दीवानों की हस्ती कविता भावार्थ, व्याख्या, प्रश्न उत्तर कक्षा-8

इस पोस्ट में हमलोग दीवानों की हस्ती कविता का सारांश, दीवानों की हस्ती कविता का भावार्थ व व्याख्या, दीवानों की हस्ती प्रश्न उत्तर को पढ़ेंगे| दीवानों की हस्ती कविता क्लास 8 हिन्दी वसंत भाग 3 के चैप्टर 4 से लिया गया है|

दीवानों की हस्ती कविता का सार या सारांश / diwanon ki hasti summary class 8 

‘दीवानों की हस्ती’  भगवतीचरण वर्मा द्वारा रचित एक कविता है। इसमें कवि ने दीवानों को कविता में स्थान देकर उनके भावनाओं और क्रियाकलापों को अलग ढ़ंग से व्यक्त किया है। कवि कहता है कि हम तो दीवाने हैं; हमारा कोई एक ठिकाना या निश्चित स्थान नहीं है। आज हम यहाँ हैं तो कल कहीं और। हम दीवाने अपने साथ मस्ती, खुशी, उत्साह का वातावरण साथ लिए चलते रहते हैं, इसीलिए हम दीवाने कहलाते हैं। 

हम कभी खुशी के रूप में सीधे चले आते हैं, तो कभी आँसू के रूप में दुख बनकर बह जाते हैं। हमें देखकर लोग कहते हैं कि तुम यहाँ कैसे आए हो और इस तरह दोबारा कहाँ चले जाते हो? हमसे यह मत पूछिए कि हम कहाँ चले हैं? हम तो इसलिए चले हैं कि हमारा काम चलना है, इसीलिए हम आगे की ओर बढ़ते जा रहे हैं। हम संसार से कुछ सीखते हैं और अपनी कुछ सीख उन्हें देकर वापस चल देते हैं। दो बातें करते हैं-उससे खुशी भी मिलती है और किसी बात से रोना भी आता है, लेकिन फिर भी दुःख और सुख के क्षणों को भूलकर हम मात्र उत्साह के भाव को लिए आगे बढ़ते जाते हैं। कवि कहता है कि वह इस भिखारियों के संसार में पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अपना प्यार दूसरों को लुटाकर चल दिया है। हम हृदय पर अपने कार्यों में असफलता का भार लिए किसी तरह चल पड़े हैं। अब हमें मेरा-तेरा कुछ नहीं दिखता अर्थात मैं अपने पराए के भाव से मुक्त हो गया हूँ। पराधीनता के बंधन को तोड़कर मैं मस्ती और स्वतन्त्रता के मार्ग पर चल दिया हूँ।

दीवानों की हस्ती कविता का भावार्थ व व्याख्या

हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला.
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?

दीवानों की हस्ती का भावार्थ व व्याख्या– कवि स्वयं को मस्त मनमौजी मानते हुए कहता है कि इस दुनिया में उसका कोई अस्तित्व नहीं है। वह आज कहीं, तो कल कहीं और ही होता है। तात्पर्य यह है कि इस दुनिया में वह एक जगह स्थिर होकर नहीं रहना चाहता। वह अपनी ही मस्ती में इधर-उधर घूमना फिरना चाहता है। वह जहां भी जाता है मस्ती हमेशा उसके साथ-साथ चलती है दुनिया की परवाह किए बिना वह हर वक्त मस्त रहता है या खुश रहता है वह लोगों से मिलजुल कर रहना पसंद करता है। लोग भी उसे इतना स्नेह करते हैं कि उसके जाने पर दुखी होते हैं कवि के इस मस्तमौलेपन पर लोग आश्चर्य करते हैं। कवि अन्य लोगों से किसी स्वार्थ वश नहीं मिलता है। तात्पर्य यह है कि कवि दुनियादारी के झमेले में न पड़कर आम आदमी से प्रेम करता है।

किस ओर चले? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले,

दो बात कही, दो बात सुनी;
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले।

दीवानों की हस्ती का भावार्थ व व्याख्या– कवि किसी भी सांसारिक बंधन में नहीं पड़ना चाहता है। वह दूसरे लोगों से कहता है कि कोई उससे यह न पूछे कि कहां जाना है। केवल चलना ही जीवन है इसलिए वह अपनी इच्छा से यहां-वहां आता-जाता रहता है। अपनी ओर से वह इस दुनिया को कुछ देता है तो दुनिया के लोगों से वह कुछ लेता भी है। कवि किसी से अपने मन की दो बातें कर लेता है तो दूसरों की भी बातें सुनता है। सुख-दुख भरी बातें कह सुनकर वह कभी हंस लेता है तो कभी रो ही लेता है। दूसरों के दुख-सुख को वह समान भाव से देखता है।

हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी-सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।

अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहें   रुकनेवाले!
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले।
दीवानों की हस्ती का भावार्थ व व्याख्या– कवि कहता है कि इस भीखमंगी दुनिया में उसने लोगों के बीच निस्वार्थ भाव से स्वतंत्र रहकर अपना प्यार लुटाया है। स्वार्थी लोगों के बीच कवि स्वयं को असफल मानता है। वह कहता है कि सांसारिकता के बंधनों के विषय में असफलता को वह अपने हृदय में धारण करके दुनिया से जा रहा है। कवि किसी को न तो अपना मानता है और न ही पराया। वह जानता है कि इस दुनिया में कोई हमेशा के लिए रहने नहीं आया है। एक न एक दिन सभी को इस संसार से जाना है। इसलिए संसार से मोह कैसा। कवि कहता है कि इस संसार में वह मोह के कारण ही आया है। लेकिन अब वह सांसारिकता के सभी बंधनों को स्वेच्छा से तोड़ कर जा रहा है।

दीवानो की हस्ती कविता का प्रश्न उत्तर / diwano ki hasti question answer 

कविता से

1. कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ क्यों कहा है?

उत्तर– कवि ने अपने आने को उल्लास इसलिए कहा है क्योंकि वह स्वच्छंद जीवन जीने के कारण सांसारिक चिंताओं से मुक्त है यद्यपि वह सांसारिकता की दृष्टि से विपन्न है परंतु वह लोगों से प्रेम करता है। लोगों से आत्मिक प्रेम होने से वह उनसे बिछड़ना नहीं चाहता। उनसे विदा होते समय लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं इसलिए वह अपने जाने को ‘आंसू बनकर बह जाना’ कहा है।

2. भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटानेवाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?

उत्तर– आज मनुष्य अपने-अपने स्वार्थों में बँध कर रह गया है। वह स्वार्थवश ही किसी से मोह अथवा प्रेम व्यक्त करता है। कवि निस्वार्थ भाव से सभी को समान रूप से प्रेम करता है। कवि सांसारिक दृष्टि से विपन्न माना जाता है। इसलिए वह स्वयं को असफल मानता है परंतु इस संसार में वह असफल नहीं है।

3 कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी?

उत्तर– इस कविता की प्रत्येक पंक्ति संदेशपरक और महत्वपूर्ण है लेकिन इसमें से हमें जो सबसे अच्छा लगा वह कवि का निस्वार्थ भाव से कर्म करना है। कवि निस्वार्थ भाव से एक दूसरे के सुख-दुख को समझता है। कवि हमेशा संसार के कल्याण की बात को ही सोचता है। संसार के कल्याण में यदि कव का कुछ अहित या नुकसान होता है तो उसको भी सहने के लिए वह हमेशा तैयार रहता है।

कविता से आगे

1-जीवन में मस्ती होनी चाहिए, लेकिन कब मस्ती हानिकारक हो सकती है? सहपाठियों के बीच चर्चा कीजिए।

उत्तर– प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में मस्ती का होना अति आवश्यक है। लेकिन प्रत्येक आयु में मस्ती अलग-अलग प्रकार की होती है। मस्ती तब हानिकारक हो जाती है जब वह अपने उद्देश्य से हटकर केवल और केवल मस्ती के लिए और आवश्यकता से अधिक होती है। अनियंत्रित मस्ती या आवश्यकता से अधिक मस्ती हानिकारक हो सकती है यह मनुष्य को उसके पथ से भटका देती है। मैं उस प्रकार की मस्ती के पक्ष में हूं जो समाज व देश के लिए उत्थान व कल्याण का नया पथ प्रशस्थ करे।

दीवानों की हस्ती कविता का अनुमान और कल्पना

* एक पक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि “हम दीवानों की क्या हस्ती. हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले।” दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्त्व दिया है कि “मस्ती का आलम साथ चला. हम धूल उड़ाते जहाँ चले।” यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं उन्हें ध्यानपूर्वक पढिए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई है?

उत्तर– कविता की व्याख्या मैं से उत्तर छाँटकर विद्यार्थी स्वयं लिखें।

दीवानों हस्ती कविता भाषा की बात

* संतुष्टि के लिए कवि ने ‘छककर’ ‘जी भरकर’ और ‘खुलकर’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करनेवाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे-हँसकर, गाकर।

उत्तर– उड़कर, भरकर, उठाकर, गाकर, खाकर, बनाकर, लुटाकर, उड़ाकर,

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