रहीम के दोहे व्याख्या या भावार्थ / rahim ke dohe vyakhya ya bhavarth class 9 up board 

इस पोस्ट में रहीम के दोहे की व्याख्या पढ़ेंगे या पाठ शिक्षाप्रद है। ज्ञान की बहुत ही गहरी बातें इस दोहे में बताई गई है। यह दोहा up board क्लास 9 से लिया गया है। रहीमदास भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि हैं। rahim ke dohe vyakhya ya bhavarth class 9 up board

रहीम के दोहे व्याख्या या भावार्थ / rahim ke dohe vyakhya ya bhavarth class 9 up board 

1- जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। 
     चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

व्याख्या– रहीमदास जी कहते हैं कि यदि व्यक्ति का स्वभाव अच्छा है, विचार अच्छा है तो बुरी संगत उसके स्वभाव को नहीं बदल सकती है ठीक उसी प्रकार से जैसे चंदन वृक्ष पर सर्प लिपटा रहता है इसके बावजूद चंदन अपनी शीतलता का परित्याग नहीं करता है। अर्थात् सर्प का विष चंदन को प्रभावित नहीं कर पाता है।

2- रहिमन प्रीति सराहिए मिले होत रंग दून।
     ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून।।

व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि सच्चे प्रेम की सदैव सराहना करनी चाहिए। क्योंकि सच्चे प्रेमी एक-दूसरे से मिलकर एक हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार से जैसे चूना और हल्दी एक दूसरे से मिलने पर चुना अपने सफेदी को और हल्दी अपने पीलापन को त्याग कर एक नवीन रंग को ग्रहण कर लेता है।

3- टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार। 
     रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार।।

व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि सज्जन व्यक्ति यदि सौ बार नाराज हो जाए तो उसे मना लेना चाहिए। ठीक उसी प्रकार से जैसे मोतियों की माला बार-बार टूटने पर लोग उसे बार-बार गुंथवा लेते हैं।

4- रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ। 
     जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।

व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जिस प्रकार से नेत्रों से गिरता हुआ आंसू मन के दुखी भाव को व्यक्त कर देता है। ठीक उसी प्रकार से घर से निकला हुआ व्यक्ति घर के संपूर्ण भेद को लोगों के सामने खोल देता है।

5- कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
     बिपति-कसौटी जे कसे, तेही साँचे मीत।।

व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि यदि आपके पास धन-संपत्ति है तो भिन्न-भिन्न प्रकार से लोग आपके मित्र बन जाते हैं। लेकिन विपत्ति के समय में जो आपके साथ खड़ा रहता है, सच्चे अर्थों में वही आपका सच्चा मित्र होने के योग्य होता है।

6- जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह। 
     रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़त छोह।।

व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जब मछली पकड़ने के लिए जाल को पानी में डाला जाता है तो मछली के साथ चलने वाला पानी मछली का साथ छोड़कर आगे चला जाता है और मछली जाल में फंस जाती है। इसके बाद भी मछली पानी से किए गए प्रेम को भूल नहीं पाती है और पानी के वियोग में तड़प-तड़प कर अपने प्राण दे देती है। रहीम के कहने का तात्पर्य यह है कि हमें प्रेम सदैव नि:स्वार्थ भाव से करना चाहिए।

7- दीन सबन को लखत हैं, दीनहि लखै न कोय। 
     जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय।।

व्याख्या – गरीब व्यक्ति सभी की तरफ देखता है जबकि गरीब की तरफ कोई नहीं देखता है। रहीम जी कहते हैं कि जो व्यक्ति गरीब की तरफ देखता है सच्चे अर्थों में वही मनुष्य कहने योग्य होता है। अर्थात जो व्यक्ति गरीब को मान सम्मान व महत्व देता है वही लोगों द्वारा पूजनीय होता है।

8- प्रीतम छबि नैननि बसी, पर छबि कहाँ समाय। 
  भरी सराय रहीम लखि, पथिक आपु फिरि जाय।।

व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि मेरे नेत्रों में मेरे प्रिय का सौंदर्य विराजमान है इसमें किसी दूसरे के सौंदर्य को समाहित होने का स्थान नहीं है। ठीक उसी प्रकार से जैसे सराय को भरी हुई देखकर पथिक वापस चला जाता है।

9- रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरेउ चटकाय। 
     टूटे से फिरि ना जुरै, जुरै गाँठ परि जाय।।

व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि प्रेम रूपी धागे को कभी भी शीघ्रता से तत्परता से नहीं तोड़ना चाहिए। क्योंकि प्रेम रूपी धागा एक बार टूटकर अगर पुनः जुड़ता है तो उसमें गांठ पड़ जाती है। अर्थात नरम गरम सहकर व्यक्ति को अपने संबंधों को बनाए रखना चाहिए।

10- कदली सीप भुजंग मुख स्वाति एक गुन तीन।
       जैसी संगत बैठिए, तैसोई फल दीन।।

व्याख्या – स्वाति नक्षत्र का जल एक ही होता है लेकिन भिन्न-भिन्न स्थान पर पड़ने के कारण वह भिन्न-भिन्न रूप ग्रहण कर लेता है। जैसे स्वाति नक्षत्र का जल जब केले पर गिरता है तो वह कपूर बन जाता है। जब सीपी में गिरता है तो मोती बन जाता है और जब सर्प के मुख में गिरता है तो विष बन जाता है। अंत में रहीम जी कहते हैं कि व्यक्ति जिस प्रकार की संगत में बैठता है उसी प्रकार की विचारधारा उसमें संचारित हो जाती है।

11- तरुवर फल नहीं खात है सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित संपति संचहि सुजान।।

व्याख्या – जिस प्रकार से वृक्ष अपना फल नहीं खाता है तालाब अपना पानी नहीं पीता है। ठीक उसी प्रकार से सज्जन व्यक्ति लोक कल्याण के लिए ही धन संपत्ति एकत्रित करते हैं।

12- रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि।
       जहाँ काम आवै सुई कहां करै तरवारि।।

व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि बड़े लोगों को देखकर छोटे लोगों का परित्याग कभी नहीं करना चाहिए। क्योंकि जहां पर सुई का प्रयोग होता है वहां तलवार काम नहीं आती।

13- यों रहिम सुख होत है बढ़त देख निज गोत।
ज्यों बड़री अँखियां निरखि आंखिन को सुख होत।।

व्याख्या – जिस प्रकार से अपने वंश को बढ़ता हुआ देखकर व्यक्ति सुख का अनुभव करता है। ठीक उसी प्रकार से बड़ी-बड़ी आंखें अपने बड़प्पन को देखकर आनंद का अनुभव करती हैं।

14- रहिमन ओछे नरन ते तजै बैर अरु प्रीति।
काटे चाटे स्वान ते दुहु भांत विपरित।।

व्याख्या – निम्न सोच वाले व्यक्ति से न तो प्रेम करना चाहिए न ही शत्रुता करनी चाहिए। क्योंकि कुत्ते के काटने या चाटने से शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

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