चींटी कविता की व्याख्या / chiti kavita ki vyakhya class 10

इस भाग में हमलोग चींटी कविता के भावार्थ और व्याख्या को समझेंगे। चींटी कविता कक्षा 10 up board से लिया गया है। Explain of chiti Kavita class 10

संदर्भ– चींटी कविता सुमित्रानंदन पंत के काव्य संग्रह युगवाणी से लिया गया है।

चींटी कविता का उद्देश्य प्रसंग– चींटी कविता में कवि व्यक्ति को निरंतर अपने कार्य में लगे रहने की प्रेरणा देता है। चींटी जैसे छोटे जीव के माध्यम से कवि व्यक्ति को प्रेरित करने का काम किया है। व्यक्ति को अपने जीवन में हार से या समस्या से कभी भी उदास नहीं होना चाहिए।

चींटी कविता की व्याख्या / chiti kavita vyakhya class 10

चींटी को देखा ?
वह सरल, विरल, काली रेखा
तम के तागे सी जो हिल-डुल
चलती लघुपद पल-पल मिल-जुल
वह है पिपीलिका पाँति !
देखो ना, किस भाँति काम करती वह संतत !
कन-कन कनके चुनती अविरत !

चींटी कविता की व्याख्या – कवि कहता है कि एक दिन मैंने चींटी को सरल, घनी और काली रेखा में चलते हुए देखा, जो काले धागे के समान छोटे-छोटे पैरों से मिलजुल कर चल रही थी। उन चींटियों की पंक्तियों को मैने देखा कि किस भांति वह निरंतर भोजन के कण-कण को चुन रही थी।

गाय चराती,
धूप खिलाती,
बच्चों की निगरानी करती,
लड़ती, अरि से तनिक न डरती,
दल के दल सेना सँवारती,
घर आँगन, जनपथ बुहारती !

चींटी कविता की व्याख्या – चिटी अपने बच्चे को घुमाती है। साथ-ही-साथ वह अपने बच्चों की निगरानी करती है। वह शत्रुओं से डटकर लड़ जाती है। बिलकुल थोड़ा भी नहीं डरती है। वह अपने परिवार के सदस्यों को बनाकर रखती है। चिटी अपने घर को सदैव साफ सुथरा रखती है।

चींटी है प्राणी सामाजिक,
वह श्रमजीवी, वह सुनागरिक !

व्याख्या- कवि कहता है कि चिटी एक सामाजिक प्राणी है। यह बहुत ही परिश्रमी और एक सभ्य नागरिक की भूमिका का निर्वहन करती है। अर्थात् उसमें एक अच्छे नागरिक के सभी गुण विद्यमान हैं।

देखा चींटी को ?
उसके जी को ?
भूरे बालों की सी कतरन,
छिपा नहीं उसका छोटापन,
वह समस्त पृथ्वी पर निर्भय
विचरण करती, श्रम में तन्मय,
वह जीवन की चिनगी अक्षय !

चींटी कविता की व्याख्या- मैने चिटी को और उसके भाव को देखा। वह भूरे-भूरे बालों के समान कपड़े के टुकड़ों में बिखरी दिखाई दे रही थी। चिटी से किसी का छोटापन नहीं छिपा है। अर्थात् सबलोग जानते हैं कि चिटी बहुत ही छोटी है। श्रम में निरंतर लगी हुई चिटी पूरे पृथ्वी पर निर्भय होकर घूमती रहती है। कभी न समाप्त होने वाली चिंगारी के रूप में चींटी चमचमाती रहती है।

वह भी क्या देही है, तिल-सी?
प्राणों की रिलमिल झिलमिल सी !
दिन भर में वह मीलों चलती,
अथक, कार्य से कभी न टलती।।

चींटी कविता की व्याख्या – चींटी का शरीर तिल के समान बहुत ही छोटा है। उसके प्राण उसका साथ कभी भी छोड़ सकते हैं। दिनभर में वह कई मिल की दूरी बिना थके हुए तय कर लेती है। किसी भी कठिन से कठिन कार्य से वह कभी भी नहीं डरती है।

चींटी कविता का काव्य सौंदर्य- 

1- इस कविता में शांत रस है।
2- इस कविता में लक्षणा शब्द शक्ति है।
3- भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है।
4- उपमा रूपक और अनुप्रास अलंकार है।

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