वे आँखे कविता की व्याख्या, प्रश्न उत्तर, सार, भावार्थ, आरोह क्लास 11

वे आँखे कविता की व्याख्या और प्रश्न उत्तर आरोह क्लास 11 


अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उसमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन !

यह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश वह खिसका !

लहराते वे खेत दृगों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तृन से!

आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा !

वे आँखे कविता प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से उद्धृत है। इसमें किसान की दयनीय एवं मार्मिक दशा का चित्रण किया गयाहै। थकी और दुख भरी किसान की आँखों का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि

वे आँखे कविता व्याख्या– किसान की व्यथित और थकी हुई आँखों में भावों की गहराई इतनी अधिक है कि वे अंधकारयुक्त गहरी गुफा के समान हृदय को डरानेवाली लगती हैं। उन आँखों में बहुत अधिक भयानकता है और वे दीनता एवं दुख के कारण एकांत में रोती रहती हैं। किसान का जीवन अभावों सेभरा हुआ है और वह जीवन भर कष्ट झेलता रहता है। किसान स्वतंत्र है और उसमें स्वाभिमान कूट-कूटकर भरा हुआ है। जब वह दुख और अभावोंकी धारा के बीच घिरा हुआ है तो संसार किनारों के समान उससे दूर हट गया है। अभावग्रस्त किसान की कोई भी मदद करने को तैयार नहीं है।जिन खेतों से उसे निकाला गया है, उन खेतों की फसलें आज भी उसकी आँखों के समक्ष लहरा रही हैं। खेत के एक-एक तिनके की हरियाली को देख उसका जीवन सुखद हो जाता था।

किसान का एक ही बेटा था जो उसे बहुत प्यारा था। लेकिन जमींदार के नौकरों ने उस जवान बेटे को लाठियों से मार डाला। उसका चेहरा किसान की आँखों में घूमता रहता है।

वे आँखे कविता विशेष– यहाँ कवि ने युग-युग से शोषित किसान के दयनीय जीवन का मार्मिक चित्रण किया है। उसकी आँखों में दीनता और दरिद्रता का भावभावुक बना देने वाला है। ‘गुहा सरीखी’, ‘कगार सदृश’ में उपमा अलंकार है, दैन्य दुख, स्वाधीन किसान, संसार कगार में अनुप्रास अलंकार है।’तृन-तृन’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। ‘आँखों का तारा’ मुहावरे का भावानुकूल प्रयोग किया गया है। तत्सम प्रधान शब्दावली के साथ-साथक्षेत्रीय भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न व्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!

उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती !

बिना दवा दर्पन के घरनी
स्वरग चली, आँखें आती भर,
देख-रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!

वे आँखे कविता प्रसंग – कवि ने अभावग्रस्त किसान का बड़ा ही दयनीय और मार्मिक चित्र अंकित किया है। कवि कहता है कि

वे आँखे कविता का भावार्थ – किसान ने साहूकार से रुपये उधार लिए थे। साहूकार ने उन रुपयों को वसूलने के लिए किसान का घर तक बिकवा दिया। उसने किसान की आर्थिक दशा पर तरस खाकर ब्याज का भी एक पैसा नहीं छोड़ा। बैलों की जोड़ी का नीलाम होना भी उसे बहुत दुख पहुँचाता है जिससे वहरोने लगता है। उसकी गाय भी उसके सिवाए और किसी को अपना दूध नहीं दुहने देती थी। हरियाली से युक्त खेती लहलहाती हुई सुख प्रदानकरती थी आज वह उजड़ गई है, सुख के दिन समाप्त हो गए उसकी आँखों से इसलिए भी आँसू बहने लगते हैं कि उसकी पत्नी दवाई और देखभाल के अभाव में मर गई थी। इतना ही नहीं माँ का दूध पीने वाली छोटी बेटी भी बिना देखभाल के दो दिन बाद मर गई। अभावग्रस्त किसानअपने परिवार के किसी भी सदस्य की मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सर्वथा असफल रहता है।

वे आँखे कविता विशेष– कवि ने शोषक वर्ग की स्वार्थपरक भावना और निर्दयता पर कटाक्ष किया है। आर्थिक तंगी के कारण किसान दुखद जीवन जीने कोविवश है। ‘कौड़ी छोड़ी’, ‘किसे कब’, ‘दवा दर्पन’, ‘दो दिन’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘रह-रह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। ‘आँखों में नाचना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग हुआ है। आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया गया है।

घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मँगाया कोतवाल ने,
डूब कुएँ में मरी एक दिन !

खैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटते. फटती छाती।

पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती।

वे आँखे कविता प्रसंग– यहाँ कवि किसान के जीवन की दुविधाओं और चिंता से ग्रस्त बताता है। उसका बीता हुआ जीवन सुखद अनुभूति की याद मात्र बनकर रहजाता है। कवि कहता है कि

वे आँखे कविता व्याख्या– किसान की पुत्रवधू विधवा होकर घर में रहती है। उसे घर की लक्ष्मी माना जाता था जबकि वास्तव में उसी ने अपने पति को मरवायाथा। एक दिन जब उक्त बात का पता चलता है तो थानेदार उसे पकड़कर लाने का आदेश देता है। किंतु वह कुएँ में छलाँग लगा जाती है औरडूबकर मर जाती है। कवि कहता है कि कोई बात नहीं पैर की जूती और पत्नी नहीं रहती है तो दूसरी आ जाती है। लेकिन अपने जवान बेटे की मौत को याद करके किसान चेतना शून्य हो जाता है और वह दुख से व्याकुल हो तड़पने लगता है। किसान अपने बीते हुए सुखद जीवन को जबयाद करता है तो एकाएक उसकी आँखों में चमक आ जाती है किंतु शीघ्र ही दुख की छाया से उसका चेहरा फीका पड़ जाता है और उसकी आँखें तीक्ष्ण धार के समान उसे पीड़ा देने वाली लगने लगती हैं।

वे आँखे कविता विशेष– यहाँ कवि ने किसान के साथ होने वाले विश्वासघात का उल्लेख किया है। ‘तीखी नोक सदृश’ में उपमा अलंकार है। सौंप लोटना, छातीफटना मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है। आंचलिक शब्दों को प्रसंगानुरूप अपनाया गया है।

वे आँखे कविता का प्रश्न उत्तर 


1- अंधकार की गुहा सरीखी
     उन आँखों से डरता है मन

(क) आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?
(ख) उन आँखों से किसी ओर संकेत किया गया है?
(ग) कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है?
(घ) डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?
(ङ) यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता ?

उत्तर

() आमतौर पर हमें दुख, क्रोध, निर्दयता से डर लगता है। 

() किसान की दुखभरी आँखों की ओर संकेत किया गया है। 
() कवि को उनआँखों से डर इसलिए लगता है क्योंकि उनमें दीनता और दुख का करुण रोदन भरा हुआ है।
() क्योंकि किसान सदा से ही स्वतंत्र रहा है और उसकी आँखों में अभिमान भरा रहा है।
() कवि कविता तो लिखता परंतु जो भाव अब है शायद वह नहीं आ पाता।

2- कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें जिम्मेदार बताया गया है?

उत्तर– किसान की पीड़ा के जिम्मेदार जमींदार, जमींदार के लोग और महाजन को बताया गया है।

3- पिछले सुख की स्मृति आंखों में क्षण भर एक चमक है लाती इनमें किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर– यहाँ किसान के सुखद एवं खुशहाल जीवन की और संकेत किया गया है। खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर उसका जीवन सुख एवंआनंद से भर जाता था।

4- संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें


(क) उजरी उसके सिवा किसे अब
        पास दुहाने आने देती?

(ख) घर में विधवा रही पतोहू
       लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,

(ग) पिछले सुख की स्मृति आँखों में
      क्षण भर एक चमक है लाती,
      तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
     तीखी नोक सदृश बन जाती।

उत्तर

() प्रस्तुत काव्यांश प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से उद्धृत हैं। इनके माध्यम से कवि किसान के विवश होकर अपना सब कुछ बेचने और उसके द्वारा पाले गए पशुओं का उसका आदी होने के विषय में बताता है।

किसान को अपना कर्जा उतारने के लिए अपने पालतू पशु तक बेचने पड़ जाते हैं। उसके द्वारा पाली गई गाय उसकी इतनी आदी हो गई थी कि उसके सिवाय और किसी को अपना दूध नहीं निकालने देती थी।

() इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन किया गया है जब किसान की पत्नी दवाई और देखभाल के अभाव तथा उसके दो दिन बाद उसकी छोटीमासूम बच्ची भी मर जाती है। किसान अभी इस दुख उबर भी नहीं पाया था मर जाती है। कि उसे पता चलता है कि उसकी पुत्र वधू ने ही उसके बेटे को मरवाया था। किसान का मानना था कि उसके बेटे की विधवा पत्नी उसके घर की लक्ष्मी थी किंतु थोड़े दिन बाद पता चलता है कि उसी ने उसके बेटे को मरवाया है।

() यहाँ कवि ने दुखों और कष्टों से भरा जीवनयापन करने वाले उस किसान का चित्रण किया है जो बीते हुए दिनों के सुख याद करके अनायास ही खुश हो जाता है।

किसान को बीते हुए दिनों की सुखद यादें आते ही उसकी आँखों में खुशी की चमक आ जाती है, लेकिन वर्तमान की शून्यता उसके चेहरे पर तेजधारदार नोक की तरह चुभने लगी है।

वे आँखे कविता के आस-पास प्रश्न उत्तर 


👉 किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों कीभी पड़ताल करें।

उत्तर– किसान कृषि छोड़ रहे हैं, यह सच है कोई किसान अपने पुत्र को खेती के धंधे में नहीं डालता। इसमें मिट्टी के साथ मिट्टी होना पड़ता है।

कारण– कृषि छोड़ने के अनेक कारण हैं। कुछ कारण निम्नलिखित हैं

घोर परिश्रम होना
कम आय होना
आधुनिक तकनीक का प्रयोग न होना
सम्मान न मिलना प्रकृति और वर्षा पर निर्भरता


 

Related Posts

error: Content is protected !!