जूझ पाठ का प्रश्न उत्तर वितान भाग दो कक्षा 12 / jujh path ke prashn uttar
जूझ पाठ वितान भाग 2 के चैप्टर 2 से लिया गया है| इस पोस्ट में हमलोग जूझ पाठ के प्रश्न उत्तर को पढ़ेंगे|
1- ‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथानायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है?
उत्तर– शीर्षक ऐसा होना चाहिए जो पूरी कहानी का केन्द्र बिन्दु हो तथा पूरी कहानी उसी बिन्दु के चारों तरफ घूमती हो। ‘जूझ’ बिल्कुल सही शीर्षक है क्योंकि पाठ के शुरू से लेकर आखिर तक लेखक पढ़ने के लिए जूझ रहा है। वह पूरी लगन और मेहनत से विपरित स्थितियों का मात देने की कोशिश करता है तथा अन्त में सफलता भी प्राप्त करता है। वह हर पल कुछ न कुछ नया करने को तैयार रहता है। वह अपने संघर्ष में सफल होता है।
2- स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ ?
उत्तर लेखक अपने मराठी मास्टर सौंदलगेकर से कविता रचने का मार्गदर्शन प्राप्त करता है। आरम्भ में वह अपने मास्टर की तरह अभिनय करने की कोशिश करता है जो सुर, लय, ताल, गायन तथा अभिनय, पारंगत है। धीरे-धीरे ढोर चराते वक्त तथा खेतों में पानी देते वक्त कविता को अलग ढंग से गाने की कोशिश करता है। मास्टर द्वारा रचित मालती की लता वाली कविता से उसे प्ररेणा मिलती हैं कि कविता का रस उसके चारों तरफ के वातावरण में है; जरूरत है तो उसे खोजने की । अब वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कभी भैंस की चमड़ी पर तो कभी पत्थर पर कंकड़ से लिखकर देखता और उसे याद कर देता। धीरे-धीरे कविता रचने का आत्मविश्वास बढ़ने लगा ।
3. श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें, जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई ।
उत्तर– जब श्री सौंदलगेकर पढ़ाते थे तो वे स्वयं भी उस कविता में ही डूब जाते थे। वे उस कविता के सुर, ताल यति, गति मे स्वयं भी रम जाते थे और दूसरों की भी भाव-विभोर कर देते थे। वे अपने पास अनेक काव्य संग्रह रखते थे। जाने-माने कवियों से हुई मुलाकातों के संस्मरण भी वे बच्चों को सुनाते थे। कविता में प्रयुक्त छंदों तथा अभिनय भी बड़े प्यार से वह बच्चों को समझते थे। वह लेखक को ‘आनंदा’ नाम से पुकारते थे। आनंद उनसे उचित मार्ग-दर्शन प्राप्त कर तथा उनके प्यार की छाँव में कविता के प्रति रुचि लेने लगा।
4. कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?
उत्तर– पहले जब कवि अकेला खेत में कार्य करता था तो उसे अकेलापन बहुत खलता था। वह हर समय किसी से बात करने या हँसने में बिताना चाहता था। अकेले में उसका मन किसी भी काम में नहीं लगता था परन्तु जब से वह कविता में रुचि लेने लगा उसे अकेला रहना अच्छा लगने लगा। अकेले में वह गीत गुनगुना सकता था, अभिनय कर सकता था, मन को एकाग्र करके कविता लिख सकता था। अपनी खुशी को जाहिर करने के लिए उछल-कूद कर सकता था।
5- आपके खयाल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का ?तर्कसहित उत्तर दें।
उत्तर– हमारे खयाल से पढ़ाई-लिखाई के सम्बंध में लेखक के पिता का रवैया ठीक नहीं था। दत्ताजी राव का रवैया बिल्कुल सही था। जाने-अनजाने में बच्चों से हुई गलतियों को हमें सीने से लगाकर नहीं रखना चाहिए। हमें बच्चो को अपनी गलती सुधारने का मौका देना चाहिए। बच्चों की पढ़ाई छुड़वाने की बजाय उन्हें पढ़ने के लिए उत्साहित करना चाहिए ताकि उनका भविष्य उज्ज्वल बने। लेखक का रवैया भी ठीक है कि पढ़-लिख कर सभी अपना भविष्य सुधार सकते हैं। वह पढ़ाई को लक्ष्य मानकर चलता है और अपनी कमजोरियों को हरा देता है।
6- दत्ताजी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता, तो आगे का घटनाक्रम क्या होता? अनुमान लगाएँ।
उत्तर– दत्ताजी राव से पिता दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ उनके घर गए तथा फिर उन्हें अपने आने की वजह साग-भाजी बताने कोकहा। लेखक ने दत्ताजी से अपनी तथा माँ के साथ हुई मुलाकात को गुप्त रखने के लिए कहा। अगर उन्होंने झूठ का सहारा नहीं लिया होता तो दत्ताजी राव के द्वारा अपनी पत्नी और बेटे की हरकत का पता चलते ही वह आग बबूला हो जाता और उसे बिलकुल भी नहीं पढ़ाता। हो सकता है वह अपनी पत्नी और बेटे को दूसरों से शिकायत करने की बात पर दण्ड देता। वह उन्हें घर से बाहर भी निकाल सकता था या फिर उनके बाहर निकलने पर पाबंदी लगा देता और लेखक हमेशा के लिए खेती और मजदूरी की चक्की में पिसता ।