आत्मपरिचय और एक गीत कविता की व्याख्या, प्रश्न उत्तर आरोह कक्षा 12
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ!
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!
आत्मपरिचय कविता का प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘आत्म-परिचय’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके कवि ‘हरिवंश राय ‘बच्चन’ जी है। इस कविता में कवि अपना परिचय एक मुग्ध, पागल प्रेमी का देते हैं जो सभी बातों में सभी से प्यार करने को ही अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं।
आत्मपरिचय कविता की व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि जग के प्रति अपने प्यार को दर्शाना चाहता है। ‘बच्चन’ जी कहते हैं कि वह इस संसार में अपने जीवन को एक बोझ के समान मानते हैं। परन्तु जितना भी यह जीवन है इसमें वह सभी को प्यार बांटना चाहते हैं। वह अपने जीवन में सभी पलों को दूसरों को प्यार देनेके लिए खर्च करना चाहते हैं क्योंकि उनके मन में सभी के लिए प्यार भरा हुआ है। कवि कहता है कि किसी अपार शक्ति ने उसको स्पर्श करके(उसको छूकर) उसमें एक झनकार पैदा कर दी है। जिससे उसके जीवन में दूसरों के प्रति प्रेम भर गया है। बच्चन जी के जीवन की सभी अभिलाषाएँ, उमंगें पूर्ण हो चुकी हैं इसलिए उन्हें जीवन से कोई मोह नहीं है फिर भी दूसरों को प्यार देने के लिए वह अपना जीवन जी रहे हैं, अर्थात अपनी साँसों की दो तारों को वो दूसरों के प्यार के लिए निस्वार्थ भाव से चला रहे हैं।
कवि का अपने जीवन में मात्र एक कार्य ही है- प्रेम की बातों को कहना और सुनना । वह स्नेह व प्रेम की बातें करते समय कभी भी दुनिया व समाज की परवाह नहीं करते हैं। वो तो सिर्फ़ सभी से प्रेम पूर्वक बातें करना अपना कार्य मानते हैं। वह जानते हैं कि इस स्वार्थी संसार में केवल उनका अधिक सम्मान होता है जो इस संसार की बातों व कार्यों में लीन रहते हैं। अर्थात् जो सभी के साथ अपने स्वार्थ हेतु कार्य करते हैं व अपने व्यवसायों व कार्यों में लगे रहते हैं परन्तु कवि अपने प्रेम करने वाले मन के कारण प्रेम का ही गुणगान करते रहते हैं। उनका जीवन केवल प्यार बांटने के लिए ही है इसलिए वो अपने प्रेम व स्नेह से भरे मन को ही सबके सामने रखते हैं और प्यार की बातें करते हैं।
आत्मपरिचय कविता का काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
1- सभी में प्यार बांटना, प्रेम की बातें करना, प्यार का संदेश फैलाना ही कवि को अपने जीवन लक्ष्य लगता है।
2- अभिधा शब्द-शक्ति की प्रवाहमयता प्रभावपूर्ण है।
(ख) कला पक्ष
1- कवि ने सीधी-सादी आम बोलचाल की भाषा में काव्य को सजाया है और भाषा का साहित्यिक रूप प्रकट किया है।
2- अनुप्रास अलंकार, रूपक अलंकार के द्वारा काव्य सौन्दर्य में वृद्धि हुई है –
3- तुकबंदी व नाद सौन्दर्य द्वारा कविता एक गीत रूप में देखी जा सकती है।
4- साधारण शब्दों के द्वारा कवि ने अपना अनूठा परिचय प्रस्तुत किया है।
मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ!
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ!
आत्मपरिचय कविता का प्रसंग – पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि अपने मन के उफानों व अपनी कल्पना को दर्शाना चाहता है तथा वह सुख-दुख दोनों को जीवन में खुशी-खुशी स्वीकार कर मस्ती में जीवन व्यतीत करना चाहता है।
आत्मपरिचय कविता की व्याख्या – कवि कहता है कि वह अपने हृदय में जीवन के प्रति उत्तेजित करने वाले भावों को रखें हुए है और अपने मन में दूसरों को प्यार देने वाले उपहार समान भाव को भी अपनाए हुए है। अर्थात कवि के हृदय में दुःख-सुख दोनों प्रकार के भावों की जगह है। बच्चन जी इस वास्तविक संसार को अपनी दृष्टि में अधूरा मानते हैं जिसमें कल्पना का कोई स्थान नहीं है इसलिए उसको यह संसार अच्छा नहीं लगता है। वे अपने मन में सपनों से भरपूर कल्पना का संसार लिए हुए है अर्थात उनके हृदय में कल्पना व वास्तविकता से मिश्रित संसार बना हुआ है जिसमें उनको आनन्द की प्राप्ति होती है। कवि कहते हैं कि वह स्वयं अपने हृदय में प्रेम रूपी अग्नि को जलाकर रखते हैं और इस प्रेम में अपने आप को मग्न करके दूसरों को भी प्रेम में लिप्त कर लेते हैं। वह जीवन की दोनों प्रमुख स्थितियों सुख-दुःख में इस प्रेम के कारण ही मस्त रहते हैं। अर्थात जीवन के सभी कार्यों व संघर्षों का प्रेम व खुशी से सामना करते हैं। कवि कहते हैं कि यह सारा संसार मोह-माया के तूफान रूपी इस सागर को पार करने के लिए न जाने कितने मार्गों रूपी नाव को बनाने में लगा है अर्थात संसार के सभी लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए अनेक मार्गों द्वारा प्रयत्नरत हैं। लेकिन बच्चन जी इस समय भी इस माया रूपी तूफान की लहरों में न फंसकर अपने आप को मस्त व प्रसन्न चित बनाए रखे हुए हैं।
(क) भाव पक्ष
कवि अपने मन में सुख-दुःख, कल्पना, आदर्श के सभी भावों को ग्रहण किए हुए है तथा एक मुग्ध प्रेमी की तरह जीवन व संसार में मस्ती में बहता हुआ रहना चाहता है ।
(ख) कला पक्ष
1- कवि ने साधारण आम बोलचाल की भाषा का साहित्यिक रूप काव्य में प्रयुक्त किया है ।
2- तुकबंदी व नाद सौन्दर्य द्वारा कविता को एक गीत रूप में प्रस्तुत किया गया है।
3- अनुप्रास अलंकार व रूपक अलंकार के साथ-साथ विरोधाभाव अलंकार के सौन्दर्य की छटा भी प्रस्तुत पंक्तियों में विद्यमान है।
4- तत्सम्, तद्भव शब्दों के प्रयोग में सरलता व स्पष्टता के कारण प्रवाह मयता बनी है।
मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ,
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना !
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे ?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना !
आत्मपरिचय कविता का प्रसंग – पूर्ववत्। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने जीवन के यौवन काल की मस्ती व विरह की स्मृतियों का स्मरण किया है। कवि जीवन की अनन्त जिज्ञासा के विपक्ष में अपनी विस्मृति की विशेषता का वर्णन करते हैं और जग की मूर्खता को दर्शाते हैं।
आत्मपरिचय कविता की व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनी जवानी की उन यादों को ताज़ा करता है जब उनमें अत्यधिक जोश या जवानी की मस्ती व अत्यधिक खुशी का भाव रहता था। लेकिन इस मस्ती के व खुशी के भाव के साथ-साथ उनमें कुछ थकावट दुख से उत्पन्न कमजोरी भी उपस्थित थी। जिसका कारण उनको उस प्रियजन की याद आना है जो उन्हें यौवन में अत्यधिक प्रिय थी। उसी प्रियजन की याद उन्हें अन्दर ही अन्दर रूला देती है लेकिन यौवन की मस्ती ऊपरी मन से उन्हें हंसाती है अर्थात् कवि को अपनी यौवन की उन प्रिय यादों में सुख-दुख दोनों भावों का स्मरण हो आता है।
कवि कहता है कि यदि मनुष्य सच्चे दिल से कोशिश (प्रयत्न) करे तो सब सुख-दुख की स्मृतियों का त्याग हो सकता है और वास्तविक जीवन के सच को कोई क्यों नहीं समझ रहा है। इस सत्य का ज्ञान सभी मोह-माया को त्यागने के बाद ही हो सकता है। कवि को इस बात का दुख है कि केवल वहीं पर मूर्ख या नासमझ व्यक्ति होते हैं जहाँ पर कोई अधिक बुद्धिमान व समझदार व्यक्ति हो । अर्थात अपने अनजानेपन का बोध तभी होता है जब कोई यह अहसास कराए। कवि इस बात को समझ नहीं पा रहा है कि संसार के लोग बार-बार ऐसे अहसास करके क्यों मूर्ख बन रहे हैं और उन बुद्धिमान व्यक्तियों के बहकावे में आ जाते हैं व उनके संदेशों को सीखते रहते हैं। जबकि कवि अपने बारे में कहता है कि मैं एक ऐसी विधि सीख रहा हूँ जिस से मैं अपने ज्ञान को भूल सकूं तथा दूसरों को मूर्ख न बनाकर उनमें प्यार का संचार कर सकूं।
आत्मपरिचय कविता का काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
व्यक्ति को सभी सुख-दुखों की एक समान सहज स्वीकार करना चाहिए तथा आनन्दमयी बनना चाहिए। सन्तोष व आनंद ही जीवन का मूल है, जो जिज्ञासा के विपक्षी है।
(ख) कला पक्ष
1- तत्सम् शब्दावली का प्रयोग भावात्मकता के लिए प्रभावपूर्ण है।
2- आम बोलचाल की साहित्यिक भाषा का सुन्दर ढ़ंग से प्रयोग है।
3- पूर्वदीप्ति (फ्लैशबैक) पद्धति के द्वारा काव्य में रोचकता उत्पन्न हुई है।
4- प्रश्नात्मक शैली का प्रयोग काव्य सौन्दर्य में जिज्ञासा उत्पन्न करता है। विरोधात्मक पद्धति का पूर्ण काव्यांश में वर्णन है।
5- साधारण शब्दों में विचार की गहनता में कवि को पूर्ण सफलता मिली है।
6- अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता !
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ ।
आत्मपरिचय कविता का प्रसंग – पूर्ववत्। यहाँ कवि अपने और संसार के सबन्ध में अन्तर स्पष्ट कर रहा है। यहाँ कवि महल व खंडहर के उदाहरण द्वारा मनुष्य की संतुष्टि के महत्त्व पर प्रकाश डाल रहा है।
आत्मपरिचय कविता की व्याख्या – कवि अपनी तुलना सांसारिक मोह में फंसे हुए लोगों से करता है। कवि कहता है कि मेरा स्वभाव और जग के लोगों का स्वभाव व विचार अलग-अलग है। यह संसार मोह-माया में फंसा हुआ है। इसलिए कवि उसके साथ अपने सम्बन्ध में भिन्नता मानता है।
क्योंकि कवि तो अपने विचारों एवं काल्पनिकता के द्वारा न जाने कितने ऐसे संसारों को बनाकर तोड़ता रहता है अर्थात कवि की कल्पना का क्षेत्र संसार के क्षेत्र से बहुत अधिक है। सम्पूर्ण संसार इस पृथ्वी पर माया के अधीन होकर धन-दौलत इक्ट्ठा करने में लगा हुआ है लेकिन कवि को इस वैभव से कोई लगाव नही है वह अपने के प्रति मोह नहीं रखता है और न ही धन-दौलत का लालच ।
कवि प्यार की महत्ता दर्शाते हुए कहते हैं कि वह अपने रोने अर्थात दुःख में भी सभी के लिए प्रेम व अपने पन की भावना को लिए हुए है। वह अपनी ईर्ष्या व अपनी क्रान्ति को जागृत करने वाली वीरता से परिपूर्ण की आग को भी अपनी मधुर व शीतल आवाज द्वारा दबाए हुए है। कवि कहता है कि उसके पास दया व प्रेम जैसे ऐसे गुण हैं जो देखने में मात्र गुण या खंडहर के समान लगते हों परन्तु इन गुणों की महत्ता ऐसी है कि इन पर बड़े-से-बड़े राजाओं के महल भी समर्पित हो जाते हैं। अर्थात् कवि अपने संतुष्टि, दया व प्रेम रूपी टूटे-फूटे मकान के अंश के लिए विशाल भवन अर्थात धन वैभव सभी को न्यौछावर कर देते हैं।
आत्मपरिचय कविता का काव्य सौन्दर्य
क- भाव पक्ष
कवि प्रेम की महिमा गुणगान करते हैं और जगत की मोह-माया को त्याग, मस्ती, आनन्द का जीवन
(ख) कला पक्ष
1- आम बोल-चाल की साहित्यिक भाषा का सुन्दर प्रयोग है। 2- तद्भव्, तत्सम् शब्दावली की प्रचूरता है।
3- और, और में यमक, बना-बना में रूपक पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का सौन्दर्य है।
4- अनुप्रास व रूपक अलंकारों का भी सुन्दर प्रयोग हुआ है।
5- विरोधाभास पद्धति का विशेष प्रयोग है।
6- प्रतीकात्मकता द्वारा कवि ने अपने गम्भीर विचारों को साधारण व सुन्दर तरीके से सफलतापूर्वक दर्शाया है।
7- तुकबंदी के कारण गेयता का गुण पूर्ण-रूपेण विद्यमान है।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना !
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!
आत्मपरिचय कविता का प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘आत्म-परिचय’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके कवि ‘श्री हरिवंशराय ‘बच्चन’ जी हैं। इन अन्तिम पंक्तियों में कवि अपने आप को कवि न मानकर एक मुग्ध प्रेमी व मौज-मस्ती का संदेश फैलाने वाला संदेशवाहक मानते हैं।
आत्मपरिचय कविता का व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि उसकी हर दुःख की भावना को सभी लोग एक अलग अर्थ से स्वीकार करते हैं। जब कवि अपने किसी दुख के कारण रोता है तो उसकी मधुर आवाज के कारण लोग उसके रोने में भी संगीत का अनुभव कहते हैं और जब वह अपने दुखद विचारों को ज़ोर-ज़ोर से व्यक्त करता है तो लोग समझते हैं कि वह अपनी छन्दयुक्त कविताएँ बना रहे हैं । कवि चाहता है कि यह संसार उसे एक कवि कहकर न पुकारे, फिर भी न जाने क्यों वह एक कवि के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर रहा है। कवि तो अपने को को मात्र एक मुग्ध प्रेमी मानता है जो इस धरती पर प्रेम को फैलाना चाहता है।
कवि कहता है कि मैं तो उन पृथ्वी के पागल, मुग्ध प्रेमियों के रूप को धारण किए हुए हूँ जो हर समय प्रेम के नशे में चूर होकर फिरते रहते हैं।अर्थात कवि के पास अनमोल काव्य रूपी, प्रेम रूपी नशे का खजाना है। इस अनमोल काव्य को सुनकर सारा संसार प्रसन्नता से झूम उठता है और अपनेपन की भावना को ग्रहण करके खुशी से खिल कर लहराने लगता है। ‘बच्न’ जी इसी प्रेम व मस्ती के संदेश को सारे संसार में फैलाते हैं। जिससे सब मस्ती में झुमने, खुशी से लहराने लगते हैं।
आत्मपरिचय कविता का काव्य सौन्दर्य
कवि अपने आप को एक कवि रूप में न मानकर एक दुनिया का मुग्ध – प्रेमी मानता है।
(ख) कला पक्ष
1- साधारण बोलचाल की भाषा का साहित्यिक रूप का वर्णन पूर्ण काव्य में है।
2- अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है। तुकबंदी व नाद सौन्दर्य से कविता गीत रूप में गाई जा सकती है।
3- तत्सम, तद्भव शब्दों के साथ उर्दू शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।
4- सहज, सरल, स्पष्ट शब्दावली में कवि ने अपने मन की गहनता को दर्शाया है।
5- विरोधाभास पद्धति का कवि ने प्रयोग किया है।
6- प्रश्नात्मक शैली व विवरणात्मक शैली का प्रवाहमय प्रयोग है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! (एक गीत) कविता की व्याख्या
हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है
एक गीत कविता का प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘निशा- निमंत्रण’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता ‘ श्री हरिवंशराय ‘बच्चन’ जी है। इस पद्यांश में कवि निशा के निमंत्रण द्वारा मानव को अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने का संदेश देता है।
एक गीत कविता की व्याख्या – कवि कहता है कि दिन का समय बहुत शीघ्रता से चलता है और रात होने लगती है। अपने घर से गया हुआ व्यक्ति जो दिन में ही शीघ्रता से अपनी मंजिल पर पहुँचना चाहता है। वह यात्री यह सोचकर कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए जबकि वह अपनी मंजिल से कुछ ही दूरी पर है इसलिए वह सारा दिन का थका हुआ होने के बावजूद भी जल्दी-जल्दी अपने कदम रखता हुआ आगे बढ़ता है। अर्थात हर व्यक्ति यह चाहता है कि वह कठिनाइयों व माया के चक्कर में पड़ने से पहले अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें, और अपनी प्रसिद्धि पा सकें।
दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता का काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
कवि जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विलम्ब न करने का संदेश देता है।
(ख) कला पक्ष
1- साधारण आम बोलचाल की साहित्यिक भाषा का सुन्दर प्रयोग है।
2- अनुप्रास एवं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार के द्वारा काव्य सौन्दर्य में वृद्धि हुई है।
3- तुकबंदी द्वारा गेयता का गुण काव्य में विद्यमान है।
4- साधारण शब्दों में गंभीरता का संदेश कवि ने प्रवाहपूर्ण ढंग से दिया है। एक
5- वर्णनात्मक पद्धति का सुन्दर प्रयोग है।
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है
एक गीत कविता का प्रसंग – पूर्ववत्। कवि यहाँ चिड़ियां के माध्यम से पंछी के घर का चित्र पस्तुत करता है।
एक गीत कविता की व्याख्या – कवि कहता है कि रात होने से पहले जिस प्रकार चिड़िया के बच्चे चिड़िया के आने की आशा में बार-बार अपने घोसलो से बाहर आक-झांककर अपनी माँ का इंतजार करते रहते हैं और चिड़ियां भी अपने छोटे-छोटे चंचल परों (पंखों) के द्वारा शीघ्र अति शीघ्र अपने घोंसलें में पहुँचना चाहती है, उसी प्रकार घर से गए यात्री के बच्चे भी बार-बार अपने घर से बाहर रास्ते पर उसके आने की उम्मीद लगाए हुए देखते रहते हैं और यात्री भी जल्दी-जल्दी अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए प्रयास करता है क्योंकि उसको पता है कि रात के अन्धकार में उसे जाने में कठिनाई होगीं।
एक गीत कविता का काव्य सौन्दर्य
1- बच्चों का आशा के साथ अपने पिता का इंतजार करना तथा यात्री का शीघ्रता से मंजिल पर पहुँचने का दृश्य कवि ने यहाँ प्रस्तुत किया है।
(ख) कला पक्ष
1- सहज, सरल, भाषा का प्रभावपूर्ण ढंग से प्रयोग किया गया है।
2- तुकबंदी द्वारा काव्य को एक गीतरूप में प्रस्तुत किया गया है।
3- पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार से कला सौन्दर्य में वृद्धि हुई है।
4- साधारण व स्पष्ट उदाहरण द्वारा कवि ने प्रकृति के नियम के साथ गंभीर विचार प्रस्तुत किया है।
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है
एक गीत कविता का प्रसंग – पूर्ववत्। यहाँ कवि रात के माध्यम से उसके प्रति व्याकुलता और उसके महत्त्व का वर्णन करते हैं।
एक गीत कविता की व्याख्या – कवि रात के माध्यम से कहता है कि ऐसा कौन है जो कि रात होने का इंतजार करता है उससे मिलने के लिए बेचैन रहता है? और रात कहती है कि ऐसा कौन है जिसके पक्ष में चंचल, नटखट रूप धारण करके उससे सम्पर्क करूँ? इस प्रकार के प्रश्न सारी कविता के अर्थ में परिवर्तन व गति हीनता ला देते हैं अर्थात् रात के बुलावे, दुःखों के निमन्त्रण पर आखिर कौन जाना चाहता है? ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं करना चाहता है। इस प्रकार के प्रश्न ही कवि के हृदय में व्याकुलता को उत्पन्न करते हैं। इसलिए कवि सभी को शीघ्रातिशीघ्र अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कहता है क्योंकि सुख का समय कम समय के लिए आता है। अन्धकार रूपी दुःख का लम्बा समय होता है।
एक गीत कविता का काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
कवि कहता है कि रात के अन्धकार रूपी दुःख को कोई ग्रहण नहीं करता है यदि करता है तो यह बड़ी व्याकुलता की बात है।
(ख) कला पक्ष
1- साधारण बोलचाल की सरल, सरस, स्पष्ट भाषा के
2- साहित्यिक रूप का वर्णन पद्यांश में उद्धृत है।
3- तुकबंदी व नाद सौन्दर्य से कविता एक गीतरूप में प्रस्तुत की गई है।
4- प्रश्नात्मक शैली व विस्मयात्मक शैली का सुन्दर समन्वय है।
5- अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
6- जल्दी-जल्दी की आवृति द्वारा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार काव्य सौंदर्य में वृद्धि करता है।
7- तत्सम् शब्दावली की प्रचूरता है ।
आत्मपरिचय और एक गीत कविता का प्रश्न उत्तर
1- कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ। – विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?
उत्तर – कविता की प्रथम पंक्तियों में जग-जीवन को भार मानने में कवि का आशय यह है कि संसार में दूसरों को खुशी न दे पाने के कारण यह बोझ लगने लगता है। परन्तु यदि दूसरों को खुशिया हंसी देते हुए कभी समाज या यह जग बीच में आए तो कवि इसकी परवाह नहीं किया करता है। अर्थात कवि के लिए दूसरों को आनन्द व हँसी प्रदान करना ही जीवन का लक्ष्य लगता है जिसके बिना जीवन को बोझ मानता है और जो जग बीच में आए उसे रूकावट मानता है।
2- जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं- कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर– कवि कहता है कि जहाँ पर समझदार व्यक्ति रहते हैं वहीं पर नासमझ व मूर्ख व्यक्ति भी निवास करते है क्योंकि यदि सभी एक समान होंगे तो किसी को भी समझदार या नासमझ नहीं कहा जा सकता। कवि समझदार उसे मानता है जो मोह माया का त्याग कर जीवन जीता है परन्तु सारा जग ऐसा नहीं कर सकता इसलिए कवि ने दाना व नादान दोनों की बात कही है।
3- मैं और, और जग और कहाँ का नाता- पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए ।
उत्तर– इस पंक्ति में तीन बार ‘और’ शब्द का प्रयोग हुआ है। प्रथम – मैं और का अर्थ है मेरा स्वाभाव व गुण अलग हैं अलग के लिए। दूसरे ‘और’ का अर्थ योजक ‘तथा’ के रूप में हुआ है’ तथा तीसरे ‘और’ का प्रयोग भी ‘अलग’ ‘जग के गुण के लिए हुआ है। इस प्रकार कवि ने यहाँ ‘और’ शब्द के द्वारा ‘यमक’ अलंकार का चमत्कारी रूप प्रदान किया है।
4- शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर– मधुर आवाज में उत्साह पूर्ण क्रान्ति की भावना को कवि ने शीतल वाणी में आग कहकर पुकारा है। मन में क्रांति व शत्रुओं के प्रति वीरता दिखाने की भावना मन की आग रूप में कवि ने मानी है।
5. बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?
उत्तर– बच्चे कुछ पाने की आशा में नीड़ों से झाँक रहें होंगे। चिड़िया के बच्चे, चिड़िया के द्वारा उन्हें दाना-पानी खिलाने की आशा से अपने घोंसलों से झाँकते है। और यात्री के बच्चे भी उसके इन्तजार में अपने घरों से बाहर देखते हुए रहते हैं।
6. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है- की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर– इस पंक्ति ‘दिन जल्दी-जल्दी ढ़लता है’ में कवि इस विशेषता को प्रकट करना चाहता है कि सुख का समय शीघ्रतम समाप्त हो जाता है और अन्धकार व दुख का समय आ जाता है। इसलिए दिन के जल्दी-जल्दी ढलने से पहले कवि अपने लक्ष्य तक पहुँचने का संदेश देता है। कवि का मानना है कि दुःखों के आने से पहले सुखों को मस्ती व मौज के साथ अपनाना चाहिए।
आत्मपरिचय और एक गीत कविता के आस-पास
संसार में कष्टों को सहते हुए भी खुशी और मस्ती का माहौल कैसे पैदा किया जा सकता है?
उत्तर– दुःखों का उत्साह, साहस के साथ सामना करते हुए तथा दुःख-सुख के जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए मानते हुए दुख व कष्टों में भी खुशी व मस्ती का माहौल पैदा किया जा सकता है। दूसरों को खुशी देकर अपने कष्टों को कम किया जा सकता है।