प्रस्तुत संस्कृत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के सिद्धिमंत्र नामक पाठ से लिया गया है। यह क्लास 9 के संस्कृत खंड के up board के अंतर्गत आता है। सिद्धिमन्त्र के सरल अर्थ को समझेंगे| siddhimantra class 9 hindi anuvad up board ही इस पोस्ट का शीर्षक है|
सिद्धिमंत्र अनुवाद / siddhimantra class 9 hindi anuvad up board
| रामदासः नारायणपुरे निवसति । सः नित्य ब्राह्म मुहूर्ते उत्थाय नित्यकर्माणि करोति, नारायणं स्मरति, ततः परं पशुभ्यः घासं ददाति। अनन्तरं पुत्रेण सह सः क्षेत्राणि गच्छति। तत्र सः कठिनं श्रमं करोति। तस्य श्रमेण निरीक्षणेन च कृषौ प्रभूतम् अन्नम् उत्पद्यते। तस्य पशवः हृष्ट-पुष्टाङ्गाः सन्ति, गृहं च धनधान्यादिपूर्णम् अस्ति। |
सिद्धिमंत्र अनुवाद – रामदास नारायणपुर में रहता था। वह प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म करता था, ईश्वर को स्मरण करता था, अपने पशुओं को खाने के लिए घास देता था। इसके बाद अपने पुत्र के साथ वह खेत में जाता था। वहां वह कठिन परिश्रम करता था। उसके परिश्रम और खेतों के निरीक्षण से खेती में अत्यधिक अनाज उत्पन्न हुआ। उसके पशु स्वस्थ और मजबूत अंगों वाले हो गए, घर धन-धन्य से भर गया।
| अत्रैव ग्रामे पैतृकधनेन धनवान् धर्मदासः निवसति। तस्य सकलं कार्यं सेवकाः सम्पादयन्ति। सेवकानाम् उपेक्षया तस्य पशवः दुर्बलाः क्षेत्रेषु च बीजमात्रमपि अन्नं नोत्पद्यते। क्रमशः तस्य पैतृकं धनं समाप्तम् अभवत्। तस्य जीवनम् अभावग्रस्तं जातम्। |
अनुवाद – उसी गांव में पिता के धन से धनवान बना धर्मदास रहता था। उसके सभी कार्य नौकर चाकर करते थे। नौकरों की लापरवाही से उसके पशु दुर्बल और खेतों में नाम मात्र के अन्न ही उत्पन्न होते थे। धीरे-धीरे उसकी पैतृक संपत्ति समाप्त हो गई। उसका जीवन अभावग्रस्त हो गया।
| एकदा वनात् प्रत्यागत्य रामदासः स्वद्वारि उपविष्टं धर्मदासं दुर्बलं खिन्नं च दृष्ट्वा अपृच्छत्, “मित्र धर्मदास ! चिराद् दृष्टोऽसि ! किं केनापि रोगेण ग्रस्तः, येन एवं दुर्बलः।” धर्मदासः प्रसन्नवदनं तम् अवदत् “मित्र! नाहं रुग्णः, परं क्षीणविभवः इदानीम् अन्य इव संजातः। इदमेव चिन्तयामि केनोपायेन मन्त्रेण वा सम्पन्नः भवेयम्।” रामदासः तस्य दारिद्रयस्य कारणं तस्यैव अकर्मण्यता इति विचार्य एवम् अकथयत्, “मित्र! पूर्व केनापि दयालुना साधुना मह्यम् एकः सम्पत्तिकारकः मन्त्रः दत्तः, |
अनुवाद – एक बार वन से लौटते हुए रामदास अपने द्वारा के समीप दुर्बल और दुःखी धर्मदास को देखकर उससे पूछा- मित्र धर्मदास बहुत समय बाद दिखाई दिए। क्या किसी बीमारी से परेशान हो जिस कारण से दुर्बल हो गए हो। धर्मदास प्रसन्न मुख वाले मित्र से कहा मित्र मुझे कोई बीमारी नहीं है, परंतु धन संपत्ति क्षीण हो जाने के कारण किसी अन्य सा हो गया हूं। इस समय यही चिंता है कि किस उपाय या मंत्र से संपत्तिशाली हो जाऊं। रामदास उसकी दरिद्रता का कारण उसके कामचोर भाव को विचार करते हुए उससे कहा, हे मित्र पूर्व में किसी दयालु और सज्जन महात्मा ने मुझे एक संपत्ति बढ़ाने वाला मंत्र दिया था।
| यदि भवान् अपि तं मन्त्रम् इच्छति तर्हि तेन उपदिष्टम् अनुष्ठानम् आचरतु, मित्र! शीघ्रं कथय तदनुष्ठानं येनाहं पुनः सम्पन्नः भवेयम्।” रामदासः अवदत्, “मित्र! नित्यं सूर्योदयात् पूर्वम् उत्तिष्ठ, स्वपशूनां च उपचर्यां स्वयमेव कुरु, प्रतिदिनं च क्षेत्रेषु कर्मकाराणां कार्याणि निरीक्षस्व। अनेन तव अनुष्ठानेन प्रसन्नः सः महात्मा वर्षान्ते अवश्यं तुभ्यं सिद्धिमन्त्रं दास्यति इति।” |
अनुवाद – यदि तुम भी उस मंत्र को जानने की इच्छा रखते हो तो बताए गए अनुष्ठान या कार्य के अनुसार व्यवहार करो। हे मित्र शीघ्रता से उस अनुष्ठान या कार्य को बताइए, जिससे मैं पुनः संपत्तिशाली हो जाऊं। रामदास बोला हे मित्र प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उठकर अपने पशुओं की सेवा स्वयं ही करो, प्रतिदिन खेतों में जाकर काम करने वाले कामगारों के कार्यों का निरीक्षण करो। इस प्रकार से तुम्हारे अनुष्ठान से प्रसन्न होकर वह महात्मा वर्ष के अंत में अवश्य ही तुम्हें सफलता का मंत्र दे देंगे।
| विपन्नः धर्मदासः सम्पत्तिम् अभिलषन् वर्षम् एकं यथोक्तम् अनुष्ठानम् अकरोत्। नित्यं प्रातः जागरणेन तस्य स्वास्थ्यम् अवर्धत्। तेन नियमेन पोषिताः पशवः स्वस्थाः सबलाः च जाताः; गावः महिष्यः च प्रचुरं दुग्धम् अयच्छन्। तदानीं तस्य कर्मकराः अपि कृषिकायें सन्नद्धाः अभवन्। अतः तस्मिन् वर्षे तस्य क्षेत्रेषु प्रभूतम् अन्नम् उत्पन्नम्, गृहं च धनधान्यपूर्ण जातम्। |
अनुवाद – अभावग्रस्त धर्मदास संपत्ति की अभिलाषा से एक वर्ष तक बताए गए कार्य को करता रहा। प्रतिदिन प्रातः काल जागने से उसका स्वास्थ्य बढ़ गया। उसके नियमपूर्वक पशुओं की सेवा करने से वे स्वस्थ है और बलयुक्त हो गए, उसकी गए और भैंस अत्यधिक मात्रा में दूध देने लगे। उसके कामगार भी खेती के कार्यों को मन लगकर करने लगे। अतः उस वर्ष उसके खेत में अत्यधिक अन्न उत्पन्न हुआ, और घर धन-धान्य से भर गया
| एकस्मिन् दिने प्रातः रामदासः क्षेत्राणि गच्छन् दुग्धपरिपूर्णपात्रं हस्ते दधानं प्रसन्नमुखं धर्मदासम् अवलोक्य अवदत्, “अपि कुशलं ते, वर्धते किं तव अनुष्ठानम् ? किं महात्मानं मन्त्रार्थम् उपगच्छाव?” धर्मदासः प्रत्यवदत्, “मित्र! वर्षपर्यन्तं श्रमं कृत्वा मया इदं सम्यग् ज्ञातं यत् ‘कर्म’ एव स सिद्धिमन्त्रः। तस्यैव अनुष्ठानेन मनुष्यः सर्वम् अभीष्टं फलं लभते। तस्यैव अनुष्ठानस्य प्रभावेण सम्प्रति अहं पुनः सुखं समृद्धिं च अनुभवामि।” तत् श्रुत्वा प्रहृष्टः च रामदासः यथास्थानम् अगच्छत्। सत्यमेव उक्तम्- |
अनुवाद – एक दिन प्रातः काल रामदास खेत को गया था, दूध से भरे हुए पात्र को हाथ में लिए हुए प्रसन्न मुख वाले धर्मदास को देखकर बोला, हे मित्र सब कुछ कुशल तो है न, क्या तुम्हारा कार्य कुछ आगे बढ़ा, क्या महात्मा तुम्हें मंत्र देने तुम्हारे पास आए। धर्मदास बोला हे मित्र वर्ष भर परिश्रम करके मुझे यह भलीभांति ज्ञात हो गया है कि कर्म ही सफलता का मंत्र है। इस कर्म का अनुष्ठान करके ही मनुष्य इच्छित फल प्राप्त कर सकता है। इस अनुष्ठान के प्रभाव से ही मैं पुनः सुख और समृद्धि का अनुभव कर रहा हूं।
| उत्साहसम्पन्नमदीर्घसूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वसक्तम्। शूरं कृतज्ञं दृढ़सौहृदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः ।। |
अनुवाद – उत्साही भाव से परिपूर्ण, लंबे समय तक कार्य करने की क्षमता रखने वाला, क्रिया विधि का ज्ञाता, बुरी आदतों से दूर रहने वाला, शूरवीर, कृतज्ञ भाव वाला, दृढ़ निश्चयी और सहानुभूति रखने वाले के यहां लक्ष्मी निवास करने के लिए स्वयं ही चली आती है।
सभी सहृदयों को सादर नमन ज्ञापित करता हूँ तथा अंतर्मन से उनका हार्दिक अभिनंदन एवं वंदन करता हूँ| मैं हिन्दी से डॉक्टरेट हूँ | हिन्दी संबंधी ज्ञान के आदान-प्रदान में मेरी रुचि है|