इस पोस्ट में हमलोग कबीर की साखियाँ भावार्थ, कबीर की सखियाँ प्रश्न उत्तर को पढ़ेंगे| कबीर की सखियाँ पाठ क्लास 8 हिन्दी वसंत भाग 3 के चैप्टर 9 से लिया गया है| vasant bhag 3 chapter 9 explain and question answer
कबीर की साखियां का भावार्थ व व्याख्या / kabir ki sakhiya bhavarth class 8
मोल करौ तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान
कबीर की साखियाँ प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश में कबीर दास जी ने बताया है कि मनुष्य के आंतरिक गुणों का महत्त्व होता है न कि बाहरी गुणों का।
कबीर की साखियाँ व्याख्या व भावार्थ – कबीर दास कहते हैं कि किसी साधु अर्थात् सज्जन व्यक्ति की जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उसके ज्ञान की जाँच-परख करनी चाहिए। क्योंकि महत्त्व ज्ञान का होता है न कि लाभ अथवा जाति का। उसी प्रकार जैसे कि तलवार, म्यान में रहती है, परन्तु म्यान की बजाए हम तलवार को महत्त्व देते हैं। तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति के बाह्य रंग-रूप का कोई महत्त्व नहीं होता बल्कि उसकी पहचान उसके आंतरिक गुणों-अवगुणों से होती है।
आवत गारी एक है, उलटत होई अनेक।
कह ‘कबीर’ नहिं उलटिए, वही एक की एक
कबीर की सखियाँ प्रसंग– प्रस्तुत पयांश में कबीर जी ने मानवीय व्यवहार को वर्णित करते हुए कहा है कि
कबीर की सखियाँ व्याख्या व भावार्थ– कोई व्यक्ति किसी अन्य को एक अपशब्द (गाली) कहता है तो सामने वाला उसे कई अपशब्द सुना देता है। इसलिए कबीर जी कहते हैं कि यदि कोई तुम्हें भला-बुरा कहे तो तुम उसका प्रत्युत्तर मत दो जिससे कि उसकी वृद्धि न हो पाए, वह वहीं का वहीं रहे। अर्थात् मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेने वाले दोष होते हैं। यदि मनुष्य चाहे तो उसका कोई भी दुश्मन न होगा। इसलिए उसे अपने आचरण को सुधारना चाहिए।
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि
मनवा तो चहुँदिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं
कबीर की सखियाँ प्रसंग– इस काव्यांश में कबीर जी ने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पाखण्ड, दिखावा या बनावटीपन से दूर रहने को कहा है।
कबीर की सखियाँ व्याख्या व भावार्थ– कबीर दास जी कहते हैं कि ढोंगी लोग हाथ में माला लेकर मुँह से भगवान के नाम का स्मरण करते हैं परन्तु उनका मन चारों दिशाओं में भटकता रहता है। इसलिए इसे तो प्रभु का स्मरण करना नहीं कहेंगे। यह तो भगवद् भजन नहीं हुआ। तात्पर्य यह है कि केवल पाखण्ड करने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। इसलिए कबीर कहते हैं कि भगवान की प्राप्ति तभी हो सकती है जब हम पूरे मनोयोग से बिना मन को भटकाए एकाग्रचित होकर भगवन का ध्यान करें।
‘कबीर’ घास न नीदिए, जो पाऊँ तलि होई।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, नरी दुहेली होई
कबीर की सखियाँ प्रसंग– कबीर जी ने इस पद्यांश में किसी भी वस्तु चाहे वह कितनी ही तुच्छ क्यों न हो, की निन्दा न करने को कहा है।
कबीर की सखियाँ व्याख्या व भावार्थ– कबीर कहते हैं कि हमें घास की निन्दा नहीं करनी चाहिए जो कि पैरों द्वारा दी जाती यदि घास का एक छोटा तिनका भी आँख में पड़ जाता है तो वह बहुत पीड़ादायी होता है । कबीर के कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को किसी भी वस्तु को तुच्छ नहीं समझना चाहिए, क्योंकि उसका भी अपना महत्त्व होता है।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय ।
यह आपा को डार दे, दया करै सब कोय
कबीर की सखियाँ प्रसंग– इस दोहे में कबीर ने अहंकार को शत्रुता का आधार बताते हुए कहा है कि-
कबीर की सखियाँ व्याख्या व भावार्थ– यदि आपका मन शान्त है, ठण्डा है अर्थात् आप क्रोधित या उत्तेजित नहीं होते हैं तो इस संसार में कोई भी आपका शत्रु नहीं है। यह आपका अहम् ही है जो आपको दूसरों का शत्रु बनाता है। इसलिए इसे छोड़ देने पर सब लोग आप पर दया करेंगे, मित्रता का भाग रखेंगे। तात्पर्य है कि इस संसार में कोई किसी का शत्रु नहीं है। यह मनुष्य का व्यवहार तथा अहंकार ही है जो दूसरों में तथा स्वयं में वैर-भाव जागृत करता है।
कबीर की सखियाँ प्रश्न उत्तर कक्षा 8 / kabir ki sakhiyan question answer class 8
पाठ से
प्रश्न 1. तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं-उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :कबीर जी ने इस साखी के माध्यम से मनुष्य के आंतरिक गुणों की महत्ता पर बल दिया है। जिस प्रकार म्यान का कोई महत्त्व नहीं होता बल्कि म्यान में छिपी तलवार का महत्त्व होता है, वैसे ही मनुष्य के बाहरी रूप-रंग का कोई महत्त्व नहीं होता है। मनुष्य की पहचान उसके आंतरिक गुणों-अवगुणों से ही होती है।
2. पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिर. यह तो सुमिरन नाही’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर– कबीर जी ने इस साखी के माध्यम से कहा है कि पाखंड़ से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती है। इसी प्रकार जो बच्चे विद्यार्थी की वेशभूषा धारण कर लें, विद्यार्थियों द्वारा प्रयुक्त किये जाने वाला सामान- किताब, पेंसिल वगैरह धारण कर लें, परन्तु विद्यार्थियों के वास्तविक गुणों को धारण न करें, अपने लक्ष्य को न पाएँ तो उनके विद्यार्थी होने का कोई औचित्य (मतलब) नहीं है।
3. कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– कबीर का घास की निंदा न करने से आशय है- तुच्छ या निम्न व्यक्ति की कभी भी अवहेलना नहीं करनी चाहिए । घास का तिनका भी तुच्छ ही होता है लेकिन जब वह उड़कर आंख में पड़ जाता है तो बड़ी वस्तु से भी ज्यादा कष्टदाई हो जाता है अतः सबको सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए।
4. मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?
कह ‘कबीर’ नहिं उलटिए, वही एक की एक
पाठ से आगे
“ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।”
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?
उत्तर– इस दोहे में आपा का अर्थ है ‘अहंकार’ इस दोहे में आपा शब्द स्वार्थ के निकट का अर्थ न देकर घमंड के निकट का अर्थ दे रहा है।
2. आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।
आपा और उत्साह आपा व्यक्ति के अहंकार का पर्याय है जबकि उत्साह उमंग या खुशी का दूसरा नाम है।
3. सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए।
एक समान होने के लिए यह आवश्यक है कि समाज कल्याण, लोक कल्याण के संबंधी विचार एक-दूसरे से आपस में मिलने चाहिए
4. कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है? ज्ञात कीजिए।
कबीर की सखियाँ भाषा की बात
* बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है जैसे वाणी शब्द बानी बन जाता है। मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो। ग्यान, जीभि, पाऊँ, तलि, आँखि, बरी।