मीराबाई पदावली व्याख्या क्लास 9 / mirabai padawali vyakhya class 9 up board

इस पोस्ट में हमलोग मीराबाई के पदावली की व्याख्या को समझेंगे। पदावली को पद भी कह सकते हैं। साथ ही साथ इसका भावार्थ भी इसी में सम्मिलित है। यह पाठ up board class 9 hindi ke अंतर्गत आने वाला पाठ है।

मीराबाई पदावली व्याख्या क्लास 9 / mirabai padawali vyakhya class 9 up board

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हिंदी पाठ्य पुस्तक के पद नामक पाठ से लिया गया है। जिसकी कवयित्री मीराबाई है। प्रस्तुत सभी पदों में मीराबाई की कृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ी है।

बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल, अरुण तिलक दिये भाल।।
मोहनि मूरति साँवरि सूरति, नैना बने बिसाल।
अधर-सुधा-रस मुरली राजत, उर बैजंती-माल ।।
छुद्र घंटिका कटि-तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल ।। 1 ।।

प्रसंग – प्रस्तुत पद में मीराबाई ने कृष्ण के बाह्य सौंदर्य का चित्रण किया है। वे कृष्ण को अपने भक्तों पर कृपा करने वाला बताती हैं।

पदावली व्याख्या / भावार्थ – हे नंदलाल या कृष्ण तुम मेरे नेत्रों में बस जाओ। जो सिर पर मोर का मुकुट, कानों में मकर के आकृति का कुंडल धारण किए हैं, मस्तक पर लाल तिलक दिए हैं, श्याम वर्ण की आकृति से युक्त सबके मन को आकर्षित करने वाले, विशाल नेत्रों वाले, ओठ पर अमृत रस से सिक्त बांसुरी और हृदय पर वैजन्ती की माला सुशोभित हो रही है। कमर पर छोटी-छोटी घंटियों से युक्त करधनी और पैरों की पायल से निकलती हुई मधुर ध्वनि सुशोभित हो रही है। मीराबाई कहती हैं कि भक्तों पर कृपा करने वाले वह प्रभु कृष्ण संतों को सदैव सुख प्रदान करते हैं।

पायो जी म्हैं तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।
जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरचै नहिं कोइ चोर न लेवै, दिन दिन बढ़त सवायो।।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भव-सागर तर आयो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस गायो।।2।।

प्रसंग – प्रस्तुत पद में मीराबाई राम नाम रूपी रत्न का गुणगान करती हैं। वह इस रत्न को अमूल्य बताती हैं। वह कभी भी खर्च न होने वाला बताती हैं।

पदावली भावार्थ / व्याख्या – मीराबाई कहती हैं कि मुझे राम नाम रूपी धन मिल गया है। मेरे सच्चे गुरू ने एक अमूल्य वस्तु मुझे प्रदान कर दी है। उनकी महान कृपा से ही मैने उन्हें अपना बना पाया। सांसारिक वस्तुओं को समाप्त करने के बाद मुझे जन्म-जन्मांतर की पूंजी मिल गई है। इस पूंजी को न कोई चोर चुरा सकता है और न ही यह कभी खर्च हो होती है बल्कि दिन प्रतिदिन यह बढ़ती ही रहती है। सत्य की नांव चलाने वाले सच्चे गुरू की कृपा से मेरी जीवन नौका संसार रुपी भवसागर से पार हो गई है। अंत में मीराबाई कहती हैं कि चतुर कृष्ण का गुणगान करते-करते मैं थकती नहीं हूं।

माई री मैं तो लियो गोविन्दो मोल।
कोई कहै छाने कोई कहे चुपके, लियो री बजन्ता ढोल।
कोई कहै मुँहघो कोई कहै मुँहघो, लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कारो कोई कहै गोरो, लियो री अमोलक मोल
याही कूँ सब जाणत हैं, लियो री आँखी खोल।
मीरा कूँ प्रभु दरसण दीन्यौ, पूरब जनम कौ कौल।

प्रसंग– मीराबाई कृष्ण को जब अपने अंतर्मन में स्थापित करके भिन्न-भिन्न प्रकार से उनकी भक्ति करती है तो लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती है। उसी के भाव को इस पद में व्यक्त की हैं।

पदावली व्याख्या – मीराबाई कहती हैं कि मैंने तो कृष्ण को खरीद लिया है । मेरे इस व्यापार को कोई कहता है कि तुमने चुपके से खरीदा है। लेकिन मैं कहती हूं कि मैने ढोल बजाकर उन्हें खरीदा है। कोई कहता है कि तुमने महंगा खरीदा है कोई कहता है कि तुमने सस्ता खरीदा है। मैं कहती हूँ कि मैंने उनको तराजू पर तौल कर लिया है। कोई कहता है कि जो तुम खरीद कर लाई हो वह काला है कोई कहता है कि वह गोरा है। मैं कहती हूं कि उस अमूल्य वस्तु को मैं खरीद कर लाई हूं। इस बात को सभी लोग जानते हैं कि जो कुछ मैने किया है वह सब पूरी तरह होशोहवास में किया है। अंत में मीराबाई कहती हैं कि पूर्व जन्म के पुण्य प्रभाव के कारण ही मुझे अपने प्रभु कृष्ण के दर्शन हो पाए।

मैं तो साँवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बाँधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाँची।।
गयी कुमति लई साधु की संगति, भगत रूप भई साँची।
गाय-गाय हरि के गुण निसदिन, काल ब्याल सूँ बाँची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब काँची।
मीरा श्री गिरधरन लाल सूँ, भगति रसीली जाँची ।।4।।

प्रसंग– मीराबाई कृष्ण की भक्ति में अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदैव तैयार रहती हैं। मीराबाई को कृष्ण के बिना संपूर्ण संसार रुखा रुखा लगता है।

पदावली व्याख्या – मीराबाई कहती हैं कि मैं सांवले कृष्ण के रंग में पूरी तरह से रंगी हुई हूं। साज श्रृंगार करके पैरों में घुंघरू बांधकर सांसारिक लाज शर्म को त्याग कर कृष्ण की भक्ति में मस्त होकर नाच रही हूं। सज्जनों की संगत में आने से मेरी सब अज्ञानता समाप्त हो गईं। भक्ति भाव से आवृत्त होने के कारण सच्ची हो गई हूं। दिन रात अपने गुरू के नाम का गुणगान करके काल रूपी सर्प से भी बच गई हूं। कृष्ण के बिना मुझे संपूर्ण संसार खारा-खारा लगता है। उनके अलावा सभी बाते कच्ची लगती हैं। अंत में मीराबाई कहती हैं कि गिरधारी कृष्ण की भक्ति से मैं सांसारिक भवसागर से पार हो गई हूं।

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बन्धु, आपनो न कोई ।।
छॉड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई।
संतन ढिंग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई।।
अँसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गयी, आणंद फल होई।।
भगति देखि राजी हुई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई।।5।

प्रसंग– मीराबाई कृष्ण को अपने पति रूप में मानते हुए उनकी भक्ति करती हैं। कृष्ण की भक्ति में वह अपने परिवार और सगे संबंधियों को भूल गई हैं।

भावार्थ / व्याख्या – मीराबाई कहती हैं कि कृष्ण ही मेरे सबकुछ हैं उनके अलावा मेरा कोई दूसरा नहीं है । वह कहती हैं कि जिनके सिर पर मोर का मुकुट है वहीं मेरा स्वामी है । माता-पिता भाई-बहन मेरा कोई अपना नहीं है । मैंने अपने वंश की मान मर्यादा का परित्याग कर दिया है । अब मेरा कोई कुछ नहीं कर सकता है। संतों के साथ बैठकर संसार की लज्जा से मैं मुक्त हो गई हूँ । अश्रु रूपी जल से सींचकर मैंने प्रेम रूपी बेल बोया था वह बेल अब बड़ी हो गई है। उससे आनंद रूपी फल की प्राप्ति अब मुझे होगी । भागवान के भक्तो को देखती हूँ तो खुश होती हूँ लेकिन सांसारिक लोगों को देखती हूँ तो दुखी हो जाती हूँ । अंत में मीरबाई कहती हैं कि हे प्रभु कृष्ण अपने अनन्य भक्त मीरा का अब उद्धार कर दो ।

मीराबाई के पदावली का काव्य सौंदर्य

मीराबाई के पद का यह काव्य सौंदर्य सभी पदों के साथ चल जाएगा।

1- भाषा सरल, सहज ब्रजभाषा राजस्थानी मिश्रित खड़ी बोली है।
2- कृष्ण की भक्ति में सर्वस्व त्याग की भावना का चित्रण किया गया है।
3- मुक्तक छंद गेय पद है।
4- भक्ति व शांत रस है।
5- रूपक, अनुप्रास व पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है।

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