बादल राग कविता का भावार्थ या व्याख्या और प्रश्न उत्तर

बादल राग कविता का भावार्थ या व्याख्या और प्रश्न उत्तर 


तिरती है समीर – सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया

बादल राग कविता का प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह‘ में संकलित कविता ‘बादल-राग‘ से लिया गया हैं। जो मूल रूप से छायावादी धारा के प्रतिनिधि कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ जी के काव्य संग्रह ‘परिमल‘ में संकलित है। यह एक प्रगतिवादी कविता है जिसमें बादल को ‘क्रान्तिदूत‘ बनाकर कवि ने छोटे मजदूरों और किसानों का मार्मिक चित्रण किया है। इन पंक्तियों में गरीबजन के दुःख का वर्णन हुआ है

बादल राग कविता का भावार्थ या व्याख्या – निराला जी कहते हैं कि शोषित वर्ग के सुख के अनिश्चित, चंचल थोड़े से समय पर दुःख का डर हमेशा मंडराता रहता है जिस प्रकार समुद्र के ऊपर हवा बहती रहती है। अर्थात सुख का समय अल्प होता है और जीवन में दुःखों, कष्टों का सामना करने के बाद यह समय आता है।लेकिन इस समय में भी हमें दुःख के आने का डर हमेशा सताता रहता है। इसी प्रकार हमारे समुद्र रूपी जीवन पर दुःख उस हवा के समान है जिसका क्षेत्र अधिक व्यापक है। इन्सान रोता हुआ जग में आता है और अनेक कष्टों व दुःखों के साथ ही संसार को छोड़ देता है। कवि जी कहतेहैं कि इस संसार के सभी लोगों के दिलों में दुःख की ताप है। सभी किसी न किसी दुःख से पीड़ित हैं। इन दुःखों की निष्ठुर उथल-पुथल, विपत्तियोंमें सारा संसार डूबा हुआ है। अर्थात् कोई भी व्यक्ति इस संसार में प्रसन्नचित्त नहीं है। सभी के हृदय दुःखों से भरे हुए सुख के पलों को खोज रहेहैं।

बादल राग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष (अभिव्यक्ति पक्ष ) –

1- निराला जी ने दुःख के विस्तृत क्षेत्र में सुख के कुछ सुनहरे पलों को ढूँढने पर प्रकाश डालना चाहा है तथा दुःख से पीड़ित समस्त जगत कोअनेक विपत्तियों में डूबा हुआ दर्शाया है।
2- ‘तिरती है समीर-सागर पर’ पंक्ति द्वारा सुख-दुःख की लाक्षणिकता को प्रकट किया किया है।

(ख) कला पक्ष (अनुभूति पक्ष )

1- संस्कृतनिष्ठ सामासिक पदावली का प्रयोग कर भाषा को गुरु गम्भीर बनाया गया है।
2- अनुप्रास अलंकार तथा ‘समीर – सागर पर’ रूपक अलंकारों का प्रयोग भी भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
3- प्रतीकात्मकता के माध्यम से करुण रस का मार्मिक चित्रण हुआ है।

यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्
अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल !
फिर-फिर

बादल राग कविता का प्रसंग – पूर्ववत् । इन पंक्तियों में कवि ने उन छोटे व गरीब लोगों का मार्मिक चित्रण किया है जो क्रान्ति के द्वारा नवजीवन व उन्नति कर सकते हैं। इस पद्यांश मेंबादल रूपी ‘क्रान्ति दूत’ को छोटे पौधे पुकार रहे हैं

बादल राग कविता का भावार्थ या व्याख्या – निराला जी कहते हैं कि हे क्रान्ति के दूत बादल ! तेरी यह युद्ध की नाव नई-नई इच्छाओं व अभिलाषाओं से भरी हुई है। अर्थात् क्रान्ति सेगरीब जन को बहुत अपेक्षाएँ हैं। बादल को संबोधित करते हुए कवि कहते हैं कि तेरी इस दृढ़ मजबूत दुन्दुभी (युद्ध के समय बजने वाला बड़ाढोल) की आवाज की गरजना से पृथ्वी के हृदय में सोये हुए डंठल (अंकुर) निकलते हुए सचेत हो गए हैं। अर्थात् बादलों की क्रान्ति गर्जन से गरीबजन सावधान हो गए हैं। अब उनमें बादल के कारण नया जीवन मिलने की उम्मीद जाग उठी है। इसलिए अब वह अंकुर रूप में बीज से फूट करअपना सिर उठाकर निकलने लगे हैं और बार-बार क्रान्ति रूपी बादल को देख रहे हैं। कवि यहाँ कहना चाहता है कि जिस प्रकार बादलों के आनेसे लघु पौधों, अंकुरित पौधों का विकास होता है। उसी प्रकार क्रान्ति के आने से गरीब व छोटे लोगों के जीवन को एक दिशा मिलती है तथा उनकाविकास होता है। इसलिए वो ही क्रान्ति की पुकार करते हैं।

बादल राग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष निराला जी इन पंक्तियों में क्रान्ति के आगमन से प्रसन्नचित्त दलितों का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि क्रान्ति के कारण गरीबों वदलितों को नवजीवन मिलता है उनका विकास होता है।
(ख) बादल रूपी क्रान्ति की गर्जना द्वारा विभिन्न भावों की लाक्षणिकता प्रकट की गई है।

(ख) कला पक्ष

1- संस्कृतनिष्ठ शब्दावली से सरल, सहज भाषा की सुन्दरता में वृद्धि हुई है।
2- रूपक – भेरी-गर्जन व विप्लव के बादल में तथा ‘फिर-फिर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की छटा सौन्दर्यात्मक है।
3- छन्द मुक्त कविता भावात्मक प्रधान है। ओज रस की स्तुति प्रार्थना परक हैं।

बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र – हुंकार ।
अशनि – पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर

बादल राग कविता का प्रसंग – पूर्ववत्। प्रस्तुत पद्यांश में ‘निराला’ जी बादल के आगमन पर होने वाली विभिन्न परिस्थितियों का वर्णन करते हैं । कवि ने बादल रूपी उठने वाली क्रान्ति के आगंतुक दृश्य का वर्णन किया है।

बादल राग कविता का भावार्थ या व्याख्या – निराला जी कहते हैं कि बादलों की बार-बार गर्जन और मूसलाधार वर्षा से संसार में सभी वर्ग भयभीत हो जाते हैं तथा उसकी तेज गर्जनाको सुनकर सभी को विकट व भीषण प्रलय का अंदेशा होता है। यहाँ पर कवि कहना चाहता है कि जिस प्रकार बादलों की भयंकर गर्जन व वर्षण का लघु पौधों पर कम प्रभाव पड़ता है वहीं बड़ी फसलों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, उसी प्रकार क्रान्ति का प्रभाव धनी वर्ग व पूंजीपति वर्ग परअत्यधिक पड़ता है। वे क्रान्ति की गर्जना सुनकर काँप उठते हैं। जहाँ एक ओर बादल की गर्जना छोटे-छोटे पौधों को नवजीवन व नवरस प्रदान करती हैं वहीं उसकी गम्भीर गर्जना सुनकर कुबेरों का दिल धड़क जाता है।

कवि कहता है कि हे क्रान्ति दूत रूपी बादल ! तुम वज्रपात से लेटे हुए उन ऊँचे सैकड़ों वीरों के समान हो। तुम अनेकों घावों से घायल एक दृढ़अटल शरीर के समान हो जो आकाश को छूने की आशा रखे हुए प्रतियोगी के समान दृढ़ व शांत मन रखने वाला है। कवि कहता है कि क्रान्ति दूतअर्थात् क्रान्ति लाने वाला उन सभी सैकड़ों वीरों का प्रतिनिधि होता है जो युग अबाध गति लांघकर युग परिवर्तन कर सकता हो। क्रान्ति का यहवीर अनेकों कठिनाइयों को पार करके अपने समाज में सभी वर्गों की उन्नति में सहायक होता है।

बादल राग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

निराला जी क्रान्ति से होने वाले विभिन्न वर्गों पर विभिन्न प्रभावों का वर्णन करते हुए निम्न वर्ग के ऊपर उठने का संदेश देते हैं। क्रान्ति के कारणधनी वर्ग भयभीत है।वर्षा, बादल द्वारा शब्द शक्ति की लाक्षणिकता को दर्शाया गया है।

(ख) कला पक्ष

1- तत्सम प्रधान शब्दावली के कारण भाषा की शुद्धता व सहजता का प्रभाव बढ़ा है।
2- अनुप्रास अलंकार, रूपक- वज्र-हुंकार, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार भिन्न-भिन्न स्थानों जैसे- बार-बार, सुन-सुन, शत-शत में उद्घाटित हुआ है।
3- क्षत-विक्षत में विरोधानुप्रास अलंकार है । भावों की अभिव्यक्ति की तीव्रता के लिए मुक्त छन्द शैली का सौन्दर्यपूर्ण वर्णन है।
4- ओज व करूण रस का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत कर कवि क्रान्ति का आवाह्न करता है।
5- ‘हृदय – थामना’ मुहावरे का पूंजीपति वर्ग के भय को दर्शाने के लिए औचित्य है।

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य है अपार
हिल-हिल
खिल-खिल
हाथ हिलाते
तुझे बुलाते,
विप्लव – रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।

बादल राग कविता का प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह‘ में संकलित कविता ‘बादल-राग’ से ली गई है। इनमें कवि ‘निराला‘ जी ने मुख्य रूपसे छायावादी कवि होते हुए भी अपनी प्रगतिवादी विचारधारा को दर्शाया है। मूल रूप से यह कविता उनके काव्य संग्रह ‘परिमल‘ में संकलित है। इन पंक्तियों में दर्शाया गया है कि जिस प्रकार बादलों के आने की खुशी छोटे पौधों को होती है उसी प्रकार क्रान्ति के आगमन पर निम्न वर्ग अत्यधिक प्रसन्न होता है।

बादल राग कविता का भावार्थ या व्याख्या – ‘निराला’ जी अपनी इन पंक्तियों में निम्न वर्ग की प्रसन्नता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि नवजीवन प्राप्त छोटे-छोटे पौधे बादलों केआने से बहुत खुश होते हैं। नई-नई घास अपनी हरियाली द्वारा प्रसन्नता प्रकट करती है। ये छोटे-छोटे पौधे हवा में हिलते हुए अपने छोटे से शरीर को जब हिलाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे खुशी के कारण ये तुम्हें ही बुला रहे हैं। बादलों द्वारा वर्षण की बाढ़ से इन छोटे-छोटे पौधों का कोई नुकसान नहीं होता । कवि का तात्पर्य यह है कि निम्न व गरीब जन क्रान्ति को लाने के लिए तत्पर हैं। क्रान्ति के आने से उनके मन में खुशी झलक रही है। इस क्रान्ति का छोटों पर इतना प्रभाव नहीं पड़ता जितना कि उच्च पूंजीपति वर्ग पर पड़ता है। क्रान्ति के इस प्रवाह के कारण जहाँ निम्नवर्ग को प्रसन्नता मिलती है वहीं कुबेरों (धनवानों) के दिलों में भय के बादल मंडराते हैं।

बादल राग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष –

1- ‘क्रान्ति दूत’ बादल के आगमन पर छोटे पौधों और निम्न वर्ग को जितनी प्रसन्नता मिलती है उतना ही उच्च वर्ग भयभीत होता है। क्रान्ति का प्रभाव निम्न व पूंजीपति दोनों वर्गों पर अलग-अलग अर्थ में पड़ता
2- विप्लव – रव व शस्य य अपार आदि ‍ आदि शब्दों द्वारा लाक्षणिक पदावली का भावात्मक प्रयोग है।

(ख) कला पक्ष

1- सरल, सरस, सहज भाषा के कारण पद्यांश में गेयता तत्त्व विद्यमान है।
2- भावाभिव्यक्ति के लिए मुक्तक छन्द शैली का सुन्दर प्रयोग किया गया है।
3- अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार तथा रूपक अलंकारों का सुन्दर ढंग से प्रयोग किया गया है। 
4- पौधों के उत्साह के कारण वीर रस का दृश्य प्रकट हुआ है।

अटालिका नहीं है रे
आतंक – भवन
सदा पंक पर ही होता
जल – विप्लव – प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,

बादल राग कविता का प्रसंग– पूर्ववत्! इन पंक्तियों में कवि ने पूंजीपति वर्ग के आतंक व अत्याचारों को दर्शाया है तथा कवि कहना चाहता है कि अन्त में क्रान्ति केकारण निम्न वर्ग को ही विजय मिलती है।

बादल राग कविता का भावार्थ या व्याख्या– इन पंक्तियों में ‘निराला’ जी पूंजीपति वर्ग के मन में भय और आशंका को दर्शाना चाहता है। पूंजीपतियों को यह डर है कि कहीं क्रान्ति के कारण उनकी ऊँची-ऊँची इमारतें न गिर पड़ें। कहीं उनके आतंक व अत्याचार के कारण निम्न वर्ग उनको हानि न पहुँचा दें। इस बात से उच्च वर्ग हमेशा भयभीत रहता है। वे अपनी ऊँची-ऊँची इमारतों में भी पूर्ण सुरक्षित महसूस न करने के कारण डरे हुए हैं।

कवि कमल व कीचड़ के माध्यम से कहते हैं कि बाढ़ का पानी हमेशा से ही कीचड़ पर आकर तैरता है। बादल के कारण जो वर्षण व बाढ़ आई वह सब निम्न वर्ग के समान पंक पर ही ठहरती है तथा वर्षा का जल कमल के फूलों पर पड़ता है। वह उस पर ज्यादा देर तक स्थिर नहीं रहता।वह उससे छलक कर नीचे गिर जाता है क्योंकि जल छोटे खिले हुए कमल पर नहीं ठहर पाता। इसी प्रकार छोटा व नीच पूंजीपति वर्ग भी क्रान्तिके प्रभाव को अधिक देर तक सहन नहीं कर पाता और जल्द ही घबरा जाता है। केवल निम्न व गरीब वर्ग ही कीचड़ के समान क्रान्ति को आधार प्रदान कर उसके प्रभाव का सुपरिणाम प्राप्त करते हैं।

बादल राग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- पूंजीपत्तियों के मन में क्रान्ति से उत्पन्न भय व त्रासदी को कवि ने सुन्दर उदाहरण द्वारा प्रकट किया है तथा पूंजीपत्तियों व मजदूर वर्ग पर क्रान्तिके क्रमशः दुष्परिणाम व सुपरिणामों को दिखाया है।
2- संपूर्ण पद्यांश में आतंक भवन, जलज, पंक प्रतीकों के माध्यम से लाक्षणिकता को प्रकट किया गया है।

(ख) कला पक्ष

1- संस्कृत प्रधान तत्सम् शब्दावली द्वारा सरल व प्रवाहमयी भाषा की शोभा में वृद्धि हुई है।
2- मुक्तक छन्द शैली के द्वारा भावाभिव्यक्ति में सहायता मिलती है।
3- प्रतीकों – पंक-जलज के माध्यम से कवि अपने विचारों को सुन्दर ढंग से प्रकट करने में सफल हुए हैं।
4- रूपक अलंकार का सुन्दर प्रयोग है। भय और उत्साह रस विद्यमान है।

रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर ।
रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना – अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।

बादल राग कविता का प्रसंग – पूर्ववत् ! निराला जी इन पंक्तियों में उन गरीब जन का वर्णन करते हैं जो विभिन्न विपत्तियों व दुःखों में भी प्रसन्न रहते हैं तथा साथ ही उन वैभव व ऐश्वर्य युक्त धनी लोगों का भी वर्णन किया है जो वैभव युक्त होने पर भी दुःख व भय के साथ जीवन व्यतीत करते हैं।

बादल राग कविता का भावार्थ या व्याख्या – निराला जी कहते हैं कि नवजात शिशु का कोमल शरीर अनेक रोगों व दुःखों के होते हुए भी सदा हँसता रहता है उसी प्रकार निम्न वर्ग भीअनेक विपत्तियों में भी खुश रहता है। लेकिन वहीं अवरूद्ध धन वैभव से सम्पूर्ण और सन्तोष व तृप्ति होने पर भी धनी वर्ग व्याकुल है। अर्थात् क्रान्ति के भय के कारण धनी व उच्च वर्ग तनावयुक्त व व्याकुल है। धनी लोग अपने घरों व पत्नियों की गोद में लिपटे हुए भी डर कर काँप रहे हैं।उनका हृदय क्रान्ति से होने वाले प्रभावों से डरा हुआ है। धनी वर्ग बादलों की गर्जना रूपी क्रान्ति की ललकार सुनकर डरे हुए हैं। यह गर्जना, विप्लव की यह ध्वनि पूंजीपतियों के लिए गंभीर चेतावनी का प्रतीक है। अतः वे अपनी प्रिया के शरीर से लिपटे हुए भी काँप रहे हैं तथा डर सेपीड़ित, त्रस्त होकर अपना मुख ढाँप रहे हैं। अर्थात् क्रान्ति का भय उच्च वर्ग के लिए कंपन पैदा करने वाला है। इस भय का अन्त उनके वैभव, ऐश्वर्य और पत्नियों के सहयोग से भी नहीं हो रहा है।

बादल राग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

1- कवि इन पंक्तियों में, निम्न वर्ग को विपत्तियों में भी हँसते रहने और ऊँच वर्ग को सभी ऐश्वर्य और वैभव होने पर भी भयभीत व पीड़ित होने का दृश्य स्पष्ट करते हैं।

(ख) कला पक्ष

1- संस्कृतनिष्ठ पदावली का प्रयोग तथा भाषा में औचित्य शब्द चयन सराहनीय है।
2- वज्र-गर्जन में क्रान्ति की गर्जना का रूपक अलंकार काव्य सौन्दर्य में वृद्धि करता है। मुक्तक छन्द शैली का सुन्दर समुचित उपयोग है।
3- भयानक रस का प्रयोग उचित रूप में प्रयुक्त है। भाषा सरल, सहज होने के कारण गेयता का गुण विद्यमान किए हुए है।

जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ए विप्लव के वीर !
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार

बादल राग कविता का प्रसंग – पूर्ववत् ! इन पंक्तियों में ‘निराला’ जी निर्धन किसान की दयनीय व दुःखद स्थिति का वर्णन करते हैं और जमींदार व साहूकार वर्ग केअत्याचारों को दूर करने के लिए किसानों द्वारा क्रान्ति का आहवान करवाते हैं।

बादल राग कविता का भावार्थ या व्याख्या – ‘निराला’ जी किसान की दयनीय अवस्था का वर्णन करते हुए कहते हैं कि किसान इतना कमजोर हो चुका है कि उसकी भुजाओं की ताकत क्षीण पड़ गई है और शरीर अत्याचार सहन करते हुए कमजोर हो गया है। हे ‘क्रान्ति के दूत’ बादल तुझे यह कमजोर व व्याकुल व अत्याचार से घबराया हुआ किसान तुझे पुकार रहा है। हे क्रान्ति को उठाने वाले वीर बादल, हे क्रान्ति के दूत बादल, तू ही उसके दुःखों को दूर कर सकता है। अत्याचारी जमींदारों ने उस (कृषक ) पर इतने अत्याचार किए हैं कि उसके शरीर से सारा खून चूस लिया है अर्थात किसान की सहनशीलता खत्म होती जा रही है। उसका शरीर इतना क्षीण हो चुका है कि केवल उसके हाड़ों का पिंजर ही शेष बचा हुआ है। बादलों के आने से ही अच्छी वर्षा के कारण उसकी अच्छी फसल हो सकती है और वह जमींदारों के चुंगल से निकल सकता है। दूसरी ओर उनकी प्रार्थना में क्रान्ति रूपी बादल से यह आवाह्न किया गया है कि वही उनका रक्षक है वही उनके जीवन का नव विकास कर सकता है। कवि इन पंक्तियों में किसान की दुःखद हृदय से बादल रूपी क्रान्ति की पुकार को सदृश्य कर रहा है।

बादल राग कविता का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष –

1- निराला ने इस (कविता) पद्यांश में किसानों की दीन-हीन दशा का चित्रण भी किया है। यह शोषित कृषक ‘विप्लव के बादलों’ को आमन्त्रित करता है।
2- अभिधा शब्द शक्ति का भरपूर योग्यता से प्रयोग है।

(ख) कला पक्ष

1- मुक्तक छन्द में प्रस्तुत पंक्तियों में शब्द चयन पर विशेष बल दिया गया है।
2- अनुप्रास अलंकार के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति में वृद्धि हुई है।
3- प्रार्थना परक, करूण रस की शोभा पद्यांश की सुन्दरता में वृद्धि करती है।
4- नाद सौन्दर्य ने शिल्प को अद्वितीय रूप प्रदान किया है।

बादल राग कविता के प्रश्न उत्तर 


1. अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया है और क्यों?

उत्तर– निराला जी की बादल राग कविता मार्क्सवाद पर आधारित है। जिसमें बताया गया है कि शोषित वर्ग (गरीब वर्ग) के जीवन में सुख कासमय नहीं आता है अगर आता भी है तो वह बहुत कम समय के लिए आता है। उसको भी शोषक वर्ग साथ ही साथ छीन लेता है। इसलिए कवि ने यहाँ शोषित वर्ग के शोषण को दुःख की छाया माना है क्योंकि शोषितों के जीवन में दुख का भय इस प्रकार ही छाया रहता है।

2. अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?

उत्तर– इस पंक्ति में उन दलित जन क्रांतिकारियों की तरफ संकेत किया है जो शोषकों (पूंजीपत्तियों) के वज्र – पात ( शोषण) से घायल है और क्रान्ति का आहवान गम्भीर व दृढ़ सैकड़ों वीरों के समान उठकर एकदम कर रहे हैं। ये क्रान्ति दूत अत्यधिक शोषित होने के बाद अपने-आप को ऊँचा उठाना चाहते हैं।

3. विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे ही हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर– कवि ने सामाजिक विषमता पर प्रहार करते हुए क्रान्ति की आवश्यकता को इस कविता में रेखांकित किया है। इसलिए ‘विप्लव-रव’ कायहाँ तात्पर्य ‘क्रान्ति’ से है। समाज में क्रान्ति लाने का कार्य निम्न व दलित जन ही करता है क्योंकि क्रान्ति के द्वारा ही उन्हें अपना अधिकार व समाज में समान स्थान मिल सकता है। इसलिए छोटे व गरीब लोग ही क्रान्ति के द्वारा खुशी (शोभा) प्राप्त करते हैं।

4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?

उत्तर– बादलों के आगमन से पृथ्वी के हृदय से अंकुर फूट पड़ते हैं। बादलों का बार-बार गर्जन करना व मूसलाधार वर्षा करना प्रकृति के भयंकर रूप को दर्शाता है। कवि ने दलित जन के दुख को व्यक्त करने के लिए प्रकृति के संवेदनात्मक रूप में प्रकृति चित्रण किया है। उसके दुख के साथ दुखी तथा सुख व हँसने के साथ हरियाली का दृश्य प्रकृति द्वारा दर्शाया गया है। छोटे पौधों का खिलकर हँसना, सुन्दरता, शोभा पाना, कीचड़ वठहरे जल में ही कमल का उगना सब प्रकृति के रूप को दर्शाते हैं। इस प्रकार सारी कविता में प्रकृति की विभिन्न संवेदनाओं द्वारा इसका मानवीकरण रूप स्पष्ट हुआ है।

बादल राग कविता का कला की बात


1. पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों?

उत्तर– पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण हुआ है। हमें प्रकृति का निम्नलिखित मानवीय रूप अत्यधिक पसंद आया क्योंकि इसमें छोटे-छोटे पौधों को मनुष्य की तरह हँसते, खिलखिलाते, हाथ हिलाकर किसी को बुलाते आदि रूपों में वर्णित किया गया है

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार,
हिल-हिल,
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते

2. कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है? संबंधित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए।

उत्तर– (क) समीर – सागर पर, (ख) निर्दय-विप्लव, (ग) रण- तरी, (घ) भेरी-गर्जन, (ङ) गगन-स्पर्शी, (च) क्षुद्र- प्रफुल्ल-जलज ।

3. इस कविता में बादल के लिए ऐ विप्लव के वीर !, ऐ जीवन के पारावार! जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग कविता के शेषपाँच खंडों में भी कई संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे- अरे वर्ष के हर्ष!, मेरे पागल बादल!, ऐ निर्बंध!, ऐ स्वच्छंद !, ऐ उद्दाम!, ऐ सम्राट!, ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों काक्या औचित्य है?


उत्तर– ‘बादल राग’ कविता के शेष पाँच खंडों में बादल के लिए प्रयुक्त निम्नलिखित संबोधनों की व्याख्या नीचे दी गई है

अरे वर्ष के हर्ष! – बादल की वर्षा किसानों की फसल को लहलहाकर वर्षभर किसान को खुशी प्रदान करती है। प्रकृति को वर्षभर सौन्दर्यमय बनाने वाले बादल ही हैं।

मेरे पागल बादल! – कवि ने बादल को पागल का सम्बोधन दिया है। बादल कभी अधिक वर्षा कर जमीन पर बाढ़ ला देता है, तो कभी कम या नवर्षा कर सूखा ला देता है।

ऐ निर्बंध ! – बादलों को किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता। वे बन्धनहीन हैं।

ए स्वछंद – बादल स्वतंत्र हैं, उन पर किसी का कोई शासन नहीं है।

ऐ उद्दाम ! – बादल मन में आवेग, बेचैनी एवम् खुशी उत्पन्न करते हैं।

ऐ सम्राट ! – बादल भूमि के सम्राट हैं।

बादलों की वर्षा से ही पृथ्वी शस्य श्यामला होती है।

ए विप्लव के प्लावन! बादल अपनी वर्षा से विनाश कर सकते हैं।

ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार ! बादल आकाश में चलायमान (गतिशील) कोमल शरीर के छोटे-से बच्चे के समान लगते हैं। जैसे छोटा बच्चा अपने कोमल शरीर से डगमगाता चलता है, वैसे ही आकाश पर बादल मंडराते रहते हैं।

4- कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई काल्पनिक बिंब दीजिए।

उत्तर– कवि बादलों को क्रान्ति के रूप में देखता है। कालिदास ने बादलों को दूत के रूप में देखा। हम बादलों को सागर – नौका के रूप में देखतेहैं।

5- कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता हैं जैसे- अस्थिर सुख । सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग नेसुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया है। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर लिखें तथा बताएँ कि ऐसे शब्द-पदों के प्रयोग से कविता के अर्थ में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ है?

उत्तर– कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि ने विभिन्न विशेषणों से युक्त पदों का प्रयोग किया है।

दग्ध हृदय- दग्ध हृदय के प्रयोग से कवि ने शोषित वर्ग की दुखी जनता की ओर संकेत किया है।
निर्दय विप्लव – क्रान्ति का दृश्य हमेशा ही भयंकर होता है। विनाश निर्मोह का ही परिणाम है ।
सुप्त अंकुर – पृथ्वी के अन्दर अंकुरित बीजों को सुप्त कहा गया है।
अचल शरीर – शोषक वर्ग की ऐश्वर्यपूर्ण स्थिति का सूचक है।
आतंक भवन – शोषक वर्ग के महल डर के भवन हैं क्योंकि वे
शोषित वर्ग के शोषण की नींव पर बने हैं।

इन सभी विशेषण युक्त पदों के प्रयोग से भाषा में विशिष्टता आई है। लाक्षणिक शब्द शक्ति का सुन्दर प्रयोग हुआ है तथा कविता में गांभीर्य की सृष्टि हुई है ।

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