देव के कवित्त सवैया कि व्याख्या, प्रश्ननोत्तर और अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
देव के कवित्त सवैया कि व्याख्या
पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई।।
व्यख्या– बालक कृष्ण के पैरों में पायल के घुँघरू बहुत ही मधुर ध्वनि में बज रहे हैं। उनके कमर में बंधी करधनी भी मधुर आवाज में बज रही है| कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं। उनके हृदय पर बन-पुष्पों की माला सुशोभित है। उनके मस्तक पर मोर पंख का मुकुट विराजमान है। उनकी आँखें विशाल और चंचल हैं। उनके मुख रूपी चाँद पर हंसी की चाँदनी अति मनोहारी लग रही है। कवि देव कहते हैं मंदिर में जैसे दीपक सुशोभित होता है ठीक वैसे ही संसार रूपी मंदिर में श्री कृष्ण ब्रज में दुल्हे के समान सुशोभित होते है। उनकी सदा जय हो। वे सदैव अपनी कृपा दृष्टि मुझ पर रखते हुए मेरी सहायता करें।
कवित्त
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावै ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
व्याख्या– बसंत ऋतु के आगमन पर कवि ने बताया है कि बसंत के आने पर वृक्षों की डालियाँ पलना बन गई हैं और नये पल्लव और पत्ते कोमल बिछौना बन गए हैं। उसके शरीर पर फूलों का सुंदर झबला अत्यधिक आकर्षक लग रहा है। कवि देव कहते हैं कि हवा उसे झूला-झुला रही है। मोर, तोता, कोयल आदि अपनी मधुर-मृदु आवाज में मानो तालियाँ बजाकर खेला रही हो। कमल की कली रूपी नायिका इस प्रकार झूम रही है मानो अपने पराग कणों से राई नमक मिलाकर बच्चे की नजर उतारने का टोटका कर रही हो। राजा कामदेव के बालक बसंत को उषा काल में गुलाब चुटकी बजाकर जगा रहे हैं।
फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै.
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।
व्याख्या– चाँदनी रात के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है कि स्वच्छ सुधामयी चाँदनी इस प्रकार फैली हुई है जैसे स्फटिक की शिलाओं से कोई सुंदर मंदिर निर्मित किया गया हो। जैसे दही का समुद्र अत्यधिक तीव्रता से उमड़ रहा हो, उसका वेग किसी भी तरह से कम नहीं हो रहा है। कवि देव कहते हैं कि चाँदनी का सौंदर्य इतना स्वच्छ और निर्मल है कि सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा है उसके बाहर या अन्दर किसी प्रकार की कोई दीवार या रूकावट नहीं दिखाई देती है। सर्वत्र चाँदनी का सौंदर्य इस प्रकार फैला हुआ है जिस प्रकार फर्श पर दूध के पारदर्शी झाग फैले हुए हों। तारों से भरी रात इस प्रकार झिलमिला रही है जिस प्रकार सितारें जड़ित वस्त्र पहने युवती झिलमिला रही हो। तारे मोतियों की आभामिश्रित मल्लिका के सफेद फूलों के समान पराग-कण प्रतीत हो रहे हैं। दर्पण के समान स्वच्छ आकाश में चाँदनी से सराबोर चाँद अनुपम सौंदर्य से युक्त राधा जैसा लगता है।
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देव के प्रश्न उत्तर
1.कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर– कवि देव ने श्री ब्रजदूलह शब्द का प्रयोग श्रीकृष्ण के लिए किया है। श्री कृष्ण को संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है क्योंकि जिस प्रकार मंदिर का दीपक मंदिर में उजाला फैलाता है ठीक उसी प्रकार श्रीकृष्ण संसार रूपी मंदिर में लोगों के आस्था और विश्वास के रूप में सदैव प्रकाशमान रहते हैं। अपने इस प्रकाश से वह संसार में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करते हैं।
2 पहले सवैये में से उन पक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
उत्तर–
अनुप्रास अलंकार- कटि किकिंनि कै, पट पीत
रुपक अलंकार- जग मंदिर दीपक, मुखचंद
3. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
पायनि नूपुर मंजु बजै, कटि किकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
उत्तर-
1.अनुप्रास अलंकार और रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
2.साहित्यिक भाषा ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
3.कवि देव ने श्रीकृष्ण की स्तुति करने के साथ-साथ उनके रूप सौंदर्य और उनके पहनावे का अति मनोहारी वर्णन किया है।
4.वात्सल्य रस का प्रयोग किया गया है।
4. दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है।
उत्तर– कवि देव के ऋतुराज वसंत के बाल रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से पूर्णतया भिन्न है। यहां वसंत को छोटे बच्चे के रूप में चित्रित किया गया है, जिसे पवन, तोता, मोर, पेड़, कमल की कली आदि ने अपना साथ देकर खिलौने के रूप में प्रस्तुत हुए हैं बसंत को बच्चे के रूप में चित्रित करना ही परंपरा से हटकर है। परंपरागत वसंत के आगमन पर दूसरे कवियों ने प्राकृतिक सौंदर्य वर्णन की अपेक्षा लोगों के अंदर ऊर्जा के नए संचार का वर्णन अधिक किया है जबकि कवि देव ने वसंत बालक का रुप देकर उसका चित्रण किया है। कवि देव का वसंत काम-रूप की जगह माधुर्य-रूप को ग्रहण किए हुए हैं।
5. ‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– उपर्युक्त पंक्ति का भाव यह है कि वसंत ऋतु के आने पर गुलाब भी अपने पूर्ण यौवन को प्राप्त कर लेते हैं और प्रातः काल में आसपास के क्षेत्र को अपनी सुगंध से महकाते रहते हैं। ऐसा लग रहा है जैसे वह गुलाब अपनी सुगंध के माध्यम से वसंत रूपी बालक को जगा रहा हो।
6 चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर– चांदनी रात की सुंदरता को कवि ने निम्नलिखित रूपों में देखा है
1 स्वच्छ निर्मल दर्पण के रूप में।
2 ऐसी फर्श जिस पर दूध का झाग ही झाग फैला हो।
3सफेद दही के समान उमड़ते समुद्र के रूप में।
4आकाश में फैले पारदर्शी सिलाओ की चांदनी के रूप में।
7. ‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएं कि इसमें कौन सा अलंकार है?
उत्तर– प्रस्तुत पंक्ति का भाव यह है कि चाँदनी रात में आसमान स्वच्छ साफ दर्पण के समान दिखाई दे रहा है। स्वच्छ आसमान रूपी दर्पण में चमकता चंद्रमा धरती पर खड़ी राधा का प्रतिबिंब प्रतीत हो रहा है। यहां चंद्रमा की तुलना राधा के प्रतिबिंब से की गई है। उपमान को निम्न और उपमेंय को उच्च बताया गया है अतः यहां पर व्यतिरेक अलंकार होगा।
8.तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर– चांदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए कवि ने निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है- दूध का फेन, सुधा मंदिर, दही का उमड़ता समुद्र, उदधि-दधि, स्फटिक शिला।
9. पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर– पठित कविताओं के आधार पर देव की निम्नलिखित काव्यगत विशेषताएं उभर कर सामने आती हैं-
भाव सौंदर्य- देव रीतिकालीन रसिक व श्रृंगारी कवि हैं। उनके काव्य का प्रमुख विषय प्रेम है। प्रकृति वर्णन में सिद्धहस्त देव ने नवीन कल्पना एवं मौलिकता का समावेश किया है और प्रकृति के सौंदर्य का मनोहारी चित्रण किया है।
शिल्प सौंदर्य- कवि देव की शिल्पगत विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1कवि देव ने अनुप्रास, रूपक और उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग किया है।
2देव की कविताओं में माधुर्य गुण प्रधान है।
3देव ने कवित्त एवं सवैया छंद का प्रयोग किया है।
4कवि के कविता की मधुर भाषा ब्रजभाषा है।
5मानवीकरण अलंकार का भी प्रयोग किया है।
देव पाठ का रचना और अभिव्यक्ति
10. आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
विद्यार्थी स्वयं करें
देव के अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न– श्री कृष्ण के मुख की तुलना किससे की गई है?
प्रश्न– श्री कृष्ण के शरीर का सौंदर्य किस कारण बढ़ गया है?
प्रश्न– कवि देव को चाँदनी रात में तारे कैसे दिख रहे हैं?
प्रश्न– कवि देव अपनी सहायता के लिए किसका आह्वान कर रहे हैं?
प्रश्न– कवि देव ने वसंत को राजा कामदेव का पुत्र क्यों कहा है?
प्रश्न– कवि ने गुलाब का मानवीकरण किस तरह किया है?
प्रश्न– बालक वसंत का बिस्तर किस तरह सजा है?
प्रश्न– श्री कृष्ण के शरीर पर कौन-कौन से आभूषण मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं?
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