फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ और गजल की व्याख्या, प्रश्न उत्तर आरोह भाग दो

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयां का भावार्थ या व्याख्या 


आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद भरी –
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ का प्रसंग – प्रस्तुत रुबाई हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित शायर ‘फिराक गोरख पुरी’ द्वारा रचित ‘रुबाइयाँ’ शीर्षक से उद्धृत है। इन पंक्तियों में शायर ने एक माँ के अपने बच्चे के प्रति वात्सल्य भाव को वर्णित किया है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ  का भावार्थ या व्याख्या– फिराक गोरखपुरी ने बच्चे की हँसी से माँ को मिलने वाली खुशी का वर्णन करते हुए कहा है कि माँ अपने आँगन के चाँद के टुकड़े अर्थात् अपने बच्चे को लिए खड़ी है। माँ बच्चे को अपने हाथों में झुलाती है तो कभी उसे अपनी गोद में भर लेती है। जब बच्चे को हवा में उछाल-उछालकर प्यार देती है, तो बच्चा खिलखिलाकर हँस पड़ता है। बच्चे की इसी खिलखिलाती हँसी से सारा आँगन हँसी से सराबोर हो जाता है। जो माँकी खुशी को और अधिक बढ़ा देता है। इस रुबाई में शायर ने बच्चे की तुलना चाँद से की है। जैसे आसमान का चाँद रात के अंधकार को समाप्त करके उसे चाँदनी से भर देता है, उसी प्रकार एक बच्चा भी अपनी हँसी से घर-परिवार तथा आँगन के दुख को खुशी में बदल देता है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- वात्सत्य रस का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से किया गया है।
2- बाल सुलभ क्रियाओं जैसे बच्चे का हँसना, उसे हाथों में झुलाना तथा उसकी गुँजती हँसी का सुंदर वर्णन किया गया है।

(ख) कला पक्ष

1- बच्चे की तुलना चाँद के टुकड़े से करके रूपक तथा उपमा अलंकार का प्रयोग किया है।
2- रह-रह में पुनरुक्ति प्रकाश अंलकार है। लोका देना तथा गोद भरना लोक प्रचलित शब्द है।
3- हिंदुस्तानी भाषा अर्थात हिन्दी-उर्दू व लोक भाषा का मिश्रण से भाव सहज व सरस बन जाते हैं।

नहला के छलके – छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ  का प्रसंग– पूर्ववत्। इस रुबाई में शायर ने वात्सल्य भाव से परिपूर्ण अनेक बाल सुलभ क्रियाओं से प्रसन्न माँ के विभिन्न भावों का वर्णन किया है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ  का भावार्थ या व्याख्या – एक माँ बच्चे से सम्बन्धित प्रत्येक कार्य से प्रसन्नता प्राप्त करती है। बच्चे को साफ स्वच्छ जल से स्नान करवाकर उसके उलझे हुए बालों में कंघी करके बड़े प्यार से उसके मुँह की ओर बार-बार देखती है, तो उसे परम आनन्द की अनुभूति होती है। उसे घुटनों में पकड़कर जब कपड़े पहनाए जाते हैं तो उससे भी माँ को प्रसन्नता ही प्राप्त होती है। हर बार बच्चा जब प्यार से अपनी माँ की ओर देखता है तो माँ की ममता बच्चे पर उमड़ पड़ती है। बच्चे के प्रति प्यार ओर बढ़ जाता है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ  का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- वात्सल्य भाव का सुंदर चित्रण है।
2- बच्चे की प्रत्येक गतिविधि से माँ की प्रसन्नता स्वाभाविक है। घुटनों में लेकर कपड़े पहनाना शायर की विशेष देन है।
3- नहलाना, उलझे बाल कंघी करना, कपड़े पहनाना, क्रमबद्ध कार्य हैं।

(ख) कला पक्ष –

1- छलके – छलके में पुनरुक्ति अंलकार है।
2- हिन्दी, उर्दू और लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
3- बाल सुलभ क्रियाओं के वर्णन से आँखों के सामने एक बच्चे का चित्र झूमने लगता है।
4- निर्मल जल में अनुप्रास अलंकार है।

दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ  का प्रसंग – प्रस्तुत रुबाई हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ के अन्तर्गत संकलित ‘रुबाइयाँ’ नामक शीर्षक से ली गई है। इसके शायर जनाब ‘फिराक गोरखपुरी’ जी है। गोरखपुरी जी ने इस रुबाई में दीवाली के परंपरागत त्यौहार और उससे उल्लास का सहज वर्णन किया है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ  का भावार्थ या व्याख्या – शायर कहते हैं कि दीवाली की शाम को सभी घर साफ स्वच्छ तथा लीपे-पोते हुए सुंदर लग रहे हैं। सभी अपने घरों को सजाने में लगे हुए हैं। चीनी के मीठे खिलौने तथा जगमगाने वाले खिलौने की भरमार है। चीनी के खिलौने भी जगमगा रहे हैं। चारों ओर खुशी का माहौल है। ऐसे वातावरण में बच्चों के बनाए हुए मिट्टी के घरों में भी दिए जलाकर उन्हें भी प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रकाश के इस उत्सव मेघर की सुन्दर स्त्रियों के चेहरे पर एक कोमल चमक आना स्वाभाविक है। दिए की लौ चेहरे पर पड़ने से चेहरे की लालिमा अधिक हो जाती है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ  का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष –

1- त्यौहार भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग हैं।
2- दिवाली त्यौहार पर बच्चों की खिलौनों की जिद्द पूरी की गई है। इस प्रकाश पर्व में मिट्टी के घरौंदों तक का प्रकाश के घरौंदों तक कोप्रकाशित करने वाली परम्परा को उजागर किया गया है।

(ख) कला पक्ष –

1- हिन्दी उर्दू मिश्रित शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
2- पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति की तुकबन्दी रुबाई की मूलमूत विशेषता है।

आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ  का प्रसंग – पूर्ववत् । इस रुबाई में बच्चे की जिद्द को पूरा करने के लिए एक माँ द्वारा चाँद को आइने में उतारने का वर्णन किया गया है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ का भावार्थ या व्याख्या– बाल-हठ हमारे लिए कोई नई बात नहीं है । आँगन में खेलता हुआ बच्चा चाँद लेने की जिद्द करता है। बच्चे के लिए चाँद केवल एक खिलौने के समान है। बच्चा चाँद रूपी इस खिलौने से खेलने को लालायित है। माँ इस बाल हठ के सामने विवश है। अंत में थक हार कर माँ बच्चे को समझाती है कि देखो, आसमान का चाँद तुम्हारे लिए इस शीशे में उतर आया है। । अब तुम चाहो तो इसके साथ खेल सकते हो।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- ‘मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों’ सूरदास के प्रसिद्ध पद का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।
2- ठुनकना, जिद्दाना और ललचाना बालहठ के लक्षण हैं।

(ख) कला पक्ष

1- चाँद का आइने में उतरना एक सुन्दर शब्द-चित्र है।
2- हिन्दी-उर्दू मिश्रित शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
3- पहली, दूसरी और चौथी पंक्तियों में तुकबंदी रुबाई की विशेषता है।

रक्षा-बंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ का प्रसंग – पूर्ववत् । इस रुबाई में शायर ने भाई-बहन के त्यौहार रक्षा-बंधन का वर्णन किया है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ का भावार्थ या व्याख्या– रक्षा-बंधन का त्यौहार प्रायः वर्षा ऋतु (श्रावन मास ) में ही आता है। वर्षा ऋतु में प्रकृति अपने यौवन पर होती है। ऐसे में रक्षा बंधन की सुबह प्रकृति के अनेक रसों से सराबोर (पुती हुई) दिखाई देना स्वाभाविक है। जैसे आसमान में घटाएँ धीरे-धीरे करके उस पर छा जाती हैं, उसी प्रकार भाई-बहन के प्यार से सारा वातावरण रस और प्रेम से भर जाता है। भाई के हाथ पर बंधी राखी की लड़ियाँ इस प्रकार चमकती हैं जैसे आसमान में छाए बादलों के बीच बिजली। राखी के गुच्छों की चमक बहन के लिए किसी उत्साह से कम नहीं होती है। राखी के गुच्छों की चमक बहन के जीवन को प्रकाशित करके उसका मार्ग दर्शन करती है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- रक्षा बंधन भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है।
2- प्रकृति के उद्दीपन रूप का वर्णन किया गया है।
3- रक्षा बंधन का प्रकृति से समन्वय दर्शनीय है।

(ख) कला पक्ष

1- हल्की-हल्की में पुनरुक्ति प्रकाश अंलकार है।
2- सुबह को रस से पोतना एक अद्वितीय उदाहरण है।
3- राखी और बिजली की तुलना में उपमा अलंकार है।
4- भाषा सरल, सहज और सरस है।

फिराक गोरखपुरी के गज़ल का भावार्थ या व्याख्या 

नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोलें हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोलें हैं।

फिराक गोरखपुरी के गजल का प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित ‘गजल’ शीर्षक से ली गई हैं। इनके रचयिता ‘फ़िराक गोरखपुरी’ जी हैं। शायर नेइन पंक्तियों में प्रकृति के आलम्बन रूप वसन्त ऋतु का वर्णन किया है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का भावार्थ या व्याख्या – शायर कहते हैं कि प्रकृति के नौ रसों के प्रभाव के कारण पेड़-पौधों की कलियों की पंखुडियाँ अपनी कोमल गांठों को खोलने लगी हैं अर्थात् सभी कलियाँ फूल बन जाने के लिए तत्पर हैं। बाग की सभी कलियों के फूल बन जाने के बाद फूलों के रंग और खुशबू भी चारों तरफ फैलने के लिए अपने पंख खोलने लगे हैं। लोक प्रचलित बोली में बसन्त ऋतु के सुहावने मौसम को नौरस भी कहा जाता है। इस ऋतु में सभी पेड़-पौधों में नए पत्ते और फूल आने से वातावरण रंगों और खुशबू से भर जाता है। प्रकृति में नए रस स का संचार हो जाता है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का काव्य सौंदर्य

(क) भाव पक्ष

1- प्रकृति का आलम्बन विभाव वर्णित है।
2- रंग और बू (खुशबू) का मिश्रण अधिक रोचक है।
3- कोमल भावनाओं का वर्णन गज़ल का सहज गुण है।

(ख) कला पक्ष

1- उर्दू के शब्दों की प्रधानता है।
2- ‘या’ शब्द शायर के संशय को दर्शाता है।
3- पंक्तियों के अंत में तुकबंदी होने से गेयता का गुण विद्यमान है।

तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा जर्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो ! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं

फिराक गोरखपुरी के गजल का प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित फिराक गोरखपुरी की ‘गज़ल’ से ली गई हैं। शायर ने इन पंक्तियों में रात कावर्णन किया है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का भावार्थ या व्याख्या– रात का वर्णन करते हुए शायर लिखते हैं कि इस समय प्रकृति का कण-कण सोया हुआ है। चारों ओर खामोशी और सन्नाटा है। ऐसे सन्नाटे में केवल एक ही क्रिया चल रही है- तारों का टिमटिमाना। रात के इस सन्नाटे में तारों का आँखें झपकाना शायर को कुछ संदेश देता, कुछ बोलता दिखाई पड़ता है। प्रकृति किसी भी समय शिथिल और गतिहीन नहीं होती, सदा गतिशील रहती है। शायर ने सम्बोधित किया है कि मित्रों! रात के इस सन्नाटे में हमें तारों की तरह टिमटिमाना चाहिए अर्थात विपरीत परिस्थितियों में भी गतिशील रहने की सीख लेनी चाहिए।

फिराक गोरखपुरी के गजल का काव्य – सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- सन्नाटे का बोलना प्रकृति के उद्दीपन रूप को दर्शाता है। 

2- सम्बोधन शैली के कारण पाठकों-श्रोताओं से लगाव बढ़ता है।

(ख) कला पक्ष-

1- ज़र्रा-ज़र्रा में पुनरुक्ति अंलकार है। सन्नाटे का बोलना विरोधाभास अलंकार है।
2- गेयता का गुण विद्यमान है।
3- पूरे पद में मानवीकरण अलंकार की अद्भुत छटा है’।हिन्दी और उर्दू के मिश्रित शब्दों का प्रयोग हुआ है।

हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।

फिराक गोरखपुरी के गजल का प्रसंग – पूर्ववत् । इन पंक्तियों में शायर ने भाग्य और व्यक्ति के पुरुषार्थ में समन्वय दिखाने का प्रयास किया है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का भावार्थ या व्याख्या– फिराक गोरखपुरी जी कहते हैं कि हमें और हमारी किस्मत दोनों को एक दूसरे पर रोने का कार्य मिला है। कहा जाता है कि भाग्य व्यक्ति के पुरुषार्थ से ही बनता है। व्यक्ति भाग्य का निर्माता स्वयं होता है। ऐसे में यदि व्यक्ति पुरुषार्थ करना छोड़ दे तो भाग्य उस पर रोता है कि मुझे बनाने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है। कर्महीन व्यक्ति यह सोचकर, कि मुझे जो कुछ मिलेगा, वह मेरे कर्मों से नही भाग्य से मिलेगा, बैठा रहता है। व्यक्ति और भाग्य दोनों ही व्यक्ति के पुरुषार्थ पर ही आधारित हैं। दोनों को एक दूसरे पर रोने से बचाना है तो व्यक्ति को पुरुषार्थ करना अनिवार्य है। कर्महीन व्यक्ति अपनी असफलता को भाग्य की विडम्बना कहकर उस पर रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं करता ।

(क) भाव पक्ष

1- कर्महीनता को छोड़ने का संदेश परोक्षरूप से दिया गया है।
2- पुरुषार्थ से व्यक्ति अपना भाग्य स्वयं बनाता है।

(ख) कला पक्ष

1- किस्मत का रोना मानवीकरण अंलकार है।
2- अनुप्रास अंलकार का प्रयोग किया गया है।

जो मुझको बदनाम करे है काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोलें हैं या अपना परदा खोलें हैं

फिराक गोरखपुरी के गजल का प्रसंग – पूर्ववत् । इन पंक्तियों में शायर ने दूसरों की निंदा करने की कुप्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है। दूसरों की निंदा अर्थात् चुगली करने में व्यक्ति अपनी नीच प्रवृत्ति और छोटी सोच को ही प्रदर्शित करता है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का भावार्थ या  व्याख्या– शायर कवि कहते हैं कि जो लोग मेरी बदनामी करने में लगे हुए हैं। मेरी बुराइयों को दूसरों के सामने प्रकट करने में अपनी शक्ति को नष्ट कर रहे हैं। काश भगवान उन्हें ऐसी सद्बुद्धि दे जिससे वे सोच सकें कि दूसरे की बुराई करके हम चुगली करने की अपनी ही छुपी हुई कुवृत्ति को उजागर कर रहे हैं। व्यक्ति अपने अवगुण, अपनी कायरता और अपने ने अहं की तुष्टि के लिए दूसरों की निन्दा जैसा घृणित कार्य करता है।दूसरे के परदे खोलना अपने आप में ही एक निन्दनीय और तुच्छ कार्य है। किसी की निन्दा करके हम उसको कभी कोई हानि नहीं पहुँचा सकते, बल्कि उल्टा अपना ही नुकसान करते हैं।

फिराक गोरखपुरी के गजल का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष –

1- पर निन्दा एक सामाजिक अपराध है जिसे जाने अनजाने हम सभी कर जाते हैं।
2- चुगली करने जैसी बुरी आदत से बचने की सलाह दी गई है।

(ख) कला पक्ष

1- भाषा सरल सरस और प्रवाहपूर्ण है।
2- ‘या’ शब्द निन्दक को अपने घृणित कार्य पर सोचने को विवश करता है।
3- ‘सोच सके’ में अनुप्रास अलंकार है ।
4- ‘परदा खोलना’ मुहावरे का प्रयोग अति सुन्दर है।

ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं

फिराक गोरखपुरी के गजल का प्रसंग – पूर्ववत् । इन पंक्तियों में कवि ने प्यार की कीमत अदा करने की बात कही है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का भावार्थ या व्याख्या – प्यार एक अनमोल और अतुलनीय भावना है। किसी अन्य वस्तु से इसकी तुलना करना व्यर्थ है। शायर प्यार की कीमत अपनी बदनामी के रूप में पूरे विवेक के साथ कर रहा है। अपना प्यार प्राप्त करने के लिए उसे यदि समाज में बदनामी का कष्ट भी सहना पड़े तो स्वीकार है।अपने प्रियतम से प्यार पाने के लिए, उसका सौदा करने के लिए दीवानापन अर्थात पागलपन की सीमा तक जाने के लिए तैयार है। पागल प्रेमी समाज की कभी परवाह नहीं करता। उसका मुख्य उद्देश्य तो केवल प्रेमी तक ही सीमित रहता है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

प्रेमी अपने प्रेम की कोई भी कीमत चुका सकता है। यह प्रेमी का भोलापन ही है जो कीमत अदा करता है, सौदा भी करता है और दीवाना भी हो जाता है ।

(ख) कला पक्ष

1- बदुरुस्ती – ए – होशो हवास उर्दू का सुंदर प्रयोग है।
2- दीवानापन तथा होशो हवास में विरोधाभास है, होशोहवास के होते हुए दीवानेपन की स्थिति नहीं बन सकती ।
4- उर्दू शब्दों के प्रयोग से गज़ल में उर्दू की स्वाभाविक मिठास प्रवाहित हो रही है ।

तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं

फिराक गोरखपुरी के गजल का प्रसंग – पूर्ववत् । इन पंक्तियों में शायर ने कहा है कि प्यार के दर्द को व्यक्ति किसी के सामने व्यक्त नहीं कर सकता। उसे चुपके-चुपके रोने को विवश होता है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का भावार्थ या व्याख्या– जिस प्रेम को व्यक्ति सब कुछ खोकर प्राप्त करता है, उसके वियोग का दुख असहनीय हो जाता है। व्यक्ति दुविधा में फंस जाता है।जहाँ एक ओर प्रियतम की यादें भुला नहीं पाता, दूसरी ओर उन यादों को लोकलाज के भय के कारण किसी के सामने प्रकट भी नहीं कर सकता।समाज तो प्रेम करने वालों को सदा से ही दुश्मन के रूप में देखता आया है। वियोग के दर्द को छुपाना और ऊपर से रोने की मनाही प्रेमी के दुख को कई गुना बढा देती है। इसलिए प्रेमी को रोना भी चुपके-चुपके ही पड़ता है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- प्रेमी के दुख और दुविधा का सुदंर वर्णन है।
2- लोकलाज के भय से व्यक्ति दर्द में भी खुलकर नहीं रो सकता।
3- प्यार की यह सबसे बड़ी हार होती है। गज़ल में वर्णित वियोग वर्णन हिन्दी कवि बिहारी के वियोग वर्णन की याद दिलाता है।

(ख) कला पक्ष

1- पूरी गज़ल में गेयता का गुण विद्यमान है।
2- चुपके-चुपके रोना में विरोधाभास अलंकार है।
3- चुपके-चुपके में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है ।

फितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं

फिराक गोरखपुरी के गजल का प्रसंग – पूर्ववत्। इन पंक्तियों में शायर ने हुस्न और इश्क के संतुलन के नियम की व्याख्या की है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का भावार्थ या व्याख्या– इस संसार में सुन्दरता और प्रेम के संतुलन की यह आदत अभी भी प्रचलित है कि प्रेमी अपने प्रेम में जितना अधिक डूब जाता है, उतनी ही अधिक मात्रा में प्रेम को प्राप्त कर लेता है। कहने का अभिप्राय है कि प्रेमी सांसारिक बंधनों को छोड़कर जितना भी इनसे दूर होता चला जाएगा वह उतना ही अपने प्रेम को पाने का अधिकारी हो जाता है। प्रेम की चरम सीमा पर जाकर तो व्यक्ति स्वयं को भूल जाता है उसे केवल अपने प्रेमी की सत्ता का ही आभास शेष रह जाता है। त्याग ही प्रेम का दूसरा नाम है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- हिन्दी साहित्य की ‘जो डूबे से तरे, सो डूबे’ तथा ‘जिन ढुंढया तिन पाइया, गहरे पानी पैठी पंक्तियों से समानता दिखाई पड़ती है।
2- कबीरदास के रहस्यवाद की स्पष्ट झलक है। सौन्दर्य और प्रेम के संबंध पर प्रकाश डाला गया है।

(ख) कला पक्ष

1- हिन्दी की अपेक्षा उर्दू शब्दों की अधिकता प्रेम के प्रवाह को बढ़ाने में सफल हुई है।
2- खुद को खोकर पाना कबीरदास की उल्टबासियों से मिलता जुलता प्रयोग है। विरोधाभास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

आबो-ताब अशआर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं

फिराक गोरखपुरी के गजल का व्याख्या – फिराक गोरखपुरी पाठक को कहते हैं कि आपको शायरी की बाहरी चमक-दमक पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए। शायरी की असली सुंदरता उसके अर्थ में निहित होती है। शायर पाठक से यह आशा रखते हैं कि इस विषय में पाठक अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए शायरी की बाह्य चमक-दमक से बचे रहेंगे। पाठक शेरों की चमक से प्रभावित हुए बिना उसके उत्पन्न रस रूपी मोतियों को इक्ट्ठा करने का प्रयास करेंगे।सीप का आंतरिक भाग ही मोती होता है । पाठ्क को बाह्य खोल सीप की अपेक्षा उसके आंतरिक भाग मोती को समेटने का प्रयास करना चाहिए।

फिराक गोरखपुरी के गजल का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

शायरी के आंतरिक पक्ष के सौंदर्य को उभारने का प्रयास किया गया है। बाह्य सौंदर्य की अपेक्षा अंत: सौंदर्य को अधिक महत्त्व दिया गया है।

कला पक्ष

1- आँखें रखना और मोती रोलना मुहावरों का प्रयोग किया गया है।
2- उर्दू शब्दावली की प्रधानता है।
3- गेयता की गुण स्वाभाविक है।

ऐसे में तू याद पै आये है अंजमने-मय में रिंदों को
रात गये गर्दू पै फ़रिश्ते बाबे – गुनह जग खोले हैं

फिराक गोरखपुरी के गजल का प्रसंग – पूर्ववत् । इन पंक्तियों में शायर ने शराब में डूबे प्रेमी को आकाश के देवता के समान बताया है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का व्याख्या– अपने प्रियतम से बिछुड़ने के दर्द को प्रेमी अक्सर शराब के नशे में डूब कर उसकी यादों से छुटकारा पाने का प्रयास करता है। शराब की महफिल में बैठे एक शराबी को उसके प्रियतम से वार्तालाप और उसके कार्य याद आते हैं, जिन्हें वह भुलाना चाहता है। वियोग में व्यक्ति अकेला हो जाता है। महफिल में बैठा प्रेमी अपने प्रियतम की बीती यादों का स्मरण करके उनका इस प्रकार अध्ययन करता जैसे कि रात के समय आकाश में बैठे देवतागण संसार के पापों का अध्ययन कर रहे हों। सच्चे प्रेम की अभिव्यक्ति वियोग में ही परिलक्षित होती है। वियोग में प्रेमी और प्रियतम की भावनाओं का एकीकरण उन्हें देवता से भी ऊँचे पद का अधिकारी बना देता है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- श्रृंगार रस का वियोगपूर्ण वर्णन किया गया है।
2- ‘गर्दू पै फरिश्ते’ इस्लाम दर्शन का मूलाधार है।
3- ‘रात में दुख की अधिकता होती है’ ऐसी अनुभूति हिन्दी साहित्य में प्रचुर मात्रा में मिलती है।
4- दुख और दर्द की अनुभूति गज़ल की प्रमुख विशेषता है।

कलापक्ष

1- उर्दू शब्दों की प्रधानता के कारण उर्दू का स्वाभाविक मिठास प्रवाहित है।
2- गेयता का गुण विद्यमान है। शराबी को देवता कहने से उपमा अलंकार का आभास होता है।

सदके फ़िराक एज़ाज़े-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
इन गज़लों के परदों में तो ‘मीर’ की गज़लें बोले हैं

फिराक गोरखपुरी के गजल का प्रसंग – पूर्ववत्। अन्तिम पंक्तियों में फिराक गोरखपुरी ने अपनी गज़लों की तुलना मीर की गज़लों से की है।

फिराक गोरखपुरी के गजल का भावार्थ या व्याख्या – उर्दू शायरी की एक परम्परा है अन्त में कवि/शायर का नाम अपनी रचना में समाहित करना । गोरखपुरी ने इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए पाठक से अपनी गज़ल पर न्यौछावर होने की बात कही है। उर्दू के प्रमुख शायर मीर और गालिब की गज़लों में संवाद शैली और लाक्षणिक प्रयोग प्रमुख रहे हैं। गोरखपुरी ने भी आमजन की बात को इसी शैली में आगे बढ़ाकर अपनी गज़लों में इन्हीं शायरों जैसा दर्द पैदा किया है। यही कारण है कि शायर अपनी शायरी को बेहतरीन मानते हुए मीर की गज़लों जैसा बताते हैं। अपनी गजलों में उन्हें मीर की गज़लों के बोल सुनाई पड़ते हैं।

फिराक गोरखपुरी के गजल का काव्य-सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- फ़िराक गोरखपुरी की शायरी वास्तव में मीर और गालिब से समानता की सामर्थ्य रखती है।
2- व्यक्ति अपनी रचना का सबसे बड़ा आलोचक स्वयं होता है।

(ख) कला पक्ष

1- उर्दू के शब्दों की प्रमुखता है।
2- पूरी गज़ल में गेयता का गुण है।
3- रचना में अपना नाम जोड़ना हिन्दी साहित्य के लिए नया प्रयोग है।
4- भाषा सरल, सहज और सरस है।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ और गजल के प्रश्न उत्तर 


1- शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?

उत्तर– सावन मास में काली घटाओं के बीच चमकती हुई बिजली मुर्दों में भी अनेक भावनाओं का संचार कर देती है। शायर को राखी के लच्छे मेंबिजली की चमक दिखाई पड़ती है, जो भाई-बहन के प्रेम में आई हुई शिथिलता को नष्ट करके उसमें नए उत्साह और उल्लास का संचार करतीहै। क्योंकि सावन का जो संबंध घटा से है- घट जो संबंध बिजली से है-वही संबंध भाई का बहन से है।

2- खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?

उत्तर– मनुष्य का स्वभाव है कि अपनी बुराई व कमजोरी को छुपाता है तथा दूसरों की कमजोरी व दुर्गुण को उजागर करके खुशी का अनुभव करताहै। उस समय वह इस कमजोरी को छुपाता है तथा को मार अपने करी आदत के कारण) रहस्य स्वयं ही दूसरे के सामने प्रकट कर रहा है। दूसरे का परदा खोलने का सीधा सा अर्थ होता है कि हम स्वयं अपना परदा खोलने में लगे हुए हैं। चुगली करने की हमारी बुरी आदत बिना बताए ही दूसरे के सामने प्रकट हो जाती है।

3- किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं- इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तना-तनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा कीजिए ।

उत्तर– भाग्य पुरुषार्थ से बनता है। पुरुषार्थहीन मनुष्य भाग्य के सहारे सब कुछ पाने की आशा रखते हैं लेकिन जब मुफ्त में कुछ प्राप्त नहीं होता तो वह अपनी किस्मत पर रोता है कि उसे भाग्य के प्रताप से कुछ प्राप्त नहीं हुआ। भाग्य उस कर्महीन व्यक्ति पर रोता है कि क्यों यह व्यक्ति मेहनत नहीं करता। भाग्य हमारे पूर्वजन्म के कर्मों का नहीं बल्कि वर्तमान प्रयासों के फल का दूसरा नाम है। वर्तमान में बिना पुरुषार्थ के कुछ भी प्राप्त करना सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में भाग्य और व्यक्ति दोनों एक दूसरे पर रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकते और दोनों में तनातनी चलती रहती है।

टिप्पणी करें

(क) गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता ।
(ख) सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व ।

उत्तर

(क) गगन के चाँद और गोदी के चाँद अर्थात पुत्र में गहरी समानता है । गगन का चाँद रात्री के अंधकार का नाश करके उसे शीतलता प्रदान करताहै। गोदी का चाँद उसकी माँ के मन में सूनेपन को समाप्त करके उसे वात्सल्य रूपी शीतलता प्रदान करता है। मनुष्य प्रकृति के सामने खिलौने सेअधिक कुछ भी नहीं है, इसी प्रकार गोदी का चाँद यानि बच्चा भी गगन के चाँद को एक खिलौना समझकर उससे खेलने की जिद्द करता है। दादीमाँ की कहानियों में गगन के चाँद को गोदी के चाँद का मामा माना गया है- चंदा मामा। एक प्राकृतिक सौन्दर्य है तो दूसरा मानवीय सौन्दर्य ।

(ख) सावन मास में वर्षा ऋतु होती है। आसमान में छाई हुई काली घटाओं से सारा वातावरण मदहोशी से भर जाता है। रक्षा बंधन पर्व के समय भाई-बहन के प्रेम की महक सारे वातावरण को खुशी और उल्लास से परिपूर्ण कर देती है । काली घटाओं से हर समय वर्षा की उम्मीद होती है। रक्षाबंधन भाई और बहन के प्रेम का पर्व है। जैसे भाई, बहन को उसकी रक्षा का वचन देता है, वैसे ही सावन की घटाओं की प्यार की वर्षा के बिना भी जीवन अधूरा है। सावन की घटाएँ भी मानव जीवन की रक्षा का वचन देती हैं।

फिराक गोरखपुरी की रुबाइयाँ और गजल कविता के आसपास


1. इन रुबाइयों से हिंदी, उर्दू और लोक भाषा के मिले-जुले प्रयोगों को छाँटिए ।

उत्तर

हिन्दी– रूपवती, आँगन, गूँज उठती है खिल-खिलाते बच्चे की हँसी, किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को ।

उर्दू – गेसुओं, घरौंदे, ज़िदयाया, नर्म दमक।

लोकभाषा– पिन्हाती, घुटनियों, पुते, पें घटा, लच्छे, लोका देती हैं, कंघी करके, जगमगाते लावे, भाई के है बाँधती, दह, कारक, के छलके छलकेआदि।

2. फ़िराक ने सुनो हो, रक्खो हो आदि शब्द मीर की शायरी के तर्ज पर इस्तेमाल किए हैं। ऐसी ही मीर की कुछ गज़लें ढूँढ कर लिखिए।


उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करें।

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