यमुना छवि कविता की व्याख्या yamuna chhavi kavita ki vyakhya up board class 12, यमुना छवि भावार्थ भी इसी में निहित है। इसकी व्याख्या explain को सरल से सरल तरीके से समझेंगे।
संदर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के यमुना छवि नामक पाठ से लिया गया है। इस पाठ के कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र है।
प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्रकृति के रम्य रूपों को आलम्बन रूप में चित्रित किया है। कवि को यमुना तट की सम्पूर्ण प्रकृति श्याममय दिखायी देती है। यमुना-जल में पड़ते चन्द्र-प्रतिबिम्ब का अलंकारपूर्ण वर्णन यहाँ किया गया है
यमुना छवि की व्याख्या / yamuna chhavi ki vyakhya class 12
तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झुके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये ।।
किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सब निज-निज सोभा।
कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा।।
मनु आतप वारन तीर कौ सिमिटि सबै छाये रहत।
के हरि सेवा हित नै रहे निरखि नैन मन सुख लहत ।1।
यमुना छवि की व्याख्या– सूर्य की पुत्री यमुना के किनारे तमाल के बहुत से वृक्ष छाए हुए हैं। किनारे के जल को झुककर स्पर्श करते हुए मानो सुशोभित हो रहे हो। या तो जलरूपी दर्पण में सभी अपने-सौंदर्य को देखकर उत्साहित हो रहे हैं। लोग उस जल को परम पवित्र लोभ के कारण प्रणाम कर रहे हैं। मानों सभी वृक्ष किनारे के जल को प्रचंड ताप से बचाने के लिए सिमटकर उसके ऊपर छाया कर रहे हों। इस प्रकार ईश्वर की सेवा में लगे रहने से सभी जड़ चेतन यमुना के जल में ईश्वर के प्रतिबिंब को देखकर नेत्र और मन से अत्यधिक सुख का अनुभव करते हैं।
तिन पै जेहि छिन चंद जोति राका निसि आवति।
जल में मिलिकै नभ अवनी लौं तान तनावति ।।
होत मुकुरमय सबै तबै उज्जल इक ओभा।
तन मन नैन जुड़ात देखि सुन्दर सो सोभा ।।
सो को कबि जो छबि कहि सकै ता छन जमुना नीर की।
मिलि अवनि और अम्बर रहत छबि इक सी नभ तीर की।।2।
यमुना छवि की व्याख्या- जिस क्षण पूर्णिमा में यमुना के जल पर चंद्रमा की ज्योति पड़ती है उस क्षण धरती और आकाश मिलकर तंबू ऐसा तान लेते हैं। दर्पण के समान सब कुछ उज्ज्वल हो जाता है। शरीर, मन और नेत्र इस सुंदर सौंदर्य को देखकर संतुष्ट हो जाते हैं। ऐसा कौन सा कवि है जो इस क्षण यमुना के जल के सौंदर्य का वर्णन कर सकेगा। धरती और आकाश के मिलने से नभ और तट की शोभा एक समान हो गई है।
परत चन्द्र प्रतिबिम्ब कहूँ जल मधि चमकायो।
लोल लहर लहि नचत कबहुँ सोई मन भायो।।
मनु हरि दरसन हेत चन्द्र जल बसत सुहायो।
कै तरंग कर मुकुर लिये सोभित छबि छायो ।।
कै रास रमन मैं हरि मुकुट आभा जल दिखरात है।
कै जल उर हरि मूरति बसति ता प्रतिबिम्ब लखात है।।3।।
यमुना छवि की व्याख्या– चंद्रमा की परछाई यमुना के जल के मध्य में पड़ती है, तो चंचल लहर को प्राप्त करके नाचते हुए मन को बहुत आकर्षित करती है। मानों ईश्वर दर्शन की इच्छा से चंद्रमा जल में निवास करते हुए बहुत सुशोभित हो रहा है। बहुत से तरंग अपने हाथ में दर्पण लिए सुशोभित हो रहा है, उसी की छवि चारो तरफ छायी है। बहुत से रास रमण करते हुए ईश्वर के मुकुट का सौंदर्य जल में दिखाई दे रहा है।
कबहुँ होत सत चंद कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत।
पवन गवन बस बिम्ब रूप जल मैं बहु साजत ।।
मनु ससि भरि अनुराग जमुन जल लोटत डोलै।
कै तरंग की डोर हिंडोरनि करत कलोलै ।।
कै बालगुड़ी नभ मैं उड़ी सोहत इत उत धावती।
कै अवगाहत डोलत कोऊ ब्रजरमनी जल आवती । । 4
यमुना छवि का भावार्थ या व्याख्या– यमुना के जल में कभी सौ-सौ चंद्रमा प्रकट हो रहे हैं, कभी दूर भाग जा रहे हैं। वायु चलने के साथ-साथ चन्द्रमा के ढेर सारे स्वरूप जल में बहुत सुशोभित हो रहे हैं। मानों चन्द्रमा अनुराग से भरकर यमुना के जल में लोट रहा हो। अथवा तरंग रूपी डोर से झूला झूल रहा है। अथवा आकाश में चंद्रमा रूपी कोई पतंग इधर-उधर उड़ते हुए सुशोभित हो रही है। अथवा चंद्रमा रूपी कोई ब्रज रमणी जल में स्नान करके डोल रही हो।
मनु जुग पच्छ प्रतच्छ होत मिटि जात जमुन जल।
कै तारागन ठगन लुकत प्रगटत ससि अबिकल।।
कै कालिंदी नीर तरंग जितो उपजावत।
तितनो ही धरि रूप मिलन हित तासों धावत ।।
कै बहुत रजत चकई चलत कै फुहार जल उच्छरत।
कै निसिपति मल्ल अनेक विधि उठि बैठत कसरत करत ।5।
व्याख्या– यमुना के जल में लहरें चलने के कारण मानों चन्द्रमा शुक्ल पक्ष में दिखाई दे रहा है और कृष्ण पक्ष में छिप जा रहा है। अथवा तारागणों को ठगने के लिए चंद्रमा निरंतर लुका छिपी खेल रहा हो। अथवा यमुना का जल जितनी तरंगें उत्पन्न कर रहा है, उतनी तरंगें चंद्रमा से मिलने के हित में नया-नया रूप धारण कर रही है। अथवा बहुत सी चकई सुशोभित हो रही हैं। अथवा जल ऊपर उठते हुए फुहार उत्पन्न कर रहे हैं। अथवा चंद्रमा रूपी योद्धा अनेक प्रकार से उठकर, बैठकर कसरत करते हुए दिखाई दे रहा है।
कूजत कहुँ कलहंस कहूँ मज्जत पारावत।
कहुँ कारण्डव उड़त कहूँ जल कुक्कुट धावत।।
चक्रवाक कहुँ बसत कहूँ बक ध्यान लगावत।
सुक पिक जल कहुँ पियत कहूँ भ्रमरावलि गावत।।
कहुँ तट पर नाचत मोर बहु रोर बिबिध पच्छी करत।
जन पान न्हान करि सुख भरे तट सोभा सब जिय धरत ।6।
शब्दार्थ– पारावत- कबूतर, कारण्डव- बत्तख, चक्रवाक- चकवा पक्षी, सुक- तोता, पिक- कोयल, रोर- दहाड़
यमुना छवि का भावार्थ व व्याख्या– कहीं हंस कल-कल की ध्वनि करते हुए कूज रहे हैं। कहीं कबूतर स्नान कर रहे हैं। कहीं बत्तख उड़ रहे हैं। कहीं जल कौवे दौड़ रहे हैं। कहीं चकवा निवास कर रहा है। कहीं कहीं बगुला ध्यान लगाकर बैठा है। कहीं तोता और कोयल जल पी रहे हैं तो कहीं भौरों का झुंड गीत गाता हुआ दिखाई दे रहा है। कहीं यमुना के किनारे बहुत से मोर नाचते हुए दिखाई दे रहे हैं तो कहीं विविध प्रकार के पक्षियों का समूह चहचहा रहा हो। यमुना के जल को पीकर और उसमें नहाकर सभी पक्षी सुख का अनुभव करते हुए उसके सौंदर्य को बढ़ा रहे हैं।