साहित्य इतिहास लेखन की परंपरा / hindi sahity ke etihas ka lekhan
सर्वाधिक प्रामाणिक इतिहास आचार्य शुक्ल का ही है, जिसकी रचना सन 1929 में हुई थी। यह स्थिति हिंदी के गौरव के अनुकूल नहीं है विशेषत: तब, जबकि हिंदी का आलोचना साहित्य इतना समृद्ध हो चुका है। नागरी प्रचारिणी सभा ने वृहद् इतिहास की योजना द्वारा एक महान अनुष्ठान का उपक्रम किया है। इस प्रकार के सार्वजनिक कार्य की अपनी सीमाएं होती हैं फिर भी इस महत्प्रयास के फलस्वरूप साहित्य सामग्री की एक विशाल राशि भावी इतिहासकार के लिए एकत्र हो गई है और हमारा विश्वास है कि शीघ्र ही साहित्य के कुछ प्रामाणिक इतिहास हमें हिंदी में उपलब्ध हो सकेंगे।
साहित्य इतिहास लेखन के प्रमुख पद्धति-
1-वर्णानुक्रमी पद्धति-(गार्सा-द-तासी, शिव सिंह सेंगर)
2- कालानुक्रमी पद्धति-( जॉर्ज ग्रियर्सन, मिश्र बंधु)
4- विधेयवादी पद्धति-( आचार्य रामचंद्र शुक्ल)
5- समाजशास्त्रीय पद्धति-( रामविलास शर्मा)
6-वैज्ञानिक पद्यति -(गणपतिचन्द्र शुक्ल, रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’)
प्रमुख साहित्य इतिहास लेखक और उनकी रचनाएं-
1-गार्सा-द-तासी-
*रचना- इस्तवार-द-ला लितरेत्युर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी(भाषा-फ्रेन्च)
*हिंदी साहित्य इतिहास लेखन की प्रथम पुस्तक।
*यह पुस्तक दो भागों में प्रकाशित हुई प्रथम भाग का प्रकाशन 1839 में और द्वितीय भाग का प्रकाशन 1847 में हुआ।
*इसमें लगभग 738 कवियों का वर्णन अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम के आधार पर किया गया है।
*738 कवियों में हिंदी कवियों की कुल संख्या 72 है।
*वर्णानुक्रमी पद्धति पर लिखा गया यह हिंदी साहित्य इतिहास की प्रथम पुस्तक है।
*इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने किया।
2- शिवसिंह सिंगर-
*रचना- शिवसिंह सरोज(1883)
*यह हिंदी भाषा में लिखा गया हिंदी साहित्य का पहला इतिहास है।
*इसमें लगभग एक हजार भाषा कवियों का जीवन चरित उनकी कविताओं के उदाहरण के साथ प्रस्तुत किया गया है।
*यह इतिहास वर्णानुक्रमी पद्धति पर लिखा गया है।
3-जार्ज ए ग्रियर्सन –
*रचना-द मॉडर्न वर्नाक्युलर लिट्रेचर ऑफ हिन्दुस्तान (भाषा-अंग्रेजी )
*’यह इतिहास एसियाटिक सोसाएटी’ आफ बंगाल पत्रिका विशेषांक के रूप में 1889 में प्रकाशित हुआ।
*यह पुस्तक 952 कवियों को लेकर अंग्रेजी भाषा में लिखी गई है।
*सच्चे अर्थों में इसे हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास कहा जाता है।
*कालक्रमानुसार वर्गीकरण का यह प्रथम हिंदी साहित्य इतिहास है।
*नामकरण का आधार कवियों और लेखकों की प्रवृत्तियों के आधार पर किया गया है।
*इसमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश का प्रयोग नहीं किया गया है।
*ग्रंथों के आधार स्रोत के रूप में 17 पुस्तकों का उल्लेख किया गया है।
*नामकरण काल विभाजन का सर्वप्रथम प्रयास इस हिंदी साहित्य के इतिहास में किया गया है।
*इसका हिंदी अनुवाद किशोरी लाल गुप्त ने किया है।
*इस ग्रंथ में एक कमी है वह यह है कि इसका अंग्रेजी में लिखा जाना।
4-श्यामसुंदर दास-
*रचना- ‘हिंदी कोविद रत्नमाला’(1909) इसमें आधुनिक काल के 80 लेखकों का जीवन परिचय है।
*रचना- हिंदी भाषा और साहित्य(1931)
*रचना- हिंदी भाषा का विकास(1934)
5-मिश्रबन्धु-
*रचना-‘ मिश्रबंधु विनोद’ यह चार भागों में विभक्त है।
*प्रथम तीन भाग का प्रकाशन सन् 1913 ई. मैं हुआ तथा चतुर्थ भाग का प्रकाशन सन् 1934 ई. हुआ।
*इसमें लगभग 5000 कवियों के विवरणों के साथ-साथ साहित्य के विविध अंगों पर प्रकाश डाला गया है।
*आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने लिखा कि-‘कवियों के परिचयात्मक विवरण मैंने मिश्र बंधुओं से ही लिया है।’
6- रामनरेश त्रिपाठी-
*रचना-‘ कविता कौमुदी'(1917)
*इसमें भारतेंदु के पूर्ववर्ती 79 कवियों की जीवनी कृतियों का परिचय दिया गया है
7-एडिसन ग्रीब्ज-
*’स्केच आफ हिन्दी लिटरेचर'(1918)
*यह 112 पृष्ठों में लिखी गई परिचयात्मक पुस्तक है।
*इसमें हिंदी साहित्य को पांच भागों में विभाजित किया गया है।
8-फादर के. ई.-
*रचना-‘ए हिस्ट्री आफ लिटरेचर'(1920)
*यह पुस्तक परिचयात्मक है।
9- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी-
*रचना-‘ हिंदी साहित्य विमर्श'(1923)
*यह आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह है
10- बद्रीनाथ भट्ट-
*रचना-‘हिंदी’ (1925)
*यह पुस्तक 96 पृष्ठों में लिखी गई है जो हिंदी भाषा और साहित्य की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
11- अखौरी गंगाप्रसाद सिंह-
*रचना-‘ हिंदी के मुसलमान कवि’ (1926)
*यह पुस्तक हिंदू-मुस्लिम एकता की भावना से प्रेरित होकर लिखी गई है।
12- आचार्य रामचंद्र शुक्ल-
*रचना- ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (1929)
*आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का साहित्य का इतिहास ‘हिंदी शब्द सागर’ की आठवीं जिल्द की भूमिका के रूप में जनवरी 1929 ई. में ‘हिंदी साहित्य का विकास’ नाम से प्रकाशित हुआ जिसे सन् 1951 ई. में ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ नाम दिया गया।*आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने 1000 कवियों को लेकर 900 वर्षों का साहित्य इतिहास लिखा है।
*शुक्ला जी ने अपने साहित्य इतिहास को चार कालों में विभाजित किया है।
*दोहरे नामकरण की प्रवृत्ति सर्वप्रथम आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने प्रारंभ की।
*आधार स्रोत के रूप में मिश्रबंधु विनोद, कविता कौमुदी, ब्रजमाधुरी सार, हिंदी कोविदरत्नमाला, का उल्लेख किया है।
*नामकरण काल विभाजन के लिए एक विशेष ढंग की रचनाओं की प्रचुरता को आधार बनाया है।
*आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने शिवसिंह सेंगर की पुस्तक को ‘कवि वृत्त-संग्रह’ ग्रियर्सन की पुस्तक को ‘बड़ा कवि वृत्त-संग्रह’ और मित्रबंधु की पुस्तक को ‘बड़ा भारी कवि वृत्त-संग्रह’ कहा है।
*आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल को चार प्रकरणों में विभाजित किया है। प्रकरण.1- सामान्य परिचय, प्रकरण.2- अपभ्रंश काव्य, प्रकरण.3- वीरगाथा काल, प्रकरण.4-फुटकल काव्य।
*आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपभ्रंश काव्य में सिद्ध, जैन, नाथ को स्थान दिया और इसे सांप्रदायिक कोटि की रचना कहा।
*आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भक्तिकाल को पराजित मनोवृति का प्रतीक माना है और उसे 6 प्रकरणों में विभाजित किया है।
*आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कबीर को संतमत का प्रवर्तक और कुतुबन सूफी मत का प्रवर्तक कहा है।
*चिंतामणि को हिंदी का प्रथम आचार्य और रीतिकाल का प्रवर्तक कहा है।
*केशवदास को भक्ति काल में स्थान दिया और उन्हें कठिन काव्य का प्रेत कहा है।
*आधुनिक काल को गद्य काल कहा है।
*भारतेंदु को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक और उनकी हिंदी को हरिश्चंद्र हिंदी कहा है।
*आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने काव्य से ज्यादा गद्य को महत्व दिया है।
*शुक्ला जी ने हिंदी का पहला मौलिक उपन्यास परीक्षागुरु को माना और पहली मौलिक कहानी इंदुमती को माना।
*शुक्ल जी ने कहा कि ‘यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है।’
*शुक्ल जी का इतिहास समाज व साहित्य की परंपराओं के मध्य सामंजस्य स्थापित करने वाला इतिहास है।
13- अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध-
*रचना- हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास(1930)
*यह पटना विश्वविद्यालय में दिए गए व्याख्यान का संकलन है
14- सूर्यकांत शास्त्री-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास’ (1930)
*यह अंग्रेजी ढंग पर लिखा गया इतिहास है।
15- रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (1931)
*इन्होंने साहित्य इतिहास को बाल्यावस्था (आदिकाल) किशोरावस्था (मध्यकाल) युवावस्था (आधुनिक काल) में विभाजित किया है।
16- कृष्ण शंकर शुक्ला-
*रचना-‘आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास’ (1924)
*इसमें आधुनिक ढंग पर साहित्य इतिहास लिखने का प्रयास किया गया है।
17- रामकुमार वर्मा-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ (1938)
*इसमें साहित्य इतिहास को स्पष्ट ढंग से विवेचन और व्याख्यायित किया गया है।
*यह एक अधूरा साहित्य इतिहास ग्रंथ है।
18- इंद्रनाथ मदान-
*रचना-‘मॉडर्न हिंदी लिटरेचर’ (1939)
*यह पंजाब विश्वविद्यालय में प्रस्तुत शोध प्रबंध है।
19- मोतीलाल मेनारिया-
*रचना-‘राजस्थानी साहित्य की रूपरेखा’ (1939)
*इसमें डिंगल-पिंगल कवियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का वर्णन किया गया है।
20- हीरालाल जैन-
*रचना-‘जैन साहित्य की पूर्व पीठिका और हमारा अभ्युत्थान’ (1939)
*इसमें आदिकाल पर विस्तृत सामग्री उपलब्ध है।
21- ब्रजरत्न दास-
*रचना-‘खड़ी बोली हिंदी साहित्य का इतिहास’ (1941)
*इसमें मौलिक ढंग से गद्य पद्य का ऐतिहासिक अनुशीलन किया गया है।
22- लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय-
*रचना-‘आधुनिक हिंदी साहित्य की भूमिका’ (1952)
*रचना- ‘बीसवीं शताब्दी हिंदी साहित्य :नए संदर्भ
*रचना-‘हिंदी उपन्यास:उपलब्धियां
*रचना-‘आधुनिक हिंदी कहानी का परिपार्श्व’
*रचना-‘हिंदी साहित्य का मानक इतिहास’
*रचना-‘आधुनिक हिंदी साहित्य’ (1941) इसमें सन् 1850 से 1900 तक के साहित्य का इतिहास लिखा गया है।
23- श्रीकृष्ण लाल-
*रचना-‘आधुनिक हिंदी साहित्य का विकास’ (1942)
*यह वैज्ञानिक अनुशीलन की दृष्टि से लिखा गया इतिहास है।
24- हजारी प्रसाद द्विवेदी-
*रचना-‘हिंदी साहित्य की भूमिका'(1940) यह दस अध्यायों में विभक्त ग्रंथ है ।
*रचना-‘हिंदी साहित्य उसका उद्भव और विकास’ (1952)
*रचना-‘हिंदी साहित्य का आदिकाल’ (1952)
*रचना-‘नाथ संप्रदाय’ (1955)
*रचना-‘मध्ययुगीन धर्म साधना’ (1955)
*रचना-‘मध्ययुगीन बोध का स्वरूप’ (1955)
*हजारी प्रसाद द्विवेदी साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने के पक्षपाती हैं।
*हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शुक्ल जी की कमियों को पहचान कर साहित्य को परंपरा से संबंध कर इतिहास लिखा है।
*हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रकृति मंडनात्मक है इन्होंने शुक्ल युगीन अनेक मान्यताओं को खारिज कर दिया है।
*वीरगाथा काल को आदिकाल कहा है।
*भक्तिकाल को बौद्धों की परंपरा से जोड़ा है।
*विद्यापति को श्रृंगार रस का सिद्ध वाक् कवि कहा है।
*इन्होंने केशवदास को रीतिकाल में स्थान दिया है।
*इन्होंने भाग्यवती को हिंदी का पहला मौलिक उपन्यास माना है।
25- डॉ भोलानाथ-
*रचना-‘आधुनिक हिंदी साहित्य’ (1954)
26- आचार्य चतुरसेन शास्त्री-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (1950)
*रचना-‘हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास'(1950)
27- गणपति चंद्र गुप्त-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास’ (1965)
*सुमन राजे ने गणपति चंद्रगुप्त को साहित्य में वैज्ञानिक पद्धति का अनुसंधान एवं प्रयोक्ता मानते हैं।
28- रामखेलावन पांडेय-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का नया इतिहास’ (1969)
*इनके अनुसार साहित्य का इतिहास समाजशास्त्र का परिशिष्ट नहीं है वह समर्पित और प्रतिबद्ध भी नहीं है।
29- रामस्वरूप चतुर्वेदी-
*रचना-‘हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास’ (1984)
*रचना-‘हिंदी गद्य विन्यास और विकास’ (1996)
*रचना-‘हिंदी काव्य का इतिहास’
*रचना’आधुनिक कविता यात्रा’
*रचना-‘भक्ति काव्य यात्रा’
30- रामकिशोर शर्मा-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (1983)
31- डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का इतिहास’
*रचना-‘आदिकालीन हिंदी साहित्य की पृष्ठभूमि’
32- जय किशनलाल खंडेलवाल-
*रचना-‘हिंदी साहित्य की प्रवृत्तियां’
33- डॉ. मोहन अवस्थी-
*रचना-‘हिन्दी साहित्य का अद्धतन इतिहास’
34- डॉ. नगेन्द्र-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (संपादित)
*रचना-‘हिंदी वांग्मय बीसवीं शताब्दी’
*रचना-‘रीतिकाव्य की भूमिका’
35- बच्चन सिंह-
*रचना-‘आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास’
*रचना-‘हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास’ (1996)
36- सुमन राजे-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का आधा इतिहास’
37- वासुदेव सिंह-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का उद्भवकाल’
38- परशुराम चतुर्वेदी-
*रचना-‘उत्तरी भारत की संत परंपरा’
39- प्रभुदयाल मीतल-
*रचना-‘चैतन्य संप्रदाय और उसका साहित्य’
40- टीकम सिंह तोमर-
*रचना-‘हिंदी वीर काव्य’
41- सियाराम तिवारी-
*रचना-‘मध्यकालीन खंडकाव्य’
42- सरला शुक्ल-
*रचना-‘प्रेमाख्यान काव्य’
43- विश्वनाथ प्रसाद मिश्र-
*रचना-‘हिंदी साहित्य का अतीत’ (दो भाग, प्रथम भाग 1959 द्वितीय भाग 1960)
*रचना-‘वांग्मय विमर्श’ (सन 1944)
44- नलिन विलोचन शर्मा-
*रचना-‘साहित्य का इतिहास दर्शन’
45- विजयेंद्र स्नातक-
*रचना-‘राधावल्लभ संप्रदाय:सिद्धांत और साहित्य:
46- शिवकुमार शर्मा-
*रचना-‘हिन्दी साहित्य:युग और प्रवृतियां’
हिंदी साहित्य इतिहास लेखन से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
*नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा हिंदी साहित्य का वृहद् इतिहास प्रकाशित किया गया है। इसके 16 भाग हैं जिसके प्रत्येक भाग के अलग-अलग संपादक हैं।
*तासी के साहित्य इतिहास का हिंदी अनुवाद लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने सन् 1952 ई. में ‘हिंदूई साहित्य का इतिहास’ शीर्षक से किया है।
*ग्रियर्सन के साहित्य इतिहास का हिंदी अनुवाद किशोरी लाल गुप्त ने सन 1957 ई. में ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ शीर्षक से किया है।
*किशोरी लाल गुप्त ने ग्रियर्सन के साहित्य इतिहास की विषय में लिखा है कि- “यह हिंदी साहित्य की नींव का वह पत्थर है, जिस पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने सुप्रसिद्ध इतिहास का भव्य भवन निर्मित किया। इस इतिहास ग्रंथ का ऐतिहासिक महत्व है।”
*हजारी प्रसाद द्विवेदी को परंपरावादी साहित्य इतिहास लेखक कहा जाता है।
*नामवर सिंह ने लिखा है कि “शुक्ल जी को इतिहास पंचांग के रूप में प्राप्त हुआ था। उसे उन्होंने मानवीय चेतना से अनुप्राणित कर साहित्य बना दिया।”
*शुक्ल जी के साहित्य इतिहास के संबंध में जैनेंद्र जी कहते हैं कि ‘इतिहास से उन्होंने जुटाया है, जगाया नहीं।’
*साहित्य इतिहास में कवियों को अंक देने की प्रणाली ग्रियर्सन से मानी जाती है, साथ ही उन्होंने साहित्य इतिहास लेखन में तुलनात्मक पद्धति की शुरुआत की जिसका आगे विकास नहीं हो सका।
*डॉ नामवर सिंह ने ‘मिश्रबंधु विनोद’ को साहित्य के पंचांग की संज्ञा दी है।
*मिश्र बंधु ने सारंगधर को ब्रजभाषा का प्रथम कवि तथा गोरखनाथ को हिंदी का प्रथम गद्य लेखक घोषित किया है।
*नलिन विलोचन शर्मा के अनुसार “शुक्ल जी का इतिहास अनुपात की दृष्टि से उसका स्वल्पांश ही प्रवृत्ति निरूपणपरक है, अधिकांश विवरण प्रधान है।”
*इलियट ने कहा है कि “केवल अतीत ही वर्तमान को प्रभावित नहीं करता, वर्तमान भी अतीत को प्रभावित करता है।”
*आचार्य रामचंद्र शुक्ल के इतिहास की प्रमुख विशेषता है-
‘*कवियों और साहित्यकारों के जीवन चरित संबंधी इतिवृत्त के स्थान पर उनकी रचनाओं का साहित्यिक मूल्यांकन करना।’
*आचार्य शुक्ल के इतिहास दर्शन का एक प्रमुख दोष है-‘साहित्यिक परंपराओं और प्रवृत्तियों के निर्माण में पूर्व परंपरा की उपेक्षा।’
*हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि-” हिंदी का संत काव्य पूर्वर्ती सिद्धो व नाथपंथियों के साहित्य का सहज विकसित रूप है।”
*हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी के प्रेमाख्यानो का मूल स्रोत संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश की काव्य परंपराओं में सिद्ध किया है।
*आचार्य शुक्ल शुक्ल द्वारा दिए गए नाम वीरगाथाकाल और रीतिकाल पर सबसे ज्यादा विवाद रहा।
*हिंदी साहित्य का केवल प्रवृत्तिगत विभाजन सर्वप्रथम ग्रियर्सन ने किया।
*साहित्यिक प्रवृत्तियों एवं परंपराओं के निर्माण में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने परंपरा के महत्व को प्रतिष्ठित किया है।
*साहित्यिक परंपराओं और प्रवृत्तियों को युग विशेष की चित्तवृत्ति के प्रतिबिंब के रूप में आचार्य शुक्ल ने ग्रहण किया है।