पंचवटी एक स्थान का नाम है जहां श्रीराम वनवास काल में निवास किए थे। Panchawati कविता की व्याख्या भावार्थ explanation को समझेंगे। इस कविता के कवि छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। यह कविता up board class 12 के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है।
पंचवटी कविता की व्याख्या, भावार्थ / panchawati kavita vyakhya class 9 up board
| चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में, स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बर-तल में। पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से, मानो झूम रहे हैं तरु भी मन्द पवन के झोंकों से। |
पंचवटी कविता व्याख्या – चंद्रमा की चंचल किरणे जल और पृथ्वी पर इधर उधर खेलते हुई दिखाई दे रही हैं। चन्द्रमा की स्वच्छ और पवित्र चाँदनी आकाश और पृथ्वी पर चारो तरफ फैली हुई है। पृथ्वी पर फैले हुए हरे-हरे तिनके चारो तरफ प्रसन्नता के भाव प्रकट कर रहे हैं। इस मनोरम वातावरण में ऐसा लग रहा है मानो मंद-मंद चलने वाली हवा से वृक्ष झूम रहे हो। अर्थात् चारो तरफ आनंद और प्रसन्नता का भाव व्याप्त हो गए है।
पंचवटी की छाया में है सुन्दर पर्ण-कुटीर बना, |
पंचवटी व्याख्या – पंचवटी नामक स्थान पर पत्ते की सुंदर कुटिया बनी हुई है। उस कुटिया के ठीक सामने पर्वत की स्वच्छ शिला पर एक धैर्यशाली, निडर और वीर खड़ा हुआ है। संसार में सभी लोग सो गए हैं जबकि यह कौन धनुर्धारी है जो अभी तक जाग रहा है। सांसारिकता का भोग करने वाला यह बालक इस समय योगी के समान दिखाई दे रहा है।
| किस व्रत में है व्रती वीर यह निद्रा का यों त्याग किए, राजभोग के योग्य विपिन में बैठा आज विराग लिए। बना हुआ है प्रहरी जिसका उस कुटीर में क्या धन है, जिसकी रक्षा में रत इसका तन है, मन है, जीवन है।। |
व्याख्या – यह वीर बालक इस प्रकार से अपने नीद चैन को त्यागकर कौन से व्रत को धारण कर लिया है। राज्य का भोग करने योग्य यह बालक वैराग्य को धारण करके इस जंगल में क्यों बैठा है। जिस कुटिया की सुरक्षा में यह लगा हुआ है आखिर उसमें ऐसा क्या धन है। जिसकी रक्षा में इसने अपना शरीर, मन और जीवन समर्पित कर दिया है।
| मर्त्यलोक-मालिन्य मेटने स्वामि-संग जो आयी है, तीन लोक की लक्ष्मी ने यह कुटी आज अपनायी है। वीर वंश की लाज यही है फिर क्यों वीर न हो प्रहरी ? विजन देश है, निशा शेष है, निशाचरी माया ठहरी। |
पंचवटी व्याख्या – मृत्युलोक में व्याप्त अनाचार को मिटाने के लिए जो श्री राम के साथ आई हुई है वह तीनों लोकों की लक्ष्मी है और उन्हींने इस पत्ते की कुटिया को अपना निवास स्थान बनाया है। जब एक वीर वंश की लाज इस कुटिया में निवास कर रही हो तो उसकी सुरक्षा के लिए कोई वीर प्रहरी क्यों लगा हो? यह क्षेत्र बिल्कुल निर्जन है दूर-दूर तक कहीं कोई निवास नहीं करता है। रात्रि का समय है और रात्रि के समय अनेक मायावी शक्तियां इधर-उधर टहलती हैं।
| क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा; है स्वच्छंद-सुमंद गंध वह, निरानंद है कौन दिशा? बंद नहीं, अब भी चलते हैं नियति-नटी के कार्य-कलाप, पर कितने एकान्त भाव से कितने शान्त और चुपचाप। |
पंचवटी व्याख्या – शांत रात्रि में स्वच्छ चाँदनी पृथ्वी के कोने कोने में फैली है। ऐसी कौन सी दिशा है जो स्वच्छ और मंद मंद चलने वाली सुगंधित वायु से भरी न हो। प्रकृति के कार्य-कलाप रुके नहीं हैं निरंतर अवाध गति से चल रहे हैं। वातावरण पूरी तरह से शांत है। सभी कार्य एकांत में चुपचाप भाव से ही सम्पन्न हो रहे है।
| है बिखेर देती वसुन्धरा मोती, सबके सोने पर, रवि बटोर लेता है उनको सदा सबेरा होने पर। और विरामदायिनी अपनी संध्या को दे जाता है, शून्य श्याम तनु जिससे उसका नया रूप झलकाता है। |
पंचवटी व्याख्या – रात्रि में जब सभी लोग सो जाते हैं तो पृथ्वी पर चारो तरफ ओस रूपी मोती फैल जाती है। जैसे ही सबेरा होता है सूर्य पृथ्वी पर बिखरे हुए मोतियों को समेट लेता है। अस्त होने के समय सूर्य समेटे हुए मोतियों को ठहराव लेने वाली संध्या को दे जाता है। जिस कारण आकाश में पृथ्वी का श्याम वर्णी शरीर नए स्वरूप में झलकते हुए दिखाई देता है।
| सरल तरल जिन तुहिन कणों से हँसती हर्षित होती है, अति आत्मीया प्रकृति हमारे साथ उन्हीं से रोती है। अनजानी भूलों पर भी वह अदय दण्ड तो देती है, पर बूढ़ों को भी बच्चों-सा सदय भाव से सेती है। |
व्याख्या – प्रकृति ओस की सरल और तरल कणों से हंसती है, आनंदित होती है, प्रसन्नचित होती है और सुख का अनुभव करती है। प्रकृति में अपनापन का भाव रहता है जिस कारण से वह हमारे दुखों को अपना दुख अनुभव करके रोती भी है। जब कभी अनजाने में हमसे कोई गलती हो जाती है तो वह निष्ठुर भाव से हमें दण्ड भी देती है। बूढ़े लोगों को बड़े ही दया भाव से बच्चे के समान देखरेख करती है।
| तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके, पर हैं मानो कल की बात, वन को आते देख हमें जब आर्त, अचेत हुए थे तात। अब वह समय निकट ही है जब अवधि पूर्ण होगी वन की। किन्तु प्राप्ति होगी इस जन को इससे बढ़कर किस धन की? |
पंचवटी व्याख्या – लक्ष्मण कहते हैं कि वन में रहते हुए हम लोगों के तेरह साल व्यतीत हो गए लेकिन सोचने में लग रहा है कि जैसे यह बात अभी कल की ही है। जब हम अयोध्या से वन की तरफ प्रस्थान किए थे तो पिताजी हमें देखकर दुख के कारण मुर्च्छित हो गए थे। अब वह समय करीब आ गया है जब वनवास कल पूर्ण हो जाएगा। इस वैन में हमें एक ऐसा धन मिला है जो महल में भी नहीं मिल सकता।
| और आर्य को? राज्य-भार तो वे प्रजार्थ ही धारेंगे, व्यस्त रहेंगे, हम सबको भी मानो विवश बिसारेंगे। कर विचार लोकोपकार का हमें न इससे होगा शोक, पर अपना हित आप नहीं क्या कर सकता है यह नरलोक ? |
पंचवटी कविता व्याख्या / भावार्थ – प्रभु श्रीराम प्रजा का कल्याण करने के लिए राज्यभार को ग्रहण करेंगे। जिस कारण से वह अपने कार्यों में व्यस्त हो जाएंगे विवशता के कारण वह हम लोगों को भुला देंगे। लोक कल्याण का विचार करके हमलोगों को कोई दुख नहीं होगा परंतु क्या यह संसार अपना कल्याण अपने हाथों स्वयं नहीं कर सकता है? अर्थात् कर सकता है।
सभी सहृदयों को सादर नमन ज्ञापित करता हूँ तथा अंतर्मन से उनका हार्दिक अभिनंदन एवं वंदन करता हूँ| मैं हिन्दी से डॉक्टरेट हूँ | हिन्दी संबंधी ज्ञान के आदान-प्रदान में मेरी रुचि है|