देशभक्त चंद्रशेखर के हिंदी अनुवाद को पढ़ेंगे। देशभक्त चंद्रशेखर up board क्लास 10 के अंतर्गत आता है। Deshbhakt chandrashekhar ka anuvad राष्ट्रप्रेम ki भावना से प्रेरित पाठ है।
स्थानम्-वाराणसीन्यायालयः, न्यायाधीशस्य पीठे एकः दुर्धर्षः पारसीकः तिष्ठति, आरक्षकाः चन्द्रशेखरं तस्य सम्मुखम् आनयन्ति। अभियोगः प्रारभते। चन्द्रशेखरः पुष्टाङ्गः, गौरवर्णः, षोडशवर्षीयः किशोरः ।)
अनुवाद – स्थान- वाराणसी न्यायालय के न्यायाधीश पद पर एक दुष्ट पारसिक बैठा है। सिपाही चंद्रशेखर को उसके सामने लाते हैं। मुकदमा प्रारंभ होता है। चंद्रशेखर मजबूत अंगों वाला गौर वर्ण का सोलह वर्षीय किशोर है।
आरक्षक: श्रीमन् ! अयम् अस्ति चन्द्रशेखरः। अयं राजद्रोही। गतदिने अनेनैव असहयोगिनां सभायाम् एकस्य आरक्षकस्य दुर्जयसिंहस्य मस्तके प्रस्तरखण्डेन प्रहारः कृतः येन दुर्जयसिंहः आहतः।
अनुवाद– सैनिक कहता है कि श्रीमान यह चंद्रशेखर है। यह राजद्रोही है। पिछले दिनों असहयोगियों की सभा में एक आरक्षी दुर्जय सिंह के मस्तक पर पत्थर के टुकड़े से इसने प्रहार किया जिससे दुर्जय सिंह घायल हो गया।
न्यायाधीश: (तं बालकं विस्मयेन विलोकयन्) रे बालक ! तव किं नाम ?
अनुवाद– न्यायाधीश (आश्चर्य से उस बालक को देखकर) हे बालक तुम्हारा नाम क्या है।
चंद्रशेखर:- आजादः (स्थिरीभूय)।
चंद्रशेखर– मेरा नाम आजाद है (स्थिर मन से)
न्यायाधीश:- तव पितुः किं नाम ?
न्यायाधीश– तुम्हारे पिता का क्या नाम है?
चंद्रशेखर:- स्वतन्त्रः ।
चंद्रशेखर– मेरे पिता का नाम स्वतंत्र है।
न्यायाधीश:- त्वं कुत्र निवससि ? तव गृहं कुत्रास्ति ?
न्यायाधीश– तुम कहां निवास करते हो? तुम्हारा घर कहां है?
चंद्रशेखर: कारागार एव मम गृहम्।
चंद्रशेखर– कारागार ही मेरा घर है।
न्यायाधीश-: (स्वगतम्) कीदृशः प्रमत्तः स्वतन्त्रतायै अयम् ? (प्रकाशम्) अतीव धृष्टः, उद्दण्डश्चायं नवयुवकः
न्यायाधीश– (मन में) स्वतंत्रता के लिए यह कितना मतवाला है। (प्रकट रुप से) यह नवयुवक बहुत ही दुष्ट और उद्दंड है।
न्यायाधीश:- अहम् इमं पञ्चदश कशाघातान् दण्डयामि।
न्यायाधीश– मैं इसे पंद्रह कोड़े मारने का दण्ड देता हूं।
चंद्रशेखर:- नास्ति चिन्ता।
चंद्रशेखर– कोई चिंता नहीं।
(ततः दृष्टिगोचरो भवतः कौपीनमात्रावशेषः, फलकेन दृढं बद्धः चन्द्रशेखरः, कशाहस्तेन चाण्डालेन अनुगम्ययेन कारावासाधिकारी गण्डासिंहश्च।)
इसके पश्चात् लंगोटमात्र पहने हुए दृढ़ता से बंधे हुए चंद्रशेखर के पीछे चांडाल कोड़े को हाथ में लेकर कारावास अधिकारी गंडा सिंह के साथ चलता है।
गंडासिंह– (चाण्डालं प्रति) दुर्मुख! मम आदेशसमकालमेव कशाघातः कर्त्तव्यः । (चन्द्रशेखरं प्रति) रे दुर्विनीत युवक ! लभस्व इदानीं स्वाविनयस्य फलम्। कुरु राजद्रोहम्। दुर्मुख ! कशाघातः एकः (दुर्मुखः चन्द्रशेखरं कशया ताडयति)।
गंडासिंह– (चांडाल को देखकर) हे दुर्मुख इस समय मेरे आदेशानुसार कोड़े मारने का काम करो। (चंद्रशेखर की तरफ देखकर) हे दुष्ट युवक इस समय अपने धृष्टता का फल प्राप्त करो। राजद्रोह करो। हे दुर्मुख एक कोड़े इसे लगाओ। (दुर्मुख चंद्रशेखर को कोड़े से मारता है।)
चंद्रशेखर: जयतु भारतम् ।
चंद्रशेखर– भारतमाता की जय।
गंडासिंह– दुर्मुख ! द्वितीयः कशाघातः। (दुर्मुखः पुनः ताडयति।) ताडितः चन्द्रशेखरः पुनः पुनः ‘भारतं जयतु’ इति वदति। (एवं स पञ्चदशकशाघातैः ताडितः) यदा चन्द्रशेखरः कारागारात् मुक्तः बहिः आगच्छति, तदैव सर्वे जनाः तं परितः वेष्टयन्ति, बहवः बालकाः तस्य पादयोः पतन्ति, तं मालाभिः अभिनन्दयन्ति च।
गंडासिंह– हे दुर्मुख दूसरा कोड़ा लगाओ। (दुर्मुख पुनः कोड़े मारता है।) मार खाता हुआ चंद्रशेखर बार-बार भारतमाता की जय बोलता है। (इस प्रकार से पंद्रह कोड़े की मार उन पर पड़ती है।) जब चंद्रशेखर कारागार से।मुक्त होकर बाहर आते हैं तो सभी लोग उन्हें चारो तरफ से घेर लेते हैं। बहुत से बालक उनके पैर छूते हैं और फूल-मालाओं से उनका स्वागत होता है।
चंद्रशेखर: किमिदं क्रियते भवद्भिः? वयं सर्वे भारतमातुः अनन्यभक्ताः। तस्याः शत्रूणां कृते मदीयाः इमे रक्तबिन्दवः अग्निस्फुलिङ्गाः भविष्यन्ति।
(‘ जयतु भारतम्’ इति उच्चैः कथयन्तः सर्वे गच्छन्ति)
चंद्रशेखर– अपलोग यह क्या कर रहे हो ? हम सब भारतमाता के अनन्य भक्त हैं। उस शत्रुओं के लिए हमारे रक्त की एक-एक बूंद अग्नि की ज्वाला बनकर धधक पड़ेगी।
(भारतमाता की जय ऐसा उच्च स्वर में कहते हुए सभी चले जाते हैं।)
सभी सहृदयों को सादर नमन ज्ञापित करता हूँ तथा अंतर्मन से उनका हार्दिक अभिनंदन एवं वंदन करता हूँ| मैं हिन्दी से डॉक्टरेट हूँ | हिन्दी संबंधी ज्ञान के आदान-प्रदान में मेरी रुचि है|