खानपान की बदलती तसवीर पाठ का सारांश क्लास 7

खानपान की बदलती तसवीर का सारांश / khanpan ki badalti tasveer ka summary 

दस से पंद्रह वर्षों में खानपान की संस्कृति में काफी बदलाव आया है। दक्षिण भारत व उत्तर भारत के भोजन काफी हद तक पूरे देश में अपना स्थान बना चुके हैं। दक्षिण भारत का इडली-डोसा, बड़ा-साँभर-रसम दक्षिण भारत में ही नहीं उत्तर भारत में भी पूर्णतया उपलब्ध हैं और उत्तर भारत के ढाबे व उनमें उपलब्ध रोटी-दाल साग पूरे देश में मिलेंगे। फास्ट फूड का चलन भी कम नहीं। बर्गर व नूडल्स सभी स्थानों पर खाए-परोसे जाते हैं। आलू चिप्स, गुजराती ढोकला, गाठिया बंगाली मिठाइयाँ सब जगह पर समान रूप से मिलने लगी हैं। सभी प्रदेशों के व्यंजन सभी स्थानों पर मिलने लगे हैं जबकि पहले यही प्रांत की विशेषता होते थे। ब्रेड जो पहले केवल अमीरों के घरों में ही आती थी अब वह कस्बे तक में पहुँच चुकी है। ब्रेड नाश्ते के रूप में लाखों करोड़ों भारतीय घरों में सेंकी-तली जाती है।

खानपान की बदलती तसवीर में  बदलती संस्कृति के खानपान से नई पीढ़ी काफी प्रभावित हुई है। यह वर्ग पहले ही स्थानीय व्यंजनों के बारे में कम जानता था लेकिन अब यह वर्ग नए व्यंजनों के बारे में अधिक जानता है। स्थानीय व्यंजन भी तो दिन-प्रतिदिन घटते जा रहे हैं जैसे-छोले-कुलचे व पाव-भाजी आदि।आज नए दौर में भले ही कुछ मशहूर चीजें अपना प्रभुत्व बनाए हैं जैसे-मथुरा के पेड़े, आगरे का पेठा व नमकीन आदि लेकिन उनकी गुणवत्ता उतनी नहीं रही और दूसरी ओर समयाभाव के कारण मौसम और ऋतुओं के अनुसार व्यंजन अब बनते ही नहीं। शहरी जीवन की भागमभाग व महँगाई के कारण आज उन्हीं देशी-विदेशी व्यंजनों को अपनाया जा रहा है जिन्हें बनाने पकाने की सुविधा हो। मेवों से बने व्यंजन खाना हर आदमी के लिए संभव नहीं रहा क्योंकि महँगे मेवे हर कोई नहीं खरीद सकता।  देश -विदेश के व्यंजनों का चलन होने से खानपान की एक मिश्रित संस्कृति बनी है।

खानपान से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलता है | खानपान की दृष्टि से सभी प्रांत एक-दूसरे के पास-पास आए हैं। इससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिला है। इसे और बढ़ाने के लिए हमें चाहिए कि हम खाद्य पदार्थों के साथ-साथ एक-दूसरे की भाषा, बोली व वेशभूषा को भी जानने का प्रयत्न करें।

आधुनिक दुनिया की ओर बढ़ने के साथ-साथ हमें अपने स्थानीय व्यंजनों को बढ़ावा देना चाहिए। कई व्यंजन जो आम रूप में मिला करते थे वे आज पाँच सितारा होटलों में ही मिलने लगे हैं। उत्तर भारत की पूड़ियाँ, कचौड़ियाँ, जलेबियाँ व सब्जियों से बने समोसे अब बाजारों से गायब होते जा रहे हैं। आधुनिकता के दौर में भी हम स्थानीय व्यंजनों को छोड़ते जा रहे हैं और पश्चिम के जो पदार्थ स्वाद स्वास्थ्य और सरसता लिए हैं उन्हें अपनाते जा रहे हैं। स्थानीय व्यंजनों का पुनरुद्धार अति आवश्यक है।

खानपान की बदलती तसवीर पाठ में यह बताया गया है की मिश्रित संस्कृति से हम कई बार चीजों का वास्तविक स्वाद नहीं ले पाते कई बार प्रीतिभोजों व पार्टियों (समारोहों) में एक ही प्लेट में विविध प्रकार के व्यंजन परोस लिए जाते हैं जिनसे किसी का भी स्वाद हम सही रूप में नहीं ले पाते। आज आधुनिकता के दौर में खानपान की मिश्रित संस्कृति बढ़ती जा रही है। हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम समयानुसार उसकी जाँच करते रहें।

 
khanpan ki badalti tasveer ka sar, khan pan ki badalti tasveer ki drawing

Related Posts

error: Content is protected !!