तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेन्द्र अतिरिक्त प्रश्न उत्तर extra questions

तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेन्द्र अतिरिक्त प्रश्न उत्तर extra questions

1- ‘तीसरी कसम’ को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता क्यों कहा गया है?

उत्तर- ‘तीसरी कसम’ भावनापूर्ण फ़िल्म थी। उसके भाव किसी भावपूर्ण कविता जैसे गहरे सूक्ष्म और कलात्मक थे। इस कारण उसे कागज़ पर लिखी कविता न कहकर फ़िल्मी रील पर लिखी गई कविता कहा गया है।

2- ‘तीसरी कसम’ फिल्म में शैलेंद्र की किस विशेषता के दर्शन होते हैं?

उत्तर- ‘तीसरी कसम फिल्म में शैलेंद्र ने फिल्म में साहित्यिकता को बराबर बनाए रखा। उन्होंने फिल्म को सस्ता और चलताऊ बनने की बजाय दर्शकों की रुचि को संस्कारित करने का प्रयास किया।

3- शैलेंद्र की फ़िल्म की कहानी सुनकर राजकपूर ने क्या कहा और शैलेंद्र किस उलझन में पड़ गए ?

उत्तर- शैलेंद्र की फ़िल्म की कहानी सुनकर राजकपूर ने उसमें उत्साहपूर्वक काम करना स्वीकार कर लिया। राजकपूर ने शर्त रखी कि इसके लिए उन्हें पारिश्रमिक तुरंत देना पड़ेगा। यह सुनकर शैलेंद्र उलझन में पड़ गए। सोचने लगे कि यह कैसा दोस्त है जो पारिश्रमिक तुरंत माँग रहा है।

4- राजकपूर ने ‘तीसरी कसम’ में काम करके अपनी मित्रता किस प्रकार सिद्ध की?

उत्तर- राजकपूर ने ‘तीसरी कसम’ में बिना पारिश्रमिक लिए नायक का अभिनय किया। वे चाहते तो इस फिल्म के बहुत पैसे ले सकते थेपरंतु अपने मित्र के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने उनसे केवल एक रुपया लिया। इस प्रकार उन्होंने सच्ची मित्रता का उदाहरण प्रस्तुत किया।

5- शैलेंद्र ने राजकपूर और वहीदा रहमान को किस प्रकार सच्चा कलाकार बनाया?

उत्तर- शैलेंद्र ने राजकपूर और वहीदा रहमान को अपने-अपने चरित्रों में खो जाने के लिए प्रेरित और निर्देशित किया। ये दोनों कलाकार अपने चरित्रों में खो गए। इस प्रकार वे सच्चे कलाकार बन गए।

6- ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ में राजकपूर के सर्वोत्कृष्ट अभिनय का श्रेय किसे दिया गया

उत्तर- निर्माता शैलेंद्र की भाव- प्रवणता को ।

7- शैलेंद्र फ़िल्म जगत में रहकर भी वहाँ के तौर-तरीकों को क्यों न अपना सके?

उत्तर- शैलेंद्र मूल रूप से कवि और गीतकार थे। उनके अपने कुछ मूल्य थे, आदर्श थे। वे इनसानियत और संवेदना को बहुत अधिक महत्त्व देते थे। इसलिए उन्होंने फ़िल्म बनाते समय अपने इन मूल्यों से कोई समझौता नहीं किया। उसके लिए उन्हें फ़िल्मी तौर-तरीकों को ठुकराना पड़ा, तो ठुकरा दिया।

8- ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म प्रदर्शित होने पर भी गुमनाम सी क्यों रही?

उत्तर- ‘तीसरी कसम’ व्यावसायिक फ़िल्म नहीं थी। अतः न तो उसे खरीदने वाले वितरक सामने आए, न इसके प्रचार-प्रसार पर पैसा लगाया गया। अतः फ़िल्म गुमनामी में प्रदर्शित होकर चलती बनी। उसकी चर्चा तब हुई, जब उसे सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार मिला।

9- ‘तीसरी कसम’ में हीरामन के अभिनय में कौन हावी रहा और क्यों?

उत्तर- ‘तीसरी कसम’ में हीरामन नामक सीधे-सादे ग्रामीण गाड़ीवान की कहानी है। इस पात्र का अभिनय करने वाले राजकपूर बहुत ही महिमावान और प्रभावी कलाकार थे। परंतु फिर भी उन्होंने अपनी अभिनय-कुशलता से राजकपूर को हीरामन पर हावी नहीं होने दिया। वे फ़िल्म में पूरी तरह हीरामन बन गए-मुहब्बत और दिल की जुबान बोलने वाले सरल गाड़ीवान। इसी कारण हीरामन के अभिनय में जान आ सकी।

10- शैलेंद्र द्वारा व्यक्त करुणा की विशेषता बताइए।

उत्तर-शैलेंद्र ने ‘तीसरी कसम’ में जिस करुणा को फ़िल्म में रचा-बसाकर प्रस्तुत किया, उसमें संघर्ष और जूझने की प्रेरणा थी। वह दर्शक को परास्त नहीं करती थी, बल्कि और अधिक जूझकर कर्म करने की प्रेरणा देती थी।

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