बाजार दर्शन पाठ का सार या सारांश
‘बाजार दर्शन’ जैनेंद्र के अति महत्वपूर्ण निबंधों में से एक है। इस निबंध में वैचारिकता और साहित्य का अति दुर्लभ सामंजस्य देखा जा सकता है। वैसे तो उपभोक्तावाद और बाज़ारवाद की व्यापक चर्चा बहुत पहले से ही शुरू हो गई थी लेकिन ‘बाज़ार दर्शन’ निबंध में उसकी मूल अंतर्वस्तु का स्पष्ट दर्शन होता है। इस निबंध में जैनेन्द्र ने बाज़ार की जादुई ताक़त का चित्रण किया हुआ है। बाज़ार कि इस जादुई ताक़त में अच्छे-अच्छे लोग फँस जाते हैं। लेखक ने यह भी बताया है कि अगर हम सावधानी के साथ-साथ अपनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बाज़ार में जाएं तो बाज़ार का लाभ उठा सकते हैं लेकिन अगर बाज़ार की चमक-दमक में हम फँस गए तो हम ठग लिए जाएँगे।
लेखक का एक मित्र जब बाज़ार से घर आता है तो ढेर सारा सामान लेकर आता है। लेखक उससे पूछता है कि क्यों इतना सारा सामान ले आए? तो वह कहता है कि बाजार में हमारे साथ हमारी धर्मपत्नी थी उन्हीं के कारण इतना सारा सामान लाया हूँ। इससे पता चलता है कि वस्तुओं की ख़रीदारी में औरतें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं।
लेखक के एक दूसरे मित्र जब बाज़ार से ख़ाली हाथ लौटते हैं तो लेखक उनसे पूछता है कि बाज़ार से कोई सामान नहीं ख़रीदे क्या? तो वह जवाब देता है ‘नहीं’। फिर लेखक पूछता है क्यों? फिर वह कहता है क्योंकी बाज़ार की सभी वस्तुओं को ख़रीदने का मेरा मन कर रहा था।‘परचेजिंग पावर’ कम होने के कारण मैं सभी वस्तुओं को ख़रीद नहीं सकता था। कुछ वस्तुओं को भी मैं ख़रीद नहीं सकता था अगर कुछ वस्तुओं को ख़रीदता तो कुछ वस्तुएँ ख़रीदने के लिए बच जाती। इसलिए मैंने कुछ भी नहीं ख़रीदा और खाली हाथ लौट आया।
लेखक पैसे को पावर कहते हुए ‘पर्चेज़िंग पावर’ नामक शब्द का प्रयोग किया है। इसका तात्पर्य यह है कि जब कभी हम बाज़ार में जाए तो हम अपनी ‘पर्चेज़िंग पावर’ और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ही वस्तुओं को ख़रीदें अनावश्यक वस्तुओं को न ख़रीदें। अगर अनावश्यक वस्तुओं को हम ख़रीदते हैं तो इसका सीधा सा मतलब यह है कि हम बाज़ार की चमक-दमक में फँस गए हैं। बाज़ार की चमक दमक में फँसने के कारण हम अपव्यय कर बैठते हैं।
लेखक ने अपने पड़ोस में रहने वाले चूरन बेचने वाले एक भगत जी का चित्रण किया है। यह भगत जी चूरन बेचने का काम बरसों से कर रहे हैं लेकिन किसी एक भी दिन छ:ह आने पैसे से ज़्यादा नहीं कमाए। क्योंकि छह आना पैसा कमाने की बाद वह बचे हुए चूरन को सभी बच्चों में बाँट देते हैं।
एक दिन चूरन बेचने वाले भगत जी लेखक को बाज़ार चौक में दिखाई देतें हैं। देखते ही भगत जी ने जय-जयराम किया। लेखक ने भी जयराम कहा। बाज़ार चौक बहुत ही भाँति-भाँति के अनेक वस्तुओं से भरा था। भगत जी उन सभी वस्तुओं को उपेक्षा भाव से देखते हुए आगे बढ़े चले जा रहे थे। आगे चलकर पंसारी की दुकान पर रुकते हैं वहाँ से दो-चार अपने काम की चीज़ लेते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। भगत जी के इस स्वभाव से यही पता चलता है कि अगर हम घर से बाजार ज़ीरा और नमक लेने के लिए निकले हैं तो हमें ज़ीरा-नमक लेकर आना चाहिए। अगर बाज़ार में ज़ीरा-नमक नहीं मिलता है तो पूरे बाज़ार को अपनी उपयोगिता के लिए व्यर्थ समझना चाहिए।
बाजार दर्शन पाठ का उद्देश्य क्या है?
1- बाजार दर्शन पाठ का उद्देश्य लोगों को आवश्यकता से ज़्यादा भौतिकवादी या सांसारिक वस्तुओं की चमक-दमक में फँसने से बचाना है।
2- इस पाठ का उद्देश्य लोगों को उनकी ‘परचेजिंग पावर’ याद दिलाना है।
3- इस पाठ का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आर्थिक दशा का याद दिलाना है।
बाजार दर्शन पाठ से क्या शिक्षा मिलती है?
बाजार दर्शन पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर हमें बाजार जाना हो तो सबसे पहले हमें अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का एक खांका बना लेना चाहिए और खांका बनायी गयी वस्तुओं को ही खरिदना चाहिए। हमें अनावश्यक वस्तुओं की ख़रीदारी से बचना चाहिए।
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