ग्राहक नहीं मानते क्योंकि अनावश्यक सामान को खरीदना धन का अपव्यय है। दूसरा, आवश्यकता होने पर भी बाज़ार की कोई भी वस्तु पसन्द न आना समय का व्यय है। हम आवश्यकतानुसार ही बाज़ार जाएंगे और अच्छी तरह जाँच कर सामान खरीद कर लायेंगे।

3- आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाजार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाज़ार में नज़र आती है ?

उत्तर– यह ठीक है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। बाज़ार में माँग के हिसाब से लाभ लिया जाता है।अगर वस्तु की माँग अधिक होगी तो लाभ भी अधिक रखा जाएगा। माँग कम होने पर वस्तु की बिक्री दुकानदार कम लाभ में भी कर देता है। कुछ लोग पर्चेज़िंग पावर के गर्व में बाजार जाते हैं। वे बिना आवश्यकता ही सामान का क्रय करते हैं। इससे बाज़ारूपन तो बढ़ता ही है साथ हीआवश्यकताओं का सही आदान-प्रदान न होकर अपितु शोषण होने लगता है। अनावश्यक समान की खरीददारी शोषण का रूप धारण कर लेती

4- लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर– कभी-कभी बाज़ार की आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। यह विचार पूर्णतया सही है क्योंकि जब बाज़ार में वस्तु कम होऔर खरीदने वाले अधिक अर्थात् माँग अधिक और पूर्ति कम हो तब अवश्य ही ग्राहक का शोषण होता है। दुकानदार अधिक पूर्ति (माँग) होने परअधिक दाम में ग्राहक का अपना माल बेचता है। अतः इस प्रकार ग्राहकों का निरन्तर शोषण होता है।

5- ‘स्त्री माया न जोड़े’- यहाँ ‘माया’ शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त है बल्कि परिस्थिति वश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ होंगी जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?

उत्तर ‘स्त्री माया न छोड़े’ में माया शब्द ‘धन’ और ‘मोह’ दोनों की ओर संकेत कर रहा है। स्त्री को धन का मोह और परिवार का मोह दोनों ही होते हैं। स्त्रियों का माया न छोड़ना प्रकृति प्रदत्त है। स्त्रियों का स्वभाव ही पुरुष की अपेक्ष धन के प्रति अधिक संकोची (कंजूस) तथा परिवार के प्रति अधिक समर्पित होता है। परिवार की विपरीत परिस्थितियों में जैसे घर में बीमारी, परिजन पर मुसीबत आने या अन्य अप्रिय घटना के घटने पर स्त्रियाँ धन का मोह छोड़ देती हैं लेकिन परिवार का मोह नहीं छोड़ सकती हैं।

बाजार दर्शन आपसदारी


1. “ज़रूरत – भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उन के लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है”- भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिए

चाह गई चिंता गई मनुआँ बेपरवाह
जाके कछु न चाहिए सोइ सहसाह ।
                                       ‘कबीर’

उत्तर– कबीरदास जी का आशय है कि जिस व्यक्ति की इच्छा शक्ति समाप्त हो जाती है वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन पंच विकारों कीचाहना नहीं करता। उनकी सभी चिंताएँ समाप्त हो जाती हैं। वह मस्ती में निश्चिन्त जीवनयापन करता है। वही राजाओं का राजा है अर्थात् वही सबसे खुश प्राणी है।

2. विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ (जिस पर ‘पहेली’ फिल्म बनी है) के अंश को पढ़ कर आप देखेंगे कि भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि कीतरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है। इस से आप के भीतर क्या भाव जगते हैं?

गड़रिया बगैर कहे ही उस के दिल की बात समझ गया, पर अँगूठी कबूल नहीं की। काली दाढ़ी के बीच पीले दाँतों की हँसी हँसते हुए बोला- ‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय की कीमत वसूल करूँ। मैंने तो अटका काम निकाल दिया। और यह अँगूठी मेरे किस काम की! न ये अँगुलियों मेंआती हैं, न तड़े में । मेरी भेड़ें भी मेरी तरह गँवार हैं। घास तो खाती हैं, पर सोना सूँघती तक नहीं। बेकार की वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देतीहैं।’   विजयदान देथा (दुविधा से)

   
उत्तर– विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ पढ़कर देखें।


3. प्रेमचंद की ईदगाह के हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।

उत्तर– प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ में हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से सम्बन्ध बाजार में क्रेता और विक्रेता का है। हामिद ईद के दिन अपनेमित्रों के साथ मेला देखने जाता है। हामिद के पास केवल तीन पैसे हैं। दोस्तों को खिलौने मिठाई खरीदते देखकर उसका बाल मन भी उन चीज़ोंको खरीदने के लिए ललचाता है, किन्तु वह किसी भी तरह मन को काबू कर उन तीन पैसों में अपनी दादी अमीना के लिए चिमटा खरीद कर लाता है ताकि रोटियाँ सेंकते समय उसका हाथ न जले। जहाँ चारों ओर बाजार का लुभावनापन है, वहीं हामिद का अपने मन पर अंकुश रख दादी के लिए चिमटा खरीदना हामिद बालक की अपनी दादी के प्रति प्रेमपूर्ण मानसिकता का चित्रण करता है। हामिद बाजार से तीन पैसों में काम की चीज खरीदकर अपनी दादी माँ की असीम दुआओं को लेता है।

बाजार दर्शन विज्ञापन की दुनिया


1. आपने समाचार-पत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है।नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया।

(क) विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु
(ख) विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य
(ग) विज्ञापन की भाषा

2. अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे बिक्री भी अच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो


बाजार दर्शन भाषा की बात


1. विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।

उत्तर– 

भाषा का औपचारिक रूप

() लोग संयमी भी होते हैं। वे फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं।
() पड़ोस में एक महानुभाव रहते हैं जिनको लोग भगत जी कहते हैं। वे चूरन बेचते हैं।
() निर्बल ही धन की ओर झुकता है। यह अब लता है। यह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है

भाषा का अनौपचारिक रूप

() सब उड़ गया, अब जो रेल टिकट के लिए भी बचा हो।
() मैं पैदल चल रहा हूँ कि पास की धूल उड़ाती निकल गई मोटर ।
() क्या जाने उस भोले आदमी को अक्षर ज्ञान तक भी है या नहीं।

2- पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जहाँ लेखक अपनी बात कहता हैं। कुछ वाक्य ऐसे है। जहाँ वह पाठक- -वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में मददगार होते हैं?

उत्तर– लेखक ने कई प्रसंगों में अपनी बात स्वयं न कहकर पाठक को सीधे तौर पर संबोधित किया है। ऐसे संबोधन से पाठक लगातार अपने आपको लेखक से जुड़ा हुआ अनुभव करते हैं। पाठकों की रूचि लेख को पढ़ने में बनी रहती है। ऐसे वाक्य निम्नलिखित हैं जो पाठक को सीधे तौर पर संबोधित हैं

() लेकिन ठहरिए।
() अगर ठीक पता नहीं है तो क्या चाहते हो सब ओर की चाह तुम्हे घेर लेगी।
() कहीं आप भूल न कर बैठिएगा।
() ऐसी हल्की बात भी न सोचिएगा।
() पैसे की व्यंग्य शक्ति की सुनिए ।

3. नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए ।

() पैसा पावर है।
() पैसे की उस पर्चेज़िंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है
() मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।
() पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।

ऊपर दिए गए इन वाक्यों की संरचना तो हिंदी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोडमिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल! अब तक आपने जो पाठ पढ़े उसमें से ऐसे कोई पाँच उदाहरण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिंदी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है।

उत्तर– ऊपर लिखित वाक्यों में पावर, पर्चेजिंग, मनी बैग और आर्डर शब्द अंग्रेजी भाषा के प्रयोग किए गए हैं। जिनके हिन्दी में शाब्दिक अर्थ हैं- क्रमशः शक्ति, खरीदारी, धन का थैला तथा आदेश। इन वाक्यों में यदि हिन्दी के पर्याय शब्दों का प्रयोग किया जाए, तो भाषा की संप्रेषणीयता कम हो जाएगी। इसका कारण है कि अनपढ़ व्यक्ति भी अपनी बोलचाल की भाषा में अधिकतर अंग्रेजी के इन शब्दों का प्रयोग करता है। अर्थात अंग्रेजी के ये शब्द हमारे समाज में आम प्रयोग होते हैं। लेखक इन्हीं के प्रयोग से अपनी बात को अधिक संप्रेषणीय बनाने में सफल हुए हैं।

4- नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए

(क) निर्बल ही धन की और झुकता है ।
(ख) लोग संयमी भी होते हैं।
(ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था।

ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ‘ही’, ‘भी”तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होनेऔर स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे

-मुझे भी किताब चाहिए। (मुझे महत्त्वपूर्ण है।)
-मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।)

आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का भी निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों ।

उत्तर

() पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित है। (ही)
() मकान-कोठी तो अनदेखे भी दिखते हैं। (तो) (भी)  

() उसका भी इस करतब में बहुत कुछ हाथ है। (भी)
() मैं ही नहीं बल्कि तुम भी तो बेईमान हो। (ही, भी, तो)
() लोग असंयमी तो होते ही हैं, धोखे बाज भी होते हैं। (तो, ही, भी)

बाजार दर्शन चर्चा करें


पर्चेज़िंग पावर से क्या अभिप्राय है? बाज़ार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद के लिए संकेत दिया जा रहा है

() सामाजिक विकास के कार्यों में……….
() ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में………..

उत्तर– पर्चेज़िंग पावर का अर्थ है ‘खरीदारी की शक्ति’। जब ग्राहक आवश्यकतानुसार बाजार में सामान खरीदते हुए धन का व्यय करता है तोउसकी यह खरीदारी पर्चेज़िंग पावर कहलाती है। जो व्यक्ति सामान की गुणवत्ता को परख कर धन खर्च करता है वह सामाजिक विकास में भी मददगार हो सकता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति बाजार के सामान की गुणवत्ता व मूल्य के सामंजस्य का पूरा ज्ञान रखता है तथा समाज को भी बाजारके सामान के बारे में जागरूक करके सामाजिक विकास में मददगार बन सकता है। ग्रामीण लोग प्रायः अज्ञानतावश धन का अपव्यय कर बैठते हैं। वे नकली सामान की खरीद प्रायः अधिक मूल्य में कर लेते हैं। ऐसा व्यक्ति जिसमें पर्चेज़िंग पावर है वह गाँव में बाजार के सामान के प्रति नकली और असली की पहचान पैदा कर सकता है। अतः गाँव में सामान का सही ज्ञान होने पर लोग अपव्यय से बचकर अपनी आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रख सकते हैं।

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