चार्ली चैपलिन यानी हम सब पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 12
1- लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?
उत्तर– चार्ली चैप्लिन की फिल्में 70-80 वर्षों से लोगों को हँसा रही हैं। पूरा विश्व टी.वी. और फिल्मों के माध्यम से उसे ‘घड़ी’ सुधारते या जूते ‘खाने’ की कोशिश को देखकर गद्गद हो रहा है। लेकिन उसे पूरी तरह से कोई नहीं जान पाया। उनकी कुछ ऐसी फिल्में और इस्तेमाल न की गई रीले उपलब्ध हुई हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता है। दुनिया का दूसरा कोई भी कमेडियन (विदूषक) उनकी सार्वभौमिकता को छू नहीं पाया।उसकी सफलता और व्यापकता के बारे में किसी को भी पूर्ण ज्ञान नहीं है। लेखक ने इसलिए कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा।
2- चैप्लिन ने न सिर्फ़ फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने का और वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
उत्तर– चार्ली चैप्लिन की फिल्में हर वर्ग और देश में समान रूप से लोकप्रिय हैं। पागलखाने के मरीजों और पागलों से लेकर आइन्स्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले व्यक्ति भी इनकी हास्यकला के दीवाने हैं। इस हास्यकला ने सभी को समान रूप से हँसाया है। फिल्में प्रायः किसी वर्ग या वर्ण विशेष को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं और उसी वर्ग या वर्ण विशेष द्वारा देखी और सराही भी जाती है। लेकिन चार्ली चैप्लिन की फिल्मों ने इनसारी सीमाओं को तोड़ दिया। राजा – भिखारी, स्त्री-पुरुष, बच्चे – बुढ़े -युवा, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया। सभी को समान रूप से हँसाया है। इस दृष्टि से उसकी फिल्मों ने फिल्म-कला को लोकतान्त्रिक बनाकर उनमें समता की भावना का प्रचार-प्रसार किया।
3- लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गांधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा?
उत्तर– चार्ली चैप्लिन का भारतीयकरण राजकपूर ने ‘आवारा’ फिल्म के माध्यम से किया, जो चैप्लिन की फिल्म ‘दी ट्रैम्प’ का अनुवाद है। चार्ली चैप्लिन की अपने ऊपर हँसने की कला भारतीय सौंदर्यशास्त्र के लिए बिल्कुल नई है। भारतीय इतिहास और संस्कृति में जो भी हास्य मिलता है वह अधिकांशतः पर संताप से प्रेरित है । चार्ली के इस नितांत अभारतीय हास्यकला को भारतीय संस्कृति के रोम-रोम में बसाने का श्रेय राजकपूरजी को जाता है, जिसे लेखक ने चार्ली का युवा अवतार भी कहा है। गांधी और नेहरू दोनों ही ज़मींन से जुड़े हुए नेता माने जाते हैं। महात्मा गांधी से चार्ली चैप्लिन का विशेष पुट था। चार्ली चैप्लिन अपनी हास्यकला से फिल्म-कला को लोकतान्त्रिक बनाकर उसकी सभी वर्ग और वर्णव्यवस्था को समाप्त करके जनमानस पर छाए हुए थे। आध्यात्मिक दृष्टि से मानव स्वयं ईश्वर या नियति का विदूषक या जोकर है। गांधी और नेहरू की विचारधारा भी चार्ली चैप्लिन से मिलती जुलती है, वे भी लोकतन्त्र और आध्यात्म में विश्वास रखते थे। इसी कारण वे चार्ली का सान्निध्य चाहते थे।
4- लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथआए हों ?
उत्तर– कला स्वतन्त्र होती है, उसे सिद्धान्तों में नहीं बांधा जा सकता। यदि कला बुद्धि की अपेक्षा भावना पर आधारित हो, तभी रस उत्पन्न होता है। यही रस उस कला कृति से महान हो जाता है जिस कलाकृति से वह उत्पन्न हुआ है। चार्ली चैप्लिन की कला को दुनिया में शायद ही कोई जान पाया हो, लेकिन उसकी हास्य कला से उत्पन्न रस का स्वाद चखने से कोई भी व्यक्ति वंचित नहीं । कला या कलाकृति की जानकारी सीमित होती है, जबकि रस व्यापक होता है। चार्ली चैप्लिन की हास्य कला तो रसों का संगम है- त्रासदी, करुणा और हास्य । जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है।
एक सैनिक के शहीद होने पर करुण और वीर रस की झलक मिलती है। पागल की गतिवधियों से करुण और हास्य रस उत्पन्न होता है।
5- जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया?
उत्तर– चार्ली चैप्लिन ने अपने जीवन में बचपन से अनेक कठिनाइयों का सामना किया। एक परित्यक्ता तथा दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटाहोना, बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना तथा समाज द्वारा दुत्कारा जाना यह सभी ऐसी परिस्थितियाँ थी जिनसे चार्ली चैप्लिन को जीवन में अनेक आदर्श जीवन ही नहीं बल्कि मुस्कुराना सिखाया। माता का खानाबदोश और पिता का यहुदी होना चार्ली को एक’धुमंतू’ चरित्र बना देते हैं। उनके बचपन की दो घटनाओं – चार्ली की बीमारी के समय माँ द्वारा सुनाया गया ईसा सूली प्रकरण और कसाईखाने सेभागी हुई भेड़ को पकड़ते समय उत्पन्न हास्य, ने चार्ली को त्रासदी और उससे उत्पन्न हास्य का एकछत्र सम्राट बना दिया।
6- चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी / करुणा / हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्य शास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता?
उत्तर– जीवन में हर्ष और विषाद दोनों ही विद्यमान रहते हैं। भारतीय संस्कृति में करुणा को हास्य में बदलने की परम्परा नहीं है। रामायण, महाभारत और संस्कृत साहित्य में ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलता जहाँ त्रासदी या करुणा से हास्य उत्पन्न दिखाई पड़ता हो। भारतीय साहित्य की परम्परा है कि परंसताप अर्थात् दूसरों के दुख पर हँसना। विदूषक की अपेक्षा स्वयं को नायक मानना। संस्कृत साहित्य के विदूषक राज व्यक्तियों से कुछ बदतमीजियाँ करते हैं लेकिन वहाँ भी वे करुणा और हास्य में सामजस्य पैदा नहीं कर पाए। भारतीय और सौंदर्यशास्त्र में त्रासदी / करुणा/हास्य तीनों का सामूहिक रूप से वर्णन नहीं मिलता ।
7- चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है?
उत्तर– चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत अर्थात् अभिमान से पागल, आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता सभ्यता- समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरे से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ मानता है। जब वह स्वयं को वज्र से भी कठोर तथा फूलों से भी कोमल मानता है तो स्वयं पर ज्यादा हँसी आती है। ये सब खुशियाँ, गर्व तथा महानता उस महीन गुब्बारे के समान हैं, जो एक सुई लगते ही फुस्स हो जाता है। यह सब कुछ निस्सार और अस्थाई है और व्यक्ति इसको चिरस्थाई मानकर उस पर घमंड करता है, तो हँसी का पात्र अवश्य बनता है। इसी कारण चार्ली चैप्लिन भी अपने इन तथा कथित गुणों पर अपनी हँसी को रोक नहीं पाता ।
चार्ली चैपलिन यानी हम सब पाठ के आस-पास
1- आपके विचार से मूक और सवाक् फिल्मों में से किसमें ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?
उत्तर– मूक फिल्मों में सबसे ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है क्योंकि उन्हें सांकेतिक रूप से कथ्य स्पष्ट करने एवम् संवाद के स्पष्टीकरणके लिए अधिक से अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है। सवाक् चित्रपट के बड़े-बड़े कॉमेडियन हुए हैं किन्तु मूक चित्रपट के लिए अधिकपरिश्रम की आवश्यकता होने के कारण चार्ली चैप्लिन जैसा कोई भी कॉमेडियन एक पान नहीं हुआ।
2- सामान्यतः व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते हैं। कक्षा में ऐसी घटनाओं का जिक्र कीजिए जब
(क) आप अपने ऊपर हँसे हों;
(ख) हास्य करुणा में या में या करुणा हास्य में बदल गई हो।
उत्तर
(ख) विद्यालय की छुट्टी उपरान्त मित्रों के साथ साइकिल पर घर हँसते हुए बातें करते जाते हुए अचानक साइकिल से गिर जाने के बाद चोट लगने पर हास्य करुणा में बदल जाती है। छुट्टियाँ शुरू होने पर घर जाते ही किसी मित्र की मृत्यु का समाचार मिले तो हास्य करुणा में बदल जाता है। पिताजी का तबादला दूर शहर में होने पर उनकी जुदाई के गम में करुण भावना, तबादला रुक जाने से हास्य में बदल जाती है। मित्र के एक्सीडेंट की खबर पर उससे मिलने जाने पर उसे एकदम स्वस्थ देखकर करुणा हास्य में बदल जाती है।
3- ‘चार्ली हमारी वास्तविकता है, जबकि सुपरमैन स्वप्न’ आप इन दोनों में खुद को कहाँ पाते हैं?
उत्तर ‘चार्ली हमारी वास्तविकता है जबकि सुपरमैन स्वप्न’ हम इसमें स्वयं को चार्ली की वास्तविकता के साथ पाते हैं क्योंकि सुपरमैन जैसी शक्ति हममें विद्यमान नहीं है लेकिन चार्ली जैसा सामान्य मानव रूप सभी में विद्यमान है। उसका हास्यपूर्ण व्यक्तित्व सभी को प्रभावित करता है। स्वयं हास्य का पात्र बनकर दूसरों को खुशी देना समाजोपयोगी है। आज हमारे चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल है, उसमें अगर हम चार्ली जैसे बन सकें तो समाज को नया जोश और उमंग दे सकते हैं।
4- भारतीय सिनेमा और विज्ञापनों ने चार्ली की छवि का किन-किन रूपों में उपयोग किया हैं? कुछ फ़िल्में (जैसे आवारा, श्री 420, मेरा नाम जोकर, मिस्टर इंडिया और विज्ञापनों (जैसे चैरी ब्लॉसम) को गौर से देखिए और कक्षा में चर्चा कीजिए।)
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करें।
5- आजकल विवाह आदि उत्सव, समारोहों एवं रेस्तराँ में आज भी चार्ली चैप्लिन का रूप धरे किसी व्यक्ति से आप अवश्य टकराए होंगे। सोचकर बताइए कि बाज़ार ने चार्ली चैप्लिन का कैसा उपयोग किया है?
उत्तर– बाजार में चार्ली चैप्लिन के रूप में कपड़ों की दुकान पर विभिन्न वेशभूषा में, कास्मैटिक की दुकान पर नेलपॉलिश की बिक्री के लिए नाखूनबढ़ाये व्यक्ति के रूप में तथा रंगों की बिक्री हेतु विभिन्न रंग लगाये देखा जा सकता है। इस प्रकार उत्पादों की बिक्री बढ़ाने हेतु बाजारों में चार्लीचैप्लिन की छवि का व्यावसायिक इस्तेमाल किया गया है।
चार्ली चैपलिन यानी हम सब भाषा की बात
1- तो चेहरा चार्ली चार्ली हो जाता है। वाक्य में चार्ली शब्द की पुनरुक्ति से किस प्रकार की अर्थ-छटा प्रकट होती है? इसी प्रकार के पुनरुक्त शब्दों का प्रयोग करते हुए कोई तीन वाक्य बनाइए। यह भी बताइए कि संज्ञा किन स्थितियों में विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने लगती है।
उत्तर– वाक्य में चार्ली शब्द की पुनरुक्ति से लेखक चार्ली चैप्लिन के प्रभाव को हमारे ऊपर अधिक मात्रा में स्थापित करने में सफल हुए। चार्लीचैप्लिन को हम सब अपने में देखने को बाध्य हो जाते हैं। इसी प्रकार के अन्य वाक्य हैं – बाग-बाग हो जाना, टूट-टूट कर चूर हो जाना तथा मर-मरकर जीना आदि
संज्ञा शब्दों का प्रयोग जब लक्षणा शक्ति के आधार पर किया जाता है तो ऐसी स्थिति में संज्ञा शब्द विशेषण का कार्य करते हैं। यहाँ चार्ली शब्दसंज्ञा है, लेकिन चेहरे का चार्लीमय हो जाना चार्ली शब्द चेहरे के लिए विशेषण बन जाता है। चार्ली चैप्लिन के अपने ऊपर हँसने के लक्षण हमारेचेहरे पर भी प्रकट हो जाते हैं। जैसे- वह लड़का तो गधा है’ वाक्य में ‘गधे’ के सीधेपन को लड़के पर आरोपित करना ‘गधे’ शब्द को संज्ञा से विशेषण बना देता है।
2- नीचे दिए वाक्यांशों में हुए भाषा के विशिष्ट प्रयोगों को पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
(क) सीमाओं से खिलवाड़ करना
(ख) समाज से दुरदुराया जाना
(ग) सुदूर रूमानी संभावना
(घ) सारी गरिमा सुई चुभे गुब्बारे के जैसी फुस्स हो उठेगी।
(ङ) जिसमें रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं।
(क) सीमाओं से खिलवाड़ करने का तात्पर्य है – सीमाओं को नष्ट करना, अपनी इच्छानुसार उनका निर्धारण करना। चार्ली चैप्लिन ने हास्य कला से समय, भूगोल और संस्कृतियों की सभी सीमाओं को तोड़कर हास्य -कला को शाश्वत सत्य के रूप में स्थापित कर दिया है।
(ख) समाज से दुरदुराए जाने का अर्थ है- समाज द्वारा स्वीकृत न होना, उपेक्षित होना, दूर होना, ठुकराया जाना। दुरदुराया जाना विष्णु खरे जी का विशिष्ट प्रयोग, हिन्दी में सामान्यतः ऐसे शब्दों का प्रयोग कम ही देखने को मिलता है।
(ग) सुदूर रूमानी संभावना एक काल्पनिक विचार है। चार्ली चैप्लिन की खानाबदोशी माँ, नानी तथा उनके वंशजों में कहीं न कहीं भारतीयता का प्रभाव अवश्य रहने की संभावना को लेखक ने बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया है। लेखक ने बड़ी चतुराई से चैप्लिन को भारतीयता से जोड़ हीदिया है।
(घ) ‘सारी गरिमा सुई – गुब्बारे के जैसी फुस्स हो उठेगी’ वाक्य में उदाहरण अलंकार के माध्यम से सारी गरिमा अहम्, तथा अभिमान के नष्ट होने का एक शब्द चित्र प्रस्तुत किया गया है। यहाँ अपने ऊपर हँसने की भावना अर्थात् अपने अस्तित्व को प्रकृति के सामने परखने की भावना गरिमा के गुब्बारे को फुस्स करने के लिए सुई का कार्य कर रही है।
(ङ) पंक्चर होना सामान्यतः ट्यूब की किसी भी तरह के छोटे छिद्र से हवा निकाल देना होता है। रोमांस का तात्पर्य प्रेम-प्यार जैसी कोमल तथा महान भावनाओं से है। रोमांस की भावना का समाज ने हमेशा विरोध ही किया है, ऐसे में रोमांस का पंक्चर होना स्वभाविक है। व्यक्ति के महानतम क्षणों में कोई भी उसे चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है और व्यक्ति उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। ऐसी स्थिति के लिए लेखक ने उपयुक्त और तर्कसंगत शब्दों का चयन किया है।
चार्ली चैपलिन यानी हम सब गौर करें
1- दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।
उत्तर– सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, अपितु कला स्वयं अपने सिद्धांत लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है यह कथन बिल्कुल सही है। कला की रचना जीवन को देखकर होती है। कलाकार जीवन के अभावों, दुविधाओं को दूर करने के लिए कला की रचना कर सिद्धांत निश्चित करता है जो जीवनोपयोगी होते हैं। कभी- कभी पाठक या दर्शक कला को पढ़कर या देखकर अपने-आप उससे संदेश ग्रहण कर सिद्धांत बना लेते हैं जिससे वह जीवन में मार्ग प्रशस्त करता है।
2- कला में बेहतर क्या है- बुद्धि को प्रेरित करने वाली भावना या भावना को उकसाने वाली बुद्धि ?
उत्तर– कला में बेहतर है- बुद्धि को प्रेरित करने वाली भावना। कलाकार की बुद्धि पाठकों एवम् दर्शकों की भावनाओं आदि को उद्वेलित कर उसमें सद्भावनाओं का संचरन करती हैं। मानवीय भावनाएँ सेवा, त्याग, देया, प्रेम, सहानुभूति, परोपकार, तपस्या आदि जीवन को जीवन देती हैं। यह तभी सम्भव है जब भावना श्रेष्ठ बुद्धि से प्रेरित हो। प्रेरणा सद् होनी चाहिए। बुद्धि भावना को प्रेरित करे, उसे उकसाए नहीं। उसे सोच समझकर सद्मार्ग को अपनाने की सीख दें जो चिरस्थायी एवम् अविस्मरणीय रहे।
3- दरअसल मनुष्य स्वयं ईश्वर या नियति का विदूषक, क्लाउन, जोकर या साइड किक है।
4- सत्ता, शक्ति, बुद्धिमता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्ष में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली चार्ली हो जाता है।
5- मॉडर्न टाइम्स द ग्रेट डिक्टेटर आदि फिल्में कक्षा में दिखाई जाएँ और फिल्मों में चार्ली की भूमिका पर चर्चा की जाए।
उत्तर – प्रश्न 3, 4, 5 को विद्यार्थी स्वयं करें।