भक्तिन पाठ के प्रश्न उत्तर क्लास 12 आरोह भाग दो
1- भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?
उत्तर– भारतीय समाज में बच्चे का नामकरण प्रायः पंडित या माँ-बाप द्वारा होता है। भक्तिन का असली नाम-लछमिन अर्थात् लक्ष्मी उनके माता-पिता द्वारा दिया गया होगा। शायद घर में इस नाम का बार-बार उच्चारण करने से लक्ष्मीजी की कृपा अधिक होगी। उसके जीवन में कभी धन-दौलत की कमी न रहे। लेकिन भक्तिन के जीवन में सब कुछ इसके विपरीत ही हुआ। लक्ष्मिन अपने विशालता और वैभव को सहन करने में अक्षम महसूस करती है। वह अपना यह समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताकर व्यंग्य का सामना नहीं करना चाहती। लेखिका के पास आकर वह उनसे प्रार्थना करती है कि उसे उसके असली नाम से न पुकारे। उसने जीवन में कभी सुख-समृद्धि और लक्ष्मी के आशीर्वाद का स्वाद नहीं चखा। यही कारण है कि भक्तिन लोगों से अपना वास्तविक नाम छुपाती थी।
2- दो कन्या – रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अकसर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर– स्त्री की महानता बच्चे को जन्म देने में नहीं, बल्कि बच्चे का पुत्र होने में है। भारतीय समाज में स्त्री के लिए इससे बड़ी त्रासदी दूसरी कोई नहीं है। स्त्री के जीवन की सार्थकता पुत्र – रत्न पैदा करने में है। ऐसा न होने की स्थिति में उसके परिवार की अन्य स्त्रियाँ उसे घृणा व उपेक्षा का शिकार बना लेती हैं। उसके साथ एक अपराधी जैसा व्यवहार किया जाता है। 21वीं सदी तथाकथित विकसित भारत में हर बात में लड़के को लड़की से श्रेष्ठ और बेहतर समझा जाता है। घर में हर सुख-सुविधा लड़के के लिए होती है, हर कार्य लड़की के लिए होता है। फिर भी एक स्त्री के लिए लड़की को जन्म देना समाज से दुश्मनी लेना है, विशेषकर घर की अन्य स्त्रियों से। लेखिका ने भारतीय समाज में व्याप्त इस क्रूर सत्य को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है।
3- भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करें यान करें अथवा किस से करें) को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?
उत्तर– महादेवी जी ने भक्तिन की लड़की के माध्यम से समाज में हो रहे मानवाधिकारों के हनन को चित्रित किया है। इस तरह के समाचार आजकल के सभी समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिल जाते हैं। पुरुष प्रधान समाज में स्त्री बेजुबान है। उसे कोई अधिकार नहीं कि वह अपने मनपसंद वर से शादी कर सके। पिता, भाई या सगे संबंधियों द्वारा चुना गया वर ही लड़की के लिए सर्वश्रेष्ठ वर होता है। ऐसी मान्यता समाज में सदियों से प्रचलित है। भक्तिन की विधवा लड़की उस लड़के से शादी करने को बाध्य हुई, आवारा है, उस लड़की के लिए घृणा का पात्र है। यह मात्र एक घटना नहीं है, बल्कि उन सभी घटनाओं का प्रतीक है, जो समाज को एक दीमक की तरह खोखला कर रही है। स्त्री के मानवाधिकारों को कुचलने की सामाजिक परम्परा का प्रतीक है।
4- ‘भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं’ लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर– कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता। कोई न कोई कमी, दुर्गुण या अवगुण व्यक्ति में कम या अधिक मात्रा में विद्यमान रहते हैं। यही बात भक्तिन पर भी अक्षरतः लागू होती है। भक्तिन भी इन सर्वसुलभ गुण-अवगुणों से अछूती नहीं है। वह सरल स्वभाव, मेहनत, दृढ़ता, पाक कला में निपुण तथा सबसे बढ़कर लेखिका की अनन्य सेविका है। इसके साथ-साथ लेखिका के इधर-उधर पड़े रुपए-पैसे को वह अपना समझकर भंडारघर की मटकी में डालना अनुचित नहीं समझती। अपनी स्वामिनी की खुशी के लिए झूठ बोलना उसे न्यायसंगत लगता है। शायद यही कारण है कि लेखिका ने ऐसा कहना उचित समझा।
5- भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?
उत्तर– भक्तिन हर बृहस्पतिवार को अपने सिर का मुंडन (गंजा) करवाती है। लेखिका के ऐसा न करने के लिए उसे अखरता है। इस कार्य को शास्त्र में लिखा हुआ बताती है और उचित ठहराती है। वह अनपढ़ है जो उसे पता है या उसे अच्छा लगता है, वह शास्त्र है। यद्यपि उसका शास्त्र वचन’तीरथ गए मुँडाए सिद्ध’ लेखिका की समझ से भी परे हैं, लेकिन फिर भी वह अपने इस शास्त्र स्मत्त कार्य को लगातार पूर्ण करवाती रहती है।
6- भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई?
उत्तर– जब से भक्तिन का रसोई पर अधिकार हुआ है, महादेवी जी उसके हाथ का बनाया हुआ खाने को बाध्य है, भले ही उसे वह भाए या नहीं। भक्तिन एक ऐसा सुदृढ़ चरित्र है जिस पर शहर की हवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि वह महादेवी जी को अपने रंग में रंग लेती है। उसे ग्रामीण परिवेश के भोजन की आदी बना देती हैं, जैसे- मकई का रात को बना दलिया, बाजरे के तिल लगाकर बनाए गए पुए, ज्वार की खिचडी तथा महुए की लपसी और गुड़ अब लेखिका को भाते हैं। यहाँ तक कि उसने लेखिका को अपनी ही भाषा में कई दंत कथाएँ भी सीखा दी है। यही कारण है भक्तिन के आ जाने पर लेखिका अब देहाती हो गई हैं।
भक्तिन पाठ के आस-पास
1. आलो आँधारि की नायिका और लेखिका बेबी हालदार और भक्तिन के व्यक्तित्व में आप क्या समानता देखते हैं?
उत्तर– आलो-आँधारि की नायिका, लेखिका बेबी हालदार और भक्तिन के व्यक्तित्व में निम्नलिखित समानताएँ दिखाई देती हैं
(क) दोनों अपने मालिक के प्रति पूर्ण समर्पित भावना रखती हैं।
(ख) दोनों को अपने मालिक की सेवा का सानिध्य प्राप्त हुआ। बेबी हालदार को तातुश का और भक्तिन को महादेवी वर्मा का।
(ग) दोनों के मालिक सरल हृदय, आत्मीयता की भावना से पूर्ण तथा दुःख-दर्द को समझने वाले थे।
(घ) दोनों का जीवन अत्यन्त दुखी एवम् अपेक्षित था। भक्तिन अपनी सास, जिठानियों एवं पंचायत की उपेक्षा का शिकार थी और बेबी हालदारअपने भाई- भाभियों की उपेक्षा का शिकार थी।
(ङ) दोनों का चरित्र अत्यन्त पवित्र था। दोनों नौकर होते हुए भी प्रतिभावान महिलाएँ थीं। बेबी हालदार लेखिका के रूप में समाज के सामने आईऔर भक्तिन अनपढ़ होने के कारण कितनी दंतकथाओं को प्रायः महादेवी वर्मा को सुनाया करती थी।
2. भक्तिन की बेटी के मामले में जिस तरह का फैसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज बात नहीं है अखबारों या टी. वी. समाचारों में आनेवाली किसी ऐसी ही घटना को भक्तिन के उस प्रसंग के साथ रखकर उस पर चर्चा करें।
उत्तर– विद्यार्थी अध्यापक के साथ कक्षा में चर्चा करें।
3. पाँच वर्ष की वय में ब्याही जानेवाली लड़कियों में सिर्फ भक्तिन नहीं है, बल्कि आज भी हजारों अभागिनियाँ हैं। बाल-विवाह और उम्र के अनमेलपन वाले विवाह की अपने आसपास हो रही घटनाओं पर दोस्तों के साथ गंभीर परिचर्चा करें।
उत्तर– आस-पड़ोस की घटनाओं की परिचर्चा करें।
4. महादेवी जी इस पाठ में हिरनी सोना, कुत्ता बसंत, बिल्ली गोधूलि आदि के माध्यम से पशु-पक्षी को मानवीय संवेदना से उकेरने वाली लेखिका के रूप में उभरती हैं। उन्होंने अपने घर में और भी कई पशु-पक्षी पाल रखे थे तथा उन पर रेखाचित्र भी लिखे हैं। शिक्षक की सहायता से उन्हें ढूँढ़कर पढ़ें। जो मेरा परिवार नाम से प्रकाशित है।
उत्तर– विद्यार्थी स्वयं पुस्तकालय से ‘मेरा परिवार’ पुस्तक ढूंढ कर पढ़ें।
भक्तिन भाषा की बात
1- नीचे दिए गए विशिष्ट भाषा प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ-छवि स्पष्ट कीजिए
(क) पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले
(ख) खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी
(ग) अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण
उत्तर
(क) ‘पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले’ महादेवी का विशिष्ट प्रयोग है। लड़कियों के जन्म को बड़े ही साहित्यिक ढंग से प्रस्तुत कियागया है। संस्करण शब्द सामान्यतः किसी पुस्तक के प्रकाशन और मुद्रण में किया जाता है। महादेवी वर्मा जी लड़की के बाद अन्य दो लड़कियों के जन्म को प्रभावशाली ढंग से कहने में सफल रही है।
(ख) पत्नी द्वारा जन्म दी गई लड़कियों के कारण उसे खोटे सिक्कों की टकसाल कहा गया है। लड़कियों को खोटे सिक्के तथा पत्नी को टकसाल कहकर लेखिका ने हमारी उस कुवृत्ति को इंगित किया है, जहाँ अभी भी लड़की को एक अभिशाप माना जाता है। उनको जन्म देने वाली माँ को भी अपराध बोध से देखा जाता है, लेखिका ने शुद्ध साहित्यिक भाषा में समाज की इस कुवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है।
(ग) भक्तिन जब अपने पिता की मृत्यु का समाचार मिलने पर घर आती है। तो गाँव वालों की ‘हाय लछमिन अब आई’ अस्पष्ट ध्वनि बार-बार उसे सुनाई दे रही थी। जैसे लोग उसे उलाहना दे रहे हो कि लछमिन पिता की मृत्यु से पहले उसे देखने क्यों नही आई। दूसरी तरफ गाँव वालों की सहानुभूति भी लछमिन के साथ स्पष्ट दिखाई दे रही थी क्योंकि सौतेली माँ का उसके प्रति व्यवहार ठीक नहीं था। लेखिका ने गाँव वालों की इस दोहरी मानसिकता का वर्णन बड़े ही सटीक और प्रभावशाली ढंग से किया है। प्रयुक्त वाक्य लेखिका के विशिष्ट भाषा प्रयोग का एक अतुलनीय उदाहरण है।
2- ‘बहनोई’ शब्द ‘बहन (स्त्री.) + ओई’ से बना है। इस शब्द में हिंदी भाषा की एक अनन्य विशेषता प्रकट हुई है। पुलिंग शब्दों में कुछ स्त्री-प्रत्यय जोड़ने से स्त्री लिंग शब्द बनने की एक समान प्रक्रिया अन्य भाषाओं में दिखती है, पर स्त्रीलिंग शब्द में कुछ पुं. प्रत्यय जोड़कर पुंलिंग शब्द बनानेकी घटना प्रायः अन्य भाषाओं में दिखलाई नहीं पड़ती। यहाँ पुं. प्रत्यय ‘ओई’ हिंदी की अपनी विशेषता है। ऐसे कुछ और शब्द और उनमें लगे पुं. प्रत्ययों की हिंदी तथा और भाषाओं में खोज करें।
उत्तर– बहनोई शब्द ‘बहन’ (स्त्रीलिंग शब्द) में ‘आई’ (पुल्लिंग) प्रत्यय जोड़ने से बना है। इसी प्रकार ननद + ओई से ननदोई शब्द बनता है, जो पुल्लिंग शब्द है। अन्य भाषाओं में इस प्रकार की शब्द रचना नहीं दिखाई देती। हिन्दी भाषा की यह एक अनन्य विशेषता है। इसमें ऐसे पुल्लिंग प्रत्ययों का प्रयोग मिलता है, जैसे भैंस स्त्रीलिंग शब्द में आ प्रत्यय से भैंसा पुल्लिंग शब्द बना है। हरियाणा लोक बोली में रांड (विधवा) शब्द स्त्रीलिंग है। जिसमें ‘आ’ पुल्लिंग प्रत्यय से रांडा (विधुर) शब्द बना है।
3- पाठ में आए लोकभाषा के इन संवादों को समझ कर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में ढाल कर प्रस्तुत कीजिए
(क) ई कउन बड़ी बात आय। रोटी बनाय जानित है, दाल राँध लेइत है, साग-भाजी छँउक सकित है, अउर बाकी का रहा।
(ख) हमारे मालकिन तौ रात दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़े लागब तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।
(ग) ऊ बिचरिअठ तौ रात-दिन काम माँ झुकी रहती हैं, अउर तुम पचै घूमती-फिरती है। चलौ तनिक हाथ बटाय लेउ ।
(घ) तब ऊ कुच्छों करिहैं-धरिहैं ना बस गली-गली गाउत – बजाउत फिरिहैं।
(ङ) तुम पचै का का बताई यहै पचास बरिस से संग रहित हैं।
(च) हम कुकुरी बिलारीन होयँ, हमार मन पुसाई तौ हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पचै की छाती पै होरहा भूँजब और राज करब, समुझे रहो।
उत्तर
(क) यह कौन-सी बड़ी बात है? रोटी टी बनाना जानती हूँ, दाल पका लेती हूँ, साग-सब्जी छोंक सकती हूँ और बाकी क्या रह गया?
(ख) हमारी मालकिन तो दिन-रात पुस्तकों में व्यस्त रहती है। यदि हम भी पढ़ने लग गई तो घर-गृहस्थी की देखभाल कौन करेगा?
(ग) वह बेचारी तो दिन-रात काम में लगी रहती हैं; और तुम सब घूमते-फिरते हो। चलो थोड़ा सा उनका हाथ बंटा लो।
(घ) तब वे कुछ भी नहीं करते, बस गली-गली गाते-बजाते फिरते हैं।
(ङ) तुम लोगों को क्या-क्या बताऊँ- यहाँ पचास वर्ष से साथ रह रहे हैं।
(च) मैं कुतिया बिल्ली नहीं हूँ, हमारा मन करेगा तो दूसरे के घर जाऊँगी, नहीं तो तुम लोगों की छाती पर ही मूँग दलूँगी और राज करूँगी, समझे।
4- भक्तिन पाठ में पहली कन्या के दो संस्करण जैसे प्रयोग लेखिका के खास भाषाई संस्कार की पहचान कराता है, साथ ही ये प्रयोग कथ्य कोसंप्रेषणीये बनाने में भी मददगार है। वर्तमान हिंदी में भी कुछ अन्य प्रकार की शब्दावली समाहित हुई है। नीचे कुछ वाक्य दिए जा रहे हैं जिससेवक्ता के खास पसंद का पता चलता है। आप वाक्य पढ़कर बताएँ कि इनमें किन तीन विशेष प्रकार की शब्दावली का प्रयोग हुआ है? इनशब्दावलियों या इनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं विशेष शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए आप भी कुछ वाक्य बनाएँ और कक्षा में चर्चा करें कि ऐसेप्रयोग भाषा की समृद्धि में कहाँ तक सहायक है?
—अरे! उससे सावधान रहना! वह नीचे से ऊपर तक वायरस से से भरा हुआ है ।जिस सिस्टम में जाता है उसे हैंग कर देता है।
—घबरा मत! मेरी इनस्वींगर के सामने उसके सारे वायरस घुटने टेकेंगे। अगर ज्यादा फाउल मारा तो रेड कार्ड दिखा के हमेशा के लिए पवेलियनभेज दूँगा ।
—जॉनी टेंसल नई लेने का वो जिस स्कूल में पढ़ता है अपुन उसका हैडमास्टर है।
उत्तर– भाषा का प्रवाह एक नदी के समान होता है। अपने प्रवाह के दौरान उसे जो कुछ भी मिलता है उसे अपने में समाहित करती चलती है। जो कुछ उसके लिए बेकार हो जाता है उसे छोड़ दिया जाता है। इसी प्रकार भाषा भी लोक बोली, विभिन्न क्षेत्रों, व्यवसायों, धर्मों तथा विभिन्न मानसिकताओं के लोगों के शब्दों से हमेशा समृद्ध होती है। दिए गए तीन वाक्यों से स्पष्ट प वक्ता की पंसद का स्पष्ट पता चलता है। ‘अरे! उससे सावधान हैंग कर देगा’ वाक्य का वक्ता कम्प्यूटर का अच्छा जानकार है। दूसरे वाक्य के वक्ता क्रिकेट के शौकीन हैं। तीसरे वाक्य में मुम्बईस्टाइल का टपोरीपन स्पष्ट झलकता है। अन्य विभिन्न प्रकार की विशेष शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए वाक्य अध्यापक की सहायता से स्वयं बनाएं। ये विषय राजनीति, अर्थशास्त्र, किसी बोली विशेष या किसी विशेष व्यवस्था से सम्बन्धित हो सकते हैं।