पर्वत प्रदेश में पावस भावार्थ, व्याख्या, बहुविकल्पीय प्रश्न mcq क्लास 10 स्पर्श

इस पोस्ट में हमलोग पर्वत प्रदेश में पावस कविता की व्याख्या व भावार्थ, बहुविकल्पीय प्रश्न, पर्वत प्रदेश में पावस पद्यांश के mcq को पढ़ेंगे। यह कविता क्लास 10 हिंदी के स्पर्श भाग 2 से लिया गया है।

पर्वत प्रदेश में पावस कविता का भावार्थ व व्याख्या क्लास 10 स्पर्श / explain parwat pradesh mein kavita

पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति- वेश ।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग- सुमन फाड़,

अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल

भावार्थ व व्याख्या- कवि कहता है कि पर्वतीय क्षेत्र था। वर्षा ऋतु में ऐसा लगता था मानो प्रकृति पल-पल अपना रूप बदल रही थी। सामने विशालकाय पर्वत करधनी के समान दूर-दूर तक फैला था। उस पर हजारों फूल खिले हुए थे। वे फूल मानो पर्वत की आँखें थीं। ऐसा लगता था मानो वह पर्वत अपनी हजार-हजार आँखों से नीचे फैले जल में अपने विशाल आकार को निहार रहा हो। उस पर्वत के पाँवों के पास एक विशाल तालाब था जो दर्पण के समान साफ़-स्वच्छ और पारदर्शी था। उसमें से पर्वत का प्रतिबिंब झाँक रहा था।

पर्वत प्रदेश में पावस कविता के बहुविकल्पीय प्रश्न क्लास 10 mcq 

1. ‘पावस ऋतु’ का आशय है-
(क) पतझड़
(ख) वर्षा
(ग) सर्दी
(घ) वसंत।

2. प्रकृति में पल-पल क्या घटित हो रहा था?

(क) रंग बदल रहा था।
(ख) हवाएँ बदल रही थीं।
(ग) वातावरण बदल रहा था।
(घ) लोग कपड़े बदल रहे थे।

3. पर्वत की आँखें किन्हें कहा गया है?

(क) पेड़ों को
(ख) फूलों को
(ग) वनस्पति को
(घ) चोटी को

4. दर्पण किसे कहा गया है?
(क) पर्वत के नीचे स्थित ताल को
(ख) पर्वत से निकलते झरनों को
(ग) पर्वत से निकलती नदी को
(घ) समुद्र तट को

5. अपने महाकार को कौन देख रहा है?
(क) मेखला
(ख) पर्वत
(ग) सुमन
(घ) प्रकृति

उत्तर- 1. (ख) 2. (ग) 3. (ख) 4. (क) 5. (ख)

गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर !

गिरिवर के उर से उठ उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर

पर्वत प्रदेश में पावस भावार्थ व व्याख्या– पहाड़ों की छाती पर बहने वाले झाग जैसे जल वाले झरने ऐसे मनोरम लगते हैं मानो ये मोतियों की लड़ियाँ हों। ये झर-झर की ध्वनि में मानो पर्वत की महानता का गुणगान कर रहे हैं। इस स्वर को सुनकर दर्शकों की नस नस में उत्तेजना भर जाती है। वे उत्साह और उमंग से ओतप्रोत हो जाते हैं।

पहाड़ की छाती में से उगकर निकले हुए ऊँचे वृक्ष मन में उठी ऊँची आकांक्षा के समान लंबे हैं। ये शांत आकाश में झाँकते हुए एकदम मौन, अपलक अटल और चिंतालीन खड़े हैं मानो आकाश का रहस्य सुलझाने में लगे हों।

पर्वत प्रदेश में पावस mcq 

1. निर्झर किसका गौरव गान कर रहे हैं?
(क) हिमालय का
(ख) नदी का
(ग) पर्वत का
(घ) बादलों का।

2. ‘झाग-भरे निर्झर’ क्यों कहा गया है?
(क) झरने की श्वेत धारा के कारण
(ख) बुलबुलों के कारण
(ग) साबुन के घोल के कारण
(घ) निर्मलता के कारण।

3. ‘उच्चाकांक्षा से तरुवर’ का आशय क्या है-

(क) आकांक्षा से भरे हुए पेड़
(ख) कमाऊ पेड़
(ग) बहुत ऊँचे पेड़
(घ) पेड़ों की आकांक्षाएँ।

4. पेड़ों के समूह कहाँ स्थित हैं?
(क) नभ पर
(ख) उर पर
(ग) पहाड़ पर
(घ) धरती पर।

5. ‘अनिमेष’ का तात्पर्य है-
(क) तुरंत
(ख) अपलक
(ग) अनियमित
(घ) पलक झपकाकर

उत्तर- 1. (ग) 2. (क) 3. (ग) 4(ग) 5. (ख)


उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार पारद के पर!
स्व- शेष रह गए हैं निर्झरा
है टूट पड़ा भू पर अंबर !

धँस गए धरा में सभय शाल !
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल !
यों जलद-यान में विचर – विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल


भावार्थ व व्याख्या- कवि कहता है उधर देखने से लगता है कि एक पूरा पहाड़ पारे के समान धवल और चमकीले पंखों को फड़फड़ाता हुआ ऊपर आकाश में उड़ चला है। आशय यह है कि अचानक पहाड़ के समान बहुत अधिक श्वेत और चमकीले बादल आकाश में छा गए हैं। यहाँ तक कि झरने भी दीखना बंद हो गए हैं। बस उनकी झर-झर आवाज़ शेष रह गई है। तुरंत बाद उन बादलों से इतनी तेज वर्षा हुई कि लगा जैसे आकाश धरती पर टूट पड़ा हो उसने बारिश रूपी बाणों से धरती पर आक्रमण कर दिया हो। शाल के पेड़ बादलों के झुंड में ऐसे धँसे हुए प्रतीत हो रहे हैं कि लगता है मानो वे भयभीत होकर धरती में धँस गए हों। तालाब के जल से इस तरह धुआँ उठने लगा है मानो तालाब के जल में आग लग गई हो। इस प्रकार वर्षा का देवता इंद्र बादल रूपी विमान में घूम-घूमकर अपने जादुई खेल दिखा रहा है। आशय यह है कि वर्षा में पहाड़ पर क्षण-क्षण में अद्भुत दृश्य दिखाई देते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न 

1. ‘उड़ गया, अचानक लो, भूधर’ का आशय है-
(क) पहाड़ उड़ गया।
(ख) पहाड़ तैरने लगा।
(ग) बादल का विशाल समूह उड़ चला।
(घ) विशाल बादल धरती पर गिर पड़ा।

2. ‘पारद के पर’ किसे कहा गया है?
(क) चमकीले बादलों को
(ख) बादल रूपी पक्षी
(ग) पक्षियों के पंखों को
(घ) बादलों के पंखों को।

3. ‘रव – शेष रह गए हैं निर्झर’ का आशय है-
(क) झरने मौन हो गए हैं।
(ख) झरने दिखाई दे नहीं रहे।
(ग) झरनों की आवाज़ ही शेष रह गई है।
(घ) झरने नष्ट हो गए हैं।

4. शाल के पेड़ धरा में क्यों भैंस गए?
(क) धरती गीली हो गई थी।
(ख) बादलों के दबाव से ।
(ग) बादलों के छाने के कारण शाल के पेड़ धरती में धँसे जान पड़ रहे थे।
(घ) शाल के पेड़ वर्षा के जल में डूब गए थे।

5. ‘जलद – यान’ पर कौन क्रीड़ा कर रहा था ?
(क) इंद्रजाल
(ख) इंद्रयान
(ग) इंद्र
(घ) निर्झर ।

उत्तर- 1. (ग) 2. (क) 3. (ग) 4. (ग) 5. (ग)

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