वीर कुंवर सिंह पाठ का सार या सारांश, प्रश्न उत्तर क्लास 7

इस पोस्ट में हमलोग वीर कुँवर सिंह पाठ का सारांश, वीर कुँवर सिंह पाठ का प्रश्न उत्तर को पढ़ेंगे| यह पाठ क्लास 7 हिन्दी वसंत भाग 2 के चैप्टर 17 से लिया गया है|

वीर कुँवर सिंह पाठ का सार या सारांश / veer kunwar singh summary class 7  

वीर कुंवर सिंह का जीवन परिचय- इनके बचपन के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती। कहा जाता है कि इनका जन्म बिहार में शाहाबाद जिले के जगदीशपुर में सन् 1782 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम साहबजादा सिंह और माता का नाम पंचरतन कुँवर था। इनके पिता जगदीशपुर रियासत के जमींदार थे। पारिवारिक उलझनों के कारण कुंवर सिंह के पिता बचपन में उनकी ठीक से देखभाल नहीं कर पाए। कुंवर सिंह की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था उनके पिता ने घर पर ही की। घर में ही उन्होंने हिंदी, संस्कृत व फारसी सीखी। लेकिन उनका मन घुड़सवारी तलवारबाजी और कुश्ती लड़ने में अधिक लगता था। 1827 में पिता की मृत्यु के पश्चात उन्होंने रियासत की जिम्मेदारी संभाली। वे भी पिता की भाँति स्वाभिमानी व उदार विचारों वाले थे।

जब कुंवर सिंह ने जमींदारी संभाली तब ब्रिटिश हुकूमत का अत्याचार चरम सीमा पर था। कृषि, उद्योग और व्यापार का बुरा हाल था। रजवाड़ों के दरबार समाप्त हो रहे थे। भारतीयों को अपने हो देश में महत्त्वपूर्ण और ऊँची नौकरियों से वंचित किया जा रहा था। कुंवर सिंह ने संकल्प किया कि वे ब्रिटिश हुकूमत से बदला लेंगे।

जगदीशपुर के जंगलों में रहने वाले संत ‘बसुरिया बाबा’ ने कुंवर सिंह में देशभक्ति की भावना को जागृत किया। अब ये गुप्त ढंग से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाने लगे। बनारस, मथुरा, कानपुर, लखनऊ आदि स्थानों पर विद्रोह की सक्रिय योजनाएँ बनीं। 1845 से 1846 तक वे काफी सक्रिय रहे। बिहार में कार्तिक पूर्णिमा पर सोनपुर मेला लगता है, जो एक विशेष पशु मेला होता है। वीर कुंवर सिंह ने उसे अपनी गुप्त बैठकों के लिए चुना। वहीं पर सभी क्रांतिकारी मिलकर क्रांति की योजनाएँ बनाते थे ताकि अंग्रेजी सरकार को किसी प्रकार का कोई शक न हो।

सन्1857 का विद्रोह इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है जिसने अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ें हिला दी। इसमें भाग लेने वाले प्रमुख सेनानी थे नाना साहेब. तात्या टोपे, बख्त खान, अजीमुल्लाह खान, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, कुँवर सिंह, मौलवी अहमदुल्लाह, बहादुर खान और राव तुलाराम। मार्च 1857 में बैरकपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करने पर मंगल पांडे को 8 अप्रैल, 1857 को फाँसी दे दी गई। 10 मई, 1857 को ब्रिटिश अधिकारियों के विरुद्ध आंदोलन में दिल्ली पर कब्जा कर अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर को भारत का अंतिम शासक घोषित किया गया। दिल्ली के अतिरिक्त कानपुर, लखनऊ, बरेली, बुंदेलखंड और आरा में भी भीषण विद्रोह हुआ। इसी आंदोलन के आधार पर स्वतंत्रता आंदोलन की नींव पड़ी। इसी विद्रोह में वीर कुंवर सिंह का नाम उल्लेखनीय है।

युद्ध कला में ये पूर्णतया निपुण थे ये छापामार युद्ध प्रणाली के आधार पर लड़ा करते थे। एक बार उन्हें अपनी सेना के साथ गंगा पार करनी थी। अंग्रेजी सेना उनका पीछा कर रही थी। उन्होंने चतुरता से यह बात फैला दी कि वे सेना को बलिया के पास हाथियों पर चढ़ाकर पार करवाएँगे। अंग्रेज सेनापति डगलस बलिया के निकट पहुँच गया और वे सेना को शिवराजपुर नामक स्थान से नावों पर गंगा पार ले गए। यहीं अंतिम नाव पर सवार कुँवर सिंह को डगलस की गोली हाथ पर लगी तो उन्होंने अपना हाथ ही गंगा मैया को भेंट कर दिया।

वीरता के साथ-साथ इस सेनानी के हृदय में कोमल भावनाएँ भी थीं उन्होंने अनेक सामाजिक कार्यों में भी योगदान दिया स्कूलों के लिए जमीन देना, निर्धनों की सहायता करना, सड़क निर्माण कार्य करवाना, जल पूर्ति हेतु कुएँ खुदवाना, तालाब बनवाना आदि कार्य करने का सौजन्य भी इन्हें प्राप्त हुआ। सहयोगी स्वभाव-वे सभी के साथ सहयोग भावना से कार्य करते थे। हिंदू-मुसलमानों के सभी त्योहार मिलकर मनाते थे। यहाँ तक कि उनकी सेना में इब्राहिम खाँ और किफायत हुसैन उच्च पदों पर आसीन थे। 

23 अप्रैल, 1858 को जब कुँवर सिंह ने विजय पताका जगदीशपुर में फहरा तो दी लेकिन अधिक दिनों तक उन्हें इस आनंद का लाभ उठाने का सौभाग्य प्राप्त न हुआ। इसी दिन विजय उत्सव मनाते हुए लोगों ने यूनियन जैक (अंग्रेज़ों का झंडा) उतारकर अपना झंडा फहराया लेकिन इसके तीन दिन बाद 26 अप्रैल, 1858 को यह वीर इस संसार से विदा होकर अपनी अमर कहानी सदा के लिए छोड़ गया।

वीर कुँवर सिंह पाठ का प्रश्न उत्तर / veer kunwar singh question answer  

1. वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?

उत्तर – वीर कुंवर सिंह देश के वीर स्वतंत्रता सेनानी थे। उनमें स्वाभिमान एवं साहस कूट-कूट कर भरा हुआ था। वे शत्रुओं से कभी नहीं डरते थे। देश की स्वतंत्रता उनके जीवन का ध्येय था। वे अपने आम जीवन में भी उदार-हृदय के व्यक्ति थे। वे जरूरतमंदों की सहायता करते थे। वे अस्त्र-शस्त्र चलाने में कुशल थे। उनमें नेतृत्व गुण भी विशिष्ट था। वे आत्मबली थे यहाँ तक कि उन्होंने अपने हाथ को स्वयं काटकर गंगा को भेंट कर दिया। वे युद्ध-कुशल थे। छापामार-युद्ध में उनका कोई सानी न था। वे बड़े ही संवेदनशील व्यक्ति थे। वीर कुंवर सिंह दूरदर्शी व चतुर भी थे। नगर में अफवाह फैला कर अपने सैनिकों को नाव से नदी पार करवाने में सफल होना उनकी कुशाग्र बुद्धि का गुण था।
 
वीर कुँवर सिंह दानवीर भी थे। उन्होंने सेवा भावना से विद्यालय, कुओं और तालाबों के लिए भूमि -दान किया।

2. कुँवर सिंह को बचपन में किन कामों में मज़ा आता था? क्या उन्हें उन कामों से स्वतंत्रता सेनानी बनने में कुछ मदद मिली? 

उत्तर– कुँवर सिंह को बचपन में पढ़ने की बजाय घुड़सवारी, तलवारबाजी और कुश्ती लड़ने में मजा आता था। उनके इन गुणों ने उनकी स्वतंत्रता सेनानी बनने में बहुत मदद की। इन गुणों के बल पर ही वे हृष्ट-पुष्ट, चतुर, उदार, विद्रोही, युद्ध कला में दक्ष हुए थे। अति साहसी होना और नेतृत्व करने का गुण उनमें खेलों के माध्यम से ही आया।

3. सांप्रदायिक सद्भाव में कुँवर सिंह की गहरी आस्था थी-पाठ के आधार पर कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर – कुँवर सिंह की साम्प्रदायिक सद्भाव में गहन आस्था थी। उनकी सेना में इब्राहीम खाँ और किफायत
हुसैन नामक मुस्लिम युवा उच्च पदों पर आसीन थे। उनके यहाँ हिंदू-मुस्लिम त्योहारों को एक-साथ मनाया जाता कुँवर सिंह जी ने विद्यालयों के साथ-साथ मकतब/मदरसे भी खुलवाए। इतना ही नहीं उन्होंने हिंदू-मुस्लिम
था। भेदभाव भुलाकर सभी के लिए कुएँ, तालाब बनवाए।

4. पाठ के किन प्रसंगों से आपको पता चलता है कि कुँवर सिंह साहसी, उदार एवं स्वाभिमानी व्यक्ति थे? 

उत्तर– अपनी रियासत की जिम्मेदारी संभालने के बाद ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने का संकल्प उनकी स्वाभिमानी प्रवृति को उजागर करता है। भारतीयों को महत्वपूर्ण और ऊँची नौकरियों से वंचित करने से अंग्रेजों के खिलाफ उनके दिल में चिंगारियाँ सुलग उठीं । वे अत्यंत साहसी व्यक्ति थे। डगलस की गोली से हाथ घायल हो जाने पर उन्होंने अपना हाथ स्वयं काटकर गंगा को अर्पित कर दिया। अंग्रेजों से परास्त होने पर भी वे निराश नहीं हुए। उन्होंने एक बार असफल होने पर भी आजादी की आग को निरंतर जलाए रखा। कुंवर सिंह के नाम से अंग्रेजी सेना थरती थी उनकी विजय सेना को आगे बढ़ता देख अंग्रेज बौखला गए थे। अंततः उन्होंने इलाहाबाद और बनारस पर अधिकार कर लिया था।

5. आमतौर पर मेले मनोरंजन, खरीद फरोख्त एवं मेलजोल के लिए होते हैं। वीर कुंवर सिंह ने मेले का उपयोग किस रूप में किया?

उत्तर– यद्यपि मेले मनोरंजन, खरीद-फरोख्त एवं मेल-जोल के लिए होते हैं। परन्तु, वीर कुवँर सिंह ने देश की आजादी को जीतने के लिए मेलों को क्रांतिकारियों के लिए गढ़ सिद्ध कर दिया। उन्होंने बिहार के प्रसिद्ध सोनपुर मेले को अपनी गुप्त बैठकों की योजना के लिए चुना। यह मेला एशिया का सबसे बड़ा मेला था। इसी ऐतिहासिक मेले को वीर कुंवर सिंह ने स्वाधीनता के लिए लोगों को एकत्र करने का उपयुक्त स्थान के रूप में चुना।

वीर कुँवर सिंह निबंध से आगे

1. सन् 1857 के आंदोलन में भाग लेनेवाले किन्हीं चार सेनानियों पर दो-दो वाक्य लिखिए।

उत्तर – 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक वीर-वीरांगनाओं ने पाग लिया। परन्तु, लक्ष्मीबाई ने भारत से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। उन्होंने स्वतंत्रता-संग्राम में अपनी बलि दे दी। मंगल पांडे ने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हँसते-हँसते फाँसी का फंदा चूम लिया। ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के विरूद्ध बिगुल बजाने वाला यही सूत्रधार था।
 
तात्या टोपे ने अपनी वीरता-तराई के बल पर अनेक बार अंग्रेजों के दाँत खट्टे किए। परन्तु, अपने ही एक गद्दार राजमित्र के द्वारा ये छले गए।

2. सन् 1857 के क्रांतिकारियों से संबंधित गीत विभिन्न भाषाओं और बोलियों में गाए जाते हैं। ऐसे कुछ गीतों को संकलित कीजिए।

विद्यार्थी स्वयं करें।

 वीर कुँवर सिंह पाठ का अनुमान और कल्पना

1. वीर कुँवर सिंह का पढ़ने के साथ-साथ कुश्ती और घुड़सवारी में अधिक मन लगता था। आपको पढ़ने के अलावा और किन-किन गतिविधियों या कामों में खूब मज़ा आता है? लिखिए।

उत्तर – सत्य है केवल पाठ्यक्रम तक सीमित रहने से ही बच्चे का चहुँमुखी विकास नहीं होता है। बच्चे के आंतरिक व बाह्य-व्यक्तित्व के विकास के लिए पाठ्य-क्रम से हटकर कुछ विशेष प्रयत्न करने पड़ते हैं। हम अपने बाह्य व्यक्तित्व के विकास के लिए जितने प्रत्यनशील हैं, उतने ही आन्तरिक व्यक्तित्व के विकास के लिए भी। इसीलिए हम अवकाश के क्षणों में तैराकी के लिए नदी/ नहर पर जाते हैं। कहते हैं तैराकी एक सम्पूर्ण व्यायाम है। केवल इसी क्रिया में सम्पूर्ण शरीर का व्यायाम हो जाता है। वास्तव में, तैराकी जहाँ मनोरंजक है, वहीं इसके फायदे भी अनगिनत हैं। हम नियमित रूप से संगीत-नृत्य में भी रूचि लेते हैं। संगीत-नृत्य और अनुशासन का परस्पर गहन सम्बन्ध है। संगीत-नृत्य के माध्यम से बच्चों में पारस्परिक सहयोग, समता एवं सह-भाव जागृत होते हैं। संगीत-नृत्य से मिलने वाला आत्मिक सुख विशेष ही होता है। बागवानी के माध्यम से हम अपने वातावरण के प्रति जागरूक रहते हैं। 

2. सन् 1857 में अगर आप 12 वर्ष के होते तो क्या करते? कल्पना करके लिखिए। 

उत्तर – यदि हम सन् 1857 के स्वतंत्रता-संग्राम में बारह वर्ष के होते तो यकीनन मजा आ जाता। निश्चित रूप से एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मैं अगुआई करता। मैं बच्चों की एक ऐसी फौज तैयार करता, जिसका नाम सुनकर अंग्रेजी सेना हमसे लड़ने की बजाए अपनी जान बचाने को इधर-उधर छिपती-फिरती। मैं अपनी सेना में ऐसे बच्चों को शामिल करता, जो शारीरिक रूप से तो हष्ट-पुष्ट होते ही, बौद्धिक व मानसिक रूप से भी भली-प्रकार स्वस्थ होते। हम अपनी समस्त शक्तियों का मानव हित में प्रयोग करते। अपनी दीन-हीन जनता के मन में जागरूकता, स्फूर्ति और आशा का संचार करते। देखते-देखते हर व्यक्ति के मन में भारतीयता का बिगुल बज उठता। तब भारत को मुक्ति देना अंग्रेजों की विवशता बन जाती। यदि यह सब इस तरह संभव होता कि हमें नर-संहार जैसे अमानवीय कार्य करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।

3. अनुमान लगाइए, स्वाधीनता की योजना बनाने के लिए सोनपुर के मेले को क्यों चुना गया होगा?

उत्तर– स्वाधीनता की योजना बनाने हेतु सोनपुर के मेले को चुना गया क्योंकि यह मेला एक पशु मेला होता था जिसमें अधिकतर हाथियों का क्रय-विक्रय होता था। इस मेले में इतनी भीड़ होती थी कि यदि स्वतंत्रता सेनानी यहाँ कोई योजना बनाने हेतु एकत्रित हो भी जाए तो अंग्रेज़ी सरकार को कभी शक नहीं हो सकता था।

वीर कुँवर सिंह के भाषा की बात

आप जानते हैं कि किसी शब्द को बहुवचन में प्रयोग करने पर उसकी वर्तनी में बदलाव आता है। जैसे-सेनानी एक व्यक्ति के लिए प्रयोग करते हैं और सेनानियों एक से अधिक के लिए। सेनानी शब्द की वर्तनी में बदलाव यह हुआ है कि अंत के वर्ण ‘नी’ की मात्रा दीर्घ ी’ (ई) से हस्व ” (इ) हो गई है। ऐसे शब्दों को, जिनके अंत में दीर्घ ईकार होता है, बहुवचन बनाने पर वह इकार हो जाता है, यदि शब्द के अंत में ह्रस्व इकार होता है, तो उसमें परिवर्तन नहीं होता जैसे-दृष्टि से दृष्टियों।
 
नीचे दिए गए शब्दों का वचन बदलिए
उत्तर– 
नीति= नीतियाँ 
स्थाति= स्थितियों 
जिम्मेदारीयों= जिम्मेदारी
स्वाभिमानियों= स्वाभिमानी 
सलामी= सलामियों
गोली= गोलियों

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