भारतीय संस्कृति के अनुवाद को पढ़ेंगे। यह पाठ up board class 10 से लिया गया है। इस पाठ में भारतीय संस्कृति के महत्व और महानता को बताया गया है।
मानव-जीवनस्य संस्करणं संस्कृतिः। अस्माकं पूर्वजाः मानवजीवन संस्कर्तुं महान्तं प्रयत्नम् अकुर्वन्। ते अस्माकं जीवनस्य संस्करणाय यान् आचारान् विचारान् च अदर्शयन् तत् सर्वम् अस्माकं संस्कृतिः ।
अनुवाद – मानव जीवन को संवारना ही संस्कृति है। हमारे पूर्वज मानव जीवन को संवारने के लिए अत्यधिक प्रयत्न किए। वे हमारे जीवन को संवारने के लिए जो आचार और विचार दिखाए वे सब हमारी संस्कृति है।
‘विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक एव’ इति भारतीय संस्कृतेः मूलम्। विभिन्नमतावलम्बिनः विविधैः नामभिः एकम् एव ईश्वरं भजन्ते। अग्निः, इन्द्रः, कृष्णः, करीमः, रामः, रहीमः, जिनः, बुद्धः, ख्रिस्तः, अल्लाहः इत्यादीनि नामानि एकस्य एव परमात्मनः सन्ति। तम् एव ईश्वरं जनाः गुरुः इत्यपि मन्यन्ते। अतः सर्वेषां मतानां समभावः सम्मानश्च अस्माकं संस्कृतेः सन्देशः ।
अनुवाद – विश्व के रचयिता ईश्वर एक ही हैं। यह भारतीय संस्कृति के मूल में है। विभिन्न मतों के अनुयायी विभिन्न नामों से एक ही ईश्वर की पूजा करते हैं। अग्नि, इंद्र, कृष्ण, करीम, राम, रहीम, जीन, बुद्ध, ईशा और अल्लाह इत्यादि नाम एक ही परमात्मा के हैं। उसी ईश्वर को लोग गुरु ऐसा मानते हैं। अतः सभी मतों की समानता और सम्मान हमारे संस्कृति का संदेश है।
भारतीया संस्कृतिः तु सर्वेषां मतावलम्बिनां संगमस्थली। काले काले विविधाः विचाराः भारतीय-संस्कृतौ समाहिताः। एषा संस्कृतिः सामासिकी संस्कृतिः यस्याः विकासे विविधानां जातीनां सम्प्रदायानां विश्वासानांच योगदानं दृश्यते। अतएव अस्माकं भारतीयानाम् एका संस्कृतिः एका च राष्ट्रीयता। सर्वेऽपि वयं एकस्याः संस्कृतेः समुपासकाः, एकस्य राष्ट्रस्य च राष्ट्रियाः। यथा भ्रातरः परस्परं मिलित्वा सहयोगेन सौहार्देन च परिवारस्य उन्नतिं कुर्वन्ति, तथैव अस्माभिः अपि सहयोगेन सौहार्देन च राष्ट्रस्य उन्नतिः कर्त्तव्या।
अनुवाद – भारतीय संस्कृति ही सभी मतों के अनुयायियों की संगम स्थली है। समय-समय पर विविध प्रकार के विचार भारतीय संस्कृति में समाहित हुए हैं। यह संस्कृति सामासिक संस्कृति है। जिसके विकास में विभिन्न प्रकार के जातियों का, संप्रदायों का और विश्वासों का योगदान दिखाई देता है। इसलिए हमारे भारतीयों की एक संस्कृति और राष्ट्रीयता है। जिस प्रकार भाई आपस में मिलकर सहयोग और सौहार्द्र से परिवार की उन्नति करते हैं, उसी प्रकार हम भी सहयोग और सौहार्द्र से राष्ट्र की उन्नति कर सकते हैं।
अस्माकं संस्कृतिः सदा गतिशीला वर्तते। मानवजीवनं संस्कर्तुम् एषा यथासमयं नवां नवां विचारधारां स्वीकरोति, नवां शक्ति च प्राप्नोति। अत्र दुराग्रहः नास्ति, यत् युक्तियुक्तं कल्याणकारि च तदत्र सहर्षं गृहीतं भवति। एतस्याः गतिशीलतायाः रहस्यं मानव जीवनस्य शाश्वतमूल्येषु निहितम्, तद् यथा सत्यस्य प्रतिष्ठा, सर्वभूतेषु समभावः विचारेषु औदार्यम्, आचारे दृढ़ता चेति।
अनुवाद –हमारी संस्कृति सदैव से ही गतिशील रही है। मानव जीवन संवारने के लिए यह समय-समय पर नवीन-नवीन विचारधारा स्वीकार करती है और नवीन शक्ति प्राप्त करती है। यहां कोई भी दुष्ट प्रवृत्ति का नहीं है। जो उचित और कल्याणकारी है वह यहाँ सहर्ष ग्रहण होता है। इसकी गतिशीलता का रहस्य मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों में निहित है। वह जैसे सत्य की प्रतिष्ठा, सभी प्राणियों समानता के भाव भाव, विचारों में उदारता और आचार में दृढ़ता इत्यादि हो।
एषा कर्मवीराणां संस्कृतिः। ‘कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः’ इति अस्याः उद्घोषः। पूर्व कर्म, तदनन्तरं फलम् इति अस्माकं संस्कृते नियमः। इदानीं यदा वयं राष्ट्रस्य नवनिर्माणे संलग्नाः स्मः निरन्तरं कर्मकरणम् अस्माकं मुख्यं कर्त्तव्यम्। निजस्य श्रमस्य फलं भोग्यं, अन्यस्य श्रमस्य शोषणं सर्वथा वर्जनीयम्। यदि वयं विपरीतम् आचरामः तदा न वयं सत्यं भारतीय संस्कृतेः उपासकाः। वयं तदैव यथार्थं भारतीयाः यदा अस्माकम् आचारे विचारे च अस्माकं संस्कृतिः लक्षिता भवेत्। अभिलाषामः वयं यत् विश्वस्य अभ्युदयाय भारतीय संस्कृतेः एषः दिव्यः सन्देशः लोके सर्वत्र प्रसरेत्।
अनुवाद –– यह कर्मवीरों की संस्कृति है। कर्म करते हुए व्यक्ति को सौ वर्ष तक जीने की इच्छा रखनी चाहिए, यह संस्कृति का उदघोष है। पहले कर्म तत्पश्चात फल, यह हमारे संस्कृति का नियम है। अब जब हम जिस राष्ट्र के नवनिर्माण में लगे थे, निरंतर कर्म करना हमारा मुख्य कर्तव्य है। अपने श्रम का भोग करना चाहिए। दूसरे के श्रम का शोषण कभी नहीं करना चाहिए। यदि हम विपरीत आचरण करते हैं तो सच्ची भारतीय संस्कृति के उपासक हम नहीं हैं। हम तभी वास्तविक भारतीय हैं जब हमारे आचार और विचार हमारी संस्कृति में लक्षित होते हैं। विश्व के कल्याण की इच्छा से भारतीय संस्कृति अपना दिव्य संदेश संसार में सर्वत्र प्रसारित करती है।
“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्।।”
अनुवाद – सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों। सभी का कल्याण हो, किसी को किसी प्रकार का कोई दुख न हो।