बापू के प्रति व्याख्या bapu ke prati vyakhya

बापू के प्रति कविता bapu ke prati kavita सुमित्रानंदन पंत के काव्य संग्रह युगान्त से लिया गया है। इस कविता की व्याख्या, भावार्थ एक्सप्लेन या सरल अर्थ को पढ़ेंगे।

महात्मा  गाँधी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का लेखा-जोखा देते हुए भारतीय जीवन में उनके व्यापक प्रभाव और भारतीय इतिहास को ही नहीं, अपितु विश्व इतिहास में उनकी देन को रेखांकित करते हुए कवि ने अपनी भावांजलि समर्पित की है। सत्य, अहिंसा, असहयोग, प्रेम के माध्यम से अन्याय, हिंसा और साम्राज्यवाद की मदान्ध शक्तियों को पराजित कर गाँधीजी ने जिस अभूतपूर्व आत्मबल का परिचय दिया, उसका महत्त्व भी प्रतिपादित किया है। यह रचना विश्व मानवता के इतिहास में गाँधीजी के योगदान का पूर्णतः परिचय देती है।

बापू के प्रति कविता की व्याख्या bapu ke prati vyakhya 

तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन हे
अस्थिशेष ! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण! हे चिर नवीन
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर
भावी की संस्कृति समासीन।

बापू के प्रति व्याख्या- कवि बापू को संबोधित करते हुए कहता है कि हे बापू तुम मांस और रक्त से हीन हो। तुम्हारा शरीर हड्डियों का ढांचा बना हुआ हड्डियों से हीन है। तुम ज्ञान के कारण पवित्र आत्मा वाले हो गए हो। तुम नवीन और प्राचीन को जोड़ने की एक कड़ी हो। तुम जीवन को पूर्ण इकाई हो। तुझमें असीम संसार समाया हुआ है। आने वाली संस्कृति जिन जीवन सिद्धांत को लेकर आगे बढ़ी है। उसका आधार सदैव के लिए अमर रहेगा

तुम मांस, तुम्हीं हो रक्त अस्थि-
निर्मित जिनसे नवयुग का तन,
तुम धन्य ! तुम्हारा निःस्व त्याग
है विश्व भोग का वर साधन;
इस भस्म काम तन की रज से
जग पूर्ण-काम नव जगजीवन,
बीनेगा सत्य-अहिंसा के
ताने-बानों से मानवपन !

बापू के प्रति व्याख्या- हे बापू तुम्हारे रक्त और अस्थि से नवयुग का शरीर बना हुआ है। हे बापू तुम धन्य हो और निस्वार्थ भाव से किया गया तुम्हारा त्याग धन्य है। संसार भोग विलास का श्रेष्ठ साधन है। काम वासना को समाप्त करके शरीर रूपी मिट्टी से नवीन जगजीवन की स्थापना की जो सत्य और पवित्र कर्म से ओतप्रोत है। इस प्रकार से मनुष्य सत्य अहिंसा रूपी धागे से मानवीय गुण रूपी वस्त्र को निर्मित करेगा।

सुख भोग खोजने आते सब,
आये तुम करने सत्य-खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन,
तुम आत्मा के, मन के मनोज !
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर
चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता का पंकज बना दिया
तुमने मानवता का सरोज !

बापू के प्रति व्याख्या- हे बापू इस संसार में सभी लोग सुख और भोग के साधन की खोज में लगे हुए हैं। लेकिन आप सत्य की खोज में लगे हुए हैं। संसार में रहने वाले लोग मिट्टी के पुतले के समान हैं। तुम्हारी आत्मा में मन रूपी कामदेव निवास करता है। हे बापू आपने जड़ता में चेतना, हिंसा में अहिंसा और स्पर्धा में नम्र ओज के भाव को भर दिया है। आपने अपने सिद्धांत से पाशविक कमल को मानवीय कमल में बदल दिया है।

पशु-बल की कारा से जग को
दिखलाई आत्मा की विमुक्ति,
विद्वेष घृणा से लड़ने को
सिखलाई दुर्जय प्रेम-युक्ति,
वर श्रम-प्रसूति से की कृतार्थ
तुमने विचार परिणीत उक्ति
विश्वानुरक्त हे अनासक्त,
सर्वस्व-त्याग को बना मुक्ति !

बापू के प्रति व्याख्या- संसार रुपी कारागार में बंद पाशविक शक्ति को हे बापू आपने आत्मा की मुक्ति का मार्ग दिखा दिया। द्वेष घृणा से लड़ने के लिए अजेय प्रेम युक्ति आपने सिखा दिया है। हे बापू कठोर श्रम से श्रेष्ठ विचारों को उत्पन्न जनमानस का कल्याण किया है। अनासक्त भाव से विश्व में अनुरक्त रहने वाले बापू आपने संपूर्ण त्याग को मुक्ति का मार्ग बना लिया है।

उर के चरखे में कात सूक्ष्म
युग-युग का विषय-जनित विषाद,
गुंजित कर दिया गगन जग का
भर तुमने आत्मा का निनाद।
रंग-रंग खद्दर के सूत्रों में,
नव जीवन आशा, स्पृहाह्लाद,
मानवी कला के सूत्रधार !
हर लिया यन्त्र कौशल प्रवाद !

बापू के प्रति व्याख्या- हे बापू आपने अपने हृदय रूपी चरखे में युग-युग से चले आ रहे विकार और कष्ट जनित निम्न विचारों को समाप्त कर दिया। चरखे में अपनत्व के भाव भरे रहने के कारण उससे निकलने वाली ध्वनि से संसार गुंजायमान हो जाता है। हृदय रूपी चरखे से जो व्यवहार रूपी खद्दर का कपड़ा बनाता है उसमें आशा, इच्छा और उल्लास के भाव भरे रहते हैं। हे बापू आप मानवीय जीवन के सूत्रधार हो आपने अपने जीवन सिद्धांत से यांत्रिक विकास के कारण फैले हुए अहंकार के भाव को हर लिया।

साम्राज्यवाद था कंस, बन्दिनी
मानवता, पशु-बलाऽक्रान्त,
श्रृंखला-दासता, प्रहरी बहु
निर्मम शासन-पद शक्ति-भ्रान्त,
कारागृह में दे दिव्य जन्म
मानव आत्मा को मुक्त, कान्त,
जन-शोषण की बढ़ती यमुना
तुमने की नत, पद-प्रणत शान्त !

बापू के प्रति व्याख्या- कंस के शासन के समान ब्रिटिश साम्राज्य था। मानवता बंदी रूप में बंद थीं। चारो तरफ दासता की बेड़ियों से बंधकर लोग पाशविक शक्तियों से कराह रहे थे। भ्रमित शक्ति के निर्मम शासन में प्रहरी बहुत सारे थे। हे बापू मानव आत्मा को स्वतंत्र और प्रेम युक्त कराने के लिए, लोगों को दासता से मुक्त कराने के लिए कृष्ण के समान आपने जेल रूपी परतंत्र देश में जन्म लिया। आपने बढ़ती हुई शोषण रूपी यमुना को शान्त कर दिया। आपके विचारों से प्रेरित होकर लोग आपके चरणों में झुक गए।

कारा थी संस्कृति विगत, भित्ति
बहु धर्म-जाति-गति रूप-नाम,
बन्दी जग-जीवन, भू-विभक्त
विज्ञान-मूढ़, जन प्रकृति-काम;
आये तुम मुक्त पुरुष, कहने-
मिथ्या जड़ बन्धन, सत्य राम,
नानृतं जयति सत्यं मा भै,
जय ज्ञान-ज्योति, तुमको प्रणाम !

बापू के प्रति व्याख्या- अंग्रेजी हुकूमत में पुरानी संस्कृति और सभ्यता कारागार में बंद थी। धर्म, जाति और रूप के आधार पर विविध प्रकार की दीवारे हैं। संसार के लोगों का जीवन बंदी है। विज्ञान की प्रगति के कारण लोग प्रकृति का शोषण करते हैं। हे बापू तुम सांसारिकता से मुक्त हो। तुम जड़-चेतन के संबंध रूपी बंधन को मिथ्या जानते हो। सत्य केवल राम का ही नाम है। असत्य की जय नहीं होती है। सत्य बोलने से कभी नहीं डरना चाहिए। ज्ञान की ज्योति बापू आपकी जय और और आपको प्रणाम हो।

Leave a Comment

error: Content is protected !!