इस पोस्ट में हमलोग बच्चे काम पर जा रहे हैं का सारांश, बच्चे काम पर जा रहे हैं का भावार्थ व व्याख्या, बच्चे काम पर जा रहे हैं का प्रश्न उत्तर, को पढ़ेंगे जो क्षितिज क्लास 9 हिन्दी के चैप्टर 17 से लिया गया है|
बच्चे काम पर जा रहे हैं का सार / bachche kam par ja rhe hai ka saransh
आज के भौतिकतावादी युग में मानव मानव से दूर तो हुआ ही है, पर साथ ही उसने बच्चों के बचपन को भी छीन लिया है। सामाजिक और आर्थिक विषमताओं ने बच्चों को खेल-कूद और शिक्षा से दूर कर दिया है। सर्दियों की कोहरे से भरी सड़क पर ‘बच्चे सुबह-सवेरे काम पर जा रहे हैं जो समय की सबसे भयानक बात है। कवि जानना चाहता है कि क्या बच्चों की खेलने की सारी गेंदें अंतरिक्ष में खो गई हैं या दीमकों ने उनकी रंग-बिरंगी किताबों को खा लिया है? क्या उनके सारे खिलौने नष्ट हो गए हैं? क्या सारे विद्यालय, बाग-बगीचे और घरों के आँगन अचानक समाप्त हो गए हैं? यदि बच्चों से उनके बचपन में ही काम लिया जाने लगा तो यह विश्व के लिए बहुत खतरनाक है।
बच्चे काम पर जा रहे हैं का भावार्थ व व्याख्या / bachche kam par ja rhe hai ka bhawarth
कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा हैं बच्चे?
बच्चे काम पर जा रहे है प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘क्षितिज’ की राजेश जोशी दूवारा रचित कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से लिया गया है। राजेश जोशी की वैचारिक समझ तथा जीवन निष्ठा कठिन संघर्ष में भी अपना पक्ष जानती है। आज के समय में जब बच्चों के चेहरे से उनका बचपन छिन सा गया है जरुरत ने उनके हाथों में कलम की जगह काम पकड़ा दिया है, राजेश एक प्रश्न उठाते हैं कि आखिर क्यों?
बच्चे काम पर जा रहे हैं व्याख्या-जाड़े के ठिठुरन भरे दिनों में जबकि सड़क कुहरे से ढकी हुई है- सुबह सबेरे ही, बच्चे काम करने के लिए जा रहे हैं। यह कविता की सूचनात्मक पंक्ति है। राजेश जोशी आगे कहते हैं कि हमारे समय अर्थात् वर्तमान की सबसे बड़ी सूचना बच्चों के काम पर जाने के विषय में है, वह समाज को आगाह करते हुए कहते हैं कि बच्चे जिनका बचपन उमंग, स्वस्थ शैक्षिक परिवेश तथा चिंताहीन तरीके से गुजरना चाहिए उनका काम पर जाना हमारे समय का सबसे अधिक भयानक सत्य है। आखिर क्यों वे काम की तलाश में जा रहे हैं। इस प्रश्न को सामने लाकर कवि एक प्रकार से समाज के सामने एक अनुत्तरित चुनौती रख देता है। क्योंकि शायद सामाजिक व्यवस्था ही वह मूलभूत कारण है जिसने विसंगति के सारे कारणों को जन्म दिया है। कवि कहता है कि इस बात को हमारा समय विवरण की तरह न ले. सवाल की तरह ले और सोचे कि वे बच्चे जो शायद आने वाले समय अर्थात् भविष्य के सुंदर समाज की आधारशिला हों, किन कारणों की वज़ह से सुबह-सुबह काम पर रहे हैं?
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए एकाएक
बच्चे काम पर जा रहे हैं व्याख्या व भावार्थ–क्या दुनिया भर की सारी गेंदें अंतरिक्ष में गिर गई हैं, क्या सारी रंग-बिरंगी किताबें दीमक खा गए। क्या सारे खिलौने किसी काले पहाड़ के नीचे दब गए। क्या भूकंप ने गिरा दिया सारे स्कूलों की इमारतों को। क्या सारे घरों के आँगन, बगीचे और खेल के मैदान एकाएक इस दुनिया से लापता हो गए? कवि समाज से पूछता है कि ऐसा क्या हुआ कि जो बच्चे स्कूलों में, घरों में, खेल के मैदानों में दिखाई पड़ने चाहिए; जिनके हाथों में किताबें गेंदें और खिलौने होने चाहिए उनके हाथों में काम पकड़ा दिया गया है और वे जाड़े की सर्दी में ठिठुरते हुए, काम पर जाते हुए. सड़क पर दिखाई देते हैं।
तो फिर बचा ही क्या इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी यह
कि हैं सारी हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
बच्चे काम पर जा रहे हैं व्याख्या– कविता की इन पंक्तियों में कवि कहता है कि जिस समाज-व्यवस्था (उसका अभिप्राय दुनिया से यही है) ने बचपन को ही मार दिया हो तो उसके पास बचेगा ही क्या? लेकिन वस्तु स्थिति यह नहीं है। वह कहता है कि दुख इस बात का है कि दुनिया भर की सारी चीजें वैसे ही पड़ी हुई हैं, सुरक्षित हैं लेकिन उन्हें अर्थात् उन बच्चों को जिन्हें इन चीजों की ज़रुरत है नहीं मिल सकती। क्यों? क्योंकि वे इन्हें पाने के आर्थिक सामर्थ्य से शायद वंचित हैं। और यही कारण है कि सब कुछ रहने के बावजूद हजारों सड़कों पर बहुत छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। जैसे, दुनिया ने रोटी और रूपये की तलाश में श्रम करना ही उनकी नियति बना दी हो।
बच्चे काम पर जा रहे हैं प्रश्न उत्तर /bachche kam par ja rhe hai ka prashn uttar
1. कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
उत्तर– कविता की पहली दो पंक्तियाँ धार्मिक अनुभव से युक्त हैं। कुहरे से ढकी सड़क पर छोटे-छोटे बच्चों को काम करने के लिए जाते हुए पढ़कर, एक चित्र सा बन जाता है और उसे सोचकर पाठक के मन में करुणा की सष्टि होती है।
2. कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’ कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
उत्तर – छोटे बच्चों को काम पर भेजने का कार्य उनके माता-पिता, अभिभावक और जीवन की विवशताएँ हैं इसलिए समाज से प्रश्न किया जाना चाहिए कि ‘बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं?’ यदि बच्चों ने काम पर जाना आरंभ कर दिया तो उनका बचपन कहाँ गया? उनके जीवन के लिए शिक्षा-प्राप्ति का समय कहाँ गया? उनकी खेल-कूद कहाँ गई? वे बच्चे तो अपना बचपन खोकर जल्दी ही बड़े हो गए।
3. सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों है?
उत्तर – बच्चे सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से वंचित हैं। उनके माँ-बाप ग़रीब हैं। उनके पास पेट भरने के लिए रोटी नहीं है तो उनके पास उनके लिए खेल-खिलौने कहाँ से आ सकते हैं? इसलिए उनके बच्चे खेलते नहीं, बल्कि काम करने के लिए जाते हैं।
4. दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रहा/रही है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर – प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में प्राप्त किए जाने वाले सुखों तक ही सीमित है। उसे दूसरों के बच्चों के स्कूल जाने या न जाने से कोई मतलब नहीं है। वे सब स्वार्थी हैं। घरों-दुकानों-उद्योगों में छोटे-छोटे बच्चे कम वेतन पर काम करते हैं। वे खेतों में काम करते हैं; कूड़ा बीनते हैं; भीख माँगते हैं पर पढ़ते नहीं हैं। माँ-बाप भी खुश हैं कि वे कुछ तो कमाकर लाते हैं। उनसे खाना तो नहीं माँगते। उन सब की उदासीनता के अपने-अपने कारण हैं, पर सबसे बड़ा कारण तो ग़रीबी है।
5. आपने अपने शहर में बच्चों को कब कब और कहाँ कहाँ काम करते हुए देखा है?
उत्तर– हमने अपने शहर में बच्चों को दुकानों में काम देखा है; घर-बाहर की सफ़ाई करते देखा है; कूड़ा बीनते और बोझ ढोते देखा घरों में नौकर के रूप में देखा है; ढाबों पर खाना पकाते-परोसते देखा है।
6. बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है?
उत्तर – बच्चों का काम पर जाना एक भयानक प्रश्न है, यह एक हादसे के समान है। यदि वे अभी से काम पर जाने लगेंगे तो वे स्कूल नहीं जा सकेंगे; खेल-कूद नहीं सकेंगे। उनका बचपन अधूरा रह जाएगा। वे अनपढ़ रह जाएँगे और जीवन में उचित मार्ग प्राप्त नहीं कर सकेंगे। बचपन में ही बिगड़े हुए लोगों की संगत पाकर बिगड़ जाएँगे। उनकी बुद्धि का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो सकेगा।
बच्चे काम पर जा रहे हैं रचना और अभिव्यक्ति
7. काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने-आप को रखकर देखिए। आपको जो महसूस होता है उसे लिखिए।
उत्तर– यदि मैं अपने-आपको काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर रखंँ तो मेरा रोम-रोम काँप उठता है। मुझे अपने तन पर मैले-कुचैले कपड़े, पाँव में टूटी हुई चप्पल, मैला-गंदा शरीर और उलझे हुए बाल अनुभव कर स्वयं से ऐसा एहसास होता है जो सुखद नहीं है। मेरा पेट खाली हो और मन में नौकरी देने वाले मालिक की गालियाँ गरज रही हों तो मेरे मन में पीड़ा का उठना स्वाभाविक ही है। कोहरे या कीचड़ से भरी सड़क पर अकेले पैदल ही काम करने के लिए आगे बढ़ना निश्चित रूप से बहुत भयानक है।
8. आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए?
उत्तर– मेरे विचार में बच्चों को काम पर नहीं भेजा जाना चाहिए। उन्हें पढ़ने-लिखने का पूरा मौका मिलना चाहिए ताकि वे शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन को सँवार सकें। उन्हें खेलने-कूदने का उचित अवसर मिलना चाहिए ताकि वे तन-मन से स्वस्थ बन सकें। उन्हें अपने माता-पिता, सगे-संबंधियों और पास-पड़ोस से पूरा प्रेम मिलना चाहिए। ऐसा होने से ही उन के व्यक्तित्व का समुचित विकास हो सकेगा।