वर्षा सुंदरी के प्रति कविता की व्याख्या varsha sundari ke prati kavita ki vyakhya class 10 up board ko पढ़ेंगे। इस कविता के भावार्थ संदर्भ और काव्य सौंदर्य भी इस पोस्ट में दिया गया है।
वर्षा सुंदरी के प्रति संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश हारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के वर्षा सुंदरी के प्रति नामक पाठ से नीरजा काव्य संग्रह से लिया गया है। इस कविता की कवयित्री महादेवी वर्मा जी हैं।
वर्षा सुंदरी के प्रति कविता की व्याख्या / varsha sundari ke prati kavita ki vyakhya class 10 up board
रूपसि तेरा घन-केश-पाश!
श्यामल श्यामल कोमल कोमल,
लहराता सुरभित केश-पाश!
वर्षा सुंदरी के प्रति व्याख्या – हे वर्षा रूपी सुंदरी तुम्हारे बालों का समूह काले काले कोमल बादल के समान लहराता हुआ चारो तरफ अपनी सुगंध को प्रसारित कर रहा है।
नभ गंगा की रजतधार में,
धो आई क्या इन्हें रात ?
कम्पित हैं तेरे सजल अंग,
सिहरा सा तन हे सद्यस्नात !
भीगी अलकों के छोरों से
चूतीं बूँदें कर विविध लास !
रूपसि तेरा घन-केश-पाश!
वर्षा सुंदरी के प्रति व्याख्या – हे वर्षा रूपी सुंदरी क्या रात्रि में तुम आकाश गंगा की चांदनी धारा में अपने बालों को धो आई हो ? जल से भीगे हुए तुम्हारे अंग काँप रहे हैं और शरीर में सिहरन व्याप्त है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे तुम अभी-अभी ही स्नान कर के आई हो। भीगे बालों के किनारों से विविध उल्लास करते हुए जल की बूंदे टपक रही हैं। हे वर्षा रूपी सुंदरी तुम्हारी केश राशि बादल के समान प्रतीत हो रही है।
सौरभ भीना झीना गीला
लिपटा मृदु अंजन सा दुकूल;
चल अंचल में झर-झर झरते
पथ में जुगनू के स्वर्ण फूल;
दीपक से देता बार-बार
तेरा उज्ज्वल चितवन-विलास !
रूपसि तेरा घन-केश-पाश!
वर्षा सुंदरी के प्रति व्याख्या – हे वर्षा रूपी सुंदरी सुगंध से युक्त बारीक गीला रेशमी वस्त्र कोमल काजल रूपी बादल में लिपटा हुआ है। मार्ग पर चलते समय तुम्हारे चंचल आंचल में जुगनू के समान स्वर्ण रूपी फूल झर-झर कर गिरते हैं। हे वर्षा रूपी सुंदरी विलास युक्त तुम्हारी उज्ज्वल दृष्टि मार्ग में दीपक के समान प्रकाशित हो रही है। हे वर्षा रूपी सुंदरी तुम्हारी केश राशि सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है।
उच्छ्वसित वक्ष पर चंचल हे
बक-पाँतों का अरविन्द हार,
तेरी निश्वासें छू भू को
बन बन जातीं मलयज बयार;
केकी-रव की नूपुर-ध्वनि सुन
जगती जगती की मूक प्यास !
रूपसि तेरा घन-केश-पाश।
वर्षा सुंदरी के प्रति व्याख्या – हे वर्षा रूपी सुंदरी तुम्हारे हृदय स्थल से उठने और गिरने वाली श्वास चंचल बगुलों की कमलवत पंक्ति के हार के समान सुशोभित हो रही है। जब तुम्हारी श्वास पृथ्वी को स्पर्श करती है तो प्रतीत होता है कि जैसे चंदन की वायु चल रही हो। मोर के केकी की ध्वनि वर्षा रूपी सुंदरी के पायल की ध्वनि के समान लग रही है। जिस ध्वनि को सुनकर संसार की शान्त प्यास जागृत हो जा रही है। हे वर्षा रूपी सुंदरी तुम्हारी केश राशि लोगो को आनंदित और प्रसन्नचित करने में सफल हो गई है।
इन स्निग्ध लटों से छा दे तन
पुलकित अंकों में भर विशाल;
झुक सस्मित शीतल चुम्बन से
अंकित कर इसका मृदुल भाल;
दुलरा दे ना, बहला देना
यह तेरा शिशु जग है उदास !
रूपसि तेरा घन-केश-पाश।
वर्षा सुंदरी के प्रति व्याख्या – हे वर्षा रूपी सुंदरी अपने गोंद में संसार रुपी शरीर को रखकर अपने कोमल बालों की लटों से प्रसन्नचित कर दो। इस संसार के कोमल मस्तक पर झुककर हंसी का शीतल चुंबन अंकित कर दो। हे वर्षा रूपी सुंदरी तुम्हारा संसार रुपी बालक गर्मी से दुख से बहुत उदास है। उसको दुलार और प्यार दे दो। जिससे वह प्रसन्नचित भाव से संसार की मुख्य धारा से जुड़ जाए। हे वर्षा रूपी सुंदरी तुम्हारी केश राशि बादल के समान मनमोहक और आकर्षक है।
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वर्षा सुंदरी के प्रति कविता का काव्य सौंदर्य – अलंकार-मानवीकरण, भाषा- साहित्यिक खड़ी बोली। वर्षा सुंदरी के प्रति’ कविता में बिंब-विधान प्रकृति-चित्रण के माध्यम से व्यक्त होता है। कवयित्री वर्षा को एक सुंदरी के रूप में चित्रित करती हैं, जिसके बालों की तुलना बादलों से, गले के हार की तुलना बादलों की कतार से, और वस्त्रादि की तुलना आंचल में छिपे जुगनुओं से की गई है। यह कविता वर्षा को माँ के रूप में दर्शाती है जो पृथ्वी को अपनी गोद में लेकर प्रेम बरसाती है।