इस पोस्ट में हमलोग जब सिनेमा ने बोलना सीखा का सारांश, जब सिनेमा ने बोलना सीखा का प्रश्न उत्तर का अध्ययन करेंगे| जब सिनेमा ने बोलना सीखा पाठ क्लास 8 हिन्दी वसंत भाग 3 के चैप्टर 11 से लिया गया है|
जब सिनेमा ने बोलना सीखा का सारांश / jab sinema ne bolana sikha summary
जब सिनेमा ने बोलना सीखा’ श्री प्रदीप तिवारी दवारा लिखा एक निबंध है। इस निबंध में लेखक ने मूक फिल्मों के बदलते स्वरूप और सवाक् फिल्मों के आगमन का अति सुंदर चित्रण किया है। – लेखक ने निबंध का प्रारंभ देश की पहली सवाक् फिल्म ‘आलम आरा’ के पोस्टर पर लिखी पंक्तियों से किया है, जो इस प्रकार से है-
‘सभी सजीव हैं, सांस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए उनको बोलते, बातें करते देखो।’
14 मार्च, सन् 1931 का दिन भारतीय सिनेमा के इतिहास का सबसे बड़ा और चमत्कारी दिन था, क्योंकि इसी दिन भारतीय सिनेमा ने बोलना सीखा इसी दिन से बोलती फिल्मों का नया युग प्रारंभ हो गया। प्रथम बोलती फिल्म का नाम आलमआरा’ था। इसे बनाने वाले निर्देशक का नाम आर्देशिर एम० ईरानी था। उन्होंने सन् 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी और बोलती फिल्म बनाने का निश्चय कर लिया। उन्होंने अपनी फिल्म का आधार पारसी नाटक को बनाया इस नाटक के कई गीत ज्यों-के-त्यों फिल्म में ले लिए गए। आलम आरा का संगीत उस समय डिस्क फॉर्म में रिकॉर्ड नहीं किया जा सका था। फिल्म की शूटिंग शुरू हुई, तो साउंड के कारण इसकी शूटिंग रात को करनी पड़ी।’आलम आरा’ की शूटिंग रात में करने के कारण इसमें कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था की गई। यहाँ से प्रकाश प्रणाली का प्रारंभ हुआ, जो बाद में फिल्म निर्माण का एक आवश्यक अंग बन गया।
‘आलम आरा’ मे भविष्य को अनेक अभिनेता, निर्देशक और तकनीशियन को दिए, जिन्होंने सिनेमा जगत में नाम कमाया। अर्देशिर की कंपनी ने भारतीय सिनेमा के लिए लगभग सौ सवा सौ फिल्में बनाई। आलम आरा फिल्म ‘अरेविपन नाइट्स’ जैसी फैटेसी थी। फिल्म काम करने वाला प्रत्येक कलाकार अद्भुत और अनोखा था। फिल्म की नायिका जुबैदा और नायक विठ्ठल। विट्ठल उस समय सबसे अधिक पारिश्रमिक पाने वाले अभिनेता थे। इस फिल्म में उर्दू और हिंदी का अनूठा संयोजन था। इसमें गीत, संगीत का अद्भुत संगम था। विट्ठल के चयन से आलमआरा फिल्म अत्यंत लोकप्रिय हुई। विट्ठल का चयन पहले नायक के रूप में किया गया था, लेकिन उर्दू ठीक से न बोल पाने के कारण उन्हें निकाल दिया गया। इस बात से दुखी होकर उन्होंने न्यायालय की शरण ली। उनका मुकदमा उस समय के जाने-माने वकील मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा और वह अपना मुकदमा भी जीते। तब वे भारत की पहली सवाक फिल्म के अभिनेता बने। इसके बाद उन्होंने अनेक फिल्मों में नायक और स्टंटमैन के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई। उस समय उनके साथ आलमआरा में सोहराम मोदो, पृथ्वीराज कपूर याकूल और जगदीश सेवी जैसे अभिनेता भी थे।
आगे चलकर ये अभिनेता भारतीय फिल्म उद्योग के आधारस्तंभ बने। आलमआरा’ का प्रदर्शन 14 मार्च सन् 1931 को मुंबई के मजेस्टिक’ सिनेमा हॉल में हुआ। यह फिल्म आठ सप्ताह तक हाउसफुल चली। इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती थी। भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस-नियंत्रण से बाहर भी चली जाती थी। समीक्षकों ने उस समय इस फिल्म को ‘भड़कीली फैंटेसी’ फिल्म करार दिया था। यह फिल्म दस हजार पुट लंबी थी। इसे बनाने में कुल चार महीने का समय लगा था।
आलमआरा फिल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर अत्यधिक विनम्र और साधारण स्वभाव के थे। उनकी विनम्रता का परिचय इसी बात से मिलता है कि जब उन्हें ‘भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता’ कहा गया तो उन्होंने उस समय कहा था “मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।” ‘आलम आरा’ के प्रदर्शन के बाद से ‘गायक-अभिनेता’ बड़े परदे पर दिखाई देने लगे सिनेमा में देह और तकनीक को भाषा के स्थान पर सामान्य जन में प्रचलित भाषाओं का एक नवीन युग प्रारंभ हो गया।
अभिनेता और अभिनेत्रियों की लोकप्रियता का प्रभाव उस युग के दर्शकों पर खूब पड़ रहा था। ‘माधुरी’ नाम की फिल्म में नायिका सुलोचना का हेयर स्टाइल उस युग में औरतों की पहली पसंद थी। भारतीय सिनेमा के जनक फाल्के को ‘सवाक्’ सिनेमा के जनक अर्देशिर ईरानी की उपलब्धि को अपनाना ही था, क्योंकि वहाँ से सिनेमा का एक नया युग शुरू हो गया था।
जब सिनेमा ने बोलना सीखा प्रश्न उत्तर / jab cinema ne bolana sikha question answer class 8
कुछ करने को
1.जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए?क्या पोस्टर पढ़कर बताया जा सकता है कि उस फिल्म में कितने चेहरे थे?
उत्तर– जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तब उसके पोस्टर पर लिखा था कि वे सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो। उस पोस्टर की पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि फिल्म में अठहत्तर लोगों ने अभिनय किया था।
2. पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलम आरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? व्यक्त कीजिए।
उत्तर– फिल्मकार अर्देशिर एम ईरानी को बोलती फिल्म बनाने की प्रेरणा 1929 में हालीवुड की फिल्म ‘शो बोट’ देखकर मिली। उन्होंने यह फिल्म पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर तैयार की।
3. विट्ठल का चयन आलमआरा के नायक के रूप में हुआ लेकिन हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुनः नायक होने के लिए क्या किया?
उत्तर– विट्ठल को उर्दू बोलनी नहीं आती थी इसलिए उन्हें आलम आरा फिल्म में नायक की भूमिका से हटा दिया गया । नायक की भूमिका से हटाए जाने पर विठ्ठल ने मुकदमा दायर कर दिया । उनका यह मुकदमा मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा। विट्ठल यह मुकदमा जीत गए और पुनः फिल्म के नायक की भूमिका उन्हें मिल गई।
4. पहली सवाक फिल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तो सम्मान कर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा? अर्देशिर ने क्या कहा? और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है?
पाठ के आगे
1-मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है पर जब वह बोलने लगी तो अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ को आधार लेकर खोजें, साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।
उत्तर– मूक फिल्मों में केवल अभिनय होता था, संवाद नहीं बोले जाते थे। इसलिए निरक्षर व्यक्ति भी अभिनय कर सकते थे। सवाक् फिल्मों में पढ़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों की जरूरत पड़ती है। सवाक फिल्मों में अभिनय के साथ-साथ संवाद भी बोलने पड़ते हैं। गीत-संगीत की आवश्यकता पड़ने से संगीतज्ञों, गायकों की भी जरूरत पड़ती है। सवाक फिल्मों में प्रकाश व्यवस्था, दृश्य-विधान भी महत्त्वपूर्ण हो गए।
2- डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुंह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?
जब सिनेमा ने बोलना सीखा अनुमान और कल्पना
1. किसी मूक सिनेमा में बिना आवाज़ के ठहाकेदार हँसी कैसी दिखेगी? अभिनय करके अनुभव कीजिए।
उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करें
2. मूक फिल्म देखने का एक उपाय यह है कि आप टेलीविजन की आवाज़ बंद करके फिल्म देखें। उसकी कहानी को समझने का प्रयास करें और अनुमान लगाएँ कि फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी कितनी है?
जब सिनेमा ने बोलना सीखा भाषा की बात
1. सवाक् शब्द वाक्य के पहले ‘स’ लगाने से बना है। स उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होनेवाले परिवर्तन को बताएँ। हित, परिवार, विनय, चित्र, बल, सम्मान।
स+सम्मान=ससम्मान (सम्मान के साथ)
2. उपसर्ग और प्रत्यय दोनों ही शब्दांश होते हैं। वाक्य में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। इन दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में हिंदी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं-अ/अन, नि, दु, क/कु, स/सु, अध, बिन, औ आदि। पाठ में आए उपसर्ग और प्रत्यय युक्त शब्दों के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं-
मूल शब्द | उपसर्ग | प्रत्यय | शब्द |
वाक् | – | वाक् | सवाक् |
लोचन | सु | आ | सुलोचना |
फिल्म | – | कार | फिल्मकार |
कामयाब | – | ई | कामयाबी |
इस प्रकार के 15-15 उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए।
मूल शब्द | उपसर्ग | प्रत्यय | शब्द |
गीत | – | कार | गीतकार |
वाद | सम् | – | संवाद |
अधिक | – | तर | अधिकतर |
धार | आ | – | आधार |
लेख | – | अक | लेखक |
जीव | स | – | सजीव |
भारत | – | ईय | भारतीय |
ज्ञापन | वि | – | विज्ञापन |
नय | अभि | – | अभिनय |
विंब | प्रति | – | प्रतिविम्ब |
देश | – | ई | देशी |
कला | – | कार | कलाकार |
मुख | प्र | – | प्रमुख |