इस पोस्ट में हमलोग दीवानों की हस्ती कविता का सारांश, दीवानों की हस्ती कविता का भावार्थ व व्याख्या, दीवानों की हस्ती प्रश्न उत्तर को पढ़ेंगे| दीवानों की हस्ती कविता क्लास 8 हिन्दी वसंत भाग 3 के चैप्टर 4 से लिया गया है|
दीवानों की हस्ती कविता का सार या सारांश / diwanon ki hasti summary class 8
हम कभी खुशी के रूप में सीधे चले आते हैं, तो कभी आँसू के रूप में दुख बनकर बह जाते हैं। हमें देखकर लोग कहते हैं कि तुम यहाँ कैसे आए हो और इस तरह दोबारा कहाँ चले जाते हो? हमसे यह मत पूछिए कि हम कहाँ चले हैं? हम तो इसलिए चले हैं कि हमारा काम चलना है, इसीलिए हम आगे की ओर बढ़ते जा रहे हैं। हम संसार से कुछ सीखते हैं और अपनी कुछ सीख उन्हें देकर वापस चल देते हैं। दो बातें करते हैं-उससे खुशी भी मिलती है और किसी बात से रोना भी आता है, लेकिन फिर भी दुःख और सुख के क्षणों को भूलकर हम मात्र उत्साह के भाव को लिए आगे बढ़ते जाते हैं। कवि कहता है कि वह इस भिखारियों के संसार में पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अपना प्यार दूसरों को लुटाकर चल दिया है। हम हृदय पर अपने कार्यों में असफलता का भार लिए किसी तरह चल पड़े हैं। अब हमें मेरा-तेरा कुछ नहीं दिखता अर्थात मैं अपने पराए के भाव से मुक्त हो गया हूँ। पराधीनता के बंधन को तोड़कर मैं मस्ती और स्वतन्त्रता के मार्ग पर चल दिया हूँ।
दीवानों की हस्ती कविता का भावार्थ व व्याख्या
दीवानों की हस्ती का भावार्थ व व्याख्या– कवि स्वयं को मस्त मनमौजी मानते हुए कहता है कि इस दुनिया में उसका कोई अस्तित्व नहीं है। वह आज कहीं, तो कल कहीं और ही होता है। तात्पर्य यह है कि इस दुनिया में वह एक जगह स्थिर होकर नहीं रहना चाहता। वह अपनी ही मस्ती में इधर-उधर घूमना फिरना चाहता है। वह जहां भी जाता है मस्ती हमेशा उसके साथ-साथ चलती है दुनिया की परवाह किए बिना वह हर वक्त मस्त रहता है या खुश रहता है वह लोगों से मिलजुल कर रहना पसंद करता है। लोग भी उसे इतना स्नेह करते हैं कि उसके जाने पर दुखी होते हैं कवि के इस मस्तमौलेपन पर लोग आश्चर्य करते हैं। कवि अन्य लोगों से किसी स्वार्थ वश नहीं मिलता है। तात्पर्य यह है कि कवि दुनियादारी के झमेले में न पड़कर आम आदमी से प्रेम करता है।
किस ओर चले? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले,
दो बात कही, दो बात सुनी;
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले।
हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी-सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।
दीवानो की हस्ती कविता का प्रश्न उत्तर / diwano ki hasti question answer
कविता से
1. कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ क्यों कहा है?
2. भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटानेवाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?
3 कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी?
कविता से आगे
1-जीवन में मस्ती होनी चाहिए, लेकिन कब मस्ती हानिकारक हो सकती है? सहपाठियों के बीच चर्चा कीजिए।
दीवानों की हस्ती कविता का अनुमान और कल्पना
* एक पक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि “हम दीवानों की क्या हस्ती. हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले।” दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्त्व दिया है कि “मस्ती का आलम साथ चला. हम धूल उड़ाते जहाँ चले।” यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं उन्हें ध्यानपूर्वक पढिए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई है?
दीवानों हस्ती कविता भाषा की बात
* संतुष्टि के लिए कवि ने ‘छककर’ ‘जी भरकर’ और ‘खुलकर’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करनेवाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे-हँसकर, गाकर।