साहित्य की परिभाषा या sahity ki paribhasha के अन्तर्गत भारतीय साहित्यकारों के अनुसार साहित्य की परिभाषा व संस्कृत साहित्यकारों के अनुसार साहित्य की परिभाषा को समझेंगे।
भारतीय साहित्यकारों के अनुसार साहित्य की परिभाषा
1- प्रेमचंद्र– “साहित्य जीवन की आलोचना है| के अनुसार साहित्य की परिभाषा”
2- बालकृष्ण भट्ट- “साहित्य जन समूह के हृदय का विकास है|”
3- महावीर प्रसाद द्विवेदी- “ज्ञान राशि के संचित कोष का नाम साहित्य है”
4- हजारी प्रसाद द्विवेदी- “साहित्य मनुष्य के अंतर का उच्छलित आनंद है जो उसके अंतर में अटाए नहीं अट सकता है। साहित्य का मूल यही आनंद का अतिरेक है। उच्छलित आनंद के अतिरिक्त से उद्भुत सृष्टि ही सच्चा साहित्य है।”
5- रामविलास शर्मा- “साहित्य जनता की वाणी है ।उसके जातीय चरित्र का दर्पण है। प्रगति पथ में बढ़ने के लिए उसका मनोबल है। उसके सौंदर्य की चाह पूरी करने वाला साधन है।”
6- नंददुलारे वाजपेई- “साहित्य से हमारा आशय उन विशिष्ट और प्रतिनिधि रचनाओं से है जो किसी युग के भावात्मक जीवन का प्रतिमान होती है ।जो समाज और सामाजिक जीवन को भली या बुरी दिशा में ले जाने की प्रबल सामर्थ्य रखती है|”
7- सुमित्रानंदन पंत- “साहित्य अपने व्यापक अर्थ में मानव जीवन की गंभीर व्याख्या है।”
8- आचार्य रामचंद्र शुक्ल-
“साहित्य जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब है|”
9- हजारी प्रसाद द्विवेदी- “मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूं, जो वाग्जाल् मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परमुखोपेक्षता से बचा न सके, जो उसकी आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सके जो उसके हृदय को परदुख कातर और संवेदनशील न बना सके उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है।”
10- नगेन्द्र परिभाषा- “आत्माभिव्यक्ति ही वह मूल तत्व है, जिसके कारण कोई व्यक्ति साहित्यकार और उसकी कृति साहित्य बन पाती है।”
संस्कृत के आचार्यों के अनुसार काव्य लक्षण व परिभाषा
राजशेखर- ‘कविशब्दस्य कवृवर्णो इत्यस्य धातु काव्य कर्मणो रूपम्’
अर्थात् कवि शब्द की व्युत्पत्ति कवृ धातु से हुई है इस प्रकार कवि कर्म का अर्थ काव्य है। संस्कृत साहित्य में काव्य की परिभाषा आचार्यों ने अपने-अपने ढंग से दी है।
अभिनवगुप्त- ‘कवनियम् इति काव्यम्’
अर्थात् रचना या वर्णन व्यापार ही काव्य है।
आचार्य मम्मट- ‘लोकोत्तर वर्णन निपुण कवि कर्म काव्यम्’
अर्थात् आनन्द को दिलाने वाली कवि की भाषित रचना ही काव्य है।
आचार्य विद्याधर- ‘कवयतीति इति कविः तस्य कर्मः काव्यम’
अर्थात् काव्य रचना करने वाला कवि है और कवि कर्म ही काव्य है।
भरत के अनुसार काव्यशास्त्र के लक्षण
आचार्य भरत ने नाट्य शास्त्र में कविता के संपूर्ण तत्वों की ओर इंगित करते हुए निम्न परिभाषा दी है।
मृदुललित पदाढ्यं गूढ शब्दार्थहीनम्
जनमुख पद बोधं मुक्तिमन्नृत्ययोज्यम्
बहुरस कृतर्मागम् संधि संधानयुक्तम्
स भवति शुभ काव्यं नाटक प्रेक्षकाणाम्
अर्थात् गूढ शब्द से हीन मृदुललित पद विभिन्न रसों संधियों से युक्त आमजन का बोध कराने वाले मोक्ष दिलाने वाले शुभ काव्य नाटक में प्रयुक्त होते हैं।
आचार्य भामह काव्य का सर्वप्रथम लक्षण देते हैं। भामह के अनुसार काव्य की परिभाषा
‘शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्’
अर्थात् शब्द और अर्थ का सान्निध्य ही काव्य है।
रूद्रट- ‘ननुशब्दार्थौ काव्यम्’
अर्थात् शब्द और अर्थ का संबंध ही काव्य है।’
समुद्रबन्ध- ‘इह विशिष्ट शब्दार्थौ काव्यं’
अर्थात् विशिष्ट प्रकार के शब्द और अर्थ काव्य है।’
दण्डी- ‘काव्य इष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली’
अर्थात् अर्थ को अभिव्यक्त करने वाली पदावली ही काव्य है।
मम्मट- ‘तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृति पुनः क्वापि’
अर्थात् दोष रहित और अलंकारो से युक्त शब्दार्थ ही काव्य है।
हेमचंद- ‘अदोषौसगुणौ सालंकारौ च शब्दार्थौ काव्यं’
अर्थात् दोष रहित गुणवान अलंकार से युक्त शब्द काव्य है।
राजशेखर- ‘शब्दार्थयोर्यथावत सहभावेन विद्या साहित्य विद्या’
अर्थात् शब्दार्थ और यथावत विद्या को काव्य कहते हैं।
विश्वनाथ- ‘वाक्यं रसात्मकम् काव्यम्’
अर्थात् रसपूर्ण वाक्य ही काव्य है
जगन्नाथ- ‘रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यं’
अर्थात् रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाला अर्थ समूह ही काव्य है।
शद्धोधनि- ‘काव्यं रसाद्मदवाक्य श्रुतं सुखं विशेष ‘
अर्थात् काव्य रस आदि से युक्त कामों को सुख प्रदान करने वाले विशेष कहलाते हैं।
आनन्दवर्धन- ‘शब्दार्थ शरीरं तावत्काव्यम्’
वामन-
‘काव्यं ग्राह्मलंकारात्’।
‘सौन्दर्यमलंकारः’
‘स दोषगुणालंकारहानादानाभ्याम्’