आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञः क्लास 12 up बोर्ड के अन्तर्गत atmagy ev sarvagy anuvad या vyakhya के साथ-साथ इस पाठ के प्रश्न उत्तर को पढ़ेंगे। यह पाठ up बोर्ड क्लास 12 के Sanskrit digdarshika से लिया गया है। बोर्ड परीक्षा को ध्यान में रखते हुए यह संकलन तैयार किया गया है। atmagy ev sarvagy पाठ हिन्दी और सामान्य हिंदी दोनों पाठ्यक्रम में सम्मिलित है।
आत्मज्ञ एव सर्वज्ञ का अनुवाद / atmagy ev sarvagy anuvad class 12 up board
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञः’ नामक पाठ से उधृत है।
याज्ञवल्क्यो मैत्रेयीमुवाच – मैत्रेयि ! उद्यास्यन् अहम् अस्मात् स्थानादस्मि। ततस्तेऽनया कात्यायन्या विच्छेदं करवाणि इति। मैत्रेयी उवाच-यदीयं सर्वा पृथिवी वित्तेन पूर्णा स्यात् तत् किं तेनाहममृता स्यामिति। याज्ञवल्क्य उवाच-नेति।
अनुवाद– ऋषि याज्ञवल्क्य ने अपनी पत्नी मैत्रेयी से कहा- हे मैत्रेयी मैं इस स्थान (गृहस्थाश्रम) से ऊपर (संन्यासाश्रम में) जाने वाला हूँ, तो मैं तेरा और इस दूसरी पत्नी कात्यायनी के साथ सम्पत्ति का बँटवारा कर दूँ।” मैत्रेयी बोली- “यदि इस धन से सम्पन्न सारी पृथ्वी मेरी हो जाए तो क्या मैं उससे अमर हो सकती हूँ?” याज्ञवल्क्य ने कहा- ‘नहीं’।
शब्दार्थ– उवाच = बोले, उद्यास्यन- ऊपर जाने वाला हूँ, अस्मात् स्थानात्= इस स्थान से (गृहस्थाश्रम से), ततस्ते > ततः ते= तो तुम्हारा इस,अनया कात्यायन्या = कात्यायनी नामक दूसरी (पत्नी) से, विच्छेदम्= सम्पत्ति का बँटवारा, यदीयम् > यदि + इयम्= यदि यह, तेनाहममृता > तेन + अहम + अमृता= उससे मैं अमर
यथैवोपकरणवतां जीवनं तथैव ते जीवनं स्यात्। अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन इति। सा मैत्रेयी उवाच – येनाहं नामृता स्याम् किमहं तेन कुर्याम्। यदेव भगवान् केवलममृतत्त्वसाधनं जानाति, तदेव मे ब्रूहि। याज्ञवल्क्य उवाच-प्रिया नः सती त्वं प्रियं भाषसे। एहि, उपविश, व्याख्यास्यामि ते अमृतत्त्वसाधनम्।
अनुवाद – “जैसा साधनसम्पन्नों का जीवन होता है, वैसा ही तुम्हारा भी जीवन होगा। धन से अमरता की आशा नहीं है।” तब उस मैत्रेयी ने कहा- “जिससे मैं अमर न हो सकूँ, उसे लेकर क्या करूँगी?” भगवान् (आप) जो केवल अमरता (की प्राप्ति) का साधन जानते हो, वही मुझे बताएँ” याज्ञवल्क्य बोले- तुम मेरी प्रिया हो प्रिय बोलती हो। आओ पास बैठो तुझसे अमरता-प्राप्ति के साधन की व्याख्या करूँगा।”
शब्दार्थ– यथैवोपकरणवततां > यथा + एव + उपकरणवताम्= जैसा ही साधनसम्पन्न या धनवानों का, नाशास्ति न + आशा + अस्ति = आशा नहीं है, भगवान् = आप, केवलम्= अकेला, अमृतत्वस्य = अमरता की, व्याख्यास्यामि = व्याख्या करूंगा
याज्ञवल्क्य उवाच – न वा अरे मैत्रेयि ! पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवति। आत्मनस्तु वै कामाय पतिः प्रियो भवति। न वा अरे, जायायाः कामाय जाया प्रिया भवति, आत्मनस्तु वै कामाय जाया प्रिया भवति। न वा अरे पुत्रस्य वित्तस्य च कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति। न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय सर्वं प्रियं भवति ।
अनुवाद – याज्ञवल्क्य बोले- “अरे मैत्रेयी! पति की इच्छापूर्ति के लिए (नारी को) पति प्रिय नहीं होता, अपनी ही इच्छापूर्ति के लिए पति प्रिय होता है। अरे! न ही पत्नी की इच्छापूर्ति के लिए (पति को) पत्नी प्रिय होती है, (वरन्) अपनी इच्छापूर्ति के लिए पत्नी प्रिय होती है। अरे! न ही पुत्र या धन की कामना से पुत्र या धन प्रिय होता है, (वरन्) अपनी ही कामना (पूर्ति) के लिए सब प्रिय होते हैं।”
कामायः= इच्छापूर्ति के लिए, जाया= पत्नी,
तस्माद् आत्मा वा अरे मैत्रेयि ! दृष्टव्यः दर्शनार्थं श्रोतव्यः, मन्तव्यः निदिध्यासितव्यश्च। आत्मनः खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं
अनुवाद– इसलिए हे मैत्रेयी ! आत्मा ही देखने योग्य, सुनने योग्य, मनन करने योग्य और ध्यान करने योग्य है। निश्चय ही आत्म-दर्शन से इन सबका ज्ञान हो जाता है।”
शब्दार्थ– निदिध्यासितव्यश्च = ध्यान करने योग्य
आत्मज्ञ एव सर्वज्ञ प्रश्न उत्तर / atmgy ev sarwagy prashn uttar class 12 up board
प्रश्न- कः सर्वज्ञः भवति ?
उत्तर- आत्मज्ञानेन साधक सर्वज्ञः भवति
प्रश्न- मैत्रेयी याज्ञवल्क्यम् किम् अपृच्छत ?
उत्तर- मैत्रेयी याज्ञवल्क्यम् केवलम् अमृतत्त्वसाधनम् अपृच्छत।
प्रश्न- आत्मज्ञानेन साधकः कथम् सर्वज्ञो भवति ?
उत्तर- आत्मज्ञानेन साधकः आत्मदर्शनीय श्रोतव्यं शृणोति, मन्तव्यं मनुते, निदिध्यासितव्यं निदिध्यासति चएवं सः सर्वज्ञो भवति।
प्रश्न- याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीं कस्य विषयस्य व्याख्यनां कृतवान्?
उत्तर- याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीं अमृतत्त्वस्य विषस्य व्याख्यां कृतवान्।
प्रश्न- कस्य खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति ?
उत्तर- आत्मनः खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति।
प्रश्न- कस्य कामाय सर्वं प्रियं भवति ?
उत्तर- आत्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति।
प्रश्न- वित्तेन कस्य आशा न अस्ति?
उत्तर- वित्तेन अमृतत्त्वस्य आशा न अस्ति।
प्रश्न- मैत्रेयी किमुवाच ?
उत्तर- मैत्रेयी उवाच “येनाहं नामृता स्यां किमहं तेन कुर्याम् ?”