पतंग कविता की व्याख्या, प्रश्न उत्तर, भावार्थ कक्षा 12

आलोक धन्वा की पतंग कविता की व्याख्या, प्रश्न उत्तर, भावार्थ कक्षा 12


सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को

पतंग कविता का प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पतंग‘ शीर्षक कविता से उद्धृत है जिसको मूल रूप से ‘आलोक धन्वा‘ जी के काव्य-संग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है‘ से लिया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने प्रकृति में परिवर्तन हुए से प्रकृति-सौन्दर्य तथा बालकों को प्रकृति द्वारा पतंग उड़ाने के लिए निमन्त्रण का विचार प्रस्तुत किया है।

पतंग कविता की व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वर्षा ऋतु के समाप्त होने तथा शरद ऋतु के आगमन के सौन्दर्य का वर्णन किया है। ‘आलोक’ जी कहते हैं कि वर्षा ऋतु में जो बादलों से तेज बारिश होती है वह अब समाप्त हो चुकी है भादो का महीना (जिसमें काली घटाएं छाई रहती हैं) वह भी पूर्ण हो गया है। अर्थात अब अन्धकार खत्म हो रहा है। उजाले से भरा हुआ नया सवेरा हो रहा है। जिस प्रकार खरगोश की आँखें चमकती है उसी प्रकार शरद ऋतु की सुबह लाल रंग से चमक रही है, सभी दिशाएं खिली हुई हैं। आसमान साफ दिखाई दे रहा है, शरद रूपी प्रकाश जिसमें सब हरा-भरा खुशहाल दिखाई देता है वह अन्धेरे भादों के पुलों को पीछे छोड़कर आ गया है। शरद ऋतु का मानवीकरण करते हुए कवि कहता है कि वह एक डाकिये के समान अपनी सुन्दरता की साइकिल चलाते हुए और बार-बार इसकी घंटी को बजाते हुए तथा सूर्य के प्रकाश से चमकीले आसमान की सुन्दरता ओस की बूंदों की चमक, प्रकृति के अनेक सौन्दर्यमयी दृश्य (प्रस्तुत) को दिखाते हुए शरद ऋतु पंतग उड़ाने वाले बच्चों के समूह को पंतग उड़ाने का निमन्त्रण देती है। अर्थात् शरद ऋतु की सुन्दरता बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती हुई उन्हें अपने साथ खेलने के लिए बाधित कर रही है ।

पतंग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष –

शरद ऋतु में प्रकृति सौन्दर्य का आकर्षण सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है।

(ख) कला पक्ष

1- सरल, सरस, प्रवाहमयी भाषा की सुन्दरता पूर्ण पद्यांश में विद्यमान है।
2- अनुप्रास, रूपक व पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का सुन्दर प्रयोग पद्य में हुआ है ।
3- प्रकृति के मानवीकरण रूप का विशेष प्रकार से दृश्य प्रस्तुत किया गया है।
4- प्रकृति के आलम्बन व अलंकारिक रूप को भी कवि द्वारा प्रस्तुत किया गया है।

चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके
दुनिया कि सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया

पतंग कविता का प्रसंग – पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि ने पतंग की बनावट को प्रस्तुत करते हुए उसके द्वारा बाल क्रियाओं, बच्चों की उमगों, उनके सपनों को एक आकार प्रदान करने का प्रयत्न किया है तथा पतंग की खूबसूरती का व्याख्यान किया है।

पतंग कविता की व्याख्या – कवि कहता है कि शरद ऋतु की सुन्दरता की चमक बच्चों को पतंग उड़ाने के लिए अपनी ओर आकर्षित कर रही है। शरद ऋतु प्रकृति की चमक, सुन्दरता के संकेतों से इन्हें बुला रही है। यह आसमान को इतना कोमल, साफ व विस्तृत बना देती है कि पतंग को इसमें उड़ने का पूरास्थान मिल सके और पतंग अधिक ऊँचाई तक उड़ सके। बसन्त की सुन्दरता ऐसे स्वच्छ वातावरण को उत्पन्न करती है कि इसमें रंग-बिरंगी व हल्की-फुलकी विभिन्न प्रकार की पतंगें सारी दुनिया में उड़ाई जाती है। इस मौसम में बाँस की पतली छड़ी (कमानी) से तथा पतले से कागज की बनी हुई पतंगें आकाश में सभी ओर से संसार के सभी हिस्सों से उड़ती हैं और पतंग को उड़ाते समय इनका भरपूर आनन्द उठाया जाता है, बच्चों द्वारा खुशी के साथ सीटियाँ, किलकारियाँ, विभिन्न हर्ष ध्वनि की गूँज सब ओर फैल जाती है। इस सुनहरे लाल मौसम में तितलियां भी पतंगों के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं। तितलियाँ, भंवरों द्वारा कोमल उड़ान भरी जाती हैं। अर्थात् पतंग उड़ाते समय बच्चे-बड़े-बूढे व जवान आदि भी आनन्दका अनुभव करते हैं। इस बसंत ऋतु का पूरा आनन्द उठाते हैं। बाल सुलभ क्रियाओं को पतंगबाजी द्वारा प्रस्तुत किया है। पतंग के इन सभी विशेषज्ञो द्वारा बच्चे के चंचल, स्वच्छ, हलके मन व स्वभाव का पता चलता है।

पतंग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- शरद ऋतु में बसन्त का समय इतना स्वच्छ एवं कोमल होता है कि उसमें पतंग उड़ाने तथा आनन्द अनुभव का अहसास होता है। 
2- पतंग की बनावट में बच्चों के लचक शरीर, चंचल क्रियाओं, नम्र स्वभाव का वर्णन है।

(ख) कला पक्ष

1- सरल, सहज, स्पष्ट प्रभावमयी भाषा का सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करने में कवि को सफलता मिली है।
2- प्रकृति का मानवीकरण-रूप, उद्दीपन रूप की चर्चा की गई है।
3- अनुप्रास अलंकार का कई स्थानों पर प्रयोग हुआ है। जैसे- ऊपर उठ सकें सीटियों
4- तुकबंदी व नाद सौन्दर्य से पूर्ण पद्यांश गेयता गुण से विद्यमान् है।
5- उर्दू व तदभव् शब्दावली का प्रचूर प्रयोग हुआ है।
6- ‘पतंग’ की बनावट में कवि ने अतिशयोक्ति अलंकार के साथ-साथ प्रवाहमयी शैली का भी प्रयोग किया है।

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर

पतंग कविता का प्रसंग – पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि बच्चो की बाल-क्रियाएँ तथा उनकी पतंग उड़ाने की मस्ती, चंचलता का दृश्य प्रस्तुत करता हे। वे बच्चों का सम्बन्ध पतंग के साथ शिशु काल से ही मानते हैं।

पतंग कविता की व्याख्या – कवि इस पद्यांश में बच्चों की कोमलता एवं चंचलता को प्रकट करते हैं। बच्चे जन्म के समय से ही कपास (रूई) के समान नम्र व कोमल होते हैं। और रूई (जिससे धागा बनता है) से उन्हे जन्म लेते ही घूटी दी जाती है। इसलिए कवि कपास के साथ बच्चों का जन्म से सम्बन्ध स्थापित करता है। उनकी उछल-कूद तथा उनके पैरों की चंचल गति के कारण वह सारी पृथ्वी पर पैदल घूम लेना चाहते हैं। अर्थात उनकी चंचलता अत्यधिक दिखाई पड़ रही है। बच्चे अपनी पतंग उड़ाने की मस्ती में बिना कुछ होश किए दौड़ते रहते हैं। वो पृथ्वी पर, छतों पर, सभी जगह मस्ती में घूमते हुए तथा सभी दिशाओं में अपनी कोमलता व मस्ती का मृदंग (ढोल के समान बजाने का बाद्ययन्त्र) बजाते हुए उत्साह पूर्ण कदम भरते हुए इधर से उधर आते-जाते फिर रहे हैं। वे अपनी कोमल चंचल रफ्तार से इस प्रकार भ्रमण कर रहे हैं जिस प्रकार तेज हवा के कारण कोई डाली मस्ती में इधर-उधर हिलती -डुलती रहती है। अर्थात् बच्चों में पतंग उड़ाने तथा मौसम परिवर्तन के कारण चंचलता व मस्ती की उमंग भरी हुई है जिसमें वे बिना होश किए मग्न रहना चाहते हैं।

पतंग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- बच्चों की चंचलता व कोमलता उनको सारी पृथ्वी व सभी दिशाओं में मस्ती से घूमा रही है।
2- पतंग उडाते समय वो अधिक भावुक हो जाते हैं।

(ख) कला पक्ष

1- भाषा की सरलता, सरसता व प्रवाहमयता अत्यधिक प्रभावपूर्ण है।
2 तत्सम् व उर्दू शब्दों की प्रचूरता पद्यांश में विद्यमान् है।
3- अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
4- मृदंग व डाल के रूप में बच्चे की क्रियाओं के वर्णन में रूपक अलंकार है।
5- तुक बंदी के कारण गेयता का गुण विद्यमान है।
6- बच्चों की चंचलता के लिए कवि ने नए-नए बिम्बों का सुन्दर प्रयोग किया है।

छतों के खतरनाक किनारों तक
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे

पतंग कविता का प्रसंग – पूर्ववत्। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बच्चों की निर्भयता व अनजानेपन के कारण खतरों से खेलने की क्रियाओं का वर्णन किया है और उनकी उमगें व आशाएँ पतंग की ऊँचाइयों के समान विस्तृत हैं।

पतंग कविता की व्याख्या – पतंग उड़ाते समय बच्चों की चंचल क्रियाएँ, उनके शरीर की चचंल सन्तुलित गतिविधियाँ उनमें साहस का संचार करती हैं। कवि कहताहै कि बच्चों के लिए बिना किनारों वाली छतों से गिरने का भय हमेशा बना रहता है। परन्तु ये बच्चे बिना किसी डर के अपने उछल-कूद के स्वभाव के कारण इस ऋतु में पतंग उड़ाने का संपूर्ण आनन्द प्राप्त करते हैं। जब वो पतंग उड़ाते हुए छत के किनारे तक पहुँच जाते हैं तब अचानक केवल पतंग की डोर के सहारे वे अपने आप को संभाल लेते है। पतंग का और आगे बढ़ना व पीछे हटना पतंग की धड़कन के समान उस पतंग उड़ाने वाले बच्चे को अपनी ओर खींचकर रखती है।

इस प्रकार पतंग उड़ाने वाले बच्चे भी पतंग को उड़ाते समय अपने आप को उससे जुड़ा हुआ मानते हैं तथा प्रतिस्पर्धा में आगे निकलना चाहते हैं। पतंग बच्चों की उमंगों व आशाओं का रंग-बिरंगा सपना-सा लगता है जिसमें बच्चे उन ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं जिन ऊँचाइयों में पतंग अपनी हदें पार कर जाती है। इस प्रकार बच्चे अपनी छिन्द्र के समान छोटी सी आशाओं द्वारा पतंग की ऊँचाइयों को छूने के प्रयत्न करते हैं।

पतंग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- डूबते को तिनके के सहारे के समान बच्चे अपने चचंल, चुस्त संतुलित शरीर के द्वारा अपने आप को पतंग के सहारे बचाते हैं।
2- बच्चों की आशाओं व उमंगों की ऊँचाइयों के प्रतीक रूप में पतंग की ऊँचाइयाँ है ।

(ख) कला पक्ष

1- सहज, सरल, प्रवाहमयी भाषा का सौन्दर्यात्मक प्रयोग है।
2- उर्दू व तद्भव शब्दावली का प्रचूरता के साथ-साथ तत्सम शब्दों भी उचित मात्रा में प्रयोग हुआ है।
3- अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
4- नए उपमानों, नए प्रतीकों व नए बिम्बों का सौन्दर्य वृद्धि में महत्त्वपर्ण स्थान है। पतंग का मानवीकरण हुआ है।

अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है
उनके बेचैन पैरों के पास।

पतंग कविता का प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में सकंलित कवि ‘श्री आलोक धन्वा’ जी द्वारा रचित ‘पतंग’ शीर्षक कविता से उद्धृत किया गया है। इसमें कवि ने बच्चों द्वारा बिना भय के चंचलता से छत पर पतंग उड़ाने तथा उड़ाते समय गिरने के बाद फिर उसी उत्साह से पतंग उड़ाने का दृश्य प्रस्तुत किया है।

पतंग कविता की व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बच्चों की अत्यधिक चंचलता के कारण नकारात्मक दृष्टि में भी साकारात्मकता प्रस्तुत की है। कवि कहता हैकि ये मस्ती से पूर्ण चंचलता बच्चे यदि कभी बिना किनारे वाली खतरनाक छतों से गिर भी जाते हैं और गिर कर चोट आदि लगने के बाद अगर बच जाते हैं तो ये बच्चे और अधिक उत्साह और निर्भयता से शरद ऋतु में सूर्य की सुनहरी किरणों के निकलने का इन्तजार करते हैं और दिन निकलने पर उत्साह व आनन्द के साथ पतंग उड़ाते हैं। अर्थात इनका मन स्वच्छ व कोमल होता है जो सभी चोट व घावों को शीघ्रता से भूलकर पुनः उमंग व आशाओं की खोज में लग जाता है।

तब इस समय वे पृथ्वी का तेज गति से ऋतु परिवर्तन करने अथवा अपनी परिक्रमा पूरी करने का इन्तजार करते हैं। वे चाहते हैं कि जल्द से भादो आकर जाए और शरद् व बसंत की ऋतु पुनः आ सके जिसमें वो पहले से भी दुगुने उत्साह के साथ मस्ती व पतंग बाजी कर सकें। बच्चे और नई-नई गति-विधियों व नई-नई पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला रखते हैं। वो अपनी चंचलता के द्वारा नई आशाओं व उमंगों को पूर्ण करनाचाहते हैं। क्योंकि हर अंधेरे के बाद प्रकाश व रात के बाद सुबह का आगमन निश्चित है।

पतंग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- कवि निराशा के बाद आशा की प्राप्ति का, भादो (अंधेरे) के बाद शरद (प्रकाश) के द्वारा संदेश देना चाहता है।
2- इन पंक्तियों में कवि असफलता के बाद दुबारा सफलता के लिए दुगने उत्साह के साथ कर्म करने का भाव प्रकट कर रहा है।

(ख) कला पक्ष

1- कवि ने साधारण शब्दों के द्वारा महत्त्वपूर्ण संदेश की गम्भीरता को प्रकट किया है।
2- भाषा की सरलता, सहजता व प्रवाहमयता प्रभावपूर्ण सिद्ध हुई है। कवि द्वारा सभी पंक्तियों में विशेषण प्रयोग पर विशेष बल दिया गया है।
3- अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
4- उर्दू व तद्भव शब्दावली का प्रचूर मात्रा में प्रयोग
5- तुकबंदी के कारण गेयता का गुण है। नए बिम्बों का कवि ने सुन्दर प्रयोग किया है।

पतंग कविता का प्रश्न उत्तर 


1. ‘सबसे तेज़ बौछारें गई, भादो गया’ के बाद प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने दिखाया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।

उत्तर– कवि कहता है कि वर्षा ऋतु व भाद्रपद मास के बाद प्रकृति में बहुत परिवर्तन आता है। भाद्र पद में जो काले घने अन्धकार को दर्शाने वाले बादल हैं वो शरद ऋतु में झड़ जाते हैं और तेज सूर्य की रोशनी से भरपूर चमकीला सवेरा होता है। शरद ऋतु उजालों के समान भादों के अन्धेरों को नष्ट करती हुई आती है। इस ऋतु में सभी दिशाएँ चमक उठती हैं। सभी मधुर आवाजें गूँज उठती हैं। यह सुखों व मस्ती के समान द्वारा सबको अपनी ओर आकर्षित करती है बसंत ऋतु में पतंग बाजी को उत्साहित करती है।

2. सोचकर बताएँ कि पतंग के लिए “सबसे हल्की और रंगीन चीज़, सबसे पतला कागज़, सबसे पतली कमानी” जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया है?

उत्तर– पतंग के लिए अनेक प्रकार के विशेषणों का प्रयोग कवि ने किया है। पतंग को उड़ाने के लिए उसमें विभिन्न रंगों, हल्कापन, पतले कागज वपतली कमानी आदि विशेषणों का प्रयोग कवि ने किया है जो कि बच्चे के स्वभाव को प्रदर्शित करता है। इसका संबन्ध सबसे हलके मन व चंचलता से जुड़ता है। निस्वार्थ व स्वच्छ भाव वाला चंचल, मस्त व छोटा सा मन ही पतंग के समान नई ऊँची आशाओं व उमंगों की उड़ान भर सकता है।

3. बिंब स्पष्ट करें

सबसे तेज बौछारें गईं भादों गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके।

(क) खरगोश की आँखों जैसा– वह सुन्दर सुबह जिसमें प्रातः काल की इतनी लाली है जैसे कि खरगोश की आँखें अंधेरे में चमकती है उसी तरह शरद ऋतु का सवेरा भी ।

(ख) शरद आया पुलों को पार करते- अन्धकार के उजालें का आगमन, दुखों के बाद सुखों के आने को कवि ने ऐसा कहा है।

(ग) चमकीली साइकिल घंटी बजाते हुए तेज चलाने-द्वारा कवि ने मधुर, उजाले वाले व संगीतमय प्रकृति चित्र को प्रस्तुत किया है। बाद

(घ) आकाश को मुलायम-इसमें आसमान की स्वच्छता, विस्तृतमन तथा साफ होने के बिम्ब का कवि ने प्रयोग किया है।

4- जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास – कपास के बारे में सोचें कि कपास से बच्चों का क्या संबंध बन सकता है।

उत्तर – कवि बच्चों की कोमलता को कपास के प्रतीक द्वारा प्रकट कर रहा है। जिस प्रकार कपास (रूई) नरम व हल्की होती है उसी प्रकार बच्चे जन्म के समय बिल्कुल स्वच्छ, कोमल, नरम होते हैं। उनका मन साफ व हलके भाव से निर्मित होता है या हम एक संबंध यह भी कह सकते हैं कि शिशु के जन्म के उपरान्त उसे सबसे पहले घूटी रूई (कपास) द्वारा ही दी जाती है। इसलिए कवि ने कपास की नाजुकता के कारण बच्चे से इसका संबंध जोड़ा है।

5. पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं- बच्चों का उड़ान से कैसा संबंध बनता है ?

उत्तर– बच्चे पतंग उड़ाते समय (पूर्ण) स्वच्छ मन से उसमें मस्त रहते हैं तथा छत पर उनकी डोर के सहारे अपने शरीर का संतुलन बनाए रखते हैं। जिस प्रकार पतंग आसमान की ऊँचाइयों की हदों को उड़कर छुना चाहती है उसी प्रकार बालमन भी उन ऊँचाइयों को छुना चाहता है और उनके पार जाना चाहता है। पतंग की उड़ान उनके लिए रंग-बिरंगे सपने के समान है जिसमें वे चंचल मन खो जाना चाहते हैं। इसलिए कवि ने पतंग केसाथ-साथ बच्चों के उड़ने की बात कही है।

6. निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए


(क) छतों को भी नरम बनाते हुए
       दिशाओं को मृदंग की तरह हुए

(ख) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
       और बच जाते हैं तब तो
       और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं।

(i) दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है?
(ii) जब पतंग सामने को हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती है ?
(iii) खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं?

उत्तर

(i) बच्चों की तेज रफ्तार व इधर-उधर बार- बार भ्रमण करना, एक स्थान से नहीं बल्कि छतों के सभी भागों पर जा कर पतंग उड़ाने के लिए कविने इस बिम्ब का प्रयोग किया है। उनकी सीटियों व किलकारियों की गुंज सभी दिशाओं में मृदंग के समान फैली है।

(ii) जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए छत कपास की तरह कोमल और नरम लगती है।

(iii) खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद हम दुनिया की चुनौतियों के सामने दुगने उत्साह और निर्भयता के भाव से आते हैं। साथ हीआनन्द की अनुभूति होती है।

पतंग कविता के आसपास


1. आसमान में रंग बिरंगी पतंगों को देखकर आपके मन में कैसे ख़याल आते हैं? लिखिए।

उत्तर– आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर हमारा मन भी ऊँची-ऊँची उड़ानें भरने को करता है । छोटी-सी पतली पतंग नहीं होते। अगरआसमान की ऊँचाई को छू सकती है तो हम किसलिए बड़ी-बड़ी उपलब्धियों को पाने के लिए प्रयासरत नहीं यह सोचकर हमारे मन में निरन्तर कर्मशील रहने एवं रंगीन सपने लेने की इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं।

2. ‘रोमांचित शरीर का संगीत’ का जीवन के लय से क्या संबंध है?

उत्तर– ‘रोमांचित शरीर का संगीत’ अर्थात् संगीत शरीर को रोमांचित कर देता है। शरीर भी गद्गद होकर संगीतमय हो जाता है। यह संगीत जीवन में लय उत्पन्न करता है। जीवन में चेतना शक्ति का विकास संगीत के माध्यम से सम्भव है। जहाँ संगीत जीवन में आनंद प्रदान करता है वहीं जीवन सम्बन्धी सूझ-बूझ की प्रेरणा भी संगीत की ही देन है।

3. ‘महज एक धागे के सहारे, पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ’ उन्हें (बच्चों को) कैसे थाम लेती हैं? चर्चा करें।

उत्तर– ‘महज़ एक धागे के सहारे, पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ’ उन्हें (बच्चों को) थाम लेती हैं। जैसे-जैसे बच्चों के हाथ में थमीं पतंगे आसमान की ऊँचाइयों को छूती हैं वैसे-वैसे बाल सुलभ कल्पनाएँ भी निरन्तर ऊँचाइयों की ओर बढ़ती जाती हैं। बच्चे का बालसुलभ कोमल मन दूसरे बच्चे की पतंग को काटकर खुशी से झूम उठता है, किलकारियाँ मारता है और सीटियाँ बजाता है। इसी प्रकार जब बच्चे की कोई इच्छा पूर्ण होती है तब भी वह खुशी से नाच उठता है।

पतंग आपकी कविता

1. हिंदी साहित्य के विभिन्न कालों में तुलसी, जायसी, मतिराम, द्विजदेव, मैथिलीशरण गुप्त आदि कवियों ने भी शरद ऋतु का सुंदर वर्णन किया है। आप उन्हें तलाश कर कक्षा में सुनाएँ और चर्चा करें कि पतंग कविता में शरद ऋतु वर्णन उनसे किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर– अध्यापक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।

2. आपके जीवन में शरद ऋतु क्या मायने रखती है?

उत्तर– हमारे जीवन में शरद् ऋतु का बहुत अधिक महत्त्व है। वर्षा ऋतु के उपरान्त शरद ऋतु का आगमन हमें उत्साहित एवम् रोमांचित कर देता है।शरद ऋतु में यद्यपि हम ठिठुरते हैं लेकिन हमारी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। गर्म वस्त्रों में गर्मी का अहसास कर, पौष्टिक आहारों से अपना पोषण करते हैं। इसी ऋतु में विभिन्न प्रकार के खाद्य फल, सब्जियाँ हमारे मन को भाती हैं। शरद ऋतु में मनाए जाने वाले क्रिसमस, लोहड़ी एवम् मकर सक्रान्ति के पर्व हमें आनंदित करते हैं। धीरे-धीरे बसन्त ऋतु का आगमन होने लगता है। धान की फसल का रोपना किसानों को खेतों की ओर मोड़ देता है। ग्रामीण स्त्रियाँ, पुरुष, वृद्ध और बच्चे अपने-अपने खेतों में धान की फसलें रोपने में मस्त हो जाते हैं। चारों ओर खेतों में काम करते हुए किसानों को देखकर मन खुशी से भर जाता है। दिसम्बर से सर्दी का आगमन जहाँ मन को खुशी प्रदान करता है वहीं फरवरी के बाद गर्मी का आना मन में एक चुभन सी उत्पन्न कर देता है। फिर कब शरद का आगमन होगा, कब शरद ऋतु का इन्तजार समाप्त होगा, मन यह सोचने को बाध्य हो उठता है।

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