छाया मत छूना मन का भावार्थ, व्याख्या, सारांश, प्रश्न उत्तर,अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

छाया मत छूना मन का भावार्थ, व्याख्या, सारांश, प्रश्न उत्तर,अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

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छाया मत छूना का सारांश

छाया मत छूना कविता के कवि गिरिजा कुमार माथुर हैं। छाया मत छूना मन का शाब्दिक अर्थ ‘हमें बीती बातों को याद नहीं करना चाहिए’ होता है। इस कविता में कवि ने यह बताया है कि हमें बीती बातों को नहीं याद करना चाहिए क्योकिं जितना ज्यादा हम बीती बातों को याद करेंगे हमारा दुःख उतना ही ज्यादा बढ़ता जाएगा। बीती हुई सुखद काल्पनिकता से चिपके रहने की अपेक्षा व्यक्ति को वर्तमान परिस्थियों से लड़ने पर ज्यादा जोर देना चाहिए। यश और वैभव को कवि ने मृगतृष्णा के समान बताया है। जिस प्रकार रेत पर मृग पानी की तलाश में आगे से आगे बढ़ता जाता है लेकिन उसे पानी नहीं मिलता उसी प्रकार व्यक्ति है इसको जितना यश और वैभव मिलता जाता है उतना ही पाने की लालशा इसकी बढ़ती जाती है।

छाया मत छूना मन का भावार्थ व व्याख्या

छाया मत छूना मन,
होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना मन,
होगा दुख दूना।

छाया मत छूना मन का प्रसंग
प्रस्तुत पद्यांश गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘छाया मत छूना मन’ से लिया गया है। यहाँ कवि ने बताया है कि बिते सुख को याद करके वर्तमान के दुख को और गहरा करना तर्कसंगत नहीं है। कवि का कहना है कि-

छाया मत छूना मन का भावार्थ व व्याख्या- हे मेरे मन! तुम छाया मत छूना, अतीत के सुख को यादकर दुविधा में मत पड़ना, अन्यथा दुखद परिस्थितियों में दुख और अधिक बढ़ जाएगा। जीवन में रंग-बिरंगी और सुहावनी यादें भरी हुई हैं। सुंदरता की, सुखों की चित्रमयी गंध युक्त स्मृतियाँ मन का भाने वाली प्रतीत हो रही हैं। तारों भरी चाँदनी रात बीत गई, अब केवल उससे प्रभावित शरीर बाकी रह गया है। सुख के दिन बीत जाने के बाद अब उनकी स्मृति मात्र रह गई हैं। चाँदनी प्रेयसी के लम्बे बालों में लगे सफेद, सुगंधित फूलों की याद दिलाती है। जीवन का एक-एक पल बीती हुई बातों की यादों का स्पर्श करता हुआ गुजर रहा है। कवि मन को समझाता है कि हे मेरे मन। तुम बीती हुई बातों को याद कर दुविधा में मत पडो इससे तुम्हारा दुख और बढ़ जाएगा।

यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना मन,
होगा दुख दूना।

छाया मत छूना मन प्रसंग यहाँ कवि ने मनुष्य को सुख-वैभव के पीछे न भागकर यथार्थ का सामना करने का संदेश देते हुए
कहा है कि-

छाया मत छूना मन का भावार्थ व व्याख्या- हे मनुष्य! प्रताप, सुख-समृद्धि, मान-सम्मान, धन-दौलत आदि की दुविधा में पड़ कर तुम जितना अधिक दौडोगे उतना अधिक तुम इस भ्रमजाल में उलझते चले जाओगे। मनुष्य जो है और जो नहीं है की दुविधा में पड़ेगा तो वह भ्रमित हो जाएगा। बड़प्पन का अहसास तुम्हारे लिए मात्र मृगतृष्णा बन कर रह.जाएगा। प्रत्येक चाँदनी रात के अन्दर अंधकार युक्त रात का अस्तित्व छिपा रहता है। प्रत्येक सुख अपने अन्दर दुख संजोए हुए होता है। सुख के बाद दुख का आना निश्चित होता है। जीवन के कठोर सत्य को पहचान कर तुम उसकी स्तुति करो। जीवन की वास्तविकता को समझकर उससे सामंजस्य स्थापित करो। यथार्थ को सहर्ष स्वीकार करो। कवि कहता है- हे मेरे मन! तुम बीते हुए सुखद दिनों को याद कर दुविधा में मत पड़ना. अन्यथा दुख और अधिक बढ़ जाएगा

दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना मन,
होगा दुख दूना।

छाया मत छूना मन का प्रसंग यहाँ कवि ने बताया है कि दुविधा-ग्रस्त मनुष्य को जीवन में कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है। उसे समय पर न मिलने वाली वस्तुओं का दुख है। इसी ओर संकेत करते हुए कवि कहता है कि-

छाया मत छूना मन की व्याख्या व भावार्थ- व्यक्ति के पास अदम्य साहस होते हुए भी वह दुविधा-ग्रस्त दिखाई देता है। वह जीवन के ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ से उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है। शरीर के आराम के लिए तो सभी तरह की सुख-सुविधाएँ उपलब्ध है किंतु मन के अन्दर समाए हुए दुख का कोई अन्त नहीं है। मन को इस बात का दुख है कि सर्दी की ठण्ड भरी रात में चाँद की चाँदनी नहीं बिखरी। बसंत-ऋतु के व्यतीत हो जाने के बाद यदि फूल खिलते हैं तो क्या हुआ? माना की समय बीतने के बाद वस्तु की उपलब्धि की उपादेयता नहीं रहती है और कई बार समय बीतने के बाद उपलब्धि मनुष्य को आनंद प्रदान करती है। बसंत के जाने के बाद फूलों का खिलना मनुष्य को आनन्द भी प्रदान कर सकता है। किनु बसंत में उसका महत्त्व अधिक होता है। वर्तमान का चुनाव करो। बीती हुई यादों को भुलाकर वर्तमान में जीते हुए भविष्य का चयन करो। बीते सुखद दिनों को मन में यादकर दुविधा में मत पड़ना, नहीं तो वर्तमान के दुख और अधिक बढ़ जाएंगे।

छाया मत छूना मन कविता का प्रश्न-उत्तर 

1-कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?

उत्तर– कठिन यथार्थ से अभिप्राय है- जीवन का कठोर सत्य। कवि ने बताया है कि जीवन में कठोर सत्य का सामना करना पड़ता है। वर्तमान की इन कठोर परिस्थितियों को छोड़कर व्यक्ति कहीं नहीं जा सकता इसलिए कवि ने इन्हें सहर्ष स्वीकार कर उनकी पूजा करने की बात की है।

2- भाव स्पष्ट करें

“प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।”

उत्तर– यहाँ कवि के कहने का अभिप्राय है- व्यक्ति सुखी-समृद्ध बनने की होड़ में भरमाया हुआ है। उसका बड़प्पन का अहसास उसके लिए मृगतृष्णा के समान छलावा बन कर आता है, जो स्थायी नहीं है। जिस प्रकार प्रत्येक चाँदनी रात के बाद अंधेरी रात का आना निश्चित है उसी प्रकार प्रत्येक सुख के अन्दर दुख का अस्तित्व विद्यमान रहता है।

3. ‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?

उत्तर– ‘छाया’ शब्द अतीत की सुखद स्मृतियों के लिए प्रयुक्त हुआ है। कवि ने उसे छूने के लिए इसलिए मना किया है क्योंकि बीते हुए सुख को याद करने से वर्तमान के दुख और अधिक बढ़ जाते हैं।

4 कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ। कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?

उत्तर
* सुरंग सुधियां सुहावनी- यहाँ स्मृतियों को रंग-बिरंगी और मन भावक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
*दुविधा-हत साहस- साहस का दुविधाग्रस्त होना।
*शरद-रात- ऐसी रातें जो सरदी से युक्त है।

5. ‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ

उत्तर– गर्मी की चिलचिलाती धूप में जब रेगिस्तान में या दूर सड़क पर पानी के होने का अहसास होता है पर पास पहुंचने पर वहाँ कुछ भी दिखाई नहीं देता, उसे ‘मृगतृष्णा’ कहा जाता है। यहाँ ‘मृगतृष्णा’ का प्रयोग जीवन धन-दौलत, वैभव और मान-सम्मान पाने के अर्थ में किया गया है।

6. ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?

उत्तर– बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की निम्नलिखित पंक्ति से व्यक्त होता है-
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण

7. कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– मानव की इच्छावृत्ति दुख का मूल कारण है। जीवन से वह बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ रखता है और जब वे पूरी नहीं होती हैं तो दुख का भाव उत्पन्न हो जाता है। प्रस्तुत कविता में भी कुछ ऐसा ही हुआ है भौतिक सुविधाओं का उपयोग करके शरीर तो सुख प्राप्त कर लेता है किंतु मन अपेक्षित वस्तु के न मिलने से दुखी हो जाता है। उचित समय पर उचित कार्य के न होने से भी दुख होता है।

छाया मत छूना मन कविता की रचना और अभिव्यक्ति

8. ‘जीवन में हैं सुरंग सुधियां सुहावनी’, से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से हैं। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?

विद्यार्थी स्वयं करें।

9. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती हैं। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए।

उत्तर- कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। लेकिन कभी-कभी समय बीतने पर उपलब्धि की उपादेयता नहीं रहती। हमारे विचार में समय पर होने वाली उपलब्धि की उपादेयता अधिक है। जब कोई लक्ष्य निर्धारित करके परिश्रम या प्रयत्न किया जाता है और उसमें हमें सफलता मिलती है तथा परिणाम सकारात्मक होता है तो असीम आनन्द की अनुभूति होती है। लेकिन निर्धारित समय के अनुसार सफलता नहीं मिलती है तो मन को सब्र करना पड़ता है।

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छाया मत छूना मन के अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न- छाया मत छूना मन कविता के कवि कौन हैं?
उत्तर- छाया मत छूना मन कविता के कवि गिरिजा कुमार माथुर हैं।

प्रश्न- कवि कैसी छाया नहीं छूने की बात करता है?
उत्तर- कवि बीते हुये पल रूपी छाया को नहीं छूने की बात करता है।प्रश्न- बीते हुए पल या छाया को छूने से क्या होगा?
उत्तर- बीते हुए पल को याद करने से दुःख दोगुना हो जाएगा।

प्रश्न-छाया मत छूना मन कविता का उद्देश्य क्या है?
उत्तर- छाया मत छूना मन कविता का उद्देश्य लोगों के चित्त को सदैव प्रसन्न व आनंदित रखना है।

प्रश्न-छाया मत छूना मन कविता से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर- छाया मत छूना मन कविता से यह शिक्षा मिलती है कि हमें बीते हुए सुख के पल को नहीं याद करना चाहिए। अगर हम बीते हुए पल को याद करेंगे तो वर्तमान का दुःख और भी ज्यादा बढ़ जाएगा।

प्रश्न- कवि ने छाया को छूने से मना क्यों किया है?
उत्तर- कवि ने छाया को छूने से मना किया है क्योंकि छाया को छूने से दुःख घटने के बजाय बढ़ने लगता है।

प्रश्न- छाया मत छूना कविता से कवि क्या कहना चाह रहा है?
उत्तर- छाया मत छूना कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाह रहा है कि हमें सदैव वर्तमान को स्वीकार करके भविष्य को सँवारना चाहिए।

प्रश्न- कविता में छाया का क्या अर्थ है?
उत्तर- कविता में छाया का अर्थ अतीत के पल या समय या क्षण से है।

छाया मत छूना मन के अभ्यास प्रश्न

प्रश्न– छाया मत छूना मन कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
प्रश्न– कवि छाया छूने से क्यों मना करता है?
प्रश्न– कवि के जीवन की कौन सी यादें उसे दुखी कर रही हैं?
प्रश्न– प्रभुता की कामना को मृगतृष्णा क्यों कहा गया है?
प्रश्न– कविता में यथार्थ स्वीकारने की बात क्यों कही गई है?
प्रश्न– कवि के जीवन की कौन सी यादें उसे दुखी कर रही हैं?
प्रश्न– जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

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