वाराणसी हिन्दी अनुवाद / Varanasi anuvad class 10

वाराणसी हिन्दी अनुवाद को पढ़ेंगे जो up board क्लास 10 के संस्कृत दिग्दर्शिका से लिया गया है। Varanasi anuvad परीक्षा के दृष्टिगत अति महत्त्वपूर्ण है।

वाराणसी  पाठ का हिन्दी अनुवाद / Varanasi anuvad class 10

संदर्भ– प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हिन्दी पाठ्य पुस्तक के संस्कृत खंड के अन्तर्गत ‘वाराणसी’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें वाराणसी के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

वाराणसी सुविख्याता प्राचीना नगरी। इयं विमलसलिलतरङ्गायाः गङ्गायाः कूले स्थिता। अस्याः घट्टानां वलयाकृतिः पङ्क्तिः धवलायां चन्द्रिकायां बहुराजते। अगणिताः पर्यटकाः सुदूरेभ्यः देशेभ्यः नित्यम् अत्र आयान्ति, अस्याः घट्टानाञ्च शोभां विलोक्य इमां बहु प्रशंसन्ति

अनुवाद– वाराणसी बहुत प्रसिद्ध पुरानी नगरी है। यह स्वच्छ व पावन जल की लहरों वाली गंगा के किनारे पर स्थित है। इसके घाटों की घुमावदार पंक्ति सफेद चाँदनी में बहुत सुन्दर लगती है। यहाँ प्रतिदिन दूर-दूर से अनेक पर्यटक आते हैं और इसके घाटों का सौन्दर्य देखकर इसकी अत्यधिक प्रशंसा करते हैं।

वाराणस्यां प्राचीनकालादेव गेहे-गेहे विद्यायाः दिव्यं ज्योतिः द्योतते। अधुनाऽपि अत्र संस्कृतवाग्धारा सततं प्रवहति, जनानां ज्ञानञ्च वर्द्धयति। अत्र अनेके आचार्याः मूर्धन्याः विद्वांसः वैदिकवाङ्मयस्य अध्ययने अध्यापने च इदानीं निरताः। न केवलं भारतीयाः, अपितु वैदेशिकाः गीर्वाणवाण्याः अध्ययनाय अत्र आगच्छन्ति निःशुल्कं च विद्यां गृहणन्ति।

अनुवाद– वाराणसी में प्राचीनकाल से ही घर-घर में विद्या की अलौकिक ज्योति प्रकाशित है। आज भी यहाँ संस्कृत-वाणी की धारा लगातार (निरन्तर) प्रवाहित हो रही है और लोगों का ज्ञान बढ़ा रही है। इस समय यहाँ अनेक आचार्य, उच्चकोटि के विद्वान, वैदिक साहित्य के अध्ययन-अध्यापन में लगे हुए हैं। केवल भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी भी देववाणी संस्कृत के अध्ययन के लिए यहाँ आते हैं और नि:शुल्क विद्या प्राप्त करते हैं। 

अत्र हिन्दूविश्वविद्यालयः, संस्कृतविश्वविद्यालयः, काशीविद्यापीठम् इत्येते त्रयः विश्वविद्यालयाः सन्ति, येषु नवीनानां प्राचीनानाञ्च ज्ञानविज्ञानविषयाणाम् अध्ययनं प्रचलति।

अनुवाद– यहाँ हिन्दू विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय और काशी विद्यापीठ-ये तीन विश्वविद्यालय हैं, जिनमें ज्ञान-विज्ञान के नए-पुराने विषयों का अध्ययन चलता रहता है।

एषा नगरी भारतीयसंस्कृतेः संस्कृतभाषायाश्च केन्द्रस्थलम् अस्ति। इत एव संस्कृतवाङ्मयस्य संस्कृतेश्च आलोकः सर्वत्र प्रसृतः। मुगलयुवराजः दाराशिकोहः अत्रागत्य भारतीय-दर्शन-शास्त्राणाम् अध्ययनम् अकरोत्। स तेषां ज्ञानेन तथा प्रभावितः अभवत, यत् तेन उपनिषदाम् अनुवादः फारसीभाषायां कारितः।

अनुवाद– यह नगरी भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा का केन्द्रस्थल है। यहीं से संस्कृत साहित्य और संस्कृति का प्रकाश चारों ओर फैला है। मुगल युवराज दाराशिकोह ने यहीं आकर भारतीय दर्शनशास्त्रों का अध्ययन किया था। वह उनके ज्ञान से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उपनिषदों का अनुवाद फारसी भाषा में करवाया।

इयं नगरी विविधधर्माणां सङ्गमस्थली। महात्मा बुद्धः, तीर्थङ्करः पार्श्वनाथः, शङ्कराचार्यः, कबीरः, गोस्वामी तुलसीदासः अन्ये च बहवः महात्मानः अत्रागत्य स्वीयान् विचारान् प्रासारयन्। न केवलं दर्शने, साहित्ये, धर्मे, अपितु कलाक्षेत्रेऽपि इयं नगरी विविधानां कलानां, शिल्पानाञ्च कृते लोके विश्रुता। 

अनुवाद- यह नगरी (अर्थात् काशी) अनेक धर्मों की संगमस्थली (मिलन स्थल) है। महात्मा बुद्ध, तीर्थंकर पार्श्वनाथ, शंकराचार्य, कबीर, गोस्वामी तुलसीदास तथा अन्य बहुत-से महात्माओं ने यहाँ आकर अपने विचारों का प्रसार किया। केवल दर्शन, साहित्य और धर्म में ही नहीं, अपितु कला के क्षेत्र में भी यह नगरी तरह-तरह की कलाओं और शिल्पों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।

अत्रत्याः कौशेयशाटिकाः देशे-देशे सर्वत्र स्पृह्यन्ते। अत्रत्याः प्रस्तरमूर्तयः प्रथिताः। इयं निजां प्राचीनपरम्पराम् इदानीमपि परिपालयति। तथैव गीयते कविभिः –

अनुवाद- यहाँ की रेशमी साड़ियाँ देशभर में सभी जगह पसन्द की जाती हैं। यहाँ की पत्थर की मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं। यह अपनी प्राचीन परम्परा का इस समय भी पालन कर रही है। इसलिए कवियों के द्वारा गाया गया है-

“मरणं मङ्गलं यत्र विभूतिश्च विभूषणम्।
कौपीनं यत्र कौशेयं सा काशी केन मीयते।।”

अनुवाद- जहाँ मरना कल्याणकारी है, जहाँ भस्म ही आभूषण है। और जहाँ लंगोट ही रेशमी वस्त्र है, वह काशी किसके द्वारा मापी जा सकती है?” अर्थात् किसी के द्वारा मापी नहीं जा सकती है।

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