नमक का दरोगा प्रश्न उत्तर
नमक का दरोगा पाठ के साथ
1. कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
2- ‘नमक का दारोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?
पहले पक्ष में वह धन के नशे में उन्मत्त रईस है जो समझता है कि संसार तो क्या स्वर्ग में भी लक्ष्मी (धन-दौलत) का राज्य है। न्याय और नीति सबउसके खिलौने हैं। वह दारोगा को रिश्वत देने के लिए साम-दाम की नीति अपनाता है दारोगा द्वारा गिरफ्तार कर लेने पर वह ऐसा करके दिखाता है यह बाइज़्ज़त अदालत से बरी होकर दारोगा को मुअत्तल करा देता है। वह अपनी इज़्ज़त उछालने का बदला लेता है।
3- कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी न किसी सच्चाई को उजागर करते हैं निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं
(क) वृद्ध मुंशी
(ख) वकील
(ग) शहर की भीड़
उत्तर
(क) वृद्ध मुंशी – वृद्ध मुंशी वंशीधर का पिता है। परिवार की हालत ठीक नहीं है तथा घर में बेटियाँ हैं जो समय के साथ बड़ी होने लगी है। वृद्धपिता अपने बेटे से सारी उम्मीदें लगाए बैठा है। एक वृद्ध पिता का और परिवार का पुत्र के बड़े होने पर उससे उम्मीद पूरी होने की आशा रखना सच्चाई है तथा महँगाई के ज़माने में सिर्फ वेतन से खुशहाल जीवन बिताना और वह भी ईमानदारी से इस भ्रष्टाचार व्याप्त समाज में बड़ा मुश्किलहै। अतः पिता द्वारा पुत्र को यह शिक्षा देना कि नौकरी में ओहदे से ज्यादा निगाह चढ़ावे और चादर (रिश्वत) पर रखनी चाहिए, गलत होने पर भी सच्ची थी।
(ख) वकील– वकील झूठ को सच और सच को झूठ साबित कर देते हैं। इस कहानी में भी पंडित अलोपीदीन के रईस होने के कारण वकील उसके गुलाम बन जाते हैं। वकीलों की एक पूरी सेना अलोपीदीन को अदालत के पंजे से छुड़ाने में जुट गई और सच को भ्रमात्मक बना दिया।
(ग) शहर की भीड़ – जब दारोगा पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है तो सभी पंडित की निंदा करते हैं। भीड़ इस प्रकार व्यवहार करती है जैसे उसकी गिरफ्तारी से संसार से पापी और पाप नष्ट हो गए हैं। इनमें कुछ निंदा करने वाले तो ऐसे थे जो स्वयं निंदनीय कार्य करते थे। परंतु जबपंडित धन के बल पर बाइज्जत बरी हो जाता है तो पासा पलट जाता है। अब भीड़ ईमानदार दारोगा पर निंदा की बौछार करने लगती है।अलोपीदीन के प्रति उदारता से अदालत की नींव ही हिल गई। जब अलोपीदीन अदालत गया तो भीड़ के कारण दीवारों, छत्तों पर लोगों काअंदाजा लगाना मुश्किल था और जब आया तो गुणगान करने वालों का अंदाजा लगाना मुश्किल था।
4. निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए
नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरीआय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।’
(क) यह किसकी उक्ति है?
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?
उत्तर
(क) यह वंशीधर के वृद्ध पिता की उक्ति है।
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद इसलिए कहा गया है क्योंकि जैसे-जैसे मास समाप्त होने लगता है, वेतन भी समाप्ति के करीब पहुँच जाता है। जैसे चाँद पूर्णिमा के बाद घटता है वैसे ही वेतन घटने लगता है और अमावस्या के चाँद की तरह समाप्त हो जाता है।
(ग) जी नहीं, हम इस वक्तव्य से सहमत नहीं हैं। यह सत्य है कि वेतन पूर्णमासी के चाँद की तरह है जो चाँद के घटने की तरह मास के अंत तकसमाप्त हो जाता है। परंतु रिश्वत खोरी समाज के नाम पर कलंक है। रिश्वत भगवान द्वारा दी गई आमदनी नहीं बल्कि विवश आदमी को धोखा देकर लिया गया धन है।
5- ‘नमक का दारोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– धर्म की धन पर विजय, सत्यमेव जयते, धर्म विजय। इस कहानी में दारोगा वंशीधर सिर्फ सत्य के बल पर धर्म के बल पर एक जाने-माने रईस को गिरफ्तार कर लेता है। इसका बदला उसे नौकरी से मुअत्तल होकर, लोगों की निंदा का तथा परिवार की उपेक्षा का पात्र बनकर चुकानी पड़ती है। परंतु वह धर्म के आगे नहीं झुकता । कहानी के अंत में धन के बल को प्रयोग करने वाला पंडित अलोपीदीन स्वयं दारोगा के गुणों कोगाकर उसे अपनी पूरी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करता है। पंडित धर्म और कर्तव्य का पालन करने वाले दारोगा का सम्मान करता है तथा धर्म के आगे नतमस्तक होता है। इस प्रकार धर्म और सत्य की विजय होती है। अतः उपर्युक्त शीर्षक भी उपयुक्त हैं।
6- कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर के नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?
उत्तर– कहानी के अंत में एक स्टांप पेपर के साथ अलोपीदीन वंशीधर के घर आता है तथा उसे छह हजार रुपये वार्षिक वेतन पर अपना स्थायी मैनेजर नियुक्त कर लेता है। इसका कारण एक तो यह है कि हर रईस आदमी चाहता है कि उसकी दौलत को सँभालने वाला मैनेजर उसके प्रति विश्वसनीय, ईमानदार तथा वफादार हो। भले ही पंडित ने उसे नौकरी से मुअत्तल करा दिया परंतु दिल से वह उसकी ईमानदारी का कायल था ।यह एक आध्यात्मिक सच्चाई है कि जो बात वास्तव में सही तथा सत्य है। हमारा मन सही और गलत को दर्पण की तरह बता देता है यह अलग बात है कि हम उस सच्चाई को व्यवहार में प्रयोग करते हैं या नहीं। हम भी यथार्थवाद के भोंडेपन को आदर्शवाद में सँजोकर इस कहानी का अंतकरते जैसे उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने किया है। अलोपीदीन ने स्वयं कहा कि उसने हज़ारों रईस व्यक्ति देखे थे पर उसे परास्त करने वाला पहला व्यक्ति वंशीधर था वंशीधर को वह धन से नहीं खरीद पाया।
नमक का दरोगा पाठ के आस-पास
1. दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ़्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?
उत्तर– इस कहानी का अंत अनेक शंकाओं को जन्म देता है। जैसे यदि पंडित में मन में दारोगा की ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा के प्रति श्रद्धा थी तोउसने उसे मुअत्तल क्यों करवाया? बेईमान और घाघ पंडित के मन में दारोगा एकाएक ईमानदारी के प्रति इतना सम्मान केसे उदय हुआ? दारोगा ने केसे मान लिया बेईमान, रिश्वतखोर और धोखाधड़ी करने वाला पंडित अब उसके साथ धोखा नहीं करेगा। परंतु इन सबका कारण एक है कि हर रईस व्यक्ति चाहता है कि उसके धन-वैभव को सँभालने वाला व्यक्ति बहुत ईमानदार, धर्मनिष्ठ हो वरना बेईमान तो उसकी जायदाद को हड़पसकता है। उसे धोखा दे सकता है। इसलिए वह सहृदय होकर उसे अपने यहाँ मैनेजर रख लेता है। वंशीधर को भी एक सप्ताह में पता चल गया था कि सब धन के पुजारी है। नौकरी छूटते ही माता-पिता उसको खरी-खोटी सुनाते हैं और उसकी उपेक्षा करते हैं। पत्नी कई दिनों तक सीधे मुँहबात नहीं करती। रही बात पंडित द्वारा दोबारा धोखा दे सकने वाली शंका की तो कहानी के आरंभ में ही वंशीधर के व्यक्तित्व के बारे में लिखा हैकि धैर्य उसका मित्र, बुद्धि उसकी पथ प्रदर्शक और आत्मावलंबन उसका अपना सहायक था। ऐसा आदमी हर जगह सफल हो जाता है।
2- नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लालायित रहते होंगे और क्यों?
उत्तर– वर्तमान समाज में भी पुलिस विभाग, कर विभाग इत्यादि में ऐसे पद हैं जहाँ पद पाने के लिए बड़ों-बड़ों का मन लालायित होता है। पुलिसविभाग में दारोगा, कर विभाग में कर-निरीक्षक तथा उत्पाद विभाग में निरीक्षक, निर्माण विभाग में अभियंता का पद तथा अन्य विभागों में जहाँ सुविधा शुल्क की प्राप्ति होती हो ऐसे पदों के लिए अधिकतर लोग लालायित रहते हैं।
3- अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्कों ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो।
उत्तर– एक बार हम सभी विद्यालय जा रहे थे कि हमने देखा कि गर्मी के मौसम में भी एक व्यक्ति कंबल ओढ़ रहा था। हमें शक हुआ कि यह कंबलमें छिपाकर चीजें उठा ले जाएगा। जब हम विद्यालय से आए तो पता चला कि उसने एक दुकान पर बहुत-सी साड़ियाँ देखी थी और 10-11 साड़ियाँ वो चुरा ले गया। इस प्रकार कंबल गर्मी में ओढ़ने वाले तर्क ने हमारे भ्रम को पुष्ट किया।
4- पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया । वृद्ध मुंशीजी द्वारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो ।
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।
(ग) ‘पढ़ना-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा : साक्षरता अथवा शिक्षा? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं ? )
उत्तर
(क) जब किसी होनहार, विद्वान, सुशिक्षित व्यक्ति को मज़दूरी करते देखा तो लगा कि उसका पढ़ना-लिखना व्यर्थ गया।
(ख) जब किसी को बहुत अच्छा ओहदा मिला।
(ग) पढ़ना-लिखना का अर्थ यहाँ शिक्षा से है।
साक्षरता का अर्थ पढ़ना-लिखना है पर इसका मतलब यह नहीं कि वह किसी बढ़िया जगह किसी शिक्षित के स्थान पर नियुक्त हो सकता है।इसका फायदा इतना ही है कि शोषण न हो पाए। जबकि शिक्षा वह है जो किसी व्यक्ति को हमेशा के लिए सुयोग्य व्यक्ति बना देती है।
5- ‘लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती है।’ वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?
उत्तर– मध्यमवर्गीय परिवार में लड़कियाँ जब युवतियाँ बनने को विकसित होने लगे और आय पर्याप्त न हो तो उनके प्रति अभिभावकों को सुयोग्य वर ढूँढ़ने तथा विवाह करने की चिंता सताने लगती है। अतः उन्हें लड़कियाँ जल्दी बढ़ती नज़र आती है और चिंता बढ़ जाती है।
6- इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में केसे आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य करने वाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए। प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था।- अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? लिखें।
उत्तर– हम भी ऐसे व्यक्ति के बारे में विस्मित हो जाएँगे अगर वह गिरफ्तार हो जाएगा। क्योंकि चारों तरफ़ भ्रष्टाचार का बोलबाला है और एकरईस व्यक्ति जो सब कुछ खरीद सकता है यहाँ तक की न्याय को भी खरीद सकता है वह गिरफ्तार हो जाए तो फिर हमारा भी विस्मित होना स्वाभाविक है। परंतु हम उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करने की बजाय उसे सजा दिलवाने की कोशिश करेंगे।
नमक का दरोगा समझाइए तो ज़रा
1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
उत्तर– नौकरी में इस ओर ध्यान न देना कि ओहदा क्या है, बल्कि इस बात पर ध्यान देना रिश्वत कितनी मिल जाएगी।
2- इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि पथ-प्रदर्शक और आत्मावलंबन ही अपना सहायक था।
उत्तर– इस संसार में जीवन-यापन करने के लिए धीरज, बुद्धि और स्वविवेक ही वंशीधर के सहायक थे।
3- तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया |
उत्तर– वंशीधर ने मन-ही-मन सवाल किया कि यमुना की शांत लहरों की आवाज़ सुनने की बजाय उसे गाड़ियों की गड़गड़ाहट और मल्लाहों काशोर क्यों सुनाई दे रहा है। इस प्रकार मन में उठा भ्रम इस सवाल से और भी स्पष्ट हो गया।
4- न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।
उत्तर– पंडित अलोपीदीन सोचता है कि वह धन के द्वारा न्याय, नीति, ईमान सब कुछ खरीद सकता है और जैसे चाहे इनसे खेल सकता है।
5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
उत्तर– समाज में अगर कोई अनहोनी घटना घटती है तो जितने मुँह उतनी बातें सुनाई पड़ती हैं और यह काम बहुत जल्दी होता है।
6. खेद ऐसी समझ पर ! पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया ।
उत्तर– वृद्ध मुंशी अपने बेटे को कोसता है कि इतने रईस आदमी से पंगा क्यों लिया? ऐसी शिक्षा व्यर्थ है।
7. धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
उत्तर– पंडित अलोपीदीन धन के बल पर अदालत से बाइज़्ज़त बरी हो जाता है। धर्मनिष्ठ दारोगा विवश हो जाता है।
8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
उत्तर– अदालत में धर्म के विरुद्ध धन ने सब कुछ खरीदने का कार्य शुरू कर दिया था। इस प्रकार स्थिति युद्ध जैसी बन गई।
नमक का दरोगा भाषा की बात
1. भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों, और मुहावरों का जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज़ से यह कहानी अद्भुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिकअसरदार बना है?
उत्तर
(क) लड़कियाँ हैं घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं (लोकोक्ति) – लड़कियाँ युवतियों के रूप में विकसित होने पिता की चिंता को सहज हीसमझा जा सकता है। होने से
(ख) निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए- वृद्ध मुंशी कहता है कि तुम पहले ओहदे की बजाय ऊपरी कमाई को देखना जो लोकोक्ति द्वारा प्रभावशाली बन गया है।
(ग) फूले न समाए (मुहावरा ) – जब वृद्ध मुंशी को खबर पहुँचती है कि उसका बेटा नमक विभाग में दारोगा बन गया है तो वह बहुत खुश हुआ मुहावरे द्वारा खुशी को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया गया है। ऐसे और भी बहुत-से उदाहरण है जैसे-कुड़बुड़ाना, न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, प्रफुल्लित होना, आँखें उबड़बाना इत्यादि।
2. कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो विशेषण और औरबताइए। साथ ही विशेषणों के आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए ।
उत्तर
(क) गिनती के गन्ने- सरकारी नौकरी में तो गिनती के गन्ने मिलते हैं।
(ख) लक्ष्मी दर्शन – एक तारीख हो गई, आज तो लक्ष्मी के दर्शन होंगे।
3. नीचे दी गई भाषा की विशिष्ट अभिव्यक्तियों को पूरे वाक्य अथवा वाक्यों द्वारा स्पष्ट कीजिए
क- बाबूजी आशीर्वाद
ख- सरकारी हुक्म !
ग- दातागुणज के
घ- कानपुर
उत्तर
(क) बाबूजी, तुम्हें आशीर्वाद प्राप्त हो !
(ख) तुमने सरकारी हुक्म का पालन नहीं किया!
(ग) क्या कहा? दातागंज के हैं !
(घ) क्या कहा? कानपुर के हैं!
दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। अब आप किसी अन्य संदर्भ में इनभाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए ।
उत्तर-
घ- कानपुर? – कानपुर किसलिए जायेंगी?
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