इस पोस्ट में हमलोग भोर और बरखा कविता का सारांश, भोर और बरखा कविता का भावार्थ, भोर और बरखा कविता का प्रश्न उत्तर का अध्ययन करेंगे| यह पाठ क्लास 7 हिन्दी वसंत भाग 2 के चैप्टर 16 से लिया गया है|
भोर और बरखा कविता का सार या सारांश / bhor aur barakha summary class 7
भोर और बरखा कविता का सप्रसंग भावार्थ व व्याख्या / bhor aur barakha explain
जागो बंसीवारे ललना!
जागो मेरे प्यारे
रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवारे।
गोपी दही मथत, सुनियत हैं कंगना के झनकारे।।
उठो लालजी! भोर भयो है, सुर-नर ठाढ़े द्वारे।
ग्वाल-बाल सब करत कुलाहल, जय-जय सबद उचारै।।
माखन-रोटी हाथ मुँह लीनी, गउवन के रखवारे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सरण आयाँ को तारै।।
भोर और बरखा का प्रसंग- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ भाग-2 से लिया गया है। ‘भोर और बरखा’ नामक कविता से उद्धृत इस पद में मीरा बाई ने ब्रजभूमि की भोर का वर्णन करते हुए लिखा है कि
भोर और बरखा का (व्याख्या)- प्यारे बेटे बंसीवारे (कृष्ण)! उठ जाओ । मेरे प्यारे कृष्ण जाग जाओ । रात बीत चुकी है, अब सुबह हो गई है। सभी घरों के दरवाजे खुल गए हैं। गोपियाँ अपने-अपने घरों में दही बिलोने-मथने लगी हैं। दही मथते हुए उनके कंगनों की टकराहट की झंकार सुनाई दे रही है। मीरा जी कहती हैं कि – हे बेटे कृष्ण, उठ जाओ। सुबह हो गई है। सुबह की पवित्र बेला में सभी देवता-नर दरवाजों पर खड़े हैं। ग्वाले भी सुबह-सुबह जय-जय शब्दों का उच्चारण करके शोर मचाने लगे हैं। सभी ग्वाल बालकों ने मक्खन और रोटी ले ली है। वे अपनी अपनी गायों को चराने और उनकी रखवाली के लिए जंगल की ओर चल दिए हैं। मीराबाई जी कहती हैं कि उनके प्रभु श्री कृष्ण अपनी शरण में आए भक्तों का उद्धार करते हैं।
बरसे बदरिया सावन की। सावन की. मन-भावन की।।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की।
उमड़-घुमड़ चहुँदिस से आया, दामिन दमकै झर लावन की।।
नन्हीं-नन्हीं बूंदन मेहा बरसे, शीतल पवन सुहावन की।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर! आनंद-मंगल गावन की।।
भोर और बरखा का प्रसंग- : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वसंत’ से लिया गया है। इस पद में प्रभु श्री कृष्ण की अनन्या भक्तिन मीरा बाई सावन की ऋतु में कृष्ण के आने की खबर सुनकर मंगल-गीत गाने का वर्णन करते हुए कहती हैं कि
भोर और बरखा का भावार्थ (व्याख्या) : सावन ऋतु आ गई है। बादल वर्षा बरसाने लगे हैं। सावन की ऋतु में वर्षा मन को बहुत भाती है। सावन में बरसते बादलों को देखकर उनके मन में उमंग जाग गई है। मीरा को श्री कृष्ण के आने की खबर मिल चुकी है। आसमान में बादल आ-आकर उमड़-घुमड़ कर चारों ओर वर्षा कर रहे हैं। आसमान में रह-रहकर बिजली चमक रही है। बरसात की नन्ही-नन्ही बूंदें बरस रही हैं। चारों ओर शीतल वायु बह रही है। मीराबाई सावन की ऋतु में बरसात और बिजली चमकने और प्रभु श्री कृष्ण के आगमन पर शुभ मंगल-गीत गा रही हैं।
भोर और बरखा कविता का प्रश्न उत्तर / bhor aur barakha question answer
1. ‘बंसीवारे ललना’, ‘मोरे प्यारे’, ‘लाल जी’, कहते हुए यशोदा किसे जगाने का प्रयास करती हैं और वे कौन-कौन सी बातें कहती हैं?
उत्तर – यशोदा अपने बेटे कृष्ण को जगाने का प्रयास करती हैं। वे कृष्ण को जगाते समय कृष्ण से कहती हैं। कि रात बीत चुकी है। सभी के घरों के दरवाजे खुल गए हैं। ब्रज की औरतें दही मथ रही हैं। प्रातः काल में सभी देवता-पुरूष अपने-अपने घरों के दरवाजों पर खड़े हैं। ग्वाल-बाल भगवान का नाम ले-लेकर स्तुति कर रहे हैं। सभी ग्वाले अपने हाथों में माखन-रोटी लेकर गऊओं को चराने के लिए ले जाने को तैयार हैं।
2. नीचे दी गई पंक्ति का आशय अपने शब्दों में लिखिए।
माखन-रोटी हाथ मुँह लीनी, गउवन के रखवारे।’
उत्तर-गौओं की रखवाली करने वाले तुम्हारे सखा ग्वाल-बालों ने हाथ में रोटी और मक्खन लिया हुआ है और गौएँ चरवाने जाने के लिए तुम्हारे इंतजार में खड़े हैं।
3. पढ़े हुए पद के आधार पर ब्रज की भोर का वर्णन कीजिए।
उत्तर-ब्रज में भोर होते ही ग्वालनें घर-घर में दही बिलौने लगती हैं, उनकी चूड़ियों की मधुर झंकार वातावरण में गूंजने लगती है, घर-घर में मंगलाचार होता है, ग्वाल-बाल गौओं को चराने के लिए वन में जाने की तैयारी करते हैं।
4. मीरा को सावन मनभावन क्यों लगने लगा?
उत्तर – मीराबाई कृष्ण की अनन्य भक्ति हैं। श्यामवर्णी मेघों में उन्हें कृष्ण की छवि नजर आती है। मीराबाई का मन मोर की तरह कृष्ण के स्वागत में नाचने लगा है। उन्हें अपने ईष्ट देव के आने की भनक पड़ते ही मन ही मन अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। जिस प्रकार मेघों के छाने पर मोर नाचते हैं, वैसे ही मीरा का मन भी नाच उठा है। इसीलिए मीरा को सावन ऋतु मनभावन लगती है।
5. पाठ के आधार पर सावन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – मीरा के पद में सावन ऋतु की विशेषताओं का विशद वर्णन है। सावन की ऋतु में मेघ आसमान में छा जाते हैं। और ठंडी रिमझिम फुहारें पड़ने लगती हैं। ये फुहारें तन-मन को शीतलता देती हैं। सावन की ऋतु में चारों दिशाओं से मेघ उमड़-घुमड़ आते हैं। आकाश में बिजली चमकने लगती है। बरसात की झड़ी लग जाती है। सभी प्राणियों का मन मोर की तरह नाचने लगता है। बरसती हुई बूंदें तन, मन और आत्मा को तृप्त करती है।
भोर और बरखा का कविता से आगे
1- मीरा भक्ति काल की प्रसिद्ध कवयित्री थी। इस काल के दूसरे कवियों के नामों की सूची बनाइए तथा उनकी एक-एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर – मीराबाई भक्तिकाल की प्रसिद्ध कवयित्री थीं। उनके समकालीन अन्य दो कवि सूरदास जी और तुलसीदास जी थे। तुलसीदास जी राम-भक्त थे, उन्होंने ‘श्री रामचरित मानस’ लिखा । सूरदास जी कृष्ण-भक्त थे, उन्होंने ‘सूरसागर’ नामक भक्ति ग्रंथ लिखा है।
2. सावन वर्षा ऋतु का महीना है, वर्षा ऋतु से संबंधित दो अन्य महीनों के नाम लिखिए।
उत्तर – सावन मास वर्षा ऋतु में आता है। वर्षा ऋतु में आषाढ़ और भाद्रपद (भादो) मास भी आता है। आश्विन मास भी वर्षा ऋतु के अंतर्गत आता है।
भोर और बरखा का अनुमान और कल्पना
1- सुबह जगने के समय आपको क्या अच्छा लगता है?
उत्तर– सुबह जगने के समय मुझे अच्छा लगता है कि मेरी माँ मेरे सामने हो।
2. यदि आपको अपने छोटे भाई बहन को जगाता पड़े, तो कैसे जगाएँगे?
उत्तर-यदि मुझे अपने छोटे भाई-बहन को जगाना पड़े तो हम उसे प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरकर जगाएँगे।
3. वर्षा में भीगना और खेलना आपको कैसा लगता है?
उत्तर-वर्षा में भीगना और खेलना मुझे बहुत अच्छा लगता है।
4. मीरा बाई ने सुबह का चित्र खींचा है। अपनी कल्पना और अनुमान से लिखिए कि नीचे दिए गए स्थानों की सुबह कैसी होती है
(क) गाँव, गली या मुहल्ले में
(ख) रेलवे प्लेटफार्म पर
(ग) नदी या समुद्र के किनारे
(घ) पहाड़ों पर
(क) गाँव, गली या मुहल्ले में – लोग सुबह होते ही आलस्य त्याग देते हैं। सूर्यदर्शन करके दिनचर्या से निवृत्त होकर पूजा-पाठ करते हैं। भोजनोपरांत बड़े ही प्रसन्न मन से अपने-अपने काम धंधों पर निकल जाते हैं।
(ख) रेलवे प्लेटफॉर्म पर- लोग लंबी और थकान पैदा करने वाली यात्रा के कारण प्लेटफॉर्म पर चाय-वाय का शोर मचाने वाले को पुकारते हैं। प्लेटफॉर्म पर चहल कदमी होती है। लोग एक-दूसरे का स्वागत करने या विदा
करने में मस्त हैं। प्लेटफॉर्म पर एक अजीब दुनिया के दर्शन होते हैं।
(ग) नदी या समुद्र के किनारे लोग सुबह शीतल लहरों में नहाते हैं। नहाने के बाद किनारे पर ईष्ट देव की स्तुति करके सूर्य को जलांजलि अर्पित करके सुखद जीवन की कामना करते हैं।
(घ) पहाड़ों में – स्वच्छ व शांत वातावरण में समाधिस्थ होकर लोग प्रकृति से सामंजस्य बनाते हैं। ईश्वरीय सृष्टि में अलौकिक आनंदानुभूति करते हैं।
भोर और बरखा कविता के भाषा की बात
1. कृष्ण को ‘गउवन के रखवारे’ कहा गया है जिसका अर्थ है गौओं का पालन करनेवाले। इसके लिए एक शब्द दें।
उत्तर– गोपाल या गोपालक
2 नीचे दो पंक्तियाँ दी गई हैं। इनमें से पहली पंक्ति में रेखांकित शब्द दो बार आए हैं, और दूसरी पंक्ति में भी दो बार। इन्हें पुनरुक्ति (पुनः उक्ति) कहते हैं। पहली पंक्ति में रेखांकित शब्द विशेषण हैं और दूसरी पंक्ति में संज्ञा।
‘नन्हीं-नन्हीं बूंदन मेहा बरसे’
घर घर खुले किवारे
इस प्रकार के दो-दो उदाहरण खोजकर वाक्य में प्रयोग कीजिए और देखिए कि विशेषण तथा संज्ञा की पुनरुक्ति के अर्थ में क्या अंतर है? जैसे-मीठी-मीठी बातें, फूल-फूल महके।
विशेषण पुनरुक्ति
गरम-गरम- माँ ने गरम-गरम पकौड़े बनाए।
तरह-तरह- बगीचे में तरह तरह के फूल खिले थे।
सुंदर-सुंदर- रमा ने सुंदर-सुंदर साड़ियों का चुनाव कर लिया है।
मीठे-मीठे- शबरी ने मीठे-मीठे बेर राम को खिलाए।
संज्ञा पुनरुक्ति
गली-गली- गली-गली में लोग टहल रहे हैं।
गाँव-गाँव-इस समय गांव-गांव में सड़क बन गई है।
बच्चा-बच्चा- इस समय बच्चा बच्चा शिक्षित हो गया है।
वन-वन राम लक्ष्मण और सीता वनवास के समय वन वन भटकते रहे
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